राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि विविधता से भरी दुनिया के मूल में एक ही सिद्धांत है। उसे पहचानकर व्यवहार करना ही अपनापन है। यही समाज की स्थायी भावना है। अपनेपन के सूत्र में सबको बांधना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य है। यदि कोई व्यक्ति अपनेपन की ओर झुकता है, तो वह देवतुल्य हो जाता है। समाज में ऐसे आदर्श हैं जो एकांत में आत्मसाधना और जनसेवा और परोपकार के लिए काम करते हैं।
आयुर्वेद भास्कर स्व. वैद्य परशुराम य. वैद्य खडीवाले तथा दादा के उदात्त जीवन व कार्यों की समीक्षा करने वाली जीवनी ‘दर्शन योगेश्वराचे – आयुर्वेद भास्कर दादा वैद्य खडीवाले’ का विमोचन बालगंधर्व रंगमंदिर में आयोजित समारोह में किया गया। इस अवसर पर सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के कुलपति पद्मभूषण डॉ. एस. बी. मजूमदार, वैद्य विनायक परशुराम वैद्य खडीवाले, संगीता विनायक वैद्य खडीवाले, डॉ. राजीव ढेरे और अन्य उपस्थित थे। पुणे और समूचे महाराष्ट्र से आयुर्वेद, अनुसंधान और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित मान्यवर कार्यक्रम में उपस्थित थे।
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा – “आम व्यक्ति महापुरुषों के मार्ग पर चलने से हिचकिचाता है। हालांकि, वह उन लोगों को अपना मानता है जो अपनेपन की राह पर चलते हैं। इस अपनेपन से ही सबका जीवन उज्ज्वल हो, इसके लिए अपनी उपलब्धियों का व्यय कर स्वयं के जीवन को भी उज्ज्वल बनाने की प्रेरणा समाज को आगे ले जाती है। इसी से समाज में परिवर्तन होता है।”
डॉ. एस.बी. मजूमदार ने कहा, “रा.स्व. संघ दादा खडीवाले की रग-रग में था। अपने जीवन में, जनकल्याण ब्लड बैंक सहित कई सामाजिक और विभिन्न परियोजनाओं में सहभागी थे। इसके पीछे रा. स्व. संघ की प्रेरणा थी।” संघ का शताब्दी वर्ष और दादा की जीवनी का प्रकाशन भी एक संयोग है।
विनायक खडीवाले ने कहा कि आयुर्वेद के अलावा समाजसेवा, अनुसंधान, जनकल्याण ब्लड बैंक, जनकल्याण आई बैंक, हरि परशुराम औषधालय कारखाना व दवाखाना, निराश्रित बच्चों के लिए आधार केंद्र, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में औषधि वनस्पति उद्यान का निर्माण, निराश्रित महिलाओं के लिए आदरणीय ताई आपटे महिला विकास प्रतिष्ठान आदि कई संस्थाओं का निर्माण दादा ने किया है। उन्होंने आयुर्वेद और रा. स्व. संघ के बारे में 100 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। दादा ने विभिन्न क्षेत्रों में बहुत बड़ा काम किया है। हम इसके माध्यम से इसे समाज तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
संगीता विनायक वैद्य खडीवाले ने कहा, “दादा ने बीड सहित पुणे जिले में 125 विभिन्न स्थानों पर मुफ्त स्वास्थ्य शिविर आयोजित कर एक लाख से अधिक रोगियों को स्वास्थ्य देखभाल प्रदान की। उन्होंने ठाणे जिले के पालघर तालुका के निकट ग्रामीण इलाके में सभी पहाड़ियों को बड़े पैमाने पर हरा-भरा बनाने के लिए एक अभियान भी शुरू किया था। इसके अलावा दादा ने वैद्य ग्रंथ भंडार, महर्षि अण्णासाहेब पटवर्धन वैद्यकीय पुरस्कार, आयुर्वेद प्रचारक व हिन्दू तन-मन, विश्व वैद्य सम्मेलन, अन्नकोट प्रदर्शनी आदि कई गतिविधियों का भी संचालन किया। उन्होंने म्यूनिसिपल कोटनिस अस्पताल में 30 वर्षों तक एचआईवी/एड्स के लिए मुफ्त रोगी देखभाल प्रदान की। उन्होंने गुरुकुल प्रणाली में 40 से अधिक वर्षों तक निःशुल्क आयुर्वेद प्रशिक्षण कक्षाएं चलाईं।” यह जीवनी 320 पृष्ठों की है, जो उनके काम के महत्व पर प्रकाश डालती है।
इस अवसर पर पुस्तक के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली तनुजा रहाणे और गिरीश दात्ये को सम्मानित किया गया। वैद्य शुभंकर कुलकर्णी और वैद्य आशुतोष जातेगावकर ने धन्वंतरि स्तवन प्रस्तुत किया। स्नेहल दामले ने सूत्र संचालन किया। डॉ. राजीव ढेरे ने आभार व्यक्त किया।
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