तेलंगाना में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के प्रयासों से नक्काला समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) Nakkala community is classified as a Scheduled Tribe (ST) का प्रमाणपत्र फिर से मिलने लगा है। नक्काला समुदाय घुमंतू है, जिन्हें पारधी भी कहा जाता है। इस कारण इस समुदाय के अधिकांश लोग बेघर हैं। इन्हें किसी सरकारी सुविधा का लाभ भी नहीं मिल पाता। इन सबको देखते हुए आठ वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित संस्था ‘सामाजिक समरसता वेदिका’ social harmony altar ने नक्काला समुदाय के लिए कार्य करना शुरू किया।
कार्यकर्ताओं ने तय किया कि सबसे पहले नक्काला समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाया जाए। इसके लिए कार्यकर्ताओं ने प्रशासन के सामने आवेदन करके उस पर सतत दबाव बनाया। अंतत: तेलंगाना सरकार ने नक्काला समुदाय को उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं, परंपराओं और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की गहन समीक्षा के बाद अनुसूचित जनजाति का दर्जा बहाल कर दिया था। गत 21 मई को तहसीलदार श्रीकांत के नेतृत्व में राजस्व विभाग का एक दल मुष्यमपेट पहुंचा और उसने वहां के नक्काला समुदाय के लोगों को एस.टी. का प्रमाणपत्र दिया। यह गांव मेडक जिले के पोगुटा इलाके में पड़ता है।

लगभग 20,000 हैं नक्काला
एक आंकड़े के अनुसार तेलंगाना में नक्काला समुदाय की जनसंख्या करीब 20,000 है। इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ‘सामाजिक समरसता वेदिका’ दो स्थानों पर अनेक प्रकल्प चला रही है। ये दो स्थान हैं-सिद्धीपेट जिले में चिन्न मुष्यपेट और वारंगल जिले में बुर्राकायाल गुडेम गांव।
उल्लेखनीय है कि इस गांव में रहने वाले नक्काला समुदाय को पहले एस.टी. का दर्जा प्राप्त था। बाद में जागरूकता की कमी और उपहास के कारण इन लोगों ने खुद को एस.टी. के रूप में पहचानना बंद कर दिया। इसका इन्हें नुकसान हुआ। ये लोग सरकारी सुविधाओं से वंचित हो गए। अब एस.टी. का दर्जा फिर से मिलने से इस समुदाय में नई आस बंधी है। उनका कहना है कि बच्चों को पढ़ाई और नौकरी में एस.टी. होने का लाभ मिलेगा।
‘सामाजिक समरसता वेदिका’ के संयोजक अप्पाला प्रसाद कहते हैं, “नक्काला ऐतिहासिक रूप से हिंदू परंपरा में विश्वास करते हैं। यह समुदाय खानाबदोश जीवन बिताता है, लेकिन रीति-रिवाजों और धार्मिक प्रथाओं का पालन दृढ़ता से करता है। ये लोग दुर्गा पूजा, काली पूजा, शिवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहारों को मनाते हैं। आजीविका के लिए पशु पालते हैं। इसके साथ ही सड़क किनारे करतब आदि दिखाते हैं।”
बता दें कि आठ साल पहले ‘सामाजिक समरसता वेदिका’ के कार्यकर्ता इस समुदाय के गांवों में गए थे। उसी दौरान उनकी समस्याओं की जानकारी मिली। तब से ‘सामाजिक समरसता वेदिका’ ने नक्काला के लिए खुद को समर्पित कर दिया है। इस संस्था ने इस समुदाय के लिए अनेक प्रकल्प चलाए हैं। इसके साथ ही उनके कानूनी मामलों को भी सुलझाया है। यही नहीं, तेलंगाना के राज्यपाल तक उनकी समस्याओं को पहुंचाया।
इस कारण इनकी प्रगति के अनेक रोड़े हट गए हैं। संस्था इस समुदाय के सांस्कृतिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी कार्य कर रही है। ये लोग जिन त्योहारों को भूल गए थे, उन्हें मनाने लगे हैं। बच्चों को पढ़ाने लगे हैं। संस्था ने इन बच्चों के लिए ट्यूशन सेंटर स्थापित किए हैं। वहां पढ़ने की सामग्री उपलब्ध है। संस्था इनके लिए स्वास्थ्य शिविर भी लगाती है। अब ये लोग नशा भी नहीं करते हैं। कह सकते हैं कि संस्था ने इस समुदाय के लोगों को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया है।
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