Interview: ‘देश की एकता और अखंडता के लिए काम करता है संघ’-अरविंद नेताम
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देश की एकता और अखंडता के लिए काम करता है संघ : अरविंद नेताम

कभी इंदिरा गांधी और नरसिम्हा राव मंत्रिमंडल में केंद्रीय मंत्री रह चुके, जनजातीय समाज की एक मुखर आवाज वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम से रा.स्व. संघ से उनकी निकटता, जनजातीय समाज के मुद्दों और कन्वर्जन की चुनौती पर पाञ्चजन्य संपादक हितेश शंकर ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में जगदलपुर जाकर विभिन्न मुद्दों पर बात की

by हितेश शंकर
Jul 12, 2025, 09:50 am IST
in संघ, साक्षात्कार
वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम

वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम

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हाल ही में आप कार्यकर्ता विकास वर्ग (द्वितीय) के समापन सत्र में भाग लेने नागपुर गए थे। वहां आपका उद्बोधन हुआ। संघ के साथ इस निकटता से आपको कैसा अनुभव हुआ?
देखिए, मैं हमेशा से दिल से बस्तर और जनजातीय अंचलों में किए जा रहे कन्वर्जन के मामलों को गंभीरता से लेता रहा हूं। मैं हृदय से कह रहा हूं, खासकर कन्वर्जन के मामलों को लेकर, बस्तर में जो स्थिति है, उसे मैं पिछले 25-30 वर्षों से बहुत निकटता से देखता आया हूं। जब मैंने देखा कि इस संकट से निपटने के लिए कौन-सा संगठन प्रभावी रूप से कुछ कर सकता है, तो मुझे लगा कि केवल संघ ही एक ऐसा संगठन है जो इसमें मदद कर सकता है। इसी भाव से मैंने सरसंघचालक डाॅ. मोहन भागवत को पत्र लिखा था। उस समय उनकी अन्य व्यस्तताएं थीं, लेकिन श्री रामलाल जी आए और फिर संवाद का सेतु बना। उनके साथ मेरी विस्तार से चर्चा हुई। इसके बाद मुझे नागपुर आने का निमंत्रण मिला और वहां जाकर जो मैंने देखा, सुना और समझा, उससे मेरी पहले की कई धारणाएं बदलीं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भारत की एकता और सामाजिक समरसता के लिए सबसे संगठित और प्रभावी संस्था आज संघ ही है। मेरा मानना है कि राष्ट्र के लिए, सामाजिक समरसता के लिए जिस तरह संघ काम करता है, वैसा कोई और संगठन नहीं कर सकता। देश की एकता और अखंडता के लिए संघ ही काम कर सकता है।

बहुत से लोग संघ को राजनीति के चश्मे से देखते हैं। आप इस बारे में क्या कहेंगे?
देखिए, अब जो राजनीति में होगा, तो उसका तो काम यही है कि हर चीज को राजनीति के नजरिए से देखे। मैं तो भाग्यशाली हूं कि मुझे संघ ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने कार्यक्रम में बुलाया। मैं तो इसी मौके की तलाश में था कि कैसे संघ के मंच पर अपनी बात, समाज की बात को रखूं। मैं जब नागपुर गया तो मुझे लगा कि मैं सही मंच पर पहुंचा हूं। संघ का जो सामाजिक-सांस्कृतिक कार्य है, वह राजनीति से अलग और कहीं अधिक व्यापक है।

संघ ने आपको अपने कार्यक्रम में भी बुलाया, स्वागत भी हुआ, सम्मान भी हुआ और संवाद का एक सेतु भी बना। कांग्रेस में इसकी कैसी प्रतिक्रिया रही? आपको कुछ फोन आए, कुछ बात हुई?
नहीं, चूंकि कांग्रेस से मेरा नाता करीब-करीब टूट ही चुका है। मेरी किसी से कोई बात नहीं हुई। मैंने 2023 से पहले ही कांग्रेस से नाता तोड़ लिया था, कोई संस्थागत प्रतिक्रिया नहीं आई। हां, कुछ परिचितों ने कहा कि मुझे नहीं जाना चाहिए था। पर मैंने स्पष्ट किया कि यह कोई राजनीतिक मंच नहीं, एक सामाजिक-सांस्कृतिक संवाद था, जहां मुझे अपने समाज की बात रखने का अवसर मिला। मैंने कहा कि अगर आपकी विचारधारा में कुछ संशोधन की गुंजाइश है, तो कीजिए।

