बांग्लादेश का जन्म भाषाई भेदभाव के आधार पर हुआ था। शेख मुजीबुर्रहमान ने संघर्ष को एक स्वर दिया था। उन्होंने भाषाई आधार पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। लोगों से अपील की कि अपनी पहचान के लिए आवाज उठाएं। अत्याचारों से भयभीत न हों और जब पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश के नाम से अपनी नई पहचान धारण की तो वे राष्ट्रपति बने।
चूंकि उनके कारण ही पूर्वी पाकिस्तान,पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्त हो पाया था, तो उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया। मगर मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने यह दर्जा उनसे छीन लिया है। हालांकि यह पहले भी कहा जा चुका था। दरअसल बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने तीन वर्ष पहले पारित हुए नेशनल फ़्रीडम फाइटर्स काउन्सल एक्ट में संशोधन करते हुए कुछपरिवर्तन किये हैं। यह एक्ट “वीर स्वतंत्रता सेनानी” अर्थात valiant freedom fighters की नई परिभाषा के साथ पारित हुआ था।
bdnews.com के अनुसार अंतरिम सरकार ने नेशनल फ़्रीडम फाइटर्स काउन्सल एक्ट में संशोधन करते हुए एक अध्यादेश पारित किया है। मंगलवार रात पारित हुए इस अध्यादेश में “एसोशिएटसऑफ फ़्रीडम फाइटर्स” के लिए नई परिभाषा शामिल की गई है। नई परिभाषा में मुक्ति संग्राम के अतिरिक्त और भी कई मामले शामिल किए गए। “राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान और कानून के वे हिस्से जहाँ पर बंगबंधुशेख मुजीबुर्रहमान का नाम आया है, उन्हें हटा दिया गया है।“
नेशनल फ़्रीडम फाइटर्स काउन्सलअध्यादेश 2025 के मसौदे को 15 मई को अंतिम अनुमति मिल गई थी। इस अध्यादेश को लेकर कई प्रकार के भ्रम भी फैले हैं। इस अध्यादेश में वीर स्वतंत्रता सेना की परिभाषाका अर्थ उस व्यक्ति से है जिसने 26 मार्च से लेकर 16 दिसंबर 1971 तक या तो युद्ध की तैयारी में में भाग लिया था या फिर उसने गावों में जाकर पूरे देश में कहीं भी आंतरिक ट्रेनिंग ली थी या फिर सीमा पार भारत जाकर वह मुक्ति संग्राम में भाग लेने के उद्देश्य के साथ कई प्रशिक्षण शिविरों मेंशामिल हुआ हो। इसमें तमाम परिभाषाएं सम्मिलित हैं।
भ्रांतियों पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने जताया रोष
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कल्चरल अफेयर एड्वाइजर मुस्तफा सरवार फारुकी ने कहा कि मुजीबुर्रहमान सरकार के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता सेनानी माना गया है। मीडिया में कुछ ऐसी भी रिपोर्ट्स आ रही थीं कि शेख मुजीबुर्रहमान, सैयद नजरूल इस्लाम, ताजुद्दीन अहमद, मुहम्मद मंसूर अली और एएचएम कमरुज्जमां कीस्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता रद्द किए जाने की घोषणा कर दी गई है, जिसे सरकार के दो सलाहकारों ने गलत बताया है।
वहीं बीडीन्यूज के अनुसार बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के डेप्यूटी प्रेस सेक्रेटरी अबुल कलाम आजाद मजूमदार ने चेतावनी दी कि यदि भ्रामक खबरें फैलाई गईं तो सरकार सख्त कदम उठाएगी। आजादमजूमदार ने मीडिया की उन खबरों को निराधार बताया जिनमें यह दावा किया गया था कि बंगबंधु और मुजीबनगर सरकार के नेताओं सहित 100 सेअधिक प्रमुख हस्तियों का स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा रद्द कर दिया गया है। सरकार हालांकि इससे इनकार कर रही है, कि उसने शेख मुजीबुर्रहमान का स्वतंत्रता सेनानी कादर्जा निरस्त नहीं किया है, परंतु लोगों को इस स्पष्टीकरण पर विश्वास नहीं है।
सरकार कुछ भी दावे करे,शेखमुजीबुर्रहमान के प्रति दुराग्रह साफ दिखता है बांग्लादेश की अंतरिम सरकार यहदावे खूब करे कि शेख मुजीबुर्रहमान के प्रति भ्रामक खबरें फैलाई जा रही हैं, मगर इससे कोई भी व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता है कि शेख हसीना के देश छोड़कर जाने के बाद से ही शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़ी तमाम पहचानों को नष्ट किया जा रहा है। उनकी तस्वीर वहां के नोटों से भी हटा दी गई है। यह कहा गया कि अब सांस्कृतिक प्रतीक सम्मिलित होंगे। मगर इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कोई तैयार नहीं है कि जिन सांस्कृतिक प्रतीकों की बात हो रही है, उन्हें स्वतंत्र कराने में जिस व्यक्ति का मुख्य हाथ था, उसे इस गौरवगाथा में सम्मिलित क्यों नहीं किया गया? शेख मुजीबुर्रहमान का घर जला दिया गया,उनसे जुड़े सार्वजनिक अवकाश निरस्त कर दिए गए और उनकी प्रतिमाओं को ध्वस्त कर दिया गया।
उनकी एक एक पहचान मिटा दी गई और यहां तक वहां की संशोधित पाठ्यपुस्तकों मे यह तक लिखा गया है कि मुजीबुर्रहमान नेस्वतंत्रता की घोषणा नहीं की थी, बल्कि जिया उर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी। पाठ्यपुस्तकों में लिखा है कि 26 मार्च 1971 को जियाउर रहमान नेबांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी और फिर बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता की एक और घोषणा की थी। और पाठ्यपुस्तकों से ही शेखमुजीबुर्रहमान का राष्ट्रपिता का दर्जा समाप्त कर दिया था। ऐसा नहीं है कि शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़ी हुई पहचान मिटाई जा रही हैं, बल्कि बांग्लादेश में उनताकतों को स्थान मिल रहा है, जो बांग्लादेश की पूर्वी पाकिस्तान की पहचान से जुड़ी हैं और बांग्लादेश मे मजहबी कट्टरता की पक्षधर हैं। शेख हसीना का जाना मात्र एकराजनीतिक पलायन नहीं था, बल्कि यह बांग्लादेश का बांग्ला पहचान से पीछा छुड़ाना है,वह पहचान जो शेख मुजीबुर्रहमान ने ईस्ट पाकिस्तान को दी थी।
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