पाकिस्तान: सिंध में 3 हिन्दू बहनों और 13 साल के भाई को अगवा किया, मजहब परस्त अदालत ने दिया हैरान करने वाला फैसला
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पाकिस्तान: सिंध में 3 हिन्दू बहनों और 13 साल के भाई को अगवा किया, मजहब परस्त अदालत ने दिया हैरान करने वाला फैसला

सिंध की यह घटना इस बात की गवाही देती है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की स्थिति दोयम दर्जे की बन चुकी है। बहुसंख्यक कट्टर मुसलमानों में उनके प्रति किसी प्रकार की मानवीय संवेदना नहीं बची है

by Alok Goswami
Jun 21, 2025, 06:19 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
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जिन्ना के देश में हिन्दू उत्पीड़न का एक और मामला सामने आया है। वहां सिंध प्रांत में कट्टर मजहबी तत्वों ने तीन हिंदू बहनों और उनके 13 वर्षीय चचेरे भाई का अपहरण कर जबरन इस्लाम में कन्वर्ट किया गया। यह उस इस्लामी देश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के सुनियोजित उत्पीड़न की एक और भयावह मिसाल है। हालांकि वक्त रहते उन बहनों और उनके भाई को स्थानीय हिन्दुओं ने पुलिस पर दबाव बनाकर छुड़वा लिया। लेकिन फिर अदालत ने ऐसा फैसला सुनाया कि उनके माता—पिता के पैरों तले से जमीन खिसक गई। अदालत ने दो बालिग लड़कियों को तो इस्लामी ही रहने के आदेश देकर उन्हें माता—पिता को नहीं, एक ट्रस्ट के हवाले कर दिया। लेकिन दो नाबलिग बच्चों को भी उनके माता—पिता को इस शर्त पर वापस सौंपने को कहा जब वे 10 करोड़ का बांड यह लिखकर भरेंगे कि वे उन दोनों पर वापस हिन्दू बनने का जोर नहीं डालेंगे!

हुआ यूं था कि गत 18 जून सिंध के संघर जिले के शाहदादपुर शहर में जिया (22), दिया (20), दिशा (16) और उनके एक चचेरे भाई हरजीत (13) को एक स्थानीय कंप्यूटर शिक्षक फरहान खासखेली द्वारा बहला-फुसलाकर अगवा कर लिया गया। बाद में इन बच्चों का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे ‘स्वेच्छा से’ इस्लाम कबूल करने की बात कह रहे थे। उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्हें अपने इस फैसले के बाद अपने परिवारों द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने का डर है। यह देख—सुनकर हिन्दुओं में आक्रोश फैल गया। हिन्दू पंचायत ने इसे जबरन कराया कनवर्जन कहा।

फौरन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई। भाई-बहनों की माओं, जो स्पष्ट रूप से व्यथित थीं और रो रही थीं, ने स्थानीय कंप्यूटर शिक्षक, फरहान खासखेली पर बच्चों का ब्रेनवॉश करने और उनका अपहरण करने का आरोप लगाया। हरजीत की मां ने रोते हुए कहा, “मुझे अपना बेटा वापस चाहिए। वह केवल 13 साल का है और मजहब के बारे में कुछ नहीं समझ सकता।” मां ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी से अपने बेटे को वापस पाने में मदद करने की अपील की।

File Photo

उधर तीनों बहनों की मां ने कथित कन्वर्जन और अपहरण के लिए भी खासखेली को ही जिम्मेदार ठहराया। मां ने कहा, “मेरी तीन बेटियां हैं, खासखेली उन तीनों को ले गया है।” हिंदू पंचायत के प्रमुख राजेश कुमार ने इस घटना को न केवल एक पारिवारिक त्रासदी, बल्कि एक सांप्रदायिक त्रासदी बताया। उन्होंने कहा, “ये लड़कियां सिर्फ़ हिंदुओं की बेटियां नहीं हैं, ये सिंध की बेटियां हैं।” उन्होंने उनकी तस्वीरें दिखाते हुए सवाल किया कि क्या वे इतनी परिपक्व हैं कि किसी मजहब के बारे में कुछ फैसला कर सकें? 18 जून को ही पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। संघर के एसएसपी गुलाम नबी कीरियो ने पंचायत को पुलिस की त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया। 19 जून को पुलिस ने ​कराची से तीनों बहनों, उनके भाई और दो आरोपियों, फरहान और जुल्फिकार खासखेली को बरामद किया और उन्हें संघर लेकर आई।

