देहरादून: देवभूमि में इस्लामिक गतिविधियों को एक सोची समझी साजिश के तहत क्या फैलाया गया ? वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को देख कर तो ऐसा ही लगता है। पहले सरकारी भूमि पर कब्जे करो फिर उन्हें वक्फ की संपत्ति घोषित करवा कर अपना कब्जा पुख्ता करवा लो ताकि प्रशासन उस पर हाथ न डाल पाए। उत्तराखंड राज्य बनने के दौरान 2 हजार के करीब वक्फ संपत्तियां यूपी के दस्तावेजों से इधर आई जिनकी संख्या अब ढ़ाई गुणी बढ़ चुकी है।
13 जिलों के इस छोटे से राज्य में जिसे सनातन की दृष्टि से देवभूमि, अध्यात्म की राजधानी भी कहा जाता है। अब वक्फ की संपत्तियों में मस्जिदों में सबसे ज्यादा कब्रिस्तान हैं। जी हां ये सच है वक्फ बोर्ड की सूची पर नजर डाले तो यहां 725 मस्जिदें है जबकि 769 कब्रिस्तान हैं। हालांकि ये माना जाता है कि इतनी ही मस्जिदें, अभी वक्फ बोर्ड ने दर्ज नहीं हैं।
राज्य में वक्फ बोर्ड की 203 मजारें
सबसे ज्यादा हैरानी करने की बात मजारों को लेकर सामने आई है, राज्य में 203 मजारें और दरगाहें वक्फ बोर्ड में दर्ज की गई है। बताया जाता है कि जब राज्य में कांग्रेस की सरकार रही वक्फ में ऐसी संपतियों को दर्ज करवाने के लिए एक अभियान चलाया गया जो कि सरकारी भूमि पर कब्जे कर बनाई गई थी। इनमें ज्यादातर मजारें हैं।
अब तक 538 मजारें ध्वस्त हुईं
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड की धामी सरकार ने अब तक 538 अवैध मजारों को ध्वस्त किया है। अभी वक्फ मजारों का नंबर लगभग नहीं के बराबर लगा है। एक सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड में 1023 मजारे थीं, जिनमें से ज्यादातर अवैध रूप से या कहे सरकारी भूमि कब्जाने की नियत से बनाई गई। उत्तराखंड में 5,388 वक्फ संपत्तियां है। जिनमें ईदगाह, मदरसे, मकान, दुकानें, कृषि भूमि आदि हैं। राज्य में 2129 औकाफ़ संपतियों (दान में दी गई) को भी दर्ज किया गया है।
एक ही नाम की दर्जनों मजारें
दिलचस्प बात मजारों को लेकर सामने आई है। वो ये कि एक ही नाम की दर्जनों मजारें है, अब सवाल ये उठता है कि एक व्यक्ति एक ही स्थान पर दफनाया गया होगा या अनेक स्थानों पर उसकी कब्र बना दी गई ? ये भी सवाल है कि उन्हें कब्रस्तान पर क्यों नहीं दफनाया गया ? सड़क किनारे कहीं-कहीं तो नाली किनारे मजार बना दी गई क्या ये उक्त फकीर के साथ सही आदर किया गया होगा?
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देहरादून में सैय्यद नाम की मजारों की भरमार
देहरादून जिले में सैय्यद नाम से एक दर्जन से अधिक मजारें हैं, भूरे शाह और कालू सैय्यद के नाम से राज्य में कई मजारे हैं। कुछ वक्फ बोर्ड में है कुछ नहीं ? तो क्या ये फ्रेंचाइजी मजारें हैं जो कि सरकारी जमीन कब्जाने की नियत से फिर उस पर ढोंग का कारोबार करने के लिए बनाई गई? जानकारी के मुताबिक पिछले दो सालों में धामी सरकार द्वारा सैकड़ों अवैध मजारों को ध्वस्त किए जाने के दौरान भी कई खादिमों ने इन धार्मिक संरचनाओं के वक्फ में दर्ज कराने के लिए प्रयास किए किंतु उनके प्रयास प्रशासनिक तंत्र ने उन्हें नाकाम कर दिया।
मुसलमान नहीं जाते इन मजारों पर
ये हाल तब है जब ज्यादा मुस्लिम मजारों में सजदा नहीं करते, ये मजारे सिर्फ हिंदुओं की भावनाओं से आस्था का खिलवाड़ करने, ताबीज, झाड़ा का धंधा करने के लिए बिजनेस कर रही है। जितनी भी धामी सरकार ने अवैध मजारे हटाई है उनकी किसी भी मिट्टी में कोई मानवीय अथवा किसी भी प्रकार का अवशेष नहीं निकला।
राज्य में अभी भी 300 से अधिक अवैध मजारें
अभी भी उत्तराखंड में करीब 3 सौ से अधिक अवैध मजारे है जिन्हें सरकारी अथवा निजी भूमि पर अतिक्रमण करके बनाया गया है। धामी सरकार सबसे पहले इन्हें ही हटा कर अपनी भूमि खाली करवाएगी।
मुख्यमंत्री धामी का बयान
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि हमारा अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा है। 6500 एकड़ से अधिक सरकारी भूमि खाली कराई गई है, हरी नीली चादर का धंधा नहीं होने दिया जाएगा। एक नाम से दस-दस पंद्रह पंद्रह फ्रेंचाइजी मजारें, सिर्फ ढोंग का कारोबार कर रही है। सवाल ये है कि माना कोई पीर फकीर है वो एक ही जगह तो दफनाया गया होगा या दस जगह? ये खेल देवभूमि में नहीं चलेगा, ये सनातन की भूमि है इसका देव स्वरूप बनाए रखना हमारी सरकार का पहला कर्तव्य है।
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