भारत में नक्सलवाद अब अपनी अंतिम साँसे गिन रहा है। नक्सलवाद को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने साल 2010 में देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया था। एक समय नक्सलियों के कारण लाल गलियारे की बातें हुआ करती थीं। नक्सलियों ने नेपाल के पशुपति से आंध्र प्रदेश के तिरुपति तक रेड कॉरिडोर बना रखा था।
एक समय लाल आतंक का ऐसा खौफ था कि बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के कई जिलों में शाम के बाद घर से बाहर निकलना भी मुश्किल था। बीते छह दशकों में नक्सलियों की हिंसा में हज़ारों निर्दोष लोगों की जाने गई थीं। मगर अब लाल आतंक का यह गलियारा संकुचित होता जा रहा है। साल 2014 के बाद मोदी सरकार ने इस दिशा में तेजी से काम किया और इसका नतीजा यह हुआ कि 2013 में जहां देश के सवा सौ से भी ज्यादा जिले नक्सल प्रभावित थे, अब घटकर सिर्फ 18 जिले ही नक्सल प्रभावित हैं।
बिहार की धरती से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नक्सलवाद के सिमटते दायरे का जिक्र करते हुए कहा कि वह दिन दूर नहीं जब माओवादी हिंसा का पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही देश को आश्वस्त कर चुके हैं कि साल 2026 मार्च से पहले देश से नक्सलवाद का पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा।
मोदी सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि नक्सलियों के साथ-साथ वो उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जिन्हें अर्बन नक्सल भी कहा जाता है, उनके दबाव में भी नहीं आएगी जो बंदूक उठाने वाले माओवादियों का समर्थन करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि सरकार ने अब सफेदपोश अर्बन नक्सलियों पर भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की धरती पर नक्सलवाद का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार ने नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने की तारीख तय कर दी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक समय बिहार में नक्सल पीड़ित गांवों में ना तो अस्पताल और ना मोबाइल टावर होता था। कभी स्कूल जलाए जाते थे तो कभी सड़क बनाने वालों को मार दिया जाता था। हालात ऐसे थे कि मुंह पर नकाब लगाए, हाथों में बंदूक थामे नक्सली कब कहां सड़कों पर निकल आएं, लोग इस दहशत में जीते थे।
लेकिन साल 2014 के बाद माओवादियों को उनके किए की सजा देनी शुरू कर दी गई है। युवाओं को विकास की मुख्यधारा में भी लाया जा रहा है। इसी वजह से अब देश में महज 18 जिले ही नक्सल प्रभावित बचे हैं।
पिछले तीन वर्षों में वामपंथी उग्रवाद द्वारा की गई हिंसा (दर्ज मौतों की संख्या) का राज्यवार ब्यौरा इस प्रकार है-
राज्य | 2022 | 2023 | 2024 |
---|---|---|---|
आंध्र प्रदेश | 3 | 3 | 1 |
बिहार | 11 | 4 | 2 |
छत्तीसगढ़ | 246 | 305 | 267 |
झारखंड | 96 | 129 | 69 |
केरल | 0 | 4 | 0 |
मध्य प्रदेश | 16 | 7 | 11 |
महाराष्ट्र | 16 | 19 | 10 |
ओडिशा | 16 | 12 | 6 |
तेलंगाना | 9 | 3 | 8 |
पश्चिम बंगाल | 0 | 0 | 0 |
कुल | 413 | 485 | 374 |
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की एनडीए सरकार नक्सलवाद के खात्मे की तरफ तेजी से आगे बढ़ रही है। सरकार ने मार्च 2026 से पहले ही नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है। नक्सलियों के सफाए के लिए तीव्र गति से अभियान चलाया जा रहा है। सरकार ने नक्सलियों के सफाए और नक्सल प्रभावित इलाकों के विकास के लिए अनेकों महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
बिहार की धरती से पीएम मोदी का नक्सलियों के सफाए का दृढ़ वचन दिया गया है। उसी बिहार में 3 साल पहले तक 10 जिले नक्सलियों का गढ़ हुआ करते थे। लेकिन अब बिहार में नक्सलियों का पूरी तरह से सफाया हो चुका है। नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या भी पूरे देश में 35 से घटकर अब सिर्फ 6 ही रह गई है। इनमें छत्तीसगढ़ के चार जिले — बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा — वहीं झारखंड राज्य का पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला शामिल है।
