ब्रिटेन में सांसद सुएला ब्रेवरमेन ने टेलीग्राफ में एक लेख लिखा है और जिसमें उन्होंने यह कहा है कि पश्चिमी समाज में महिलाओं को अपना चेहरा नहीं ढाकना चाहिए। उन्होंने इस लेख में चर्चिल का हवाला देते हुए लिखा कि चर्चिल ने एक बार कहा था कि कि इंग्लैंड को कोई नहीं बचा सकता है, अगर वह खुद को नहीं बचाएगी। यदि हम अपना विश्वास स्वयं से, अपनी मार्गदर्शन करने और शासन करने की क्षमता से खो देंगे, यदि हम जीने की इच्छा शक्ति खो देंगे, तो निश्चित ही, हमारी कहानी बताई जाएगी।“
वे इस लेख में प्रश्न करती हैं कि क्या ब्रिटेन अभी भी खुद को बचाना चाहता है? या हम अपनी राष्ट्रीय कहानी को खत्म हो जाने देंगे? फिर वे लिखती हैं कि “बुर्का और नकाब पर प्रतिबंध लगाने का सवाल सांस्कृतिक युद्धों में कोई मामूली मुद्दा नहीं है। यह राष्ट्रीय आत्म-विश्वास की अग्निपरीक्षा है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि ब्रिटेन के पास तेजी से बढ़ती जनसंख्या और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण उत्पन्न जटिल समस्याओं का समाधान है या नहीं।“
We need to ban the burqa.
Read my column in today’s @Telegraph 👇 https://t.co/MqXhV9X2Jy pic.twitter.com/hcGGNlLfiI
— Suella Braverman MP (@SuellaBraverman) June 6, 2025
वे सांस्कृतिक युद्ध अर्थात कल्चरल वार की बात कर रही हैं। क्या वास्तव में ब्रिटेन एक कल्चरल वार अर्थात सांस्कृतिक संघर्ष के दौर से गुजर रहा है? और यदि वह कल्चरल संघर्ष वे किससे कर रहे हैं? और बुर्के का इसमें क्या योगदान है? सुएला लिखती हैं कि यदि हम (ब्रिटेनवासी) राष्ट्रीय एकता के विघटन को रोकना चाहते हैं और साझा नागरिक स्थान को दोबारा से स्थापित करना चाहते हैं, तो हमें अलगाव के सबसे स्पष्ट प्रतीकों से एक प्रतीक को गैरकानूनी घोषित करने से आरंभ करना होगा और वह है पूरा चेहरा ढाकने वाला बुर्का!”
सुएला स्पष्ट लिखती हैं कि बुर्का अलगाव का सबसे बड़ा प्रतीक है। मगर यह अलगाव कैसे पैदा कर सकता है, वह एक मात्र एक वस्त्र ही तो है, जैसा कि पश्चिम के और भारत के भी कथित लिबरल लोग कहते हैं। उनके अनुसार एक मुक्त समाज में व्यक्ति को यह अधिकार होना चाहिए कि वे क्या पहनें और क्या नहीं। मगर क्या पहनने की इच्छा भी अलगाववाद उत्पन्न कर सकती है? सुएला टेलीग्राफ के अपने लेख में लिखती हैं कि “स्वतंत्रता की भी सीमाएं होती हैं और हमेशा से रही हैं – ये सीमाएं उस चीज को संरक्षित करने की आवश्यकता से परिभाषित होती हैं जिसे फ्रांसीसी, सराहनीय स्पष्टता के साथ, ले विवर एनसेम्बल कहते हैं: एक साथ रहने की क्षमता।“
सुएला ही नहीं बल्कि कई और लोग मांग कर रहे हैं कि बुर्के को ब्रिटेन में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, क्योंकि यह यूरोपीय मूल्यों के खिलाफ है। वह उन मूल्यों के अनुपालन में नहीं है। सांसद रूपर्ट लो भी एक्स पर यह मांग कर रहे हैं कि हमें बुर्के को निश्चित ही प्रतिबंधित करना चाहिए।
We should still definitely ban the burqa.
