प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम का आज 29 जून को 123वें एपिसोड का प्रसारण था, हर बार की तरह उन्होंने देश के उन चुनिंदा प्रतिभाओं के नामों का और उनके जीवन संघर्ष का जिक्र किया जो प्रत्येक देशवासी को गौरव से भर देता है। साथ ही जो हताशा या निराशा में हैं, उनके जीवन में एक नया सवेरा कर देने का काम हर बार प्रधानमंत्री मोदी की मन की बात का ये उद्बोधन करता है। इस बार भी उन्होंने कई अहम बातें की, लेकिन उसमें मध्य प्रदेश की दृष्टि से जो खास रहा, वह है यहां बालाघाट जिले के कटंगी के भजियापार गांव की रहने वाली सूमा उईके की सफलता की कहानी को उनके मुख से सभी को सुनाया जाना।
वास्तव में मनुष्य को यूं हीं महान नहीं कहा जाता, यदि वह ठान ले तो कितनी भी “मुश्किल या प्रतिकूल स्थिति” या “कठिन समय” क्यों न हो, उसमें से भी वह एक सफलता की कहानी उकेर देता है। सूमा उईके का जीवन भी कुछ ऐसा ही बीता है अभावों से प्रभाव के बीच की उनकी यात्रा है और यही प्रभावपूर्ण आर्थिक विकास के लिए किया जानेवाला कार्य ही उनकी अब तक की सबसे बड़ी पूंजी है।
#मन_की_बात
29 जून 2025
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मध्यप्रदेश की सुमा उइके जी का प्रयास बहुत सराहनीय है। उन्होंने बालाघाट जिले के कटंगी ब्लॉक में, Self Help Group से जुड़कर मशरूम की खेती और पशुपालन की training ली। इससे उन्हें आत्मनिर्भरता की राह मिल गई। सुमा उइके की आय बढ़ी तो उन्होंने अपने काम का… pic.twitter.com/ykEY1j3vzr— Jansampark MP (@JansamparkMP) June 29, 2025
सुमा दीदी के नाम से विख्यात सुमा उईके सबसे पहले मशरूम उत्पादन का कार्य करती हैं। ये आजीविका मिशन से जुड़ीं और देखते ही देखते इन्होंने स्वयं सहायता समूह संचालित करने का निर्णय लिया। वे जनजाति जीवन में रहते हुए सभी परंपरागत रीति-रिवाजों का खुशी एवं बहुत उत्साह के साथ निर्वहन करते हुए आगे बढ़ रही हैं। कहने को सुमा दीदी बहुत पढ़ी लिखी नहीं हैं, सिर्फ 10वीं तक ही अध्ययन हुआ, लेकिन अब तक कई युवतियों के जीवन को दिशा देने का अहम काम वे कर चुकी हैं और उनका ये व्यक्ति निर्माण वह भी स्वावलंबन के साथ किया जानेवाला कार्य अनवरत जारी है। यही कारण है कि सुमा उईके का ये श्रम अब व्यक्ति गत नहीं रहा, वह राष्ट्र का श्रम बन चुका है जिसके चलते आज पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में उनकी सफलता की कहानी संपूर्ण देशवासियों को सुनाई है।
दरअसल, बालाघाट को देशभर में यूं तो नक्सल प्रभावित होने के लिए जाना जाता रहा है, जैसे उसकी पहचान नक्सली क्षेत्र होना ही रहा हो, पर अब विकास के अनेक कार्यों के जरिए ये जिला अपने को बदल रहा है। लगता है जैसे नक्सलवाद यहां बीते दिनों की बात रही हो। स्व-सहायता समूह से जुड़ी सुमा उईके ने भी जिले के कुछ श्रेष्ठ उदाहरणों की तरह ही यहां की एक नई तस्वीर पेश की है।
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वे अपने जीवन के बारे में बताते हुए कहती हैं, हमारा गांव बहुत अधिक विकसित नहीं, स्वभाविक है कि उसका असर यहां की सभी महिलाओं के जीवन पर भी दिखता है, लेकिन मुझे अपने जीवन में कुछ प्रेरणादायी करना था, अपने लिए और मुझ से जुड़ी अन्य सखी, सहेलियों के लिए। संयोग से जब मुझे आजीविका मिशन के बारे में इसमें कार्यकरनेवालों के माध्यम से पता चला तो मैं अपने को रोक नहीं पाई और मैंने अपने आस-पास के परिवारों की महिलाओं को एकत्रित कर आदिवासी आजीविका विकास स्व-सहायता समूह बनाया। स्वभाविक है कि शुरूआत मेरे द्वारा इस समूह की हो रही थी, तो जो साथ में बहने आईं उन्होंने मुझे अध्यक्ष बना दिया। यहीं से अपने और अपनी सभी सखी, सहेलियों के काम करने एवं उसमें से कुछ बचत जमा करने का रास्ता मुझे मिला।
