ईरान-इस्राएल युद्ध पूरे जोरों पर है और दुनिया के अनेक देश अपने राष्ट्रीय हित को देखते हुए इस या उस ओर लामबंद हो रहे हैं। इस संघर्ष में रूस और उत्तर कोरिया के साथ ही पाकिस्तान की भूमिका को लेकर भी विरोधाभासी बयान आ रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अमेरिका को दखल देने पर बुरे नतीजों की चेतावनी की है तो उत्तर कोरिया के तानाशाह किम ने अमेरिका पर परमाणु हमला करने की धमकी दे डाली है। इस सबके बीच, भारत में ईरान के उपराजदूत ने भारत को ग्लोबल साउथ की आवाज बताते हुए कहा है कि भारत चाहे तो संघर्षविराम करा सकता है। उन्होंने भारत सरकार से इस अपील पर गौर करने का आग्रह किया है।
मध्य एशिया की वर्तमान स्थिति ने वैश्विक राजनीति को एक बार फिर अस्थिरता की ओर धकेल दिया है। इस संघर्ष में जहां एक ओर पश्चिम एशिया धधक रहा है, वहीं दूसरी ओर वैश्विक शक्तियों की प्रतिक्रियाएं और भारत की भूमिका एक नए भू-राजनीतिक संतुलन की ओर संकेत करती हैं। इस युद्ध के प्रमुख पहलुओं, उत्तर कोरिया और रूस की चेतावनियों, अमेरिका की स्थिति और भारत की कूटनीतिक भूमिका को विस्तार से जानने की जरूरत है।
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ईरान और इस्राएल के बीच लंबे समय से तनाव रहा है, लेकिन हाल की घटनाओं ने इसे पूर्ण युद्ध में बदल दिया है। इस्राएल ने ईरान के परमाणु ठिकानों और वैज्ञानिकों पर हमले किए, जिसके बाद से ईरान ने जवाबी मिसाइलें दागनी शुरू कीं जिनसे तेल अवीव में भारी नुकसान पहुंचने की खबरें हैं। बताया जा रहा है कि इस संघर्ष में अभी तक दोनों देशों में सैकड़ों मौतें हो चुकी हैं और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है। इस्राएल ने तेहरान, फोर्दो और इस्फाहान शहरों के सैन्य व परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया है, जबकि ईरान ने तेल अवीव और रमतगान शहरों पर मिसाइलें दागी हैं।
इस संघर्ष में एक नया मोड़ तब आया जब उत्तर कोरिया और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका को चेतावनी दी कि यदि ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई को कुछ हुआ, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। उत्तर कोरिया की यह प्रतिक्रिया उसकी पारंपरिक अमेरिका-विरोधी नीति का हिस्सा है, लेकिन यह ऐसा संकेत भी देती मालूम पड़ती है जैसे वह ईरान के साथ रणनीतिक गठबंधन को मजबूत करना चाहता है। वहीं, पहले से ही यूक्रेन युद्ध में उलझा रूस इस क्षेत्रीय संघर्ष को वैश्विक स्तर पर फैलने से रोकना चाहता है, लेकिन राष्ट्रपति पुतिन के बयानों को समझें तो लगता है कि अमेरिका के हस्तक्षेप की स्थिति में वह सक्रिय भूमिका निभा सकता है। अमेरिका ने अभी तक प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में भाग नहीं लिया है, उसने सिर्फ इस्राएल को सैन्य सहायता और खुफिया जानकारी प्रदान की है। यदि ईरान द्वारा अमेरिकी ठिकानों या नागरिकों पर हमला होता है, तो अमेरिका की प्रत्यक्ष भागीदारी की संभावना बढ़ जाएगी। अमेरिका के पास ऐसे हथियार हैं जो ईरान के भूमिगत परमाणु ठिकानों को भी नष्ट कर सकते हैं, जिससे युद्ध का स्तर और अधिक विनाशकारी हो सकता है।

इस पूरे परिदृश्य में भारत की भूमिका उल्लेखनीय दिखी है। कनाडा में हाल में सम्पन्न हुई जी7 बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने युद्ध नहीं शांति का मार्ग अपनाने संबंधी अपील की थी और कहा था कि विश्व में दिख रहे तनाव को बातचीत के रास्ते ही दूर किया जा सकता है। भारत की आज अंतरराष्ट्रीय छवि ऐसी बन चुकी है कि नई दिल्ली में ईरान के उप राजदूत ने भारत से संघर्षविराम कराने की अपील की है। ग्लोबल साउथ की आवाज बने भारत की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय साख और कूटनीतिक विश्वसनीयता के बारे में यह बात बहुत कुछ बता देती है। भारत, जो परंपरागत रूप से गुटनिरपेक्ष नीति का पालन करता आया है, अब एक ऐसे मध्यस्थ के रूप में उभर रहा है जो दोनों प्रतिद्वंद्वी पक्षों से संवाद कर सकता है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा भी इस संघर्ष से प्रभावित हो सकती है, क्योंकि ईरान और खाड़ी क्षेत्र वैश्विक तेल आपूर्ति के प्रमुख स्रोत हैं।
इसमें संदेह नहीं है कि इस युद्ध का प्रभाव केवल पश्चिम एशिया तक सीमित नहीं रहेगा। तेल की कीमतों में वृद्धि, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अड़चनें और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंका पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती है। यदि यह संघर्ष रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों को सीधे युद्ध में खींचता है, तो यह तीसरे विश्व युद्ध की आहट भी हो सकती है।
कहना न होगा, ईरान और इस्राएल युद्ध एक स्थानीय संघर्ष से कहीं अधिक बन चुका है। उत्तर कोरिया और रूस की चेतावनियां, अमेरिका की रणनीतिक स्थिति और भारत की मध्यस्थता की संभावना इस युद्ध को एक बहुपक्षीय संकट में बदल रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के लिए यह एक चुनौती भी है और अवसर भी—एक ऐसा अवसर जहां वह वैश्विक मंच पर शांति और स्थिरता का अग्रदूत बन सकता है।
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