विश्लेषण

मजहबी ममदानी

न्यूयॉर्क के मेयर पद के उम्मीदवार जोहरान के बोल हमेशा हिंदू विरोधी रहे हैं। खुद को सोशलिस्ट बताने वाला यह व्यक्ति असल में वामपंथी लबादा ओढ़े हुए है

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मृदुल त्यागी

कोई भी इस्लामिक जिहादी जब सार्वजनिक मंच या जीवन में आता है, तो खुद को सोशलिस्ट (पढ़ें-वामपंथी) के रूप में पेश करता है। इस प्रकार उसे इस्लाम के अलावा दुनिया के हर संप्रदाय और खासकर हिंदू धर्म को गाली देने की छूट मिलती है। न्यूयॉर्क सिटी के मेयर पद का डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जोहरान ममदानी इसका अपवाद नहीं है। उसका सोशलिज्म असल में इस्लाम का प्रच्छन्न रूप है। उसकी विचारधारा वही है, जो दस जनपथ से जॉर्ज सोरोस के घर तक, वाया मदरसा आती है।

भारत से अमेरिका तक एक एजेंडा

न्यूयॉर्क सिटी को अरबपतियों का शहर कहा जाता है। दुनिया के सबसे दौलतमंद लोगों का ठिकाना। ऐसे में एक उम्मीदवार डेमोक्रेटिक (असल में- इस्लामपरस्त) पार्टी की तरफ से आता है, जो आने वाले ‘अमेरिका का केजरीवाल’ है। जिस तरह डीप स्टेट ने अरविंद केजरीवाल को सुनियोजित तरीके से लोक-लुभावन नारों और हिंदू विरोध के साथ तैयार किया, उसी का दूसरा संस्करण जोहरान भी है। राहुल गांधी आज देश में क्या यही नहीं कर रहे? देश के हिसाब से इनके नाम बदलते हैं, चेहरे बदलते हैं, लेकिन अंदर सब एक-सा है।

वंश, विचारधारा और एजेंडा

ममदानी कुख्यात हिंदू विरोधी फिल्मकार मीरा नायर का पुत्र है। वही मीरा नायर जो नाम भर की हिंदू है, लेकिन घनघोर हिंदू विरोधी है। अमेरिका की नागरिकता ले लेने के बावजूद वह भारत के हर अंदरूनी मसले में आपको सक्रिय दिखाई देगी। वह देश के वामपंथी चिट्ठीकार गैंग की सदस्य भी है। 2020 में जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर वामपंथियों के पेट में दर्द उठा, तो सरकार को इसके खिलाफ चिट्ठी लिखने वाले गैंग में मीरा नायर भी थी। इस गैंग के बाकी नाम, जैसे नसीरुद्दीन शाह, रोमिला थापर, नंदिता दास वगैरह से आप समझ सकते हैं कि यह वही कथित सेकुलर वामपंथी बुद्धिजीवी गिरोह है, जो मूल रूप से हिंदू संस्कृति का विरोधी है। इस गैंग ने पाकिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों, नरसंहार और कन्वर्जन पर आज तक एक शब्द नहीं कहा, लेकिन जब हिंदुओं के अस्तित्व को बचाने की बात आई, तो मीरा नायर और उन जैसे तमाम कथित बुद्धिजीवी उठ खड़े हुए।

डीप स्टेट और बाद सीधे जॉर्ज सोरोस के एनजीओ पर पलने वाली कथित फिल्मकार नायर सिर्फ हिंदू समाज को नीचा दिखाने का औजार भर थी। विक्रम सेठ की ‘ए स्यूटेबल ब्वाय’ उपन्यास पर वेब सीरीज बनाई, तो हमेशा की तरह वामपंथी (लव जिहाद) एजेंडे के तहत लड़की हिंदू और लड़का मुस्लिम था। इनके चुंबन के दृश्य मंदिर परिसर में फिल्माए गए थे तो पृष्ठभूमि में काशी की पवित्र धरती थी। कुल मिलाकर मीरा नायर फिल्मों के जरिए डीप स्टेट का एजेंडा थोप रही थी।

वैसे कहने को जोहरान की मां मीरा हिंदू परिवार में पैदा हुई, पर शादी एक अमेरिकी यहूदी मिच एपस्टीन से की थी। कहते हैं कि मीरा ने यह शादी अमेरिकी नागरिकता हासिल करने के लिए की। यह आशंका इसलिए भी मजबूत होती है, क्योंकि शादी के समय भी मीरा को यहूदी विरोधी प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यक्रमों में देखा जाता था। लिहाजा सुविधा का यह विवाह खत्म होना ही था। 1987 के आस-पास उनका दूसरा विवाह भारतीय मूल के युगांडा निवासी महमूद ममदानी से हुआ। महमूद ममदानी जिहादी वामपंथी गैंग की आंखों का तारा लेखक है। ममदानी इसलिए भी उनकी आदर्श पसंद था, क्योंकि वह भी डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट का लबादा ओढ़े एक हिंदू-यहूदी विरोधी शिया मुसलमान था। सो एक हिंदू द्रोही मां और कट्टरपंथी मुस्लिम का बेटा जोहरान न होता, तो और क्या होता।

