‘‘मुझे नहीं पता कि तीसरा विश्व युद्ध किन हथियारों से लड़ा जाएगा, पर चौथा विश्व युद्ध लाठियों और पत्थरों से लड़ा जाएगा।’’ विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने परमाणु युद्ध के विनाशकारी परिणामों को लेकर चेताते हुए यह बात कही थी, जिनके वैज्ञानिक कार्य ने अनजाने में परमाणु तकनीक को जन्म दिया। उनका यह कथन तीसरे विश्व युद्ध के भयावह खतरे को दर्शाता है, खासकर जब आज नौ देशों के पास 12,000 परमाणु हथियार हैं।

वरिष्ठ पत्रकार
रूस, ईरान और पाकिस्तान की परमाणु पैंतरेबाजी का उल्लेख इस भयावह दूरदृष्टि की प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। 20वीं सदी, जो औद्योगिक क्रांति के बाद ‘वैश्विक विवेक’ की उम्मीद जगाने वाली थी, वही सदी-होलोकॉस्ट, हिरोशिमा, रवांडा, कंबोडिया, वियतनाम, स्टालिनवाद, माओ के ‘कल्चरल रिवोल्यूशन’ और 9/11 आतंकी हमले जैसी घटनाओं से भर गई। ये सब त्रासदियां उन्हीं राष्ट्रों, विचारधाराओं और आदर्शों के नाम पर घटीं, जो खुद को मुक्ति और प्रगति के वाहक मानते थे।
रूस-यूक्रेन युद्ध फरवरी 2022 में शुरू हुआ था, जो चौथे वर्ष में प्रवेश कर गया है। दोनों पक्ष एक-दूसरे के खिलाफ अत्याधुनिक हथियारों का उपयोग कर रहे हैं। रूस ने यूक्रेन पर कैलिबर क्रूज मिसाइलें, किंझाल हाइपरसोनिक मिसाइलें, इस्कंदर बैलिस्टिक मिसाइलें और गेरान-2 (शाब्दिक रूप से जेरेनियम -2) ड्रोन से घातक हमले कर रहा है। गेरान-2 को यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगियों द्वारा ईरानी-निर्मित शाहेद-136 का परिवर्तित रूप माना जाता है। कुछ समय पहले ही अमेरिकी खुफिया सूत्रों और यूक्रेनी अधिकारियों ने दावा किया था कि ईरान ने रूस को शाहेद-136 सहित कई सौ ड्रोन की आपूर्ति की थी।
हालांकि ईरान ने बार-बार इन दावों को खारिज किया कि उसने यूक्रेन को ड्रोन भेजे। साथ ही युद्ध में तटस्थ रहने की बात कही है। 6 जून, 2025 को रूस ने एक रात में 479 ड्रोन और 20 मिसाइलों से हमला किया, जिसका जवाब यूक्रेन ने 277 ड्रोन और 19 मिसाइलों को नष्ट करके दिया। कीव में हुए इन हमलों में 14 नागरिक मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए, जिससे युद्ध की क्रूरता उजागर हुई। उधर, यूक्रेन ने पश्चिमी सहायता से हिमारस रॉकेट सिस्टम, जैवलिन एंटी-टैंक मिसाइलें, पैट्रियाट हवाई रक्षा प्रणाली और तुर्की निर्मित बायकर टीबी2 ड्रोन का उपयोग किया है। यूक्रेन ने रूसी ठिकानों पर छोटे ड्रोनों से हमले किए, जो रूस की वायु रक्षा प्रणालियों को भेदने में सक्षम हैं। अब रूस ने 4000 डिग्री सेल्सियस तापमान उत्पन्न करने वाली ओरेश्निक बैलिस्टिक मिसाइल का उपयोग करने की धमकी दी है, जिससे युद्ध और घातक हो सकता है।
मानव जाति स्वतंत्रता की खोज में जिस पथ पर चली, वहां सत्ताएं बदलीं, व्यवस्थाएं गिरीं, साम्राज्य टूटे, लेकिन उनके स्थान पर जो कुछ आया, उसमें एक नई किस्म की हिंसा छिपी हुई थी-संवैधानिक, संस्थागत और वैचारिक। आजादी के नाम पर भीड़ उन्मादी बनी, राष्ट्र एक-दूसरे पर टूट पड़े और नागरिक समाज ‘राष्ट्र-राज्य’ की मशीनरी में पिसता चला गया। जहां एक ओर ‘डेमोक्रेसी’ का नाम लेकर औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ, दूसरी ओर उसी लोकतंत्र ने कई देशों में तानाशाही का मुखौटा पहन लिया। हिटलर भी लोकतांत्रिक ढंग से सत्ता में आया था, स्टालिन ने भी ‘जनता के नाम’ पर लाखों लोगों की हत्या की थी और अमेरिका ने फ्री वर्ल्ड के नाम पर वियतनाम और इराक को झुलसा दिया था।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जबिगन्यू ब्रजेजिंस्की ने कहा था- हमारी दुनिया एक ऐसी शतरंज की बिसात बन चुकी है, जहां हर चाल सत्ता, भय और विनाश के इर्द-गिर्द घूमती है। उन्होंने 2012 में अपनी पुस्तक ‘स्ट्रैटिजिक विजन : अमेरिका एंड क्राइसिस ऑफ ग्लोबल पावर’ में लिखा है कि ‘‘विश्व में एक नई राजनीतिक जागृति उभर रही है, जो आंतरिक संघर्षों को बढ़ावा देगी।’’
