अमेरिका पर बात शुरू करने से पहले पाकिस्तानी फौज की प्रवक्ता बनी कांग्रेस की चाटुकार मंडली के संदर्भ में एक पुराना किस्सा। बात 1971 की है, पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में पाकिस्तानी फौज रक्तपात मचा रही थी। भारत एक करोड़ से ज्यादा शरणार्थियों के बोझ से दबा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस मसले को लेकर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के दरवाजे पर पहुंचीं। निक्सन ने इंदिरा गांधी को अपने दरवाजे पर बैठाकर 45 मिनट तक इंतजार कराया। पाकिस्तानी फौज के कांग्रेस के स्वयंभू प्रवक्ता व राहुल गांधी के कथित मार्गदर्शक जयराम रमेश कृपया बताएंगे कि इसे बेइज्जती नहीं तो क्या कहते हैं!

वरिष्ठ पत्रकार
भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अफसर महाराज कृष्ण रस्गोत्रा इस घटना के चश्मदीद थे। बीबीसी के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था, “हम लोगों की मुलाकात तय थी। हम लोग बाहर बैठे हुए थे, लेकिन निक्सन कमरे से बाहर ही नहीं आए। हद तो यह है कि निक्सन और हेनरी किसिंजर अंदर थे और कुछ नहीं कर रहे थे। उनका मकसद इंदिरा गांधी को बेइज्जत करना था।”
अब आज की बात। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 की बैठक के लिए कनाडा गए हुए थे। बैठक के दौरान उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात तय थी, लेकिन इस्राएल व ईरान युद्ध के चलते ट्रंप अधूरी बैठक से ही वापस लौट गए। 18 जून को उन्होंने मोदी को फोन किया और पूछा कि क्या वे वापसी के सफर में मुलाकात के लिए अमेरिका थोड़ी देर के लिए रुक सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया कि पूर्व प्रतिबद्धताओं के चलते यह मुलाकात संभव नहीं है। जवाब में मोदी ने उन्हें क्वाड की बैठक में भारत आने का निमंत्रण दिया, जिसे ट्रंप ने फोन पर ही स्वीकार कर लिया। साफ है कि ट्रंप से मुलाकात का निमंत्रण ठुकराकर मोदी ने उनके हालिया बयानों को लेकर भारत की नाराजगी जाहिर की। मोदी और ट्रंप की बातचीत का खुलासा करते हुए विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बताया है कि उनकी बातचीत करीब 45 मिनट चली।
पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद यह पहला मौका था, जब दोनों नेताओं के बीच बातचीत हो रही थी। मोदी ने विस्तार से ट्रंप को ऑपरेशन सिंदूर के विषय में बताया। बकौल मिसरी ‘पीएम मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप से साफ कहा कि इस पूरी घटना के दौरान भारत-अमेरिका व्यापार समझौते और अमेरिका की ओर से भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता को लेकर किसी भी स्तर पर चर्चा नहीं हुई। भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य कार्रवाई रोकने को लेकर बातचीत दोनों सेनाओं के मध्य स्थापित मौजूदा चैनलों के तहत सीधे हुई।’ यह पाकिस्तान के अनुरोध पर हुआ था, यानी उन्होंने ट्रंप को मुंह पर ही बता दिया कि आपके दावे गलत थे। मोदी ने ट्रंप को यह भी बताया कि भारत ने कभी न तो मध्यस्थता स्वीकार की, न ही करता है और न ही कभी भविष्य में करेगा। इस विषय में भारत में पूरी राजनीतिक एकजुटता है।
स्वतंत्र है भारत की विदेश नीति
शायद यह पहला मौका होगा, जब भारत ने साफ शब्दों में बता दिया है कि उसकी विदेश नीति या रक्षा नीति पूरी तरह स्वतंत्र है। फिर चाहे अमेरिका हो या कोई और देश। इस मसले पर भारत कोई समझौता नहीं कर सकता। अब जरा कांग्रेस का दुष्प्रचार याद करिए, पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर में एकतरफा विजय के बाद कांग्रेस ने क्या-क्या सवाल नहीं उठाए। पूरी दुष्प्रचार फैक्ट्री भारतीय सेना के शौर्य और बलिदानों पर सवाल उठाती रही, लेकिन यह कांग्रेस है, कहां मानती है। पहले कांग्रेसी नेताओं, दरबारी पत्रकारों ने झूठा प्रचार किया कि पाकिस्तानी सेना के प्रमुख आसिम मुनीर को अमेरिका ने आर्मी डे परेड में मेहमान के नाते बुलाया।
