इजरायल ईरान के मध्य युद्ध बीते पांच दिनों से लगातार जारी है। वक्त के साथ ये युद्ध विकराल होता जा रहा है। अब तो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी ईरान पर मिलिट्री स्ट्राइक को मंजूरी दे दी है। हालांकि, वो अभी भी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि क्या ईरान अपने परमाणु कार्यक्रमों को छोड़ने के लिए तैयार है? वहीं दूसरी ओर ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई भी इजरायल और अमेरिका दोनों को ही परिणाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं। परन्तु, सवाल ये है कि आखिर ये अमेरिका औऱ ईरान के बीच ये दुश्मनी क्यों है? क्या है इस दुश्मनी की वजह? हालात ये हो गए हैं कि मध्य पूर्व में एक बड़ी ताकत ईरान पर एक के बाद एक ताबड़तोड़ हमले किए जा रहे हैं, पर क्यों? इन सभी सवालों के जवाब अतीत में मिलेंगे।
लेकिन, वर्तमान तो ऐसा हो गया है कि अब इजरायल के बाद अमेरिका भी ईरान पर अपने सबसे ताकतवर बंकर बस्टर बम तक का इस्तेमाल करने की तैयारी करने में लगा है।
क्या हैं वर्तमान कारण
अमेरिका और ईरान के बीच दुश्मनी के वर्तमान कारणो को समझने की कोशिशें करेंगे तो पाएंगे कि अमेरिका ईऱान को परमाणु बम हासिल करने से रोकना चाहता है। अमेरिका का मानना है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करना चाहता है, जबकि ईरान इसे शांतिपूर्ण ऊर्जा उत्पादन के लिए बताता है।
2015 का परमाणु समझौता (JCPOA): ओबामा प्रशासन के दौरान ईरान और P5+1 (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन, जर्मनी) के बीच परमाणु समझौता हुआ, जिसके तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित किया और बदले में आर्थिक प्रतिबंधों में राहत मिली। लेकिन 2018 में, ट्रम्प प्रशासन ने इस समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया और ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। इससे तनाव फिर से बढ़ गया।
वर्तमान स्थिति क्या है: दोनों देशों के बीच तनातनी का एक बड़ा कारण ये भी है कि अमेरिका से बातचीत की आड़ में ईरान बहुत ही तेजी के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है। अमेरिका और इजरायल दोनों ही मित्र राष्ट्र हैं। इजरायल अमेरिका दोनों को ही ऐसा प्रतीत होता है कि अगर ईरान परमाणु हथियार बना लेता है तो उनके लिए खतरा बन जाएगा। ऐसे में ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए इजरायल ने ईऱान के मिलिट्री ठिकानों, उसके सैन्य अड्डों, हथियार कारखानों और परमाणु ठिकानों पर एयरस्ट्राइक कर दिया है।
आतंकी संगठनों का समर्थन: ईरान मध्य पूर्व में शिया समूहों जैसे- लेबनान में हिजबुल्लाह, यमन में हूती विद्रोही, और इराक व सीरिया में शिया मिलिशिया का समर्थन करता है। अमेरिका इसे क्षेत्रीय अस्थिरता का कारण मानता है।
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क्या है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मोसादेग का तख्तापलट: 1953 में ईरान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को अमेरिका (CIA) और ब्रिटेन (MI6) की साजिश के चलते तख्तापलट हो गया। उनकी जगह अमेरिका समर्थित शाह मोहम्मद रजा पहलवी देश के नए राष्ट्रपति बने। दरअसल, मोसादेग ने ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया था, जिससे पश्चिमी तेल कंपनियों के हित प्रभावित हुए।
ईरानी क्रांति: वर्ष 1979 अयातुल्ला खामेनेई के नेतृत्व में ईरान में क्रांति शुरू हुई हुई और अमेरिका समर्थित शाह के शासन का अंत हुआ।
बंधक संकट: बंधक संकट (1979-1981): क्रांति के बाद 1979-81 के दौरान ईरानी छात्रों ने तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया और 52 अमेरिकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाए रखा। अमेरिका ने इसे आतंकवाद कहा था।
ईरान ईराक युद्ध: 1980-88 के दौरान ईरान-इराक युद्ध के दौरान अमेरिका ने इस युद्ध में इराक के नेता सद्दाम हुसैन का समर्थन किया, जबकि ईरान को अलग-थलग करने की नीति अपनाई। अमेरिका ने इराक को हथियार और खुफिया जानकारी प्रदान की, जिसे ईरान ने अपने खिलाफ साजिश माना। 1988 में, अमेरिकी नौसेना ने गलती से एक ईरानी यात्री विमान को मार गिराया जिसमें 290 लोग मारे गए, जिसने तनाव को और बढ़ाया।
इन सब के अलावा ईरान पश्चिमी देशों की बजाय चीन और रूस के अधिक करीब है। ये पश्चिमी देशों और खासकर अमेरिका को रास नहीं आ रहा है। वहीं ईऱान मध्य पूर्व में बार-बार अमेरिका के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है, जिससे अब दोनों ही देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
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