शक्ति का संतुलन नहीं
आज विश्व उसी दहलीज पर खड़ा है, जहां परमाणु महत्वाकांक्षाएं, हाइब्रिड युद्ध की रणनीतियां और सभ्यताओं का टकराव मानवता के भविष्य को चुनौती दे रहा है। हर राष्ट्र ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए हथियारों का विशाल भंडार एकत्रित कर लिया है, परंतु शक्ति का यह संतुलन अब पूर्णतः बिखर चुका है। विश्व के नौ देशों-रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इस्राएल व उत्तर कोरिया के पास परमाणु हथियार हैं। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के अनुसार, रूस और अमेरिका के पास कुल 12,000 परमाणु हथियारों का 90 प्रतिशत हिस्सा है। रूस के पास 5,459 परमाणु हथियार हैं, जिन्हें उसने 1,710 मिसाइलों, लड़ाकू विमानों और बमवर्षकों पर तैनात कर रखा है।
प्लेटो ने कहा था, ‘‘जब शक्ति बिना नैतिकता के आती है, तो वह विनाश को जन्म देती है।’’ यह कथन आज के परमाणु संपन्न विश्व के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। इस असीम शक्ति ने विश्व को एक ऐसे कगार पर पहुंचा दिया है, जहां संतुलन की जगह भय और अविश्वास ने ले ली है। दरअसल, रूस ने 2022 में अपनी परमाणु नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किया। इसके अनुसार, यदि कोई गैर-परमाणु देश परमाणु शक्ति के समर्थन से रूस पर हमला करता है, तो उसे युद्ध माना जाएगा। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्पष्ट रूप से कहा, ‘‘हम अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हर हथियार का उपयोग करेंगे, चाहे वह परमाणु हो या पारंपरिक।’’ उनका यह बयान यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में था। रूस ने आरएस-28 सरमत मिसाइलें तैनात की हैं, जो पूरे क्षेत्र को तबाह करने की क्षमता रखती हैं। इस युद्ध ने न केवल यूरोप को, बल्कि संपूर्ण विश्व को एक नए महायुद्ध की आशंका में डाल दिया है।
दार्शनिक दृष्टिकोण से देखें तो यह युद्ध शक्ति व नैतिकता के बीच गहरे टकराव को दर्शाता है। रूस का दावा है कि नाटो की विस्तारवादी नीतियां उसे उकसा रही हैं, जबकि पश्चिमी देश इसे रूसी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा मानते हैं। अमेरिका में ट्रंप की वापसी ने इस संकट को और जटिल बना दिया है, क्योंकि उनकी प्राथमिकता चीन से व्यापारिक टकराव और तकनीकी कंपनियों पर नियंत्रण करने में है।

पांथिक राष्ट्रवाद का नया रूप
ईरान-इस्राएल संघर्ष केवल दो देशों का विवाद नहीं रहा, बल्कि व्यापक वैचारिक युद्ध का रूप ले चुका है। इस्राएल स्वयं को यहूदी राज्य के रूप में पंथ, सभ्यता व अस्तित्व की रक्षा में संलग्न देखता है, जबकि ईरान खुद को क्रांतिकारी इस्लामी राज्य के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसका लक्ष्य ‘जायोनिज्म’ का विरोध व ‘मुस्लिम उम्मा’ का नेतृत्व है। इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हाल ही में कहा, ‘‘ईरान का परमाणु कार्यक्रम न केवल इस्राएल, बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरा है। हम इसे रोकने के लिए कुछ भी करेंगे।’’ उनकी यह टिप्पणी ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ के दौरान आई, जब इस्राएल ने ईरान के परमाणु और मिसाइल ठिकानों पर व्यापक हमला किया।