असल में यह सिर्फ दुष्प्रचार था। ट्रंप ने आसिम मुनीर को लंच पर मुलाकात के लिए बुलाया है, तो इसको लेकर भी कांग्रेसी सवाल उठाने लगे कि ट्रंप तो मोदी के दोस्त हैं, फिर मुनीर से मुलाकात क्यों कर रहे हैं। यह सवाल कोई राजनीतिक व कूटनीतिक निरक्षर ही उठा सकता है कि अमेरिका का राष्ट्रपति किस से मिलना चाहता है, इस पर भी मोदी का जोर हो, साथ ही अधकचरे विदेश नीति विशेषज्ञ ये नहीं बता पा रहे हैं कि मुनीर से मुलाकात से पहले ट्रंप मोदी से क्यों मिलना चाहते थे और उन्होंने 45 मिनट तक फोन पर क्यों बात की। इस बदले वैश्विक परिदृश्य में पाकिस्तान को साधकर रखना वैसे भी अमेरिका की मजबूरी हो गई है।
इस्राइल और ईरान की जंग में अमेरिका अब पूरी तरह शामिल हो चुका है। जी-7 की बैठक को बीच में छोड़कर स्वदेश लाैटे ट्रंप पूरे तेवर के साथ ईरान के सर्वोच्च नेता खामेनई को धमकी दे रहे हैं कि ‘उनका ठिकाना हमें पता है। आत्मसमर्पण कर दें, नहीं तो मारे जाएंगे।’ अब ट्रंप इसे इस्राएल की लड़ाई नहीं बता रहे। वह अब ‘हम’ शब्द का इस्तेमाल इस जंग के लिए कर रहे हैं। यानी इस्राएल और अमेरिका एक हैं। ईरान के पास विकल्प बहुत कम हैं। उसे रूस, चीन और पाकिस्तान से मदद की उम्मीद है। वैसे भी ईरान के साथ पाकिस्तान की 900 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है। ईरान पर निर्णायक कार्रवाई के लिए अमेरिका को पाकिस्तान के हवाई अड्डों की जरूरत पड़ने वाली है।
क्या आज का घटनाक्रम यह साबित नहीं करता है कि मोदी ने ट्रप से फिलहाल मिलने से इंकार करके यह साबित कर दिया है कि भारत की विदेश नीति किसी दबाव में नहीं है? क्या ईरान युद्ध के चलते पाकिस्तान के जनरल की अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात यह साबित नहीं करती कि पाकिस्तान आज भी अमेरिका का गुलाम है? इस हद तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से नहीं, वहां के जनरल से बात करना चाहते हैं, यानी अमेरिका जानता है कि पाकिस्तान की सरकार एक मुखौटा भर है, असल में सत्ता सेना के हाथ में है।
पाकिस्तानी ही कर रहे मुनीर का विरोध
पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर वाशिंगटन के जिस होटल में ठहरे, वहां भारी विरोध प्रदर्शन हुए। ये प्रदर्शन और कोई नहीं, अमेरिका में रहने वाले पाकिस्तानी ही कर रहे थे। उनके होटल के बाहर एक बोर्ड लगाया गया था, मॉस मर्डरर (सामूहिक हत्यारा)। अमेरिका में रहने वाले पाकिस्तानी कोने-कोने से मुनीर का विरोध करने पहुंचे, अलग-अलग बैनर लेकर पहुंचे। इन पर लिखा था कि मुनीर ने पाकिस्तान में लोकतंत्र की हत्या की है। इसके अलावा लोग उन्हें बलूच और पख्तून लोगों का हत्यारा बता रहे हैं। साथ ही पत्रकारों की रहस्यमयी हत्याओं और उनके लापता होने के लिए मुनीर को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
पाकिस्तानी आप्रवासियों का कहना है कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने भी एक वीडियो साझा किया है, जिसमें लोग ‘आसिम मुनीर तुम हत्यारे हो’, ‘आसिम मुनीर मॉस मर्डरर है’ जैसे नारे लगा रहे हैं। एक इमारत से निकलते समय भी मुनीर को लोगों ने घेर लिया। इस दौरान उनके सुरक्षा अधिकारियों से लोगों की खासी नोक-झोंक हुई। अमेरिका में पाकिस्तान के किसी जनरल की इससे ज्यादा बेइज्जती कभी नहीं हुई।
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