जिन्ना के देश के फौज प्रमुख जनरल असीम मुनीर द्वारा अफगानिस्तान पर ‘उसके दुश्मनों’ को अपनी धरती से गतिविधियां संचालित करने देने का आरोप लगाने पर खूब खरी—खोटी सुननी पड़ी है और वह भी उन्हीं तालिबान से जो आजकल पाकिस्तान को फूटी आंख देखना पसंद नहीं करते।मुनीर के इस बेसिरपैर के आरोप के जवाब में अफगान सरकार के उप-प्रवक्ता हमदुल्लाह फितरत ने खंडन जारी किया है। यह खंडन जारी करना दिखाता है कि जिन्ना के देश के साथ तालिबान के संबंध कितने जटिल हो चुके हैं। झूठ फैलाने में माहिर पाकिस्तान लंबे समय से इस तरह की बातें करता आ रहा है कि ‘अफगानिस्तान की जमीन को भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ प्रयोग कर रही है और वहां से पाकिस्तान में अस्थिरता फैला रही है’। यह कोई नया आरोप नहीं है। असल में इसे दशकों से चल रहे पाकिस्तान-अफगान संबंधों और भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए।
इस्लामाबाद में एक कार्यक्रम में जनरल मुनीर का भारत के प्रति झूठ फैलाने वाला यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है, खासकर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की ओर से। पाकिस्तान का यह मानना रहा है कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार टीटीपी के खिलाफ पुख्ता कार्रवाई नहीं कर रही। ऐसे में वह भारत की उपस्थिति की आड़ लेकर भीतरी असुरक्षा की भावना को और बल देना चाहता है।
अफगान सरकार के उप-प्रवक्ता हमदुल्लाह फितरत ने स्पष्ट रूप से इन आरोपों को “निराधार” बताया है और कहा है कि अफगानिस्तान किसी देश को दूसरे के विरुद्ध अपनी ज़मीन का इस्तेमाल नहीं करने देता। हमदुल्लाह का यह कहना न केवल पाकिस्तान को एक स्पष्ट संदेश देता है, बल्कि यह तालिबान की कूटनीतिक स्थिति को भी मज़बूत करने की कोशिश जैसा है, जिससे पता चले कि वह अंतरराष्ट्रीय नियमों और संप्रभुता का सम्मान करता है।

भारत की अफगानिस्तान में भूमिका मुख्यतः विकासशील और मानवीय सहायता केंद्रित रही है। भारत ने वहां सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों और संसद भवन जैसे महत्वपूर्ण निर्माणों में योगदान दिया है। पाकिस्तान द्वारा बार-बार लगाए गए आरोपों के बावजूद, भारत ने अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप या गुप्तचर एजेंसी की प्रत्यक्ष गतिविधियों को लेकर कभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। इसमें संदेह नहीं है कि मुनीर का यह शातिराना बयान दक्षिण एशिया में तनाव बढ़ा सकता है, खासकर तब जब क्षेत्र में पहले से ही आपसी अविश्वास और सीमाओं पर तनाव व्याप्त है।
उधर अफगानिस्तान खुद एक कठिन संक्रमण काल से गुजर रहा है और तालिबान सरकार की वैधता को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में असमंजस बना हुआ है। वहीं पाकिस्तान अपने आंतरिक राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इन परिस्थितियों में इस तरह के आरोप लगाना यह भी दिखाता है कि पाकिस्तान अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए दूसरों पर आरोप मढ़कर किसी सरकार को बदनाम करने तक की मंशा रखता है। यह अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के बीच पहले से बन चुकी विश्वासघात की खाई को और गहरा कर सकता है। साथ ही, इस विवाद में बेवजह भारत का नाम शामिल करना भी पाकिस्तान के अंदर पल रही भारत विरोधी नफरत को हवा देने जैसा ही है।
जनरल असीम मुनीर ने यह बयान देकर एक बार फिर अपनी कूटनीतिक अपरिपक्वता को सामने रखा है। यह बेशक क्षेत्रीय संवाद और स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। उधर, इस पर अफगानिस्तान की ठोस और स्पष्ट प्रतिक्रिया यह दर्शाने का प्रयास है कि वह खुद को एक ज़िम्मेदार संप्रभु राष्ट्र दिखाना चाहता है। आपरेशन सिंदूर में भी उसने पाकिस्तान की भर्त्सना की थी और आतंकवाद के प्रति भारत के कदम का समर्थन किया था।
टिप्पणियाँ