इस्राएल ने 13 जून, 2025 को ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, जिसके जवाब में ईरान ने इस्राएल पर प्रतिशोधी मिसाइल हमले किए। ईरान के सर्वोच्च नेता अली हुसैनी खामेनेई ने एक बार कहा था, ‘‘इस्लामिक क्रांति का उद्देश्य केवल ईरान तक सीमित नहीं है; यह विश्व में न्याय और स्वतंत्रता की स्थापना के लिए है।’’ परंतु ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाएं और इस्राएल का कठोर रुख इस क्षेत्र को अत्यधिक अस्थिर कर रहा है। सोशल मीडिया पर एक कथित बयान वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया गया कि नेतन्याहू ने कहा, ‘‘ईरान के बाद हमारा अगला निशाना पाकिस्तान है, क्योंकि इसका ‘इस्लामिक बम’ विश्व के लिए खतरा है।’’ इस कथित वक्तव्य ने पाकिस्तान में व्यापक हड़कंप मचा दिया है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इन दावों का खंडन किया और स्पष्ट किया कि इस्लामाबाद ने इस्राएल के विरुद्ध परमाणु हमले की कोई धमकी नहीं दी है। यद्यपि इस बयान की हालिया पुष्टि नहीं हुई है, फिर भी यह पाकिस्तान में गहरी चिंता और भय का कारण बना है, क्योंकि यह उनके परमाणु हथियारों को ‘इस्लामिक बम’ के रूप में चित्रित करता है।
चीन की रणनीति और ईरान समर्थन
चीन की भू-राजनीतिक दृष्टि केवल प्रशांत क्षेत्र या ताइवान तक सीमित नहीं है। पिछले दशक में चीन ने ईरान के साथ ऊर्जा, रक्षा और तकनीक के क्षेत्रों में गहन भागीदारी विकसित की है। मार्च 2021 में दोनों देशों ने 25 वर्षीय रणनीतिक समझौता किया, जिसके अंतर्गत चीन ईरान में 400 अरब डॉलर का निवेश करेगा और बदले में ईरान नियमित तेल आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। इसे केवल वाणिज्यिक संबंध मानना भूल होगी। यह चीन की पश्चिम एशिया में प्रभाव स्थापित करने की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। अली हुसैनी खामेनेई और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैठकों में बार-बार ‘साझा सभ्यताओं की रक्षा’ और ‘पश्चिमी हस्तक्षेप का विरोध’ जैसी चर्चाएं होती रही हैं। हार्वर्ड के सेंटर फॉर इंटरनेशनल अफेयर्स के निदेशक रहे सैमुएल हंटिंगटन ने 1993 में भविष्यवाणी की थी, ‘‘आने वाला संघर्ष राष्ट्रों के बीच नहीं, बल्कि सभ्यताओं के बीच होगा।’’ आज ईरान ‘इस्लामी जागरण’ की बात करता है और इस्राएल अपनी यहूदी पहचान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, जो इस बात का संकेत है कि यह सांस्कृतिक और पांथिक प्रतिस्पर्धा का स्पष्ट रूप ले चुका है।
हाल के वर्षों में इस्राएल के हमलों का प्रत्युत्तर ईरान ने सिर्फ प्रत्यक्ष नहीं, बल्कि हिज्बुल्लाह, हूती विद्रोही और सीरिया स्थित मिलिशिया जैसी प्रॉक्सी सेनाओं के माध्यम से दिया है। ईरान अब ‘शिया क्रीसेंट’ को सक्रिय कर रहा है, जो लेबनान से लेकर इराक, सीरिया और बहरीन तक फैला हुआ है। यह संघर्ष मध्य-पूर्व की उन पुरानी दरारों को पुनः गहरा कर रहा है, जो पहले से ही सुन्नी-शिया और अरब-गैर-अरब तनावों से ग्रस्त हैं। सऊदी अरब की प्रतिक्रिया इस संदर्भ में निर्णायक होगी। युवराज सलमान ने स्पष्ट चेतावनी दी थी, ‘‘अगर ईरान परमाणु शक्ति बनता है, तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे।’’ इससे क्षेत्रीय परमाणु दौड़ की शुरुआत हो सकती है।

