आधुनिक जीवनशैली अत्यंत गतिशील, प्रतिस्पर्धात्मक और दबावपूर्ण हो गई है। लगातार आगे बढ़ने की होड़ करियर की चिंता, नौकरी और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ तथा सामाजिक अपेक्षाएँ मिलकर व्यक्ति के जीवन में दबाव और मानसिक तनाव पैदा कर रहे हैं। एक ओर आधुनिक तकनीक ने हमें सुविधाएँ प्रदान की हैं, जीवन आसान बनाया है, वहीं दूसरी ओर यही तकनीक तनाव और अकेलेपन जैसी मानसिक समस्याओं को भी बढ़ावा दे रही है। लोग लगातार व्यस्त रहने लगे हैं, जिससे उन्हें मानसिक आराम के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता। इस भागदौड़ भरी जीवनशैली में तनाव धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, जो कई गंभीर मानसिक समस्याओं को जन्म देता है। इन समस्याओं में सबसे सामान्य और गंभीर समस्या डिप्रेशन यानी अवसाद है।
आज के समय में यह समस्या न केवल वयस्कों, बल्कि किशोरों, युवाओं और बुज़ुर्गों को भी प्रभावित कर रही है। सामाजिक वर्ग या आर्थिक स्थिति चाहे जो भी हो, डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहना और इसके लक्षणों को पहचानना बेहद ज़रूरी है।
डिप्रेशन क्या है..?
डिप्रेशन (अवसाद) एक आम लेकिन गंभीर मानसिक बीमारी है, जो किसी व्यक्ति के सोचने के तरीके, महसूस करने और रोज़मर्रा की ज़िंदगी जीने की क्षमता को प्रभावित करती है। यह केवल कुछ समय की उदासी नहीं होती, बल्कि एक ऐसी मानसिक अवस्था होती है जो लंबे समय तक बनी रह सकती है और धीरे-धीरे जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित कर सकती है। यह मन और भावनाओं के संतुलन को बिगाड़ देती है और अगर समय पर ध्यान न दिया जाए, तो यह व्यक्ति के पारिवारिक, सामाजिक और कामकाजी जीवन में बड़ी परेशानियाँ खड़ी कर सकती है।
वर्तमान समय में डिप्रेशन की गंभीरता
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, यह दुनिया भर में सबसे आम मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है और अब इसे एक गंभीर मनोवैज्ञानिक चुनौती माना जाता है। कोविड-19 महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य स्थिति को और प्रभावित किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मार्च 2022 में जारी एक संक्षिप्त रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के पहले वर्ष में, वैश्विक स्तर पर चिंता और डिप्रेशन के मामलों में 25% की उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि डिप्रेशन की चुनौती पिछले कुछ वर्षों में और अधिक गंभीर हुई है।
भारत-विशेष आंकड़े
भारत में भी डिप्रेशन एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरा है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में डिप्रेशन लगभग 50% अधिक आम है। भारत में, NIMHANS द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Mental Health Survey) 2015-16 से पता चला है कि 20 भारतीय वयस्कों में से एक भारतीय वयस्क (लगभग 5% जनसंख्या) डिप्रेशन से पीड़ित है।
डिप्रेशन के सामान्य लक्षण
डिप्रेशन के लक्षण व्यक्ति विशेष में भिन्न हो सकते हैं—हर व्यक्ति इसे अलग तरह से अनुभव करता है। यह धीरे-धीरे मन और सोच को प्रभावित करता है और व्यक्ति को भीतर से कमजोर बना सकता है।
- क्या आपको आजकल सामान्य से अधिक थकान या कमजोरी महसूस होती है?
- क्या आप लगातार उदासी या बेचैनी का अनुभव कर रहे हैं?
- क्या नींद में कोई बदलाव आया है, जैसे नींद न आना या ज़्यादा सोना?
- क्या आप उन कामों में रुचि खो चुके हैं जिनमें पहले आपको आनंद आता था?
- क्या आप स्वयं को अकेला, असहाय या निराश महसूस करते हैं?