नक्सली हिंसा की घटना जो साल 2010 में अपने उच्चतम स्तर 1936 तक पहुंच गई थी, वो साल 2024 में घटकर सिर्फ 374 रह गई है। इस समयकाल में नक्सली हिंसा में 81% की कमी आई है। वहीं इन नक्सली घटनाओं में होने वाली मौतों में भी 86% तक की कमी हुई है। इस साल के शुरुआती 4 महीने में ही लगभग 200 कट्टर नक्सलियों को सुरक्षा बल ढेर कर चुके हैं। वहीं मुठभेड़ों में मारे गए नक्सलियों की संख्या 63 से बढ़कर 2089 हो गई है।
साल 2014 में 76 जिलों के 330 थानों में 1080 नक्सली घटनाएं दर्ज की गई थीं। जबकि साल 2024 में 42 जिलों के 151 थानों में 374 घटनाएं दर्ज की गईं। 2014 में 88 सुरक्षाकर्मी नक्सली हिंसा में शहीद हुए थे जो 2024 में घटकर सिर्फ 19 रह गए हैं। 2014 में 928 और 2025 के पहले चार महीनों में 700 से भी अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। जहाँ पहले नक्सल प्रभावित क्षेत्र 18,000 कि.मी से ज्यादा था, जो अब महज 4200 कि.मी ही शेष है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लगभग 77 प्रतिशत की कमी आई है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 21 मई को सोशल मीडिया पर ऐतिहासिक घोषणा करते हुए बताया था कि पिछले 30 वर्षों में पहली बार महासचिव स्तर के नक्सली कमांडर बासव राजू को मार गिराया गया है। इस कामयाबी को हासिल करने वाला ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट भी सुर्खियों में है।
नक्सलियों के खिलाफ हाल के दिनों में सरकार ने कई सफल अभियान चलाए हैं। इस महीने हुए ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट से छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में अबूझमाड़ के जंगल में सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में 27 नक्सली ढेर किए गए। इसमें डेढ़ करोड़ का इनामी बसव राजू भी शामिल था। इस ऑपरेशन में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 84 ने आत्मसमर्पण किया।
यह अभियान इस बात का संकेत है कि वामपंथी उग्रवाद अब खत्म होने के कगार पर है। इससे पहले 21 अप्रैल से 11 मई तक छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर कर्रे गुट्टालू पहाड़ी पर नक्सलवाद के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा अभियान चलाया गया था। इस दौरान 21 मुठभेड़ों में 31 नक्सली मारे गए जबकि सुरक्षा बलों का कोई भी जवान हताहत नहीं हुआ। इस अभियान में 210 से अधिक नक्सली ठिकाने और बंकरों को नष्ट कर दिया गया और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री भी बरामद की गई।
इस वर्ष 21 अप्रैल को झारखंड के बोकारो की ललपनिया में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 1 करोड़ का इनामी नक्सली विवेक समेत आठ नक्सली मारे गए। 17 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 22 कुख्यात नक्सलियों की गिरफ्तारी हुई। 30 मार्च को बीजापुर में ही 50 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। 20 मार्च को बीजापुर और कांकेर में दो अलग-अलग ऑपरेशन में सुरक्षाबलों ने 22 नक्सलियों को मार गिराया।
नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के ताबड़तोड़ अभियान से यह उम्मीद भी जगती है कि सरकार द्वारा तय समय सीमा 31 मार्च 2026 से पहले ही भारत नक्सलियों से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा।
नक्सल विरोधी अभियानों में सिर्फ छोटे नक्सली ही नहीं बल्कि अब तो बड़े नक्सली कमांडर भी ढेर किए जा रहे हैं। अब तक जिन इनामी नक्सल कमांडरों को ढेर किया गया है, उनमें सबसे बड़ा नाम है डेढ़ करोड़ का इनामी बसव राजू, जिसे इसी महीने ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के दौरान मारा गया था। साल 2018 में नक्सली कमांडर कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी की मुठभेड़ में मारे जाने के बाद ही बसव राजू को सीपीआई माओवादी का महासचिव बनाया गया था। यह नक्सलियों के लिए तीन दशक में सबसे बड़ा नुकसान माना जा रहा है।
एक अन्य कुख्यात नक्सली जयराम उर्फ चलपति छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर गरियाबंद जिले में इसी साल जनवरी में मुठभेड़ में मारा गया था। जयराम उर्फ चलपति सीपीआई माओवादी की केंद्रीय समिति का सदस्य था और उस पर ₹1 करोड़ का इनाम था। इसके अलावा इस साल अप्रैल