देश के लिए खतरा सिर्फ सरहद पर ही नहीं है, बल्कि उससे भी बड़ा खतरा देश के अंदर हमारे आसपास पल रहा है। यह एक ऐसा टाइम बम है, जो किसी समय धमाके में बदलकर हमारे देश और समाज को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है। यह समस्या देश में बड़े पैमाने पर अवैध घुसपैठियों के कारण है। देश की सीमा पर दुश्मनों से लड़ने के लिए हमारी सेना पूरी तरह सक्षम है, मगर देश के अंदर पल रहे इन अवैध घुसपैठियों को इंगित करके बाहर निकालना कई तरह से काफी दुष्कर और ज्यादा सूक्ष्म है।
2014 से पूर्व जहाँ इस समस्या को सरकार जानबूझकर नजरअंदाज कर देती थी, वहीं अब इनके खिलाफ माकूल कार्रवाई की जा रही है, जो काफी संतोषप्रद है। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के कई विकसित देश, जैसे अमेरिका और यूरोप के कई देश, इस तरह की अवैध घुसपैठ से काफी परेशान हैं। भारत के कई राज्यों में अवैध घुसपैठियों पर जोरदार कार्रवाई की जा रही है। पूरे देश के कई हिस्सों से अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए गिरफ्तार किए जा रहे हैं। मगर इस समस्या के समाधान के लिए कई स्तरों पर समुचित कार्रवाई की जरूरत है। इसमें राज्यों की सरकारों और केंद्र सरकार को कदम से कदम मिलाकर कार्रवाई करनी पड़ेगी। वर्तमान में जिन राज्यों में भाजपा, एनडीए या इस मुद्दे की समर्थक सरकारें हैं, वहाँ समाधान तेजी से हो रहा है। मगर पश्चिम बंगाल सहित कई प्रदेश हैं जहाँ इसका समाधान में व्यवधान हो रहा है।
अहम सवाल है कि क्या पश्चिम बंगाल घुसपैठियों का प्रवेश द्वार है..?
दरअसल हाल के दिनों में कुछ सनसनीखेज खुलासे भी हुए हैं। बांग्लादेशी घुसपैठिए पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता तक बन रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी भी तृणमूल कांग्रेस पर ऐसे ही आरोप लगाती रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी कह चुके हैं कि ज्यादातर घुसपैठियों के आधार कार्ड पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में बनाए जाते हैं। उसके पश्चात वे पूरे भारत में फैल जाते हैं। ऐसे में एक गंभीर सवाल अब घुसपैठियों के मकड़जाल से देश को बचाने का है। हाल ही में जब घुसपैठियों को राहत देने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, तो कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। हमारे पास पहले से ही 140 करोड़ की विशाल जनसंख्या है। लेकिन पिछले दशकों में जिस तरह से घुसपैठियों ने देश में जनसंख्या का असंतुलन बढ़ा दिया है, उससे तो यही लगता है कि देश को अगर बचाना है तो घुसपैठियों को निश्चित समय काल में भगाना ही होगा। लेकिन विडंबना है कि घुसपैठ पर जब भी कार्रवाई होती है, तो कुछ नेता, वकील और तथाकथित बुद्धिजीवी ढाल की तरह खड़े हो जाते हैं। इसका कारण वोट बैंक है।
दिल्ली में ताबड़तोड़ एक्शन जारी
दिल्ली में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों पर दिल्ली पुलिस का ताबड़तोड़ एक्शन जारी है। दिल्ली में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों पर कार्रवाई अरविन्द केजरीवाल की सरकार के सत्ता से बेदखल होने के बाद ज्यादा तेजी से हो रही है। ये बांग्लादेशी गैरकानूनी तरीके से वजीरपुर और नई सब्जी मंडी इलाके में अपना कार्यक्रम चला रहे थे। पकड़े गए घुसपैठियों में पुरुष, महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। दिल्ली पुलिस ने गोपनीय जानकारी मिलने के बाद यह कार्रवाई की है। दिल्ली पुलिस ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि ये लोग किसी भी प्रकार का पहचान पत्र और मोबाइल फोन नहीं रखते हैं। दिल्ली पुलिस ने इन घुसपैठियों को पकड़ने के बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से इसके लिए काम किया। बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ने से पहले इनके बारे में पूरी जानकारी जुटा ली गई। पुलिस की टीमों को इन इलाकों में तैनात कर दिया गया। गहन और खुफिया जानकारी के आधार पर पुलिस ने डोर टू डोर तलाशी और पूछताछ अभियान चलाया, जिसके बाद अवैध रूप से रह रहे इन बांग्लादेशी नागरिकों को हिरासत में लिया गया। दिल्ली पुलिस के मुताबिक यह अभियान उत्तर-पश्चिमी जिले में अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों की पहचान और गिरफ्तारी के लिए चलाया गया था।