- क्या ध्यान केंद्रित करने या निर्णय लेने में परेशानी होती है?
ये कुछ सामान्य लक्षण हैं, जिन्हें देखकर आप अपने मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का प्रारंभिक मूल्यांकन कर सकते हैं। यदि आपका उत्तर इनमें से कई सवालों के लिए “हाँ” है, तो इसे नज़रअंदाज़ न करें। समय रहते विशेषज्ञ से सलाह लेना आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है। आइए अब समझते हैं कि अवसाद के सामान्य लक्षण क्या हो सकते हैं।
भावनात्मक लक्षण : लगातार उदासी, खालीपन या निराशा की भावना होना, रोने की इच्छा या चिड़चिड़ापन महसूस करना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होना, पूर्व में आनंद देने वाली गतिविधियों में रुचि का समाप्त हो जाना, तथा अपने को अकेला या निस्सहाय महसूस करना। अवसादग्रस्त व्यक्ति अक्सर बेबस और आशाहीन महसूस करते हैं, और मामूली बातों पर भी स्वयं को दोषी ठहरा सकते हैं।
मानसिक लक्षण : निर्णय लेने में कठिनाई होना, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी आना, स्मरण शक्ति का कमजोर होना, तथा बार-बार मृत्यु या आत्महत्या के विचार मन में आना डिप्रेशन के कारण नकारात्मक विचार लगातार बने रहते हैं और भविष्य के प्रति निराशा भरी सोच विकसित हो सकती है।
शारीरिक लक्षण : नींद में बदलाव (अनिद्रा या अत्यधिक सोना), भूख और वजन में परिवर्तन (भूख न लगना या अत्यधिक भोजन करना), हमेशा थकान व ऊर्जा की कमी महसूस करना, सिरदर्द या पीठ-दर्द जैसी अस्पष्ट शारीरिक पीड़ाएँ होना। डिप्रेशन से पीड़ित कई लोगों में नींद संबंधी विकार, शारीरिक वजन घट जाना आम है।
व्यवहारिक लक्षण : सामाजिक गतिविधियों से दूरी बना लेना (दोस्तों और परिवार से कट जाना), काम या दैनिक जिम्मेदारियों की उपेक्षा करना, पसंदीदा शौकों में रुचि खो देना अपनी व्यक्तिगत देखभाल (स्वच्छता आदि) में लापरवाही बरतना, तथा कुछ लोग शराब या नशीले पदार्थों का सहारा लेकर भावनाओं को दबाने का प्रयास करते हैं। डिप्रेशनग्रस्त व्यक्ति अक्सर सामान्य से अधिक समय अकेले बिताते हैं और सामाजिक सहभागिता से बचते हैं।
डिप्रेशन के संभावित कारण
डिप्रेशन या अवसाद किसी एक कारण से उत्पन्न नहीं होता, बल्कि इसके पीछे अनेक कारक हो सकते है। यह जीवन के विविध पहलुओं जैसे— व्यक्तिगत अनुभव, पारिवारिक स्थितियाँ, पेशेवर दबाव, सामाजिक अपेक्षाएँ और जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं के संयुक्त प्रभाव का परिणाम होता है। ये सभी कारक मिलकर मानसिक तनाव को बढ़ावा देते हैं और धीरे-धीरे डिप्रेशन की गंभीर स्थिति पैदा कर सकते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि वे कौन-कौन से संभावित कारण हैं, जो डिप्रेशन की समस्या को बढ़ावा देते हैं।
जीवनशैली संबंधी कारण : अत्यधिक तनावपूर्ण दिनचर्या, अनियमित या अपर्याप्त नींद, खराब आहार (पोषण की कमी), शारीरिक गतिविधि का अभाव, तथा धूम्रपान या शराब/नशे का सेवन जैसी आदतें डिप्रेशन के जोखिम को बढ़ा सकती हैं। इन अस्वस्थ आदतों से शरीर में रासायनिक असंतुलन पैदा होता है और तनाव का स्तर बढ़ता है, जो आगे चलकर डिप्रेशन की समस्या को बढ़ावा दे सकता है।