नफरत का टाइम्स स्क्वायर मॉडल

2020 में टाइम्स स्क्वायर इस कथित डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ‘पोस्टर ब्याॅय’ का असली चेहरा देख चुका है। तब इसी चौराहे पर एक हिंदू विरोधी प्रदर्शन का नेतृत्व यही जोहरान कर रहा था, तब यहां “हिंदू कौन है..” के जवाब में जिहादी भीड़ गाली देते हुए नारे लगा रही थी। इन जिहादियों का एजेंडा था, भारत में राम मंदिर पुनर्निर्माण के कार्यक्रम का विरोध। जोहरान के जहरीले बोल थे, “मैं यहां भारत की भारतीय जनता पार्टी सरकार का विरोध करने आया हूं। मैं बाबरी ‘मस्जिद’ (पढ़ें विवादित ढांचा) के टूटने का विरोध करने आया हूं। वहां पर जो राम मंदिर बनने जा रहा है, मैं उसका भी विरोध करता हूं।” सात समंदर पार टाइम्स स्क्वायर पर एक कट्टरपंथी मुस्लिम नेता वही बोल रहा था, जो यहां भारत के कथित सेकुलर नेता बोलते हैं। इनके शब्दों, सोच की समानता देखिए। इनके हिंदू विरोध का ग्लोबल एजेंडा देखिए। इस जिहादी के दुष्प्रचार का एक वीडियो इन दिनों वायरल है, जो बताता है कि इनके अंदर भारत, हिंदू और मोदी से घृणा किस कदर भरी हुई है।

इस वीडियो में जोहरान कुछ लोगों के साथ मंच पर है। इसमें मंच पर बैठे लोगों से सवाल पूछा जाता है कि क्या वे भारत-अमेरिका दोस्ती के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ स्टेज साझा करेंगे। जवाब में अधिकतर लोग ‘न’ कहते हैं। ममदानी एक कदम आगे बढ़कर कहता है, ‘मेरे पिता एक गुजराती मुसलमान परिवार से आते हैं, और ये वह (मोदी) शख्स है, जिसने गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार कराया’। ममदानी ने यह दावा किया कि ‘मुसलमानों का यहां तक सामूहिक नरसंहार हुआ कि लोगों ने यह मानना ही छोड़ दिया कि गुजरात में मुसलमान बचे भी हैं। जब मैं लोगों को यह बताता हूं कि हम गुजराती मुसलमान हैं, तो लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं।’

यहां अपनी पहचान गुजराती मुसलमान के रूप में देने वाला जोहरान बाकी डेमोक्रेट सोशलिस्टों की तरह खुद को ‘एथिस्ट’ (किसी मजहब को न मानने वाला) बताता है। जोहरान कितना झूठा व्यक्ति है, यह इसी बयान से साफ है। नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों में किसी भी भूमिका से सर्वोच्च न्यायालय से क्लीन चिट मिल चुकी है। यह वामपंथी दुष्प्रचार नहीं तो क्या है कि ‘गुजरात में मुसलमान बचे ही नहीं’, जबकि हकीकत यह है कि गुजरात में मुसलमानों की जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।

अब जोहरान की पोल खुल रही है तो जिहादियों का सबसे बड़ा कथित पैरोकार वॉशिंगटन पोस्ट अखबार मैदान में उतर आया है। उसका कहना है कि यह मात्र राजनीतिक असहमति है। ये कथित सोशलिस्ट इतने बड़े झूठ पर पर्दा डालने के लिए इसी तरह के सजावटी शब्द ही गढ़ते हैं। वैसे भी यह एक तयशुदा रणनीति है। ‘फर्स्ट लाइन’ (जैसे जोहरान या राहुल गांधी) भड़काऊ दुष्प्रचार करेगी और ‘सेकेंड लाइन’ (जैसे वामपंथी रुझान वाला मीडिया व बुद्धिजीवी) सजावटी शब्दों से इसे जायज ठहराएगी।

