पाकिस्तान ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपना रक्षा बजट पेश करके दुनिया में अपनी एक बार फिर फजीहत कराई है। शाहबाज शरीफ सरकार ने आपरेशन सिंदूर में बुरी तरह मार खाने के बाद अपने रक्षा बजट को सबसे ज्यादा महत्व देते हुए इसमें 20 प्रतिशत की वृद्धि की है। अब कट्टर इस्लामी ‘आतंकिस्तान’ का रक्षा बजट 2,550 अरब पाकिस्तानी रुपये (यानी करीब 9 अरब अमेरिकी डॉलर) तक जा पहुंचा है। रक्षा पर अधिक खर्च करने का बौराई पाकिस्तान सरकार का यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब देश गंभीर आर्थिक संकट, बढ़ती महंगाई और भारी कर्ज के बोझ से जूझ रहा है। आम लोग दाने दाने को मोहताज हैं और नेता और सैन्य अधिकारी अरबों रुपए की काली कमाई से अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं। विश्व के अनेक संस्थानों, चीन और मुस्लिम उम्मा के नाम पर अरब के देशों से लिए कर्ज पर दिन गिर रहे जिन्ना के देश के इस सिरफिरे निर्णय पर विशेषज्ञ भी हैरान हैं कि इस वृद्धि का उसके अर्थतंत्र पर कितना नकारात्मक असर पड़ने वाला है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिरावट की ओर है। विदेशी मुद्रा भंडार न्यूनतम स्तर पर है, महंगाई दर दो अंकों में बनी हुई है, और पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले जबरदस्त गिरावट झेल चुका है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक से मिली आर्थिक सहायता के बावजूद देश की वित्तीय स्थिति स्थिर नहीं हो पाई है।
सरकार ने इस वर्ष कुल संघीय व्यय में 7 प्रतिशत की कटौती की है, लेकिन रक्षा बजट में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बजट में कर्ज और ब्याज भुगतान के लिए 8,207 अरब रुपये आवंटित किए गए हैं, जो कि बजट का सबसे बड़ा हिस्सा है। ऐसे में रक्षा खर्च दूसरा सबसे बड़ा व्यय बन गया है।

पाकिस्तान सरकार ने यह निर्णय बेशक भारत के साथ बढ़ते तनाव और हाल की सैन्य हलचलों के संदर्भ में लिया है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारत के संहारक प्रहार और सैन्य कार्रवाइयों ने पाकिस्तान को अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत करने के लिए मजबूर किया होगा। वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब ने संसद में बजट पेश करते हुए कहा कि यह बजट “असाधारण समय में राष्ट्र की एकता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है”।
हालांकि, परंपरागत रूप से पाकिस्तान की संसद में रक्षा बजट पर विस्तृत चर्चा नहीं होती, क्योंकि वहां पारदर्शिता नाम की कोई चीज है ही नहीं। ध्यान देने की बात यह भी है कि सैन्य पेंशन और उपकरणों के लिए अलग से बजट रखा गया है, जो आधिकारिक रक्षा बजट में शामिल नहीं होता।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल है यही है कि बात घोषणाओं से पूरी नहीं होती, रक्षा पर खर्च करने के लिए जिन्ना के देश के पास पैसा आएगा कहां से? शाहबाज सरकार ने हाल ही में आईएमएफ से 1 अरब डॉलर और एडीबी से 80 करोड़ डॉलर की सहायता प्राप्त की है। भारत ने इस पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि पाकिस्तान इन अंतरराष्ट्रीय अनुदानों का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए कर सकता है, जो कि इन संस्थाओं की शर्तों के खिलाफ है।
इसके अलावा, शाहबाज शरीफ सरकार ने कर वसूली बढ़ाने, सब्सिडी में कटौती और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण जैसे उपायों की घोषणा की है। लेकिन इन कदमों से पैसा सीमित ही मिलेगा, इसलिए ये उपाय अल्पकालिक राहत से ज्यादा कुछ साबित नहीं होंगे।

कट्टर इस्लामी ‘आतंकिस्तान’ में महंगाई पहले से ही आम जनता की कमर तोड़ रही है। खाने की चीजों, ईंधन और दवाओं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में रक्षा बजट में वृद्धि का सीधा असर सामाजिक कल्याण योजनाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर पड़ेगा, जिनके बजट में कटौती की जा सकती है।
इसमें संदेह नहीं है कि पाकिस्तान का रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला रणनीतिक सोच के आधार पर लिया गया होगा, लेकिन विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पाकिस्तान के लिए आर्थिक दृष्टि से यह अपने गले में खुद फंदा लगा लेने जैसा कदम है। जब देश की अर्थव्यवस्था डगमगा रही हो, तब सैन्य खर्च को प्राथमिकता देना दीर्घकालिक स्थिरता के लिए घातक हो सकता है। यदि सरकार पारदर्शिता, जवाबदेही और आर्थिक सुधारों पर ध्यान नहीं देती, तो यह निर्णय देश को और गहरे संकट में धकेल सकता है। यह एक ऐसा दांव है जो देश की जनता की कीमत पर खेला जा रहा है।
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