व्यक्तिगत कारण : पारिवारिक कलह या रिश्तों में लगातार तनाव, जीवनसाथी या करीबी मित्र से विछोह या तलाक, बचपन में हुए शारीरिक/मानसिक दुर्व्यवहार या आघात, परिवार में डिप्रेशन का आनुवंशिक इतिहास (जेनेटिक प्रवृत्ति) इत्यादि व्यक्तिगत जीवन से जुड़े जोखिम कारक हैं। यदि परिवार में किसी करीबी को डिप्रेशन रहा हो तो उस व्यक्ति में डिप्रेशन की संभावना बढ़ जाती है। भावनात्मक समर्थन की कमी और लगातार अकेलापन भी व्यक्ति को डिप्रेशन की ओर धकेल सकते हैं।
पेशेवर कारण : कार्यस्थल पर अत्यधिक दबाव या वर्कलोड, नौकरी की असुरक्षा या बेरोजगारी, करियर में असफलता या बर्नआउट, तथा काम और निजी जीवन में संतुलन की कमी के कारण लंबे समय तक बना रहने वाला तनाव डिप्रेशन को जन्म दे सकता है। कार्यालयी तनाव और नौकरी से जुड़ी चिंताएँ व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती हैं और यह देखा गया है कि कॉरपोरेट क्षेत्र के बहुत से कर्मचारियों में डिप्रेशन एवं चिंता के लक्षण पाये जाते हैं।
परिस्थितिजन्य कारण : जीवन में अचानक आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी डिप्रेशन का कारण बन सकती हैं। उदाहरण के लिए किसी प्रियजन की मृत्यु या गंभीर बीमारी, आर्थिक संकट या दिवालियापन, नौकरी छूटना, प्राकृतिक आपदा या दुर्घटना का सामना करना जैसी घटनाएँ व्यक्ति को गहरे सदमे में डाल सकती हैं। ऐसे तनावपूर्ण जीवन-प्रसंग डिप्रेशन के प्रकरण को ट्रिगर कर देते हैं, विशेषकर यदि व्यक्ति के पास सामना करने हेतु सामाजिक समर्थन या कौशल की कमी हो। अनुसंधानों में पाया गया है कि बेरोज़गारी या शोक जैसी घटनाओं से गुज़रे लोगों में डिप्रेशन विकसित होने की संभावना अधिक होती है।
यह ध्यान देने योग्य है कि डिप्रेशन प्रायः इन कारकों के पारस्परिक प्रभाव से उत्पन्न होता है। कई बार जीवनशैली एवं परिस्थितिजन्य कारक मिलकर व्यक्ति के जैविक और मनोवैज्ञानिक संतुलन को प्रभावित करते हैं, जिससे डिप्रेशन की दशा उत्पन्न होती है।
उदाहरणस्वरूप, आर्थिक कठिनाई (परिस्थितिजन्य) के कारण उत्पन्न तनाव व्यक्ति को मद्यपान की ओर धकेल सकता है (जीवनशैली), जो आगे चलकर सामाजिक संबंधों में दरार (व्यक्तिगत) और कार्यक्षेत्र में प्रदर्शन गिरने (पेशेवर) का कारण बनता है – परिणामस्वरूप डिप्रेशन की संभावना बढ़ सकती है। इससे बाहर निकलने के लिए सही मार्गदर्शन, भावनात्मक सहयोग और समग्र इलाज की ज़रूरत होती है।
योग और डिप्रेशन का संबंध
डिप्रेशन के कारण और लक्षणों को समझने के बाद यह सवाल स्वाभाविक है कि हम इससे कैसे बाहर आ सकते हैं? आज की तनावपूर्ण जीवनशैली में मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए एक ऐसी पद्धति की आवश्यकता है जो शरीर और मन दोनों को साथ लेकर चले। यहीं योग की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
