जब हम कहते हैं कि भारत के युवा अब सिर्फ दुनिया के पीछे नहीं चल रहे, बल्कि उसे नई दिशा भी दे रहे हैं तो यह बात ईशान चट्टोपाध्याय जैसे लोगों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। ईशान, जो IIT कानपुर से पढ़े हैं और अब अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने कंप्यूटर साइंस की एक 30 साल पुरानी समस्या का हल खोज निकाला है। यह समस्या थी क्या दो कमजोर (कमज़ोर और अस्थिर) रैंडम स्रोतों से भी एक भरोसेमंद और सुरक्षित डेटा निकाला जा सकता है?
तीन दशकों से इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश हो रही थी, क्योंकि इसका हल मिलना डेटा सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, एन्क्रिप्शन और तकनीक की कई नई दिशाओं के लिए बहुत जरूरी था। ईशान ने अपने पीएचडी गाइड डेविड ज़करमैन के साथ मिलकर यह सिद्ध कर दिया कि अगर हमारे पास दो स्वतंत्र लेकिन कमजोर रैंडम स्रोत हैं, तो भी उनसे एक मजबूत, सुरक्षित और भरोसेमंद डेटा निकाला जा सकता है। उनके इस शोध को इतना महत्वपूर्ण माना गया कि उन्हें कंप्यूटर साइंस के प्रतिष्ठित ‘गोएडेल प्राइज’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें जून 2025 में मिला।
यह केवल ईशान की नहीं, बल्कि पूरे भारत के शिक्षा और शोध जगत की उपलब्धि है। ईशान ने 2011 में IIT कानपुर से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस, ऑस्टिन से पीएचडी की। फिर वे माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च, UC बर्कले और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में शोध करते रहे। आखिरकार वे कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से जुड़े और 2024 में एसोसिएट प्रोफेसर बने। ईशान की खोज केवल एक गणितीय हल नहीं है। यह एक व्यावहारिक (practical) तरीका है, जिसका इस्तेमाल आज की डिजिटल दुनिया में किया जा सकता है। इससे साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एन्क्रिप्शन और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों को और सुरक्षित बनाया जा सकता है। ईशान की सफलता हमें सिखाती है कि कठिन सवालों से डरना नहीं चाहिए।
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