पाकिस्तान, जो इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का अस्थायी सदस्य है, जुलाई 2025 में अपनी एक महीने की अध्यक्षता का फायदा उठाने की तैयारी में है। वह एक खुली बहस आयोजित करने जा रहा है, जिसका फोकस वैश्विक विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने पर होगा। लेकिन इस बार पाकिस्तान ने कश्मीर का जिक्र करने से परहेज करने की रणनीति बनाई है। इसका कारण साफ है—कश्मीर का नाम लेने से प्रस्ताव पर वीटो का खतरा बढ़ सकता है। UNSC में कोई प्रस्ताव पास होने के लिए नौ वोट चाहिए, जिसमें पांच स्थायी सदस्यों—अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन—की सहमति जरूरी है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, 22 जुलाई को न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के विदेश मंत्री और उप प्रधानमंत्री इशाक डार इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इस बैठक का विषय ‘विश्व में लंबित विवादों का शांतिपूर्ण समाधान’ रखा गया है। ये बैठक संयुक्त राष्ट्र के चार्टर VI के तहत आयोजित की जा रही है। माना जा रहा है कि इसके अंत में पाकिस्तान एक प्रस्ताव भी पेश करेगा। हालांकि, भले ही पाकिस्तान कश्मीर से दूरी बना रहा हो, लेकिन सिंधु जल समझौता और कश्मीर का मुद्दा ही उसका असल एजेंडा है।
कश्मीर से दूरी
पाकिस्तान इस बहस में एक ऐसा प्रस्ताव लाने की कोशिश करेगा, जो सामान्य और सैद्धांतिक हो। इसमें UN चार्टर के तहत उपलब्ध शांतिपूर्ण तरीकों, जैसे बातचीत और मध्यस्थता, पर जोर होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि कश्मीर जैसे खास मुद्दों का नाम लेने से बचकर पाकिस्तान वीटो की आशंका को टालना चाहता है। भारत के पूर्व UN राजदूत सैयद अकबरुद्दीन के मुताबिक, “पाकिस्तान को पता है कि चीन को छोड़कर बाकी स्थायी सदस्य कश्मीर को भारत-पाक के बीच का द्विपक्षीय मसला मानते हैं।” इसलिए, कश्मीर का जिक्र करने से प्रस्ताव खारिज हो सकता है, और पाकिस्तान ऐसा जोखिम नहीं लेना चाहता।
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UN और OIC के बीच सहयोग की पहल
पाकिस्तान अपनी अध्यक्षता का इस्तेमाल एक और बड़े आयोजन के लिए भी करेगा, जिसमें संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के बीच सहयोग बढ़ाने पर चर्चा होगी। OIC के 57 सदस्य देश हैं, और यह संगठन पहले भी कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दे चुका है। इस आयोजन के जरिए पाकिस्तान अपनी वैश्विक छवि को मजबूत करने की कोशिश करेगा, लेकिन इसमें भी कश्मीर का सीधा जिक्र करने से बचेगा। इसका मकसद है ज्यादा से ज्यादा देशों का समर्थन हासिल करना और विवादों से बचना।
पहलगाम हमले के बाद बढ़ा तनाव
पाकिस्तान की यह रणनीति ऐसे वक्त में सामने आ रही है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए थे। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली थी। जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए। UNSC ने इस हमले की निंदा की, लेकिन पाकिस्तान और चीन ने UNSC के बयान को कमजोर करने की कोशिश की। उन्होंने भारत सरकार के साथ सहयोग की बात को हटवाकर “सभी संबंधित प्राधिकरणों” का जिक्र करवाया।
भारत की कूटनीतिक जीत
भारत ने इस पूरे मामले में अपनी कूटनीति से बाजी मारी। उसने UNSC के 13 सदस्य देशों के राजदूतों को पहलगाम हमले और अपनी कार्रवाई की पूरी जानकारी दी। भारत ने साफ किया कि उसकी कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ थी और वह किसी भी सैन्य टकराव का जवाब देने को तैयार है। भारत ने पाकिस्तान के आतंकी समर्थन और चीन की भूमिका को भी उजागर किया, जिससे उसकी स्थिति UNSC में और मजबूत हुई।
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पाकिस्तान की UNSC में यह रणनीति सावधानी भरी है। वह कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों से बचकर वैश्विक मंच पर अपनी छवि सुधारना चाहता है। वहीं, भारत की मजबूत कूटनीति ने पाकिस्तान की राह को और मुश्किल कर दिया है। कुल मिलाकर, यह दौर दोनों देशों के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से बेहद अहम है।
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