योग केवल व्यायाम या आसनों तक सीमित नहीं है। योग भारत की प्राचीन परंपरा से उद्भूत एक समग्र (होलिस्टिक) उपचार और जीवन-शैली प्रणाली है, जो मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करती है। यह प्रणाली आसनों (शारीरिक व्यायाम), प्राणायाम (श्वास नियंत्रण) और ध्यान के माध्यम से शरीर की आंतरिक ऊर्जा को संतुलित करती है। योग का प्रभाव केवल लक्षणों पर नहीं बल्कि समस्या की जड़ पर होता है – यह तनाव को कम करके, तंत्रिका-तंत्र को शांत करके एवं सकारात्मक मानसिक अवस्था विकसित करके चित्त को मजबूत बनाता है।
“योग” शब्द संस्कृत धातु “युज्” से निकला है जिसका अर्थ है “जोड़ना” या “मिलन” । योग का वास्तविक अर्थ है संयुक्त होना – अर्थात् शरीर, मन और आत्मा का पूर्ण सामंजस्य। दार्शनिक दृष्टिकोण से, योग का आधार पतंजलि के योगसूत्र जैसे ग्रंथों में मिलता है। पतंजलि बताते हैं कि आसन और श्वास-नियंत्रण के अभ्यास से शरीर और इंद्रियाँ शुद्ध होकर ध्यान एवं समाधि के लिए तैयार होती हैं।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में योग की स्वीकार्यता
आज योग को विश्व भर में स्वीकार्यता मिली है और योग को कई मानसिक विकारों के इलाज में सहायक माना जा रहा है । वैज्ञानिक शोधों ने दर्शाया है कि योगाभ्यास से तनाव में कमी आती है, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा व्यक्ति में सकारात्मक दृष्टिकोण और आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलता है।
योग व योगाभ्यास से मानसिक स्वास्थ्य को लाभ
नियमित योगाभ्यास व्यक्ति को मानसिक एवं शारीरिक दोनों स्तरों पर अनेक लाभ प्रदान करता है। योग के नियमित अभ्यास से मन को शांति, स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, निर्णय क्षमता सुधरती है और सजग जागरूकता (माइंडफुलनेस) विकसित होती है, जो डिप्रेशन से उबरने में प्रभावी रूप से सहायक होती है।
डिप्रेशन में लाभकारी प्रमुख व सरल योगासन
डिप्रेशन से राहत में कुछ योगासन विशेष रूप से लाभकारी माने जाते हैं। ये आसन सरल हैं और नियमित अभ्यास से मानसिक संतुलन बहाल करने में मदद करते हैं।
सुखासन (Easy Pose) – जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह एक अत्यंत सरल और आरामदायक आसन है। सुखासन का सीधा संबंध मूलाधार चक्र से है, जो हमारे शरीर का आधार होता है। जब कोई व्यक्ति डिप्रेशनग्रस्त होता है तो अक्सर असुरक्षा और अस्थिरता महसूस करता है। सुखासन में नियमित बैठने से व्यक्ति को भीतर से शांति और सुरक्षा की अनुभूति होती है। इस आसन में ध्यान लगाने से तनाव और चिंता कम होती है, और मन की एकाग्रता बढ़ती है, और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायता मिलती है।।
बालासन (Child Pose) – यह मुद्रा उसी स्थिति को दर्शाती है जैसे गर्भ में शिशु रहता है। यह एक आरामदायक विश्राम करने वाली मुद्रा है जो शारीरिक और भावनात्मक समर्थन प्रदान करती है योग विशेषज्ञों के अनुसार, इस आसन से इच्छाशक्ति में वृद्धि होती है और मस्तिष्क में सकारात्मकता बढ़ती है, बालासन के अभ्यास से मन में सुरक्षा और संरक्षण का एहसास पनपता है (मानो बच्चा माँ की गोद में हो), जिससे डिप्रेशनग्रस्त व्यक्ति को शांति मिलती है। डिप्रेशन में बालासन नियमित करने से चिंता और बेचैनी कम होती है, नींद में सुधार होता है तथा व्यक्ति को एक क्षणिक भावनात्मक राहत मिलती है।
