दुनिया का नक्शा बदल रहा है — अब सबकुछ एक देश के इर्द-गिर्द नहीं घूमता। अमेरिका का वह एकध्रुवीय वर्चस्व अब ढलान पर है, और एक नया दौर शुरू हो रहा है — बहुध्रुवीय दुनिया का। इस बदलाव की तस्वीर में एक चेहरा सबसे उभरकर सामने आया है — भारत।
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने 2022 में भारत को “प्राकृतिक धुरी” कहा था, जो इस बदलते वैश्विक संतुलन को आकार देने में सक्षम है। लेकिन भारत को यह दर्जा किसी दया या मौके से नहीं मिला है — ये उसकी अपनी ताक़त, संतुलित सोच और नैतिक नेतृत्व की पहचान है।
दुनिया को दिशा दिखा रहा भारत
भारत अब सिर्फ़ ‘महाशक्ति बनने की चाह’ नहीं रखता, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक नई दिशा सुझा रहा है — एक ऐसी दिशा, जिसमें विकास है लेकिन शांति भी, जहाँ ताक़त है लेकिन करुणा भी। 2023 के ब्रिक्स सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था: “हमारा यह मंच दुनिया को स्पष्ट संदेश दे — अब दुनिया बहुध्रुवीय है, संतुलन की ओर बढ़ रही है, और पुराने तरीकों से नए संकट हल नहीं होंगे। हम बदलाव के प्रतीक हैं, और हमें उसी भावना से काम करना चाहिए।” ये शब्द महज़ कूटनीतिक बयान नहीं हैं। ये भारत की उस वैचारिक जड़ से आते हैं जहाँ से पूरी दुनिया को एक परिवार माना जाता है — “वसुधैव कुटुम्बकम्।” यह सोच आज सिर्फ़ आदर्श नहीं, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय रणनीति का आधार बन चुकी है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जब पश्चिमी देश भारत से उम्मीद कर रहे थे कि वह रूस की आलोचना करे, तब भारत ने सीधी आलोचना की जगह बातचीत, मध्यस्थता और मानवीय सहायता का रास्ता चुना। भारत ने न किसी का अंध समर्थन किया, न ही दबाव में आकर अपनी नीति बदली। उसने हर कदम राष्ट्रीय हित, वैश्विक शांति और नैतिक दायित्व — तीनों को संतुलित रखते हुए उठाया। यही आज के भारत की असली पहचान है।
2023 में भारत ने G20 की अध्यक्षता की। दुनिया के सबसे ताक़तवर देशों के बीच संवाद का सेतु बना। ब्रिक्स, SCO और QUAD जैसे अलग-अलग मंचों में भारत की सक्रिय भागीदारी यह बताती है कि भारत अब सिर्फ़ दर्शक नहीं, दिशा-निर्देशक बन चुका है।
आज भारत की खास बात यह है कि वह एक साथ अलग-अलग और कभी-कभी परस्पर विरोधी समूहों में अपनी भूमिका निभा रहा है। ब्रिक्स में वह चीन और रूस के साथ है, तो क्वाड में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ। यह कोई साधारण संतुलन नहीं है — यह वही ‘राजधर्म’ है, जिसकी शिक्षा हमें चाणक्य और महात्मा गांधी ने दी थी। जयशंकर इसे कहते हैं — “हमें एक साथ कई गेंदें हवा में संभालनी आती हैं।”
अर्थव्यवस्था, युवा शक्ति और लोकतंत्र: भारत की असली ताक़त
भारत आज दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2030 तक तीसरे स्थान पर पहुँचने का अनुमान है। लेकिन भारत केवल ‘GDP’ की दौड़ में नहीं है। भारत आज एक ऐसा उदाहरण बन रहा है जहाँ करोड़ों युवा डिजिटल दुनिया से जुड़कर नवाचार कर रहे हैं, जहाँ लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत हैं, और जहाँ ‘विकास’ को सिर्फ़ शहरों तक नहीं, गाँवों तक पहुँचाने का प्रयास हो रहा है। भारत की शक्ति उसकी सेना या हथियार नहीं, बल्कि उसकी सोच, संस्कृति और सहनशीलता है। बहुध्रुवीय दुनिया की सबसे बड़ी खूबी यह है कि कोई एक देश सब पर हावी नहीं होता। लेकिन यही इसकी सबसे बड़ी चुनौती भी है — क्योंकि जब ताक़त कई हिस्सों में बँटी हो, तो अविश्वास, टकराव और अस्थिरता भी बढ़ जाती है।
भारत को बनना होगा शांति का वाहक
भारत को इस अस्थिर माहौल में शांति का वाहक बनना होगा — न तो किसी ध्रुव पर पूरी तरह झुकना, और न ही तटस्थता के नाम पर ख़ामोश रहना। भारत को हर बार वह राह चुननी होगी जो दीर्घकालिक शांति और न्याय की ओर ले जाए — जैसे बुद्ध ने सिखाया, जैसे गांधी ने जिया। आज जब तीसरे विश्व युद्ध की अटकलें लगती हैं, जब हथियारों की दौड़ तेज़ हो रही है, और जब संवाद की जगह धमकियाँ ले रही हैं — तब दुनिया एक शांत, विवेकी और दार्शनिक नेतृत्व की तलाश कर रही है।
भारत इस खोज का सबसे स्वाभाविक उत्तर है। भारत न केवल भू-राजनीति का धुरी बन सकता है, बल्कि एक नैतिक, समावेशी और करुणामयी विश्व व्यवस्था का मार्गदर्शक भी बन सकता है। जिस धरती ने बुद्ध को जन्म दिया, चाणक्य को राजनीति सिखाई और गांधी को नैतिक साहस दिया — वही आज वैश्विक संतुलन की नई पटकथा लिख रही है।
आज भारत के पास सैन्य ताक़त है, आर्थिक पहुँच है और वैश्विक सम्मान भी। लेकिन उससे भी ज़्यादा, उसके पास वह विचार है जो दुनिया को जोड़ता है — शक्ति से नहीं, समझदारी से; डर से नहीं, संवाद से। भारत अब केवल ‘उभरती महाशक्ति’ नहीं, बल्कि एक ‘करुणामयी धुरी’ बन चुका है — जो शक्ति को नैतिकता से बाँधकर, दुनिया को एक नए संतुलन की ओर ले जा रहा है।
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