जेएनयू रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे
पिछले दिनों दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी जेएनयू ने एक रिपोर्ट भी जारी की थी, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए थे। इस रिपोर्ट में बताया गया कि राजधानी दिल्ली में भी बड़ी संख्या में अवैध अप्रवासी रह रहे हैं, जिनमें मुस्लिम बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों की आबादी सबसे ज्यादा है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि घुसपैठ की वजह से दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम आबादी के बीच जनसंख्या का असंतुलन भी हो रहा है। रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली में बड़ी तादाद में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान बस गए हैं।
दिल्ली में यहां हैं सबसे ज्यादा घुसपैठिए
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि दिल्ली में रहने वाले अवैध घुसपैठियों में से करीब 96% मुस्लिम समुदाय के हैं। यह घुसपैठिए ज्यादातर सीलमपुर, जामिया नगर, जाकिर नगर, सुल्तानपुरी, मुस्तफाबाद, जाफराबाद, द्वारका, गोविंदपुरी जैसे अन्य भीड़भाड़ वाले इलाकों में बस जाते हैं, जहाँ वे संसाधनों पर दबाव डालते हैं और सामाजिक व धार्मिक समुदायों को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। इन घुसपैठियों को बसाने में दलालों के अलावा मुल्ला-मौलवियों की भी बड़ी भूमिका है। दलालों और मुल्ला-मौलवियों की साठगांठ इनके लिए रहने और नौकरी तक की व्यवस्था करती है। इसी साठगांठ की मदद से इनके फर्जी दस्तावेज भी तैयार कर दिए जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इससे देश की कानून व्यवस्था और चुनावी प्रक्रिया पर भी असर पड़ रहा है।
तेजी से बढ़ी झुग्गी बस्तियों की संख्या
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि घुसपैठियों की वजह से दिल्ली में अवैध कॉलोनियों और झुग्गी बस्तियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसका सीधा असर दिल्ली के बुनियादी ढांचे पर भी पड़ रहा है और वह चरमरा रहा है। अवैध घुसपैठियों के दिल्ली में बसने से शहर की स्वच्छता और जल आपूर्ति पर भी बड़ा असर पड़ा है। इसके अलावा इन घुसपैठियों की वजह से दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारतीयों के हक़ पर पड़ रहा डाका
घुसपैठियों की भीड़ बढ़ने की वजह से अस्पताल और क्लीनिक दिल्ली में रह रहे वैध भारतीय निवासियों की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, जिनकी जरूरतें पहले पूरी होनी चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार, जिन इलाकों में अवैध बांग्लादेशी रह रहे हैं, वहाँ एजुकेशन सिस्टम पर भी भारी दबाव है। इस समस्या ने गरीब इलाकों में शिक्षा की गुणवत्ता पर भी गलत असर डाला है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक कम सैलरी वाली नौकरियों में दिल्ली में रहने वाले वैध स्थानीय मजदूरों और घुसपैठियों के बीच प्रतिस्पर्धा भी बढ़ गया है, जिससे दिल्ली के वैध निवासियों में भारी नाराजगी है क्योंकि उनको काम नहीं मिल रहा है। दरअसल, ये घुसपैठिए कम वेतन और सुविधा पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं, जिससे कानूनी रूप से दिल्ली में काम करने वालों के लिए अवसर सिकुड़ता जा रहा है। इससे लोगों की आमदनी में भी कमी आ गई है, जो कि यह भी एक बड़ी समस्या है।
कैसे होती है घुसपैठ..?