भुजंगासन (Cobra Pose) – यह पीठ को पीछे की ओर मोड़ने (backbend) वाला आसन है जो रीढ़ की लचीलेपन में सुधार करता है तथा रीढ़ मजबूत होती है भुजंगासन के अभ्यास से मानसिक तनाव कम होता है और रीढ़ की नसों को आराम मिलता है, और धीरे-धीरे आत्मविश्वास लौटने लगता है। डिप्रेशनग्रस्त व्यक्ति के लिए, भुजंगासन सुबह-सुबह करना दिनभर के मूड को ऊर्जावान और सकारात्मक बनाने में मदद कर सकता है।
सर्वांगासन (Shoulder Stand) – सर्वांगासन को “सभी अंगों का आसन” भी कहा जाता है, क्योंकि यह पूरे शरीर को लाभ पहुँचाता है। यह एक प्रकार का उल्टा आसन है जो रक्त प्रवाह को सिर और मस्तिष्क की ओर बढ़ाता है। सर्वांगासन मानसिक स्पष्टता, ऊर्जा और सकारात्मक भावनाओं को बढ़ाता है,आत्म-अभिव्यक्ति में सुधार करता है, जो डिप्रेशन के लक्षणों में कमी लाता है।
सेतु बंधासन (Bridge Pose) – यह आसन शरीर और मस्तिष्क के बीच संतुलन पैदा करने वाला माना जाता है। डिप्रेशन की अवस्था में व्यक्ति मन की बातें अभिव्यक्त नहीं कर पाता, गले में भारीपन या घुटन-सी महसूस हो सकती है, जो विशुद्ध चक्र की असंतुलित ऊर्जा को दर्शाता है। इस मुद्रा में गर्दन और थाइरॉयड ग्रंथि पर सौम्य खिंचाव से थायरॉक्सिन जैसे हार्मोन के स्राव में संतुलन आता है, जो मूड रेगुलेशन में सहायक होते हैं। सेतुबंधासन मन और शरीर के बीच तालमेल बिठाता है, दिमाग से तनाव कम करता है तथा डिप्रेशन में काफ़ी लाभ पहुँचाता है।
पश्चिमोत्तानासन (Forward Bend) – हठयोग-प्रदीपिका के अनुसार पश्चिमोत्तानासन, पद्मासन जैसे कई आसनों को सर्व-व्याधिनाशक आसन के रूप में वर्णित किया गया है। इसके अभ्यास से प्राणधारा सुषुम्ना नाड़ी में ऊपर की ओर प्रवाहित होती है, जठराग्नि तीव्र होती है। यह आसन तनाव को रिलीज़ करके नसों को शिथिल करता है, जिससे शरीर की विश्राम-प्रणाली (पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम) सक्रिय होती है। परिणामस्वरूप मन शांत होता है, मानसिक स्पष्टता बढ़ती है और तनाव, चिंता एवं डिप्रेशन के लक्षण घटने में मदद मिलती है। इस प्रकार पश्चिमोत्तानासन मन को स्थिरता और शांति देकर डिप्रेशन जैसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में भी सहायक सिद्ध होता है।
ध्यान रहे कि योगासन चिकित्सा का स्थान नहीं लेते, लेकिन उपचार प्रक्रिया को समर्थन देते हैं। इन आसनों को धीरे-धीरे नियमित दिनचर्या में शामिल करने पर व्यक्ति को तनाव से मुक्ति, मन में शांति और नई ऊर्जा का अनुभव हो सकता है।
योग अभ्यास के दौरान सावधानियाँ और सुझाव
- · हर व्यक्ति की शारीरिक क्षमता अलग होती है, योगासन ज़बरदस्ती नहीं करने चाहिए।
- · यदि आप डिप्रेशन या किसी भी मानसिक/शारीरिक स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं, तो किसी योग्य मनोचिकित्सक, चिकित्सक या संबंधित विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।