इस्लामिक नेटवर्क और चुनावी मदद

जोहरान मोदी और इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की तुलना हिटलर से करता है। यही इन सोशलिस्टों की खासियत है। असल में हिटलर इन जिहादियों की तरह ही यहूदियों का दुश्मन था। हिटलर से बड़े नरसंहार चाहे वे स्टालिन द्वारा अंजाम दिए गए हों या फिर माओ द्वारा, सोशलिज्म के नाम पर ही किए गए। यह इनकी विचारधारा के मूल में है कि किसी एक सभ्यता, किसी एक नस्ल या किसी एक धर्म के विरुद्ध जहर फैलाया जाए, नरसंहार किया जाए। इनके चुनाव लड़ने के इंतजाम से भी यह साबित होता है कि इनके पीछे कौन है। इस्लामिक ब्रदरहुड का ही एक सौतेला साथी रत अमेरिका में “काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस” है। यह संगठन दुनिया भर में जिहाद के नाम पर होने वाली हिंसा को जायज ठहराने और बौद्धिक लबादा ओढ़ाने के लिए अमेरिका में काम करता है। इसी संस्था ने जोहरान के चुनाव कैंपेन को सबसे बड़ा चंदा दिया है। दे भी क्यों न। जोहरान “ग्लोबलाइज द इंतिफादा” का समर्थक जो है।

इस नारे का मतलब कुछ यूं समझिए कि ‘यहूदियों का कत्ल वाजिब है और इस्राइल को दुनिया के नक्शे से मिटा दिया जाना चाहिए।’
डोनाॅल्ड ट्रंप की जीत के बाद से गश खाए बैठे डेमोक्रेट्स को जोहरान के रूप में सांस मिली है। साथ ही दुनिया भर के जिहादी वामपंथियों की बांछें अपने इस नए ‘हीरो’ के लिए खिली हुई हैं। सो आपको सावधान रहना होगा। ऐसे कितने ही जोहरान दुनिया के अलग-अलग कोनों में तैयार हो रहे हैं, जो आपके अस्तित्व, आपकी आस्था और आपके देश को मिटाने के मंसूबे दिल में पाले बैठे हैं। नवंबर में न्यूयॉर्क शहर के मेयर का चुनाव होना है। मौजूदा मेयर एरिक एडम्स डेमोक्रेट हैं और 2021 में पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुने गए थे। लेकिन एरिक चुनाव बाद से विवादों में रहे हैं।

उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। उन्हें डेमोक्रेट्स ने तो उम्मीदवार नहीं बनाया, लेकिन वे निर्दलीय ही मैदान में डटे हैं। डेमोक्रेट पार्टी के अंदर जोहरान का नाम आने के बाद किसी और विकल्प के जीतने की संभावना ही खत्म हो गई थी। एलजीबीटीक्यू से लेकर इस्लामपरस्ती तक, जोहरान हर मायने में डेमोक्रेट होने के मायने को पूरा करते हैं। हालांकि उनके साथ ‘इनीशियल’ रन में रहे एंड्रयू कुओमो चुनाव मैदान में बने रहेंगे। जोहरान भी केजरीवाल की तरह महंगे किराये को कम करने, मुफ्त बस यात्राओं, फ्री हेल्थकेयर जैसी रेवड़ियां बांटने के वादे कर रहे हैं। उनका मुकाबला करने के लिए रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लीवा मैदान में होंगे। हालांकि डेमोक्रेटिक खेमे में ममदानी को लेकर बेचैनी है।

दरअसल ममदानी की यहूदी-हिंदू विरोधी छवि की वजह से रिपब्लिकन और हमलावर हो गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाॅल्ड ट्रंप ने प्राइमरी में ममदानी की जीत के बाद उसे “सौ प्रतिशत पागल कम्युनिस्ट” करार दिया। आशंका है कि जीत के बाद ममदानी देश से अवैध अप्रवासियों को बाहर निकालने के ट्रंप के अभियान में बाधा डाल सकते हैं। इस बाबत ट्रंप ने उन्हें गिरफ्तार कर लेने तक की धमकी अभी से दे दी है।

क्यों महत्वपूर्ण है न्यूयॉर्क मेयर

न्यूयॉर्क अमेरिका के दौलतमंदों की राजधानी तो है ही, यह हमेशा से डेमोक्रेट्स का गढ़ भी रहा है। अमेरिका में हाल ही में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार ट्रंप की जीत के तुरंत बाद ये चुनाव हो रहे हैं, जो यह तय कर सकते हैं कि क्या वास्तव में डेमोक्रेटिक पार्टी अपनी जमीन खो रही है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के ठीक एक साल बाद न्यूयॉर्क के मेयर का चुनाव होता है। ऐसे में इसे चुनाव में वोट, राष्ट्रपति की लोकप्रियता पर वोट भी माना जाता है।

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