देश के अन्य हिस्सों में घुसपैठ होती कैसे है इसके लिए सबसे पहले घुसपैठ के रास्ते को समझना होगा। बांग्लादेश से सबसे ज्यादा घुसपैठ पश्चिम बंगाल के रास्ते से ही होती है। पश्चिम बंगाल से बांग्लादेश की 4096.7 किमी लंबी सीमा लगती है। इस सीमा पर जंगल, नदी, नाले हैं और इसी का फायदा उठाकर बांग्लादेशी पश्चिम बंगाल में पहले दाखिल हो जाते हैं। इसके बाद बस और ट्रेन के जरिए दिल्ली और अलग-अलग राज्यों तक पहुंच जाते हैं। लेकिन यह बांग्लादेशी घुसपैठिए सब कुछ खुद से नहीं करते। इनके लिए सीमा के दोनों तरफ ऐसे गिरोह हैं जो इन्हें सीमा पार करवा देते हैं। सबसे पहले बॉर्डर क्रॉस कराने वाला गिरोह होता है जो ₹15000 से लेकर ₹20000 तक में अवैध घुसपैठिए को भारत की सीमा पार करवा देता है। और फिर इसके बाद अवैध घुसपैठिए उस शहर की तरफ रुख कर लेता है जहां उसकी जान-पहचान के घुसपैठिए पहले से ही रह रहे होते हैं। जब यह उनके पास उस शहर में पहुंच जाता है, उसके बाद फिर पैसे खर्च करके फर्जी आधार कार्ड, फर्जी पासपोर्ट बन जाते हैं। एक बार जब कागज बन जाते हैं तो अवैध घुसपैठिए नौकरी या फिर अपना कोई काम-धंधा शुरू कर देते हैं। देश के कई हिस्सों में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है तो वहीं हिंदुओं की आबादी लगातार कम होती जा रही है।
कम हुई हिन्दू आबादी
अगर हम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के इस जनसंख्या संतुलन को समझने की कोशिश करते हैं तो आजादी के बाद जब पहली जनगणना 1951 में हुई तब दिल्ली में मुस्लिम आबादी 5.7% थी जो साल 2011 तक बढ़कर 12.9% हो गई यानी 60 सालों में दिल्ली में मुस्लिम आबादी दो गुने से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इस समय काल में दिल्ली में मुस्लिम आबादी 7.2% बढ़ गई जबकि इसी बीच राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम आबादी 4.4% ही बढ़ी है। वहीं दिल्ली की हिंदू आबादी 1951 में 84.2% थी जो 2011 में घटकर 81.7% रह गई। इस समय काल में दिल्ली में हिंदू आबादी में 2.5% की गिरावट देखी गई है। 2021 का जनगणना नहीं हुआ है और जब यह नई जनगणना होगी तो यह जो हिंदू और मुस्लिम आबादी का अनुपात है या अंतर और भी मुस्लिमों के पक्ष में बढ़ सकता है।
दीमक की तरह देश में छुपे बैठें हैं घुसपैठिए
अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए दीमक की तरह देश के लगभग हर शहर में छुपे बैठे हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के चलते जनसंख्या असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ रही है और वहां भी हिंदू आबादी कम हो रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार मुंबई में हिंदू आबादी 1961 में 88% थी जो साल 2011 में घटकर सिर्फ 66% रह गई है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक 1961 में मुंबई में मुस्लिम आबादी सिर्फ 8% थी जो साल 2011 तक बढ़कर 22% हो गई है यानी 50 सालों में मुंबई में हिंदुओं की संख्या पूरे 22% कम हो गई वहीं इन्हीं सालों में मुस्लिम आबादी 14% बढ़ गई है। इस समय काल में मुसलमानों की जनसंख्या मुंबई में ढाई गुना बढ़ गई है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की रिपोर्ट के अनुसार अगर जनसंख्या में इसी तरह से बढ़ोतरी होती रही तो मुंबई में अगले 40 सालों में हिंदू जनसंख्या सिर्फ 54% रह जाएगी तो वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम आबादी 30% से भी ज्यादा बढ़ सकती है।
वोट बैंक में इस्तेमाल कर रहे राजनैतिक दल
इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि मुंबई में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या बढ़ रही है। राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति के लिए इन्हीं घुसपैठियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अवैध घुसपैठियों के कारण मुंबई की झुग्गियों में अत्यधिक भीड़ बढ़ा दी है जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, जल आपूर्ति, बिजली जैसी सार्वजनिक सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। अवैध घुसपैठियों के कारण संसाधनों पर बोझ बढ़ रहा है।
अवैध घुसपैठिए ने खुद किया खुलासा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी कह चुके हैं कि पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में ही ज्यादातर घुसपैठियों के आधार कार्ड बना दिए जाते हैं। उसके बाद यहां से निकलकर पूरे देश में फैल जाते हैं। इस मामले में सबसे सनसनीखेज मामला हैरान करने वाला है। एक अवैध घुसपैठिए ने खुद खुलासा किया कि वह बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के खिलाफ आंदोलन हुआ था, उसमें वह आंदोलन में विद्यार्थी के तौर पर शामिल था। उसके बाद वह अवैध घुसपैठ करके भारत के पश्चिम बंगाल राज्य पहुंच गया और यहां ही नहीं सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता बन गया। इससे यह स्पष्ट है कि अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए भारत में वोट बैंक से भी जुड़ते हैं और इसी से समझा जा सकता है कि क्यों कुछ पार्टियां और उनके नेता इन घुसपैठियों के लिए पलक बिछाते रहते हैं। इनके सभी तरह के पहचान पत्र बनवाते हैं, इनको सभी सरकारी सुविधाएं देते हैं।
कम्युनिस्ट पार्टी ने बसाए बांग्लादेशी मुसलमान
पश्चिम बंगाल में 1977 से लेकर 2011 तक कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार थी। इन तीन दशकों में बांग्लादेशी मुसलमानों को घर जमाई की तरह पश्चिम बंगाल में बसा दिया गया। लेकिन 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद हालात और भी बदतर हो गए। आश्चर्यजनक तथ्य है कि यह वही ममता बनर्जी हैं जो उस समय घुसपैठ का मुद्दा उठाती थीं मगर जब सत्ता में आईं तो उल्टा उसका पोषक बन गई हैं। क्योंकि बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए ममता बनर्जी का वोट बैंक बन चुके हैं। अवैध घुसपैठ ने पश्चिम बंगाल में जनसंख्या में असंतुलन पैदा कर दिया है।
साल 1951 में पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 19.8% हुआ करती थी लेकिन 2011 के आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में पश्चिम बंगाल में 2011 में मुसलमानों की आबादी 27% है। अगली जनगणना होगी तब यह आंकड़ा और भी विकराल हो जाएगा। 1951 में पश्चिम बंगाल में करीब 51 लाख मुसलमान थे तो वहीं 2011 में मुसलमानों की आबादी करीब 2 करोड़ 47 लाख है। यानी मुस्लिम आबादी में करीब-करीब पांच गुने की बढ़ोतरी हुई है। जहां पूरे देश से मुसलमान आबादी 4.4% के आसपास बढ़ी है लेकिन पश्चिम बंगाल में यह बढ़ोतरी 7.2% है। वहीं पश्चिम बंगाल में 1951 में जहां 78.7% हिंदू हुआ करते थे वहीं 2011 में यह हिस्सेदारी घटकर 70.5% तक पहुंच चुकी थी। यानी हिंदुओं की आबादी में 8.2% की गिरावट पश्चिम बंगाल में आ चुकी है।
वनवासी क्षेत्र में भी घुसपैठ
वनवासी राज्य झारखंड की घुसपैठ की बड़ी समस्या सामने आ रही है। आंकड़े चीख-चीख कर इस बात की गवाही दे रहे हैं कि झारखंड के सबसे महत्वपूर्ण आदिवासी इलाके संथाल परगना में घुसपैठ की वजह से मुस्लिम आबादी कितनी तेजी से बढ़ रही है। वहीं वनवासी आबादी की जनसंख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। आंकड़ों के आईने में संथाल परगना में 1951 में वनवासी आबादी 44.7% हुआ करती थी। इस इलाके में मुस्लिम आबादी उस समय 9.4% थी। सिर्फ 1951 से लेकर 2011 के 60 सालों में वनवासी आबादी 44.7% घटकर 28.1% रह गई। यानी इसमें 16.6% की गिरावट आई, वहीं इसी समय काल में मुस्लिम आबादी 9.4% से बढ़कर अब 22.7% पहुंच गई है यानी इसमें पूरे 13.3% का इजाफा हुआ है।
