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सेना में जासूसी और साइबर खतरे : कितना सुरक्षित है भारत..?

अभी हाल ही में आए जासूसी मामलों ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है। ISI और सोशल मीडिया के ज़रिए भारत को निशाना बना रही दुश्मन ताक़तें। जानिए सेना की जवाबी रणनीतियों का विश्लेषण...

by लेफ्टिनेंट जनरल एम के दास,पीवीएसएम, बार टू एसएम, वीएसएम ( सेवानिवृत)
Jul 10, 2025, 10:00 pm IST
in भारत, रक्षा, विश्लेषण, विज्ञान और तकनीक
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जासूसी की दो घटनाएं हाल ही में सामने आई हैं। एक सेना के जवान और दूसरी नौसेना के नाविक द्वारा। इससे देशवाशियों को जरूर चिंता हुई होगी। हमने परिवर्तनकारी डिजिटल इंडिया का एक दशक पूरा किया है, लेकिन साथ ही नई साइबर सुरक्षा संबंधित समस्याएं भी बढी हैं। हमारे पड़ोस में जैसा वातावरण है, उससे यह और चुनौतीपूर्ण हो जाता है। हालांकि भारतीय नौसेना और वायुसेना ने भी साइबर सुरक्षा उपायों को मजबूत किया है।

पहले हमें भारतीय सेना में साइबर सुरक्षा की चुनौती की भयावहता को समझना चाहिए। 12 लाख की मजबूत भारतीय सेना के लिए, प्रत्येक सैनिक और अधिकारी ने भारतीय आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 (Indian Official Secrets Act, 1923) में हस्ताक्षर किए हैं। इस कानून का उद्देश्य जासूसी और वर्गीकृत जानकारी को बाहर आने से रोकना है। यह विदेशी शक्तियों के साथ गुप्त सूचना साझा करने को अपराध बनाता है, फिर भी कुछ जवान हमारी शत्रु खुफिया एजेंसियों के षड्यंत्रों के शिकार हो जाते हैं।

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सेवारत सैनिकों के अलावा, कुछ जानकारी एकत्र करने या पुष्टि करने के लिए विदेशी एजेंसियों द्वारा सैनिकों के परिवार को भी लक्षित किया जाता है। इसलिए, भारतीय सेना के सामने उन जवानों के परिवारों को संवेदनशील बनाने की भी बड़ी चुनौती है, जिनके पास कुछ गोपनीय जानकारी हो सकती है।

पाकिस्तान की आईएसआई का नेटवर्क रहता है एक्टिव

पाकिस्तान में ISI द्वारा संचालित पुरुषों और महिलाओं का एक अच्छी तरह से स्थापित नेटवर्क है, जिनका मुख्य काम भारतीय सेना की परिचालन योजनाओं, तैनात स्थान और सैनिकों की आवाजाही के बारे में किसी भी प्रकार की संवेदनशील जानकारी प्राप्त करना है। इन्हें भारतीय सेना के अधिकारियों, सैनिकों और उनके भोले-भाले परिवारों को टारगेट करने का काम सौंपा जाता है। इन लोगों को पाकिस्तान इंटेलिजेंस ऑपरेटिव (पीआईओ) कहा जाता है।

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स्मार्टफोन की आसान उपलब्धता के साथ, पीआईओ के लिए किसी न किसी बहाने से हमारे सैनिकों और अधिकारियों को निशाना बनाना बहुत आसान हो गया है। पहले, पीआईओ हमारी रक्षा संचार प्रणाली को भेदने में भी सक्षम थे, लेकिन अब भारतीय सेना ने इस प्रणाली को सख्त कर दिया है। अब पीआईओ के लिए सेना के टेलीफोन नेटवर्क में घुसना लगभग असंभव है।