आपने कन्वर्जन को सबसे बड़ी पीड़ा बताया है। इस अनुभव के बारे में विस्तार से बताएंगे?
मेरे जीवन में इससे बड़ी पीड़ा और कुछ नहीं हो सकती। देखिए, हमारी अपनी परंपराएं हैं, अपने रीति-रिवाज हैं। बचपन से हम जिन परंपराओं को निभाते आए हैं, जिस अनुसार रहते आए हैं, यदि कोई उन सबको गलत बताए, लोगों को भटकाए, कन्वर्जन कराए तो इससे बड़ी पीड़ा क्या हो सकती है! यह बेहद चिंता का विषय है। आज तक इतनी हिंसा हुई, कितनी ही जानें गईं, उसमें जनजातीय समाज का ही नुकसान हुआ। कन्वर्जन करने वाली ताकतों का तो कुछ नहीं बिगड़ा।

यह मेरे लिए असहनीय है। मैं स्वयं एक पुजारी परिवार से हूं। हमारे रीति-रिवाज़, परंपराएं, पूजा पद्धति-ये सब हमारी आत्मा हैं। हमारे यहां पुजारी होना केवल कर्मकांड नहीं होता, वह संस्कार की परंपरा है। जब समाज के ही लोग अपने मूल से कटकर किसी और राह पर जाते हैं, तो वह गहरी पीड़ा देता है। समाज में उस व्यक्ति से तत्काल दूरी बन जाती है। वह समाज से कट जाता है। समाज के साथ उनका संबंध खत्म हो जाता है। जैसे बर्लिन की दीवार खड़ी हो गई हो। सनातन परंपरा से जनजातीय समाज को कभी समस्या नहीं रही। वे स्वयं को उसी धारा का हिस्सा मानते हैं। लेकिन कन्वर्जन का कांटा बहुत पीड़ा देता है। मेरी कोशिश यही है कि जनजाति समाज संघ को समझे और संघ इस समाज को और निकट से देखे।

क्या कन्वर्जन और नक्सलवाद के बीच कोई संबंध है?
अबूझमाड़ जैसे क्षेत्रों में बिना नक्सलियों की सहमति के कोई गतिविधि नहीं हो सकती। मिशनरियों और नक्सलियों के बीच एक प्रकार का मौन तालमेल हमेशा रहा है। नक्सलियों ने कभी किसी पादरी या मिशन स्कूल को नुकसान नहीं पहुंचाया। इसका तो अर्थ यही हुआ न कि उनके बीच कुछ न कुछ गठजोड़ जरूर है।

क्या भाषा, परंपराओं और तीज-त्योहारों पर कन्वर्जन का असर दिखने लगा है?
जिन लोगों ने कन्वर्जन किया, उन्होंने अपने त्योहार भी छोड़ दिए हैं। धीरे-धीरे यह प्रभाव हमारे आचार-व्यवहार पर भी पड़ेगा। मोबाइल कल्चर और पाश्चात्य प्रभाव से यह संकट और बढ़ेगा। कन्वर्जन के कारण समाज में दीवार खड़ी हो जाती है। जैसे ही पता चलता है कि कोई व्यक्ति कन्वर्जन कर चुका है, सामाजिक संबंध समाप्त हो जाते हैं। लालच, चिकित्सा, शिक्षा या अन्य किसी माध्यम से यदि कन्वर्जन कराया जाता है, तो वह केवल पांथिक परिवर्तन नहीं होता, वह सांस्कृतिक हत्या होती है।

आपने कभी कन्वर्जन की चिंता को कांग्रेस के मंच पर रखा?
मैंने कांग्रेस के मंचों पर इस विषय को उठाया, पर वहां मौन ही प्रतिक्रिया रही। मौन समर्थन जैसा ही था। निर्णय न लेना भी एक प्रकार का निर्णय होता है। आज भी यह विषय कांग्रेस के लिए प्राथमिकता में नहीं है। उनके पास रटे-रटाए उत्तर होते हैं। वास्तविकता सब जानते हैं, पर उसके बारे में कोई बोलता नहीं है।

