देश में जो भी लोग नक्सलवाद को महज एक क्रांति बताकर बहुत हल्के में लेते हैं, उनकी आंखे खोलने के लिए ये काफी है कि भाकपा (माओवादी) के महासचिव, खूंखार नक्सली नंबाला केशवराव उर्फ बसवराजु उर्फ गगन्ना की मौत पर टर्की से लेकर श्रीलंका तक हथियारबंद आतंकवादी आंसू बहाए जा रहे हैं। टर्की से आए सशस्त्र आंतकवादियों के वीडियो से ये साफ हो गया कि बस्तर के माओवादी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जुड़े थे और भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे। ये लिखना और अंडरलाइन करना इसलिए जरूरी हो जाता है कि पहले भी जब बस्तर के नक्सलियों के तार अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठनों से जुड़ते पाए गए हैं, अर्बन नक्सलियों ने उसका विरोध करने के लिए कई नैरेटिव पेश किए हैं। अब जब टर्किश वामपंथी समूह ने बस्तर के नक्सली बसवराजू की मौत पर श्रद्धाजंलि देते हुए भारत सरकार की निंदा का वीडियो का जारी किया है, तो चारों तरफ सन्नाटा है।
दूसरी तरफ श्रीलंका में भी बसवराजू की मौत के मातम की सूचना है। बसवराजू ने वर्ष 1989 में एलटीटीई से सैन्य रणनीतियों का प्रशिक्षण लिया था। बम बनाने, बारूदी सुरंग बिछाने, गोरिल्ला वॉर की बारिकियां सीखीं थीं। कहा तो ये भी जाता है कि बसवराजू ने तुर्की, जर्मनी, पेरू जैसे देशों की यात्राएं की और भारतविरोधी ताकतों के हाथ मजबूत किए। बसवराजू की पत्नी शारदा भी नक्सली कमांडर थी। वर्ष 2010 में उसने आत्महत्या कर ली थी। बसवराजू पर पांच करोड़ का इनाम था। वह देश के वांछित नक्सलियों में से एक था। उसकी मौत नक्सलवाद की जड़ पर गहरा प्रहार था।
आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियान्नपेटा गांव का रहने वाला बसवराजू तेलुगु, हिंदी, अंग्रेजी व गोंडी भाषा का जानकार था। 1980 से वो नक्सली गतिविधियों में सक्रिय था। 2017-18 में मुप्पला लक्ष्मणा राव उर्फ गणपति के बाद सीपीआई माओवादी का महासचिव बना। उसने छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, तेलांगाना, महाराष्ट्र, झारखंड में कई बड़े हमलों को अंजाम दिया था। इसमें वर्ष 2003 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश सीएम चंद्रबाबू नायडू पर ब्लास्ट से लेकर बस्तर के झीरम में 2013 में हुआ हमला शामिल है। जिसमें छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बड़े नेताओं समेत 30 लोग मारे गए थे। छत्तीसगढ़ में पिछले 20 वर्षों ने नक्सलियों ने लोकतंत्र में सक्रिय रहने वाली लीडरशिप को समाप्त करने की कोशिश की है। दंतेवाडा से भाजपा विधायक भीमा मंडावी को लोकसभा चुनाव प्रचार के वक्त मारा गया। भाजपा व कांग्रेस के कई जिला स्तर के नेताओं की हत्या की गई। पत्रकारों की हत्या की गई। लोगों को चुनाव में भाग लेने, वोट डालने से रोका गया। एक वक्त था, जब मतदान करने वालों की उंगलियां नक्सली काट देते थे। स्कूल, अस्पताल तोड़ दिए गए। सकड़ें बनन से रोकी गईं। बिजली, पानी जैसी आधारभूत सुविधाओं की राह में नक्सलियों ने रोड़े अटकाए। रमन सिंह सरकार में मंत्री रहे केदार कश्यप, महेश गागड़ा, विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी पर जानलेवा हमले करवाए। लेकिन सौभाग्य से ये सभी नेता सुरक्षित बच गए। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नंदकुमार पटेल पर भी झीरम घाटी के पहले गरियाबंद में भी नक्सल हमला हो चुका था, लेकिन वे बच गए थे। लेकिन झीरम घाटी में नक्सल हमले में उनकी व उनके बेटे की जान चली गई।