भारत की कूटनीतिक चुनौती
भारत की स्थिति इन सभ्यताओं के संघर्ष के मध्य अत्यंत विशिष्ट और चुनौतीपूर्ण है। भारत के इस्राएल और ईरान, दोनों देशों के साथ गहरे और बहुआयामी संबंध हैं। इस्राएल के साथ सैन्य सहयोग निरंतर बढ़ रहा है, जबकि ईरान के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और ऊर्जा-आधारित संबंध मजबूत हैं।
चाबहार बंदरगाह भारत की ‘उत्तरी पहुंच’ का महत्वपूर्ण द्वार है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है। दूसरी ओर, इस्राएल से प्राप्त रक्षा तकनीक भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा का मजबूत स्तंभ बन चुकी है। यह स्थिति भारत की कूटनीतिक क्षमताओं की वास्तविक परीक्षा है। दक्षिण एशिया में भारत-पाकिस्तान परमाणु समीकरण एक अलग चुनौती प्रस्तुत करता है। सिपरी के अनुसार, भारत के पास 172 और पाकिस्तान के पास 170 परमाणु हथियार हैं। भारत की ‘पहले प्रयोग नहीं’ की नीति के विपरीत, पाकिस्तान की परमाणु नीति अस्पष्ट है, जिससे क्षेत्रीय तनाव निरंतर बना रहता है।
पाकिस्तानी मंत्री शाजिया मर्री का यह कथन कि ‘हमारा परमाणु शस्त्रागार सजावट के लिए नहीं है’, भारत के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है। पाकिस्तान द्वारा अपनी परमाणु ताकत को ‘इस्लामिक बम’ के रूप में प्रचारित करना भारत की चिंता बढ़ाता है। हालांकि, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच डीजीएमओ स्तर पर वार्ता के बाद अस्थायी शांति बनी है, पर स्थिति नाजुक बनी हुई है। दार्शनिक दृष्टिकोण से यह टकराव मानवीय स्वार्थ और भय को दर्शाता है। जैसा कि हॉब्स ने कहा था, ‘‘मनुष्य का स्वभाव युद्ध की ओर ले जाता है, जब तक कि कोई उच्चतर शक्ति उसे नियंत्रित न करे।’’
आज का युद्ध केवल पारंपरिक हथियारों से नहीं, बल्कि साइबर हमलों, भ्रामक सूचनाओं और प्रॉक्सी युद्धों से लड़ा जा रहा है। साइबर हमले परमाणु हथियारों को और भी खतरनाक बना रहे हैं, क्योंकि एक कुशल हैकर पूरे सिस्टम को नियंत्रित कर सकता है। जैसा कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चेतावनी दी थी, ‘साइबर खतरा हमारे परमाणु शस्त्रागार के लिए सबसे बड़ा खतरा है।’
शेक्सपियर ने मैकबेथ में कहा था कि हिंसा की रणनीतियां अंततः अपने रचयिताओं को ही निगल लेती हैं। हमारी दुनिया एक बार फिर उस मोड़ पर है जहां विनाश और विवेक के बीच अत्यंत पतली रेखा है। रूस की आक्रामकता, चीन की विस्तारवादी नीति, ईरान का मजहबी राष्ट्रवाद और पाकिस्तान का अंधा भारत विरोध, पश्चिम की सैन्य उपस्थिति-ये सभी मिलकर एक विस्फोटक स्थिति निर्मित कर रहे हैं।
विश्व एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर है, जहां शक्ति, भय और नैतिकता का टकराव मानवता के भविष्य को निर्धारित करेगा। नेतन्याहू का पाकिस्तान के विरुद्ध कथित बयान भले ही पूर्णतः सत्यापित न हो, पर यह विश्व में बढ़ते अविश्वास और भय को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। 20वीं सदी का सबसे बड़ा धोखा यह था कि स्वतंत्रता को सिर्फ ‘राज्य से मुक्ति’ समझा गया, न कि ‘स्वयं से जिम्मेदारी’। इसलिए जब विश्व ‘लोकतंत्र’ और ‘मानवाधिकार’ के झंडों के नीचे युद्धरत हो गया, तब असल में यह उत्तरदायित्व की पराजय थी।
