ब्रिटेन में कुरआन जलाए जाने पर सजा दिए जाने के बाद मचे हंगामे के बाद वहाँ पर सांसद निक टिमोथी ने संसद में फ्री स्पीच बिल प्रस्तुत किया। ब्रिटेन में किसी भी प्रकार से ब्लेसफेमी का कानून नहीं है, मगर फिर भी वहाँ पर पिछले दिनों एक व्यक्ति को कुरआन जलाने के कारण सजा दी गई थी। इसे लेकर सोशल मीडिया से लेकर संसद तक में हंगामा मच गया था।
और अब इसके बाद यह बहस तेज हुई कि क्या ब्रिटेन में ब्लेसफेमी अर्थात बेअदबी का कानून लागू है? यदि नहीं तो कैसे कुरआन जलाए जाने पर सजा हो सकती है? अब फ़्रीडम ऑफ स्पीच अर्थात बोलने की आजादी को लेकर सांसद निक टिमोथी ने एक बिल संसद मे प्रस्तुत किया। और इसे फ्री स्पीच बिल कहा।
उन्होनें कहा कि यह बिल धार्मिक या यकीन प्रणाली के संबंध में अभिव्यक्ति की आजादी के विषय में है। उन्होनें कहा कि “मैं नहीं मानता कि मोहम्मद परमात्मा के भेजे हुए पैगंबर थे। मैं उन निर्देशों को स्वीकार नहीं करता जो उन्होंने कहा कि उन्हें आर्कान्जेल् गेब्रियल से मिले थे। मैं यह स्वीकार नहीं करता कि सुन्ना या इस्लामी कानूनों का मेरे लिए कोई महत्व है। मैं दूसरों की धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करता हूं, लेकिन मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि मोहम्मद का उपहास किया जाए, उनकी आलोचना की जाए या उनका मजाक उड़ाया जाए। मैं मुसलमान नहीं हूं, और मैं इस्लाम द्वारा निर्धारित नैतिक संहिताओं के अनुसार नहीं जीना चाहता। मैं एक ईसाई हूं, और मुझे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि मुझे नहीं लगता कि किसी पर भी ईसा मसीह का उपहास करने, उनकी आलोचना करने या उनका मजाक उड़ाने के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।“
अर्थात निक टिमोथी का कहना है कि आदर सभी मतों का है, मगर किसी भी मत की आलोचना करने या मजाक करने को लेकर मुकदमा नहीं चलना चाहिए।
वेस्ट सफफोक का प्रतिनिधित्व करने वाले निक का कहना है कि कुरआन जलाने पर सजा के मामले ने यह बताया कि एक समय में हटाए गए ब्लेसफेमी कानून पिछले दरवाजे से इस्लाम और अन्य धार्मिक विचारधाराओं की आलोचना को शांत कराने के लिए लागू कर दिए गए हैं। उन्होनें चेतावनी दी कि ऐसी सजाएं एक खतरनाक मिसाल कायम करते हैं जो लोकतांत्रिक समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक आलोचना और सार्वजनिक बहस को कमजोर करता है।
निकटिमोथी की वेबसाइट पर उनका डेली टेलीग्राफ को दिया गया इंटरव्यू है, उसके साथ ही उस इंटरव्यू का टेक्स्ट भी उनकी वेबसाइट पर है। उन्होनें इस इंटरव्यू में कहा कि वे सरकार से आग्रह करेंगे कि इस बिल का समर्थन करें जिससे कि उदार लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा में कडा कदम उठाया जा सके।
इसी चर्चा में उन्होनें कहा कि बुर्के पर भी प्रतिबंध लगाया जाए। उन्होनें यह कहा कि पूरी तरह से चेहरे ढकने वाला इस्लामिक पर्दा महिलाओं का शोषण है, और समुदायों में सामाजिक विश्वास को कम करता है।
ब्रिटेन की संसद की वेबसाइट पर मौजूद इस प्रस्तावित बिल में लिखा है कि इंगलेंड और वेल्स ने वर्ष 2008 में ब्लेसफेमी के कानूनों को समाप्त कर दिया था और स्कॉटलैंड ने वर्ष 2021 में। मगर दशकों से इन कानूनों का प्रयोग हुआ भी नहीं था।
सोशल मीडिया पर भी उन्होनें अपने इस वीडियो को साझा किया है, जब वह संसद मे अपनी बात रख रहे हैं।
We will not tolerate intimidation, violence or censorship.
There will be no special treatment here for Islam.
And there will be no surrender to the thugs who want to impose their beliefs and culture on the rest of us.
Today I introduced my Bill to restore free speech: pic.twitter.com/vVk4HKKEiw
— Nick Timothy MP (@NJ_Timothy) June 10, 2025
उन्होनें साफ कहा कि हम किसी भी तरह की धमकी, हिंसा या सेंसरशिप नहीं सहेंगे। किसी भी तरह का स्पेशल व्यवहार इस्लाम के साथ नहीं किया जाएगा और उन ठगों के सामने हम आत्मसमर्पण नहीं करेंगे जो अपने यकीन और तहजीब हम पर थोपना चाहते हैं।
बुर्के को लेकर भी उन्होनें एक्स पर पोस्ट लिखा था।
No. There is nothing British about women covering their faces, while their husbands do what they like.
It’s bad for the women concerned and it’s fatal for social trust to live among people dressed this way.
The burqa is as British as Jeddah and yes it should be banned. https://t.co/zzVSL2yPZo
— Nick Timothy MP (@NJ_Timothy) June 5, 2025
उन्होनें लिखा कि नहीं। महिलाओं द्वारा अपना चेहरा ढकना और उनके शौहरों द्वारा अपनी मर्जी के अनुसार काम करना ब्रिटिशों जैसा नहीं है। यह उन महिलाओं के लिए बुरा है और इस तरह के कपड़े पहने लोगों के बीच रहना सामाजिक विश्वास के लिए घातक है।
बुर्का जेद्दाह जितना ही ब्रिटिश है और हां, इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
निक टिमोथी के इस भाषण को लेकर सोशल मीडिया पर भी लोग सकारात्मक प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। अपने भाषण में उन्होनें लिखा कि समस्या यह है कि पब्लिक ऑर्डर एक्ट 1986 की धारा 4 और 5 संसद की मंशा से परे यह नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाती है, कि हम इस्लाम के विषय में क्या कह सकते हैं और क्या नहीं।
उन्होनें कहा कि पब्लिक ऑर्डर एक्ट का संशोधन कभी भी ब्लेसफेमी का कानून नहीं था।
निक टिमोथी ने बहस आरंभ की है और Hamit Coskun नामक व्यक्ति द्वारा कुरआन जलाए जाने और उस पर सजा को लेकर यह बहस आरंभ हुई है।
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