नक्सलियों को सैन्य प्रशिक्षण देने वाले बसवराजू के हाथ मासूम निर्दोष बस्तरवासियों के खून से रंगे हुए थे। वर्ष 2007 का रानीबोदली हमला हो, जिसमें हमारे 55 जवान शहीद हो गए थे। रानीबोदली सुरक्षा कैम्प पर नक्सलियों ने आधी रात को धावा बोल दिया था। या फिर 2010 का ताडमेटला हमला हो, जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे। इन सब हमलों का मास्टर माइंड बसवराजू ही था। बस्तर के सैंकडों निर्दोष नागरिक बारूदी सुरंगों पर पैर रखते ही अपनी जान से हाथ धो बैठे। हजारों जनजातीय लोग अपने गांव को, घर, जमीन, बकरी, खेत रिश्तेदारों को छोड़कर नारायणपुर, कांकेर, कोंडागांव जिला मुख्यालयों में रहने को मजबूर हुए, इसके पीछे भी बसवराजू ही था। बस्तर के निर्दोष लोगों को पुलिस का मुखबिर बताकर तड़पा तड़पाकर मारने की रणनीति का पैरोकार भी यही था।
अब जब बसवराजू मारा गया है तो नक्सलियों के संगठन में खलबली है। नक्सली नेतृत्वविहीन हो गए हैं। बस्तर की जनता के जागरुक हो जाने, नक्सलियों की आपसी फूट और एंटी नक्सल ऑपरेशन के कारण कमजोर तो पहले ही पड़ चुके थे, अब लगभग खत्म होने की कगार पर है। बस्तर के लोग भी समझ चुके हैं कि उनकी धरती का उपयोग केवल रक्त बहाने और हर वर्ष कई सौ करोड़ की उगाही के लिए किया गया है। कथित रूप से देवा उर्फ हिडमा के अलावा किसी बस्तर के आदिवासी को नक्सलियों ने अपनी कमान नहीं सौंपी है। बल्कि उन्हें केवल मानव शील्ड के रूप में इस्तेमाल किया या उन्हें दोयम दर्जे पर रखा गया। उन्हें बंदूक थमाकर उनसे केवल हत्याएं करवाईं गईं, बारूदी सुरंगें बिछवाई गईं, अपने भाई-बहनों के खून से उनके हाथ लाल करवा दिए गए और जीवन भर के लिए उन्हें अभिशप्त बनाया गया।
बस्तर में चल रहे एंटी नक्सल ऑपरेशन की सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ सही समन्वय का है। डबल इंजन की सरकार और उसकी प्रतिबद्धता का है। पहले स्थानीय पुलिस और अर्धसैनिक बलों के बीच समन्वय की कमी नजर आती थी। सही रणनीति के अभाव में नक्सल उन्मूलन नहीं हो पा रहा था। अब समन्वय और रणनीति दोनों ही मजबूत और सधी हुई है। जिसका परिणाम पूरे देश के सामने है। बसवराजू की मौत के बाद अब लगने लगा है कि नक्सलवाद मार्च 2026 तक अवश्य ही समाप्त हो जाएगा।
वर्ष 2000 से अब तक घटी बड़ी नक्सल घटनाओं में मारे गए जनप्रतिनिधि/पत्रकार/जवान
- – वर्ष 2007 में रानी बोदली कैम्प पर नक्सलियों ने हमला किया था। उसमें 55 जवान शहीद हुए थे। रानी बोदली सुरक्षा कैम्प शमशान बन गया था। नक्सलियों ने सुरक्षा कैम्प पर बम फेंके थे। 55 जवान बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
- – वर्ष 2009 में नक्सलियों ने फरसाहुड़ा में तत्कालीन मंत्री केदार कश्यप के भाई तानसेन की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी।
- – राजनांदगांव के मदनवाड़ा वर्ष 2009 में हुए नक्सली हमले में तत्कालीन एसपी विनोद कुमार चौबे सहित 29 जवानों वीरगति को प्राप्त हुए थे। चौबे नक्सल हमले में शहीद होने वाले छत्तीसगढ़ की पहले आईपीएस थे।
- – छह अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला गांव में नक्सल हमले में सीआरपीएफ के 75 और जिला बल के एक जवान शहीद हो गए थे। कुल 76 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। ताड़मेटला में नक्सलियों ने जवानों के 80 हथियार भी लूट लिए थे। घटना के कुछ दिन बाद उसी इलाके के जंगलों में उन्होंने मीडिया को बुलाकर लूटे हथियारों की प्रदर्शनी लगाई थी।
- – 29 जून 2010 में नक्सली हमने में सीआरपीएफ के 26 जवान शहीद हुए थे.