सुमा उईके 2014 में एक स्व सहायता समूह से जुड़ी थीं। इसके बाद वह साल 2017 में वह आजीविका मिशन से जूड़ी। इसके लिए उन्होंने आजीविका मिशन के ग्राम नोडल अधिकारी से समझकर आर-सेटी से ऑर्गेनिक मशरूप उत्पादन और पशुपालन का प्रशिक्षण लिया। फिर सुमा दीदी समूह तैयार कर आजीविका मिशन से जुड़कर रिवाल्विंग फंड की राशि लोन पर लेकर अपने ही घर पर ऑयस्टर मशरूम की खेती करने लगीं। वे अभी इस कार्य को एक वर्ष ही कर पाईं थीं कि कोरोना काल आ गया और देश भर में लगे लॉकडाउन का असर उनके कार्य पर भी हुआ। इस समय उन्होंने निरंतरता के लिए एक नया काम करने पर विचार किया और मशरूम की बिक्री कम होने की स्थिति में इसकी खेती बंद कर देने पर जनपद पंचायत कटंगी परिसर में वे कैंटीन संचालन करने लगीं। फिर पहले की तरह उन्हें ग्राम बहनों का साथ तो मिला ही हुआ था।
साल 2022 शुरू की गई कैंटीन से फिर उन्हें अच्छी आय भी जल्द होने लगी। इसी बीच उन्हें थर्मल थेरेपी के बारे में पता चला और उसने थर्मल थैरेपी सेंटर प्रारंभ करने का निर्णय ले लिया। स्वभाविक है कि इस कार्य को करने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता थी। फिर सूमा दीदी ने पूंजी की जुगाड़ के लिए योजना बनाई जिसमें सबसे अधिक सहयोग उन्हें आजीविका मिशन से जुड़े होने के कारण बैंक से मुद्रा लोन के रूप में मिला। जिस बैंक में सुमा दीदी ने अपने समूह का बचत खाता खुलवाया हुआ था वहीं से उन्हें छह लाख रुपए का मुद्रा लोन मिल गया। अब फिर एक बार दीदी “ऊंचाइयां” छूने के लिए तैयार थीं।
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सुमा उइके ने विकासखण्ड कटंगी में आजीविका थर्मल थेरेपी सेंटर का प्रारंभ कर दिया, जिससे उन्हें प्रतिमाह 11 हजार रुपये की प्रारंभिक आमदनी होने लगी। उन्होंने अपने साथ अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण दिया और इस कार्य में सिद्धहस्त बना दिया। अपनी आय मेहनत के बूते 19 हजार मासिक तक पहुंचा दी। परिवार की आय भी बढ़कर 32 हजार रुपए हो गई। साथ ही सुमा उईके ने अपने गांव की अन्य बहनों को भी समूह से जुड़ने के लिए लगातार प्रेरित किया है, उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है।
मध्य प्रदेश के बालाघाट की सुमा उइके जी ने यह साबित कर दिखाया है कि जज्बा हो तो कैसे हमारी माताएं-बहनें भी बिजनेस वुमन बन सकती हैं। pic.twitter.com/u6D3ajVZNA
— Narendra Modi (@narendramodi) June 29, 2025
वह कहती हैं कि जीवन में कुछ करने की ठान लो तो सब कुछ संभव हो जाता है। आज मैं आजीविका मिशन के अंतर्गत ही कटंगी में आजीविका थर्मल थेरेपी सेंटर और कैंटीन संचालन सफलता के साथ कर रही हूं। मैं ज्यादा से ज्यादा महिलाओं से यही कहना चाहती हूं कि जैसे मैं आत्मनिर्भर हूं, वैसे ही वह भी अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनें। उन्होंने कहा है कि यदि सच्चे मन से कुछ काम करो तो उसमें सफलता जरूर मिलती है।
(डिस्क्लेमर- स्वतंत्र लेखन। लेख में लेखक के विचार निजी हैं )
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