कराची आर्ट्स काउंसिल जैसे प्रतिष्ठित मंच पर रामायण का मंचन होना एक साहसिक और सकारात्मक कदम है
पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले कराची शहर में रामलीला का मंचन! यह सुनकर सहसा भरोसा नहीं आता, लेकिन यह सच है। पिछले तीन दिन उस शहर के लोगों ने राम के जीवन चरित पर आधारित इस नाट्य प्रस्तुति का आनंद लिया। वहां के मशहूर ‘मौज’ थिएटर ग्रुप ने इस रामलीला का मंचन किया था। गजब की कलात्मक अभिव्यक्ति और भगवान राम के जीवन प्रसंगों से जुड़ी घटनाओं का सुंदर चित्रण किया गया। हालांकि यह मंचन सफल हो पाएगा कि नहीं इसे लेकर बहुतों के मन में शंकाएं थीं, लेकिन ‘मौज’ के निर्देशक इसकी सफलता को लेकर इतने आश्वस्त थे कि तमाम किन्तु—परन्तुओं में से रास्ता निकालते हुए उन्होंने मंच पर इसे प्रस्तुत करके लोगों की वाहवाही बटोरी। क्या सिंध के क्षेत्र में इसे बदलाव का संकेत माना जाए?
कराची जैसे शहर में रामायण का मंचन होना यह सवाल भी पैदा करता है कि क्या वहां के समाज में इस विविधता को स्वीकार करने वाले लोग बचे हैं? इस प्रस्तुति के निर्देशक योगेश्वर करेरा का साफ कहना है कि उन्हें कट्टरपंथी तत्वों से इसके विरोध की आशंका थी, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। योगेश्वर के अनुसार, आम जनता में कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रति सम्मान दिखा है।
इसमें संदह नहीं है कि कराची आर्ट्स काउंसिल जैसे प्रतिष्ठित मंच पर रामायण का मंचन होना एक साहसिक और सकारात्मक कदम है। इस पर दर्शकों की उत्साह से भरी प्रतिक्रिया मिलना इस बात का संकेत है कि वहां मजहबी बंदिशों से परे जाकर कला को सराहने वाले कुछ लोग मौजूद हैं।
कमाल की बात यह भी है कि इस प्रस्तुति में एआई तकनीक का उपयोग करके रामायण के घटनाक्रमों को जीवंत बनाया गया। पेड़ों के हिलने, महलों का वैीाव दिखाने और जंगल की शांत नीरवता दर्शाने में एआई ने गजब का योगदान दिया। यानी आधुनिक तकनीक और पारंपरिक कथा के मेल का सुंदर उदाहरण देखने को मिला, जो युवा पीढ़ी को भी इस मंचन से जोड़ने में सहायक साबित हो सकता है। कराची में लोगों ने इसे पसंद किया।
दरअसल यह नाटक 8 महीने पहले भी प्रस्तुत किया गया था। नवंबर 2024 में कराची के टी2एफ नामक सभागार में इसे मंचित किया गया था, जिसमें इसे काफी सराहना मिली थी। अब उसी नाटक को कराची की आर्ट्स काउंसिल में 11 से 13 जुलाई तक और ज्यादा भव्य रूप में दोबारा प्रस्तुत किया गया।
इस प्रस्तुति की निर्माता राणा काजमी ने सीता का किरदार निभाया, राम की भूमिका अश्मल लालवानी ने निभाई और बने थे सम्हान गाजी। अन्य मुख्य पात्रों में शामिल हैं आमिर अली (राजा दशरथ), वक्कास अख्तर (लक्ष्मण), जिबरान खान (हनुमान), सना तोहा (रानी कैकेयी) और अली शेर (अभिमंत्री)।
प्रस्तुति को लाइव म्यूजिक, रंगीन परिधानों और शानदार प्रकाश व्यवस्था ने और भव्यता प्रदान की। कराची के नाट्य समीक्षक ओमैर अलवी ने इसकी कहानी कहने में बरती गई ईमानदारी और पूरी प्रस्तुति की सराहना की।
सीता की भूमिका निभाने वाली राणा काजमी ने इस अनुभव को “यादगार” बताया। उनका कहना है कि कलाकारों ने न केवल अभिनय किया, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी दिया कि ऐसी गाथाएं केवल समुदाय विशेष की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की साझा विरासत हैं। सोशल मीडिया पर भी इस मंचन को सराहना मिली, लोगों ने अपने कमेंट्स में इसे एक साहसिक कदम बताया।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में मजहबी कट्टरता सिर चढ़कर बोलती है। किसी अन्य मत—पंथ के प्रति सहिष्णुता वहां गाहे—बगाहे ही दिखाई देती है। इस माहौल में रामायण जैसे हिंदू महाकाव्य का मंचन बिना किसी विरोध के संपन्न होना एक सुखद अहसास कराता है।
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