वर्तमान वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य तनावपूर्ण है। रूस-यूक्रेन युद्ध, मध्य-पूर्व में इस्राएल-ईरान, अफ्रीका-म्यांमार में गृहयुद्ध और एशिया में बढ़ते क्षेत्रीय विवादों ने तीसरे विश्व युद्ध की आशंका बढ़ा दी है। उत्तर कोरिया और चीन द्वारा रूस को समर्थन और ताइवान पर चीन की आक्रामकता तथा साइबर युद्ध, गलत सूचनाएं व परमाणु हथियारों की होड़ ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।
शीत युद्ध के बाद अमेरिका महाशक्ति के रूप में उभरा था, आज वह वैश्विक प्रभुत्व स्थापित करने की चाह रखने वाली ताकतों के विरुद्ध आक्रामक रणनीतियां अपनाने को विवश है। लेकिन दूसरी तरफ उसे चीन और ईरान जैसे देश उसे कड़ी चुनौती देते दिखते हैं।
ग्लोबल पीस इंडेक्स 2024 के अनुसार, विश्व में 59 सशस्त्र संघर्ष चल रहे हैं, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक हैं। इन संघर्षों ने वैश्विक शक्तियों को दो खेमों में बांट दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देश इस्राएल के साथ हैं, जबकि रूस, चीन और कई इस्लामी देश ईरान का समर्थन कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि रूस और चीन ने ईरान को सैन्य समर्थन दिया, तो यह संघर्ष वैश्विक युद्ध में बदल सकता है; क्योंकि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध में नाटो और अमेरिका का अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप शामिल है।
दूसरी ओर, नाटो देशों द्वारा यूक्रेन को समर्थन की आशंका पर रूस की परमाणु हमले की धमकी, उधर, अमेरिका द्वारा ईरान को ‘अमेरिकी हितों पर हमले के गंभीर परिणाम भुगतने’ की धमकी हालात को और गंभीर बना रहे हैं। अमेरिका ने मध्य-पूर्व में 40,000 सैनिक और रणनीतिक स्थानों पर युद्धपोत भी तैनात कर रखे हैं। उसका यह कदम न केवल इस्राएल के पक्ष में है, बल्कि चीन, रूस जैसे प्रतिद्वंद्वियों को संदेश देने का प्रयास भी है।
तुर्किये, जो नाटो का सदस्य है, दोहरा रुख अपना रहा है। अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वह रूस और ईरान के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ा रहा है, जबकि मध्य-पूर्व में इस्राएल के खिलाफ है। पश्चिमी देशों को नाराज कर उसने रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदे, लेकिन यूक्रेन को ड्रोन आपूर्ति भी कर रहा है। उसका दोहरा रुख न केवल वैश्विक शक्ति संतुलन को जटिल बना रहा है, बल्कि युद्ध की दिशा को प्रभावित कर सकता है।
सुरक्षा विशेषज्ञ मार्क टोथ और जोनाथन स्वीट का कहना है, “दुनिया पहले ही हाइब्रिड विश्वयुद्ध में प्रवेश कर चुकी है, जिसमें साइबर हमले, गलत सूचनाएं और आर्थिक दबाव शामिल हैं।” इसमें परमाणु हथियारों की मौजूदगी युद्ध को विनाशकारी बना सकती है। अमेरिका पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहा है। यह पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की हाल की वाशिंगटन यात्रा से स्पष्ट है। इन जटिल परिस्थितियों में भारत, जो उभरती हुई शक्ति है, ने अब तक वैश्विक संघर्षों में तटस्थता की नीति अपनाई है।
रूस और अमेरिका, दोनों के साथ उसके संबंध संतुलित दिखते हैं। भारत की आर्थिक और सैन्य शक्ति इसे तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति में एक महत्वपूर्ण कारक बनाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत विकासशील देशों के एक नए धड़े का नेतृत्व कर सकता है, जिसमें दक्षिण एशियाई, दक्षिण अमेरिकी और अरब देश शामिल हो सकते हैं।
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