20 जून को संघर की अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए दो बालिग लड़कियों को उनके इस्लामी नाम और मजहब को बनाए रखने का फैसला दिया और “सुरक्षित पनाह” में भेज दिया, जबकि दो नाबालिगों को उनके माता-पिता को सौंपने के लिए करीब 30—30 लाख रु. के बॉन्ड भरवाये गये हैं। दोनों आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया। फरहान पर तो कथित तौर पर बंदूक की नोक पर शिकायतकर्ता के बच्चों का अपहरण करने और उन्हें इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया गया था, लेकिन इस्लामी अदालत में सब आरोप धरे रहे गए।

यह निर्णय न केवल वहां की अदालत की असंवेदनशीलता दिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पाकिस्तान की न्याय प्रणाली किस हद तक अल्पसंख्यकों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण हो सकती है। हैरानी की बात है कि इस अपहरण और जबरन कन्वर्जन की घटना के आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया, जिससे पीड़ित परिवार और समुदाय में गहरा आक्रोश है।

वैसे देखा जाए तो यह घटना कोई अपवाद नहीं है। पाकिस्तान में सिंध और पंजाब के ग्रामीण इलाकों में हिंदू लड़कियों के अपहरण, कन्वर्जन और जबरन निकाह की घटनाएं आम सुनने में आती रही हैं। अक्सर पीड़ित परिवार गरीब होते हैं और उनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने लायक पैसे नहीं होते। सामाजिक दबाव और धमकियों के कारण वे चुप रहने को मजबूर हो जाते हैं। यह वहां तेजी से चलाया जा रहा लव जिहाद है, जिसके माध्यम से कट्टर मजहबी तत्व हिंदू समुदाय की पहचान और अस्तित्व को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं।

इस मामले पर सिंध मानवाधिकार आयोग ने स्वतः संज्ञान तो लिया, लेकिन अब तक इस बारे में जो प्रशासनिक कार्रवाई की गई है वह केवल दिखावा ही रहा है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और संयुक्त राष्ट्र को इस तरह के मामलों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। पाकिस्तान में पांथिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा केवल कागज़ों तक सीमित है, जबकि जमीनी हकीकत बेहद भयावह है।

समझने की बात है कि 1947 में पाकिस्तान बनने के वक्त वहां हिंदुओं की आबादी लगभग 15-20 प्रतिशत थी, जो आज घटकर शायद कुल 1 प्रतिशत रह गई है। इसके मुख्य कारण हैं—जबरन कन्वर्जन, सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक भेदभाव और हिंसा। सिंध, जहां हिंदुओं की आबादी अपेक्षाकृत अधिक है, वहां भी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

सिंध की यह घटना इस बात की गवाही देती है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की स्थिति दोयम दर्जे की बन चुकी है। बहुसंख्यक कट्टर मुसलमानों में उनके प्रति किसी प्रकार की मानवीय संवेदना नहीं बची है। सिंध की घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे समुदाय की पीड़ा है। जब तक पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को समान अधिकार और न्याय नहीं मिलेगा, तब तक वहां की लोकतांत्रिक और मानवाधिकार की छवि केवल एक दिखावा बनी रहेगी। यह समय है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाए।

Topics: Hindu sisterscourt ruling#islamConversionपाकिस्तानPakistanहिंदूsindhसिंध
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