देश के सबसे मशहूर विश्वविद्यालयों में से एक, दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) अब अपने कुलपति को ‘कुलगुरु’ कहेगा। यह बदलाव न सिर्फ हिंदी भाषा को सम्मान देता है, बल्कि भारत की गुरु-शिष्य परंपरा को भी नई पहचान देता है।
जेएनयू की कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने कहा कि ‘कुलपति’ शब्द gender-neutral है, अर्थात यह न तो सिर्फ पुरुषों के लिए है और न ही सिर्फ महिलाओं के लिए है। उन्होंने बताया कि ‘पति’ शब्द का कई बार अलग-अलग मतलब निकाला जा सकता है, जबकि ‘गुरु’ एक सम्मानजनक और शिक्षण से जुड़ा शब्द है। इसलिए ‘कुलगुरु’ शब्द सभी के लिए उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि ‘पति’ शब्द कई बार अलग-अलग अर्थ देता है, जबकि ‘गुरु’ एक आदर्श और शिक्षण से जुड़ा शब्द है। इसलिए उन्होंने ‘कुलगुरु’ शब्द को बेहतर माना और यह प्रस्ताव जेएनयू की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में पेश किया गया, जिसे मंजूरी भी मिल गई। हालांकि, जेएनयू अकेला नहीं है जिसने यह बदलाव किया है। मार्च 2025 में राजस्थान सरकार ने एक नया कानून बनाया – राजस्थान विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक 2025। इसके तहत अब राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में कुलपति को ‘कुलगुरु’ और उप-कुलपति को ‘प्रतिकुलगुरु’ कहा जाएगा। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और उदयपुर के विश्वविद्यालयों में यह नियम पहले ही लागू हो चुका है। जुलाई 2024 में, मध्य प्रदेश सरकार ने भी अपने विश्वविद्यालय अधिनियम में बदलाव किया और तय किया कि अब सभी सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में कुलपति को ‘कुलगुरु’ के नाम से ही जाना जाएगा।
भारत की शिक्षा परंपरा में ‘कुलगुरु’ कोई नया शब्द नहीं है। प्राचीन गुरुकुलों और विश्वविद्यालयों जैसे नालंदा और तक्षशिला में भी कुलगुरु का बहुत महत्व था। उदाहरण के तौर पर, नालंदा विश्वविद्यालय के कुलगुरु शीलभद्र ने बौद्ध दर्शन और तर्कशास्त्र को पूरी दुनिया में प्रसिद्ध किया।
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