जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द
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जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कैटरीना स्टैकपूल ने मुस्लिम अप्रवासियों के लिए संघर्ष किया, मगर LGBT समुदाय को उन्हीं से धोखा मिला। जानिए हैमट्रैक विवाद की पूरी सच्चाई....

by सोनाली मिश्रा
Jul 12, 2025, 08:51 pm IST
in विश्व
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एक बहुत ही मशहूर गाना है, जिसके बोल हैं “सब कुछ लुटाकर होश में आए तो क्या किया?” या फिर एक कहावत का उदाहरण लेते हैं, जैसे “अब पछताए का होत, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत!”! ये दोनों ही बातें अमेरिका के मिशिगन के एक शहर हैमट्रैंक की समलैंगिक काउंसिल वुमन कैटरीना स्टैकपूल की एक पोस्ट से साबित होती है, जिन्होनें मुस्लिम आप्रवसियों के अमेरिका आगमन का समर्थन किया था। उनके लिए भोजन और आवास जैसी व्यवस्थाओं की बात की थी।

उन्होनें मुस्लिम आप्रवासियों के लिए हर प्रकार की सुविधा की व्यवस्था के लिए समर्थन की लड़ाई लड़ी थी। मगर उन्हें जब समर्थन के बदले में धोखा मिला तो उनके दिल की पीड़ा सामने आई।

क्या है मामला..?

वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार डेट्राइट के उत्तर में एक छोटा सा कस्बा है हैमट्रैंक, जो केवल दो स्क्वेर मील में फैला है और एक समय में वह मल्टीकल्चर का केंद्र था। पहले जहां यह पोलिश लोगों की बहुलता वाला शहर हुआ करता था और उसे “लिटल वॉरसॉ” भी कहा जाता था, वह धीरे-धीरे बांग्लादेशी और यमन के मुस्लिम समुदायों के बसने के बाद मुस्लिम बहुल शहर हो गया।

मजे की बात यह है कि इसी मल्टीकल्चर के लिए वहाँ के समलैंगिक समुदाय के लोगों ने समर्थन भी किया था। और उससे भी और बेहतर तब हुआ जब वर्ष 2021 में इस शहर मे जो काउन्सल चुनी गई, वह अमेरिका की एकमात्र “ऑल-मुस्लिम काउंसिल” थी और उसका मेयर था यमन में पैदा हुआ अमीर ग़ालिब!

जब 2021 में ऐसा हुआ होगा, तो यह बात तो निश्चित है कि सबसे अधिक वेही लोग खुश हुए होंगे, जिन्होनें इस मल्टी कल्चर के लिए इतना श्रम किया होगा। जब ऐसा हुआ था, तो वहाँ के लोगों ने इसे इस शहर की प्रगतिशीलता के रूप में देखा था।

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मगर यह खुशी वर्ष 2023 मे तब काफूर हो गई, जब इसी परिषद ने जून 2023 में प्राइड मंथ के दौरान आयोजित की जाने वाली तमाम परेड और अन्य आयोजनों पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि वह हर ऐसे समूह के लिए दरवाजे बंद कर रहे हैं, जो चरमपंथी या फिर नस्लवादी हो सकता है।

मेयर अमीर ग़ालिब ने उस समय इस कदम को एकदम सही ठहराया था। और तभी पूर्व काउंसिल सदस्य कैटरीना स्टैकपूल, जो खुद को gay (समलैंगिक) कहती हैं, उन्होनें निराश होकर कहा था कि “”हमने खाना, कपड़े और घर ढूँढ़ने में मदद के लिए गैर-लाभकारी संस्थाएँ बनाईं। हमने आपके यहाँ आने को आसान बनाने के लिए हर संभव कोशिश की, और आप हमारी पीठ में छुरा घोंपकर इस तरह हमारा बदला चुका रहे हैं?”

मगर इस बात का कोई भी असर एकमात्र ऑल मुस्लिम काउंसिल पर नहीं पड़ा था और वह परेड नहीं हुई था। चूंकि इस वर्ष भी ऐसा कोई भी आयोजन नहीं हुआ है, तो एक बार फिर से सोशल मीडिया पर कैटरीना का यह हताश वाक्य निशाने पर है।

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लोग यह सही प्रश्न कर रहे हैं कि समलैंगिक समुदाय और एलजीबीटी समुदाय सबसे अधिक मुस्लिम समुदाय के लिए प्रदर्शन करता है, और शेष अन्य समुदायों को वह अत्याचारी ठहराता है। जबकि जैसे ही मुस्लिमों के हाथ में सत्ता आती है, वैसे ही इसी समुदाय के लोग सबसे ज्यादा अत्याचार के शिकार होते हैं।

यहाँ तक कि कैटरीना को बाद में हयूमेन रिलेशन कमीशन से भी हटा दिया गया था, क्योंकि उन्होनें प्रतिबंध के बाद भी एलजीबीटी के झंडे को फहराया था।

कैटरीना कोई साधारण महिला नहीं हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार वे 2008-2013 तक सिटी काउंसिल की सदस्य रहीं और उन्होनें अप्रावासी समुदाय के साथ मिलकर उनके घर, भोजन और सामाजिक समर्थन खोजने के लिए काम किया।

ऐसा कहा जाए कि उन्होनें मुस्लिम आप्रवासियों को शहर में बसाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, मगर जब उनके ही कथित समुदाय के साथ ऐसा हुआ, तो कैटरीना का भावनात्मक नैराश्य सामने आया था।

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इस वर्ष एक बार फिर से लोग कैटरीना के बहाने यह बातें कर रहे हैं कि कैटरीना ने यह संदेश बहुत मुश्किल से सीखा कि जो लोग अच्छे दिखाई देते हैं, वह अच्छे होते नहीं हैं।

कुछ कह रहे हैं कि सही हुआ। ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए।

कैटरीना के इन शब्दों से परे यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि लेफ्ट की आइडियोंलोजी वाला एलजीबीटी आंदोलन मजहबी कट्टर लोगों के पक्ष में अभियान चलाता है और वह कभी भी मजहबी हिंसा का शिकार हुए समलैंगिक लोगों के पक्ष में आवाज नहीं उठाता है?

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