सोशल मीडिया पर नजर रखते हैं दुश्मन

दुश्मन खुफिया एजेंसियों ने सैनिकों और अधिकारियों को निशाना बनाने का एक और तरीका ढूंढ लिया। फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया ऐप के माध्यम से हमारे सैनिकों और उनके परिवारों से संपर्क करते हैं। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए सेना को काफी प्रयास करना पड़ा। भारतीय सेना की साइबर नीति के अनुसार, अधिकांश सोशल नेटवर्क जैसे फेसबुक, एक्स और मीडिया शेयरिंग ऐप जैसे इंस्टाग्राम, टिकटॉक, स्नैपचैट आदि अधिकारियों और सैनिकों के लिए प्रतिबंधित हैं। यहां तक कि जवानों और सैनिकों के परिवारों को भी इस तरह के ऐप के इस्तेमाल के खिलाफ सलाह दी जाती है। भारतीय सेना अपने कार्यालयों में स्मार्टफोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की हद तक चली गई है। इसके अलावा, किसी भी प्रजेंटेशन और सोच-विचार आदि में स्मार्टफोन का उपयोग वर्जित है।

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डिजिटल इंडिया अभियान के हिस्से के रूप में, भारतीय सेना भी बड़े पैमाने पर स्वचालन के लिए चली गई। धीरे-धीरे, सूचना के तेजी से प्रसार के लिए परस्पर जुड़े नेटवर्कों पर जोर दिया गया। 12 लाख मजबूत जनशक्ति का व्यक्तिगत दस्तावेज अपने आप में चुनौतीपूर्ण है। दस्तावेजों का डिजिटलीकरण किया गया और उन्हें सेना के सुरक्षित सर्वर में रखा गया। जहां तक संभव हो, कागज के उपयोग को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

भारतीय सेना में चूक स्वीकार नहीं

भारतीय सेना हर महीने बहुत गंभीर साइबर सुरक्षा जांच करती है। प्रत्येक कार्यालय और प्रत्येक कंप्यूटर को स्कैन किया जाता है और किसी भी दुरुपयोग के लिए जांच की जाती है। इसके अतिरिक्त, औचक जांचें भी की जाती हैं। किसी को नहीं बख्शा जाता है। यहां तक कि बहुत वरिष्ठ अधिकारियों को भी विशेषज्ञ एजेंसियों द्वारा लेखा परीक्षा से गुजरना पड़ता है। चूक होने पर कड़ी सजा दी जाती है। मुझे पता है कि भारतीय सेना ने ऐसे मामलों में कड़े कदम उठाए हैं, जिनमें मामूली साइबर सुरक्षा तक का उल्लंघन देखा गया। अब मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि भारतीय सेना के सभी रैंक और उनके परिवार साइबर सुरक्षा खतरों के प्रति पूरी तरह संवेदनशील हैं।

गोपनीय जानकारी नहीं हो सकती लीक

जहां तक ऑपरेशनल और युद्ध योजनाओं का सवाल है, भारतीय सेना ने कंप्यूटरों पर किसी भी वर्गीकृत जानकारी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के लिए भी सिर्फ अवर्गीकृत जानकारी का इस्तेमाल किया जाता है। सभी गोपनीय योजनाएं और डेटा पुराने दिनों की तरह हाथ से लिखे जाते हैं। इस तरह की वर्गीकृत जानकारी को कुछ चुनिंदा लोगों के सख्त नियंत्रण में रखा जाता है। सारी जानकारी Need To Know Basis पर दी जाती है। जासूसी रैकेट में पकड़े गए सैनिकों के पास कोई भी प्रमुख संवेदनशील जानकारी होने की संभावना नहीं है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। फिर भी, ऐसे चूककर्ताओं को पकड़ने और दंडित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए।

राष्ट्र और डेटा दोनों की सुरक्षा

निजी सुरक्षा के अलावा भारतीय सेना के हर अधिकारी और सैनिक को साइबर आतंकियों के खतरे में रहना पड़ता है। उनका परिवार भी इसी किस्म के खतरे का सामना करता है। हम समझते हैं कि डेटा, खासकर जो गोपनीय है, हमारे विरोधियों द्वारा तकनीकी प्रभुत्व के लिए वास्तविक शक्ति है। लेकिन भारतीय सेना ने किसी भी बड़े साइबर खतरे को बेअसर करने के लिए सख्त नियंत्रण और संतुलन को संस्थागत रूप दिया है। फिर भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), डिजिटल हैकिंग और अंतरिक्ष-आधारित खतरों जैसी नई चुनौतियां बनी हुई हैं। भारतीय सेना डिजिटल इंडिया अभियान में सबसे आगे रही है लेकिन साथ ही डेटा संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिए सख्त कदम उठाए हैं।

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