- · योगाभ्यास शुरू करने से पहले अपनी स्वास्थ्य स्थिति का आकलन किसी चिकित्सक से करा लें, विशेषकर यदि आप किसी पुरानी बीमारी या चोट से ग्रस्त हैं।
- · किसी मेडिकल स्थिति (जैसे BP, हृदय रोग, रीढ़ की चोट) में डॉक्टर या अनुभवी प्रशिक्षक से मार्गदर्शन लें।
- · पहली बार अभ्यास करते समय प्रशिक्षित योग शिक्षक की निगरानी में करना बेहतर है। किसी भी नए व्यायाम या उपचार को शुरू करने से पहले विशेषज्ञ के मार्गदर्शन का पालन करें।
- · शुरुआत में हल्का वार्म-अप करें और अंत में शवासन ज़रूर करें।
- · हल्का खिंचाव सामान्य है, लेकिन तेज़ दर्द हो तो आसन तुरंत छोड़ें।
- · प्रत्येक दिन अपनी स्थिति के अनुरूप अभ्यास करें – कभी शरीर अधिक साथ देगा, कभी कम, इसे स्वीकारें।
- · आसनों को सही तकनीक और क्रम से करें, गलत मुद्रा से नुकसान हो सकता है।
- · मन ना भी करे तो कम से कम 10 मिनट का अभ्यास करें – यही बदलाव की शुरुआत है।
- · सतत अभ्यास और संयम से ही योग का वास्तविक लाभ मिलता है।
निष्कर्ष
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि डिप्रेशन से पूर्णतः उबरने के लिए एकीकृत और बहुआयामी प्रयासों तथा उपचार पद्धति की आवश्यकता होती है। गंभीर स्थिति में मनोचिकित्सक की सलाह, मनोचिकित्सकीय थेरेपी (जैसे CBT), औषधियाँ तथा परिवार और समाज का सहयोग मिलकर उपचार को प्रभावी बनाते हैं। ऐसे में योगासन, प्राणायाम और ध्यान जैसे अभ्यास एक प्रभावी पूरक माध्यम के रूप में कार्य करते हैं, जो व्यक्ति को स्वयं की उपचार-यात्रा में सक्रिय सहभागी बनाते हैं।
जब हम नियमित रूप से योगासन का अभ्यास करते हैं— चाहे दिन में 15-20 मिनट ही क्यों न हो—तो धीरे-धीरे मानसिक स्पष्टता, भावनात्मक स्थिरता और आत्म-विश्वास में वृद्धि अनुभव होती है। योगासन केवल शारीरिक क्रियाएँ नहीं, बल्कि मन के साथ जुड़ने की प्रक्रिया भी हैं। यह अभ्यास आत्म-स्वीकृति, धैर्य और आत्मकरुणा का विकास करता है—जो डिप्रेशन से उबरने में अत्यंत सहायक होते हैं। निष्कर्षतः, आधुनिक चिकित्सकीय पद्धतियों के साथ योगासनों का संतुलित संयोजन डिप्रेशन जैसी मानसिक स्थितियों के लिए एक समग्र और संतुलित उपचार मार्ग प्रदान करता है, जिसमें मन, शरीर और चेतना का सामंजस्य स्थापित होता है।
Disclaimer
यह लेख डिप्रेशन और योग से संबंधित जानकारी प्रदान करता है जिसका उद्देश्य पाठकों को विषय की बेहतर समझ देना है। यह सामग्री केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है तथा किसी चिकित्सकीय परामर्श का विकल्प नहीं है। लेख में उल्लिखित योगासनों के लाभ आम अनुभवों व प्रमाणों पर आधारित हैं, पर हर व्यक्ति की परिस्थिति भिन्न हो सकती है – अतः परिणाम व्यक्ति अनुसार भिन्न हो सकते हैं। याद रखें कि मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति में मदद लेना कमजोरी नहीं बल्कि बुद्धिमानी का कदम है। उचित चिकित्सा के साथ-साथ योग एक सहायक उपाय हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञ की मदद को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।
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