— Rupert Lowe MP (@RupertLowe10) June 5, 2025
अभी हाल ही में रिफॉर्म यूके पार्टी की नवनिर्वाचित सांसद ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर से बुर्के पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। सारा पोचिन नामक सांसद ने बुधवार को संसद में कीर स्टार्मर से मांग की थी, “ब्रिटेन के प्रधानमंत्री अपने यूरोपीय पड़ोसियों के साथ रणनीतिक रूप से साथ आना चाहते हैं, तो क्या सार्वजनिक सुरक्षा के हित में फ्रांस, डेनमार्क, बेल्जियम और अन्य देशों के नेतृत्व का अनुसरण करेंगे और बुर्का पर प्रतिबंध लगाएंगे?”
हालांकि, उनकी इस मांग को लेकर संसद में ही शेम, शेम के नारे लगने लगे थे। हाल ही में डेनमार्क की प्रधानमंत्री ने भी शैक्षणिक संस्थानों में बुर्के को प्रतिबंध करने की बात की है। डेनमार्क में वैसे तो सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का प्रतिबंधित है, परंतु शैक्षणिक संस्थान अभी इस प्रतिबंध से अछूते हैं।
ब्रिटेन में बुर्के पर प्रतिबंध करने की मांग करने वाली और अवैध आप्रवासियों को लेकर चिंता व्यक्त करने वाली सांसद सारा पोचिन ने एक्स पर एक पोस्ट किया। उसमें उन्होंने डेली टेलीग्राफ के एक पन्ने का चित्र साझा किया है। उसमें मुख्य समाचार यह है कि आप्रवासियों को लेकर डर “एक प्रकार का आतंकवाद है!”
Last weekend, the government’s chief lawyer compared support for Reform UK to 1930s Nazi Germany.
On Wednesday, the Prime Minister refused to even discuss a ban on the burqa in the interests of public safety – and shut me down without even attempting to answer.
And today, we… pic.twitter.com/vEGrxNRJsT
— Sarah Pochin MP (@SarahForRuncorn) June 7, 2025
वे पोस्ट में लिखती हैं कि बुधवार को प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने लोगों की सुरक्षा के हित में बुर्के पर प्रतिबंध पर चर्चा करने से ही इनकार कर दिया और मुझे चुप करा दिया। और आज हमें पता लग रहा है कि सरकार की प्रीवेन्ट स्ट्रेटजी उन लोगों के विषय में यह सोचती है कि वे संभावित आतंकी धमकियाँ हैं, जो व्यापक पैमाने पर अवैध शरणार्थियों और कल्चरल एकीकरण के अभाव का विरोध करते हैं।
ब्रिटेन में इन दिनों से चर्चाएं हो रही हैं। spiked पोर्टल पर Inaya Folarin Iman लिखती हैं, “साथ ही, बुर्के का सवाल उतना सरल नहीं है जितना रिफॉर्म के आलोचक बता रहे हैं। यह सिर्फ़ एक कपड़ा नहीं है। यह अस्तित्व में सबसे ज़्यादा स्त्री-द्वेषी परिधानों में से एक है। यह मुस्लिम महिलाओं के लिए एक चलती-फिरती जेल है। एक महिला को सिर से लेकर पैर तक पूरी तरह से ढककर, यह संदेश देता है कि सार्वजनिक रूप से एक महिला की उपस्थिति शर्मनाक या खतरनाक है। या फिर हमारे चेहरे और यहाँ तक कि हाथ भी पुरुषों के लिए इतने शक्तिशाली और आकर्षक हैं कि उन्हें छिपाना ज़रूरी है।“
लोगों का कहना है कि बुर्का केवल पहनने की आजादी की बात नहीं करता है, बल्कि यह एक प्रकार से सांस्कृतिक अलगाववाद है, जो उस देश में उन महिलाओं को सम्मिलित नहीं होने देता है, जहाँ का कल्चर बुर्का नहीं है।
(डिस्क्लेमर: स्वतंत्र लेखन। यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं; आवश्यक नहीं कि पाञ्चजन्य उनसे सहमत हो।)
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