बस्तर नक्सलवाद मुक्त कैसे होगा? आप इस राह को कैसे देखते हैं?
देखिए, अभी भारत सरकार की जो कार्यशैली है, उससे नक्सलवाद पर काफी लगाम लग चुकी है। इसके लिए मैं सरकार को धन्यवाद भी देता हूं, लेकिन जो विचारधारा है वह मरती तो है नहीं। इसके लिए हमें सबसे ज्यादा शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है। दूसरा है स्वास्थ्य, जिसकी आड़ में कन्वर्जन किया जाता है। इन दोनों बातों को प्राथमिकता पर रखकर काम किया जाए तो नक्सलवाद का खत्म होना पूरी तरह संभव है। बाकी तो छोटी-छोटी चीजें हैं।

कन्वर्जन के तरीके क्या हैं? क्या आपको लगता है कि लालच, भय और धोखे से यह हो रहा है?
जी, बिल्कुल। मेडिकल सुविधा, दवा, शिक्षा, कपड़ा—ऐसी सब चीजों का लालच देकर कन्वर्जन किया जाता है। कोई बीमार हुआ, उसे एक गोली पानी में मिलाकर दे दी। वह ठीक हो गया, तो उसे कहा गया कि यह प्रभु का प्रसाद था। पैसा और नाैकरी दिलाने जैसे प्रलोभन देकर भी कन्वर्जन कराया जाता है।

 जब आप जनजातीय समाज के ऐसे लोगों से मिलते हैं जिनका कन्वर्जन किया जा चुका है, तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
हां, बहुत से लोगों से मिलना होता है, लेकिन उनको पहले ही इस कदर ब्रेनवॉश किया जा चुका होता है कि उनकी घर वापसी कराना बेहद कठिन होता है। मेरी सबसे बड़ी चिंता भी यही है कि इसका कोई प्रभावी उत्तर नहीं दिया जा रहा है। सामाजिक परिप्रेक्ष्य से काम नहीं हो रहा। जब तक समाज स्वयं खड़ा नहीं होगा, तब तक इसे रोका नहीं जा सकता। जब तक आप समाज को उसकी अपनी परंपरा और जीवन पद्धति से नहीं जोड़ेंगे, तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा।

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम से बातचीत करते पाञ्चजन्य संपादक हितेश शंकर

नई पीढ़ी को आप समाज से किस प्रकार जोड़ना चाहते हैं?
नई पीढ़ी को जागरूक करना बहुत आवश्यक है। मैं चाहता हूं कि जनप्रतिनिधि पहले सामाजिक कार्यकर्ता बनें, फिर राजनेता। आज उलटा हो रहा है। समाज की नब्ज को समझना जरूरी है।

छत्तीसगढ़ में जनजातीय समाज को साथ लेकर विकास का क्या रोडमैप होना चाहिए? अभी जो सरकार है, क्या वह पहले से अलग है?
सरकार कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की, मैं हमेशा से इस मामले में यही कहता रहा हूं कि आप जब भी विकास करें, तो समाज को भी विश्वास में लेने की कोशिश करें। विकास मॉडल थोपने की बजाय समाज को विश्वास में लेकर विकास किए जाने की जरूरत है। जनजातीय समुदाय से आने वाले जनप्रतिनिधियों को सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका से आना चाहिए, केवल राजनीतिक आकांक्षा से नहीं। यहां पर एक संवाद-आधारित विकास मॉडल की आवश्यकता है।

अंत में आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
देश के लिए, समाज की अस्मिता के लिए कन्वर्जन सबसे बड़ा खतरा है। यह सांस्कृतिक और सामाजिक आत्महत्या है। इसे रोकना समाज, शासन और हर भारतीय की जिम्मेदारी है।

Topics: Arvind Netamदेश की एकता और अखंडताunity and integrity of the countryरा.स्व.संघconversion and Naxalismजनजातीय समाजidentity of societySarsanghchalak Dr. Mohan Bhagwatcultural and social suicidetribal societyकन्वर्जन और नक्सलवादपाञ्चजन्य विशेषसमाज की अस्मिताअबूझमाड़सांस्कृतिक और सामाजिक आत्महत्याRSSAbujhmadअरविंद नेताम
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