- – 18 मई 2012 को कोंडागांव जिले में नक्सलियों ने तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री लता उसेण्डी के आवास पर हमला कर दिया। सुरक्षा गार्ड की हत्या कर दी और उसकी राइफल लूटकर फरार हो गए। उस समय लता उसेंडी घर में नहीं थीं।
- – 21 अप्रैल 2012 को सुकमा जिले के तत्कालीन कलेक्टर 2006 बैच के आईएएस एलेक्स पॉल मेनन का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया था। नक्सलियों ने उनके बॉडीगार्ड को गोली मारकर आईएएस को अपने साथ ले गए थे। साथ ही 13 दिनों तक उन्हें अपने साथ रखा।
- – 25 मई 2013 को बस्तर की झीरम (दरभा) घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी के 25 नेता, कार्यकर्ता, सुरक्षा में लगे जवानों समेत 30 से ज्यादा लोगों को बेहरहमी से मार डाला था। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, वरिष्ठ कांग्रेसी महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, उदय मुदलियार जैसे बड़े नेता इस हमले में मारे गए थे।
- – 12 फरवरी 2013 को तोंगपाल के पत्रकार नेमीचंद जैन की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी।
- – 11 फरवरी 2013 नक्सलियों ने नारायणपुर के भाजपा उपाध्यक्ष सागर साहू की हत्या की।
- – 7 दिसंबर 2013 को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में नक्सलियों ने देशबन्धु अखबार के जिला प्रतिनिधि साई रेड्डी की बीच बाजार में निर्मम हत्या कर दी थी।
- – 2017 में सुकमा के बुरकापाल में घात लगाकर 25 सीआरपीएफ जवानों को मारा था।
- – 27 जनवरी 2018 को नक्सलियों की स्मॉल ऐक्शन टीम ने दंतेवाड़ा के नकुलनार इलाके में स्थानीय कांग्रेस नेता अवधेश गौतम के घर पर हमला बोल दिया था। नक्सलियों ने अवधेश गौतम के सिक्योरिटी गार्ड को घायल कर दिया और उसकी AK-47 राइफल छीनकर भाग गए थे।
- – 30 अक्टूबर 2018 को दंतेवाडा जिले के नीलावाया में नक्सलियों नेदूरदर्शन के कैमरामेन अच्युतानंद साहू की हत्या कर दी थी।
- – 9 अप्रैल 2019 को लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार पर निकले भाजपा विधायक भीमा मंडावी की कार पर हमला कर मंडावी और उनके 3 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था.
- – पिछले कुछ वर्षों में बस्तर व राजनांदगांव में कई जिला स्तर के भाजपा व कांग्रेस नेताओं की हत्या नक्सली कर चुके हैं।(डिस्क्लेमर: स्वतंत्र लेखन। लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं; आवश्यक नहीं कि पाञ्चजन्य उनसे सहमत हो।)
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