इतिहास के इन आदिम संहारों के विस्फोट ने यह दिखाया कि सभ्यता की सतह के नीचे एक अंधकार अब भी मौजूद है। जरा-सी उत्तेजना, एक गलत नारा, एक झूठा वादा-और मानवता फिर उसी आदिम हिंसा में लौट आती है, जहां एक ‘स्वतंत्र नागरिक’ एक क्षण में ‘उन्मादी हत्यारा’ बन जाता है। 21वीं सदी ने इन सब त्रासदियों से कुछ सीखा हो या न सीखा हो, पर इतना तय है कि आज की दुनिया फिर उसी चौराहे पर खड़ी है-जहां स्वतंत्रता का सपना और संहार का यथार्थ आमने-सामने हैं। और यही वह क्षण है, ज्यां पाॅल जब सार्त्र का यह वाक्य महज एक विचार नहीं, बल्कि एक चेतावनी बन जाता है-स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं, वह उत्तरदायित्व का भार है।
ईरान में तख्तापलट के आसार

इस्राएल के साथ जारी युद्ध के बीच ईरान में अली हुसैनी खामेनेई की सरकार पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इस्रायल के हमलों में ईरान के कई शीर्ष सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे जा चुके हैं। इस्राएल ने ईरान की सेना और शासन के शीर्ष नेतृत्व को निशाना बनाया है, जिससे सत्ता संरचना कमजोर हुई है। दूसरे, 85 वर्षीय खामेनेई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। उनके शासन को घरेलू (महंगाई, मानवाधिकार उल्लंघन, महिलाओं के अधिकार) और बाहरी (इस्राएल-अमेरिका के हमले, परमाणु कार्यक्रम पर दबाव), दोनों मोर्चों पर गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि ईरान में सत्ता परिवर्तन हो सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा है कि कुछ बड़ा हो सकता है। इससे भी खामेनेई शासन के तख्तापलट की आशंका बढ़ गई है।ऐसी स्थिति में तीन प्रमुख गुट सत्ता के दावेदार माने जा रहे हैं। पहला, विदेश में बसे विपक्षी नेता, जिनमें सबसे प्रमुख नाम रजा शाह पहलवी (पूर्व शाह के बेटे) का है, जो लोकतांत्रिक और पश्चिम समर्थक ईरान की बात करते हैं। उन्होंने कहा है, ‘‘मैं यह नहीं कह रहा कि इस हमले का उद्देश्य ईरानी लोगों को नुकसान पहुंचाना था। हमले का उद्देश्य मूल रूप से शासन के खतरे को बेअसर करना था। स्पष्ट रूप से, इस्राएल का ईरानी नागरिकों पर हमला करने का कोई इरादा नहीं था।’’ रजा शाह पहलवी के इस बयान से स्पष्ट है कि ईरानी जनता पूरी तरह से वर्तमान नेतृत्व के साथ नहीं है और इस्राएली हमले को देश के खिलाफ कम, बल्कि खामेनेई के खिलाफ ज्यादा मान रही है।
दूसरा गुट, मोजाहेदीन-ए-खल्क (एमईके) है, जो प्रमुख विपक्षी संगठन है और मौजूदा इस्लामी शासन के खिलाफ है। तीसरा गुट है, देश के भीतर सुधारवादी और लोकतांत्रिक ताकतें, जो मौजूदा मजहबी शासन को हटाकर लोकतांत्रिक सरकार की मांग कर रही हैं। ईरान में पिछले साल हिजाब और महिला अधिकारों को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जो जनता में मौजूदा शासन के प्रति असंतोष को दर्शाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस्राएल और अमेरिका, दोनों ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम और कट्टरपंथी शासन को खत्म करने के लिए दबाव बना रहे हैं। इस्राएल का लक्ष्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम के साथ-साथ उसके शीर्ष नेतृत्व और शासन को भी हटाना है।
आशंकाओं का समीकरण
वर्तमान वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य तनावपूर्ण है। रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य-पूर्व में इस्राएल-ईरान, अफ्रीका-म्यांमार में गृहयुद्ध और एशिया में बढ़ते क्षेत्रीय विवादों ने तीसरे विश्व युद्ध की आशंका बढ़ा दी है।
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