आगामी जनगणना में जनसंख्या असंतुलन और भी विकराल हो सकता है। यह सोच की मुस्लिम आबादी तो पूरे देश में बढ़ी है, मगर संथाल परगना इलाके के मुस्लिम जनसंख्या में बढ़ोतरी राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर 1951 से लेकर 2011 तक मुस्लिम आबादी करीब 4.4% बढ़ी लेकिन संथाल परगना में इसी दौरान मुस्लिम आबादी में 13.3% की वृद्धि हुई जो आदिवासी समाज के लिए खतरे की बहुत बड़ी घंटी है।
बांग्लादेशी घुसपैठ की जड़ को समझें
गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी का एक बड़ा वर्ग इस समस्या के प्रति उदासीन ही नहीं रहा है बल्कि इसमें अपना अवसर भी ढूंढ़ता रहा है वोटबैंक के तौर पर। शुरुआती दिनों इस बांग्लादेशी घुसपैठ की जड़ को समझने के लिए इसका इतिहास भी समझना होगा। 1947 में देश को आजादी मिलने के साथ-साथ उसका बंटवारा भी हुआ था। भारत के एक तरफ़ पश्चिमी पाकिस्तान था और दूसरी तरफ़ पूर्वी पाकिस्तान जिसे आज हम बांग्लादेश के नाम से जानते हैं। आजादी के तत्काल बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान यानी वर्तमान बांग्लादेश से मुस्लिम घुसपैठिए असम में दाखिल होने लगे थे। इसे लेकर असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री भारत रत्न गोपीनाथ बोरदोलोई ने तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के सामने चिंता जताई थी। जिसके बाद सरदार पटेल असम की घुसपैठ समस्या को तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के सामने बार-बार उठाते रहे। इस बीच 1950 तक आते-आते असम में मुस्लिम घुसपैठियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ने लगी। इसे देखकर सरदार पटेल बहुत चिंतित थे। इस बारे में उन्होंने अपनी मृत्यु से ढाई महीने पहले प्रधानमंत्री नेहरू को एक पत्र लिखा। लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने इस समस्या को टालने के लिए एक अलग ही मोड़ दे दिया।
सरदार पटेल के पत्र के जवाब में नेहरू ने 1 अक्टूबर 1950 को जो पत्र लिखा वह सिलेक्ट वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू की सीरीज दो के वॉल्यूम 15 के पेज नंबर 306 पर प्रकाशित हुआ था। इस पत्र में नेहरू लिखते हैं प्रिय वल्लभ भाई, आपने मुझे पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से असम में प्रवेश करने वाले मुस्लिम अप्रवासियों के बारे में पत्र लिखा था। हमें इनके प्रवेश पर रोक लगाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे व्यक्ति और मुस्लिम घुसपैठियों की संख्या बहुत ज्यादा दिखाई नहीं देती है। आपके भेजे गए कागजात के मुताबिक किसी एक दिन इन मुस्लिम घुसपैठियों की संख्या 120 थी। सामान्य तौर पर यह रोजगार ढूंढने वाले लोगों की भी आवाजाही है। इस अहम मुद्दे को जवाहरलाल नेहरू ने इतने हल्के ढंग से लेकर मामले को पूरी तरह खारिज कर दिया था।
अवैध घुसपैठिए कुछ राजनीतिक दलों द्वारा वोटबैंक के तौर पर इस्तेमाल के साथ ही कई संगठनों द्वारा उपद्रव फैलाने के लिए भी इस्तेमाल किए जाने की खबरें आम हो चली हैं। कई देश विरोधी आंदोलनों और गैरकानूनी कामों में ऐसे लोगों की संलिप्तता पाई गई है। ऐसे लोगों द्वारा आसानी से अपना निवास स्थान और जगह बदला जा सकता है, अतएव ऐसे लोगों पर कानूनी शिकंजा कसना भी बेहद मुश्किल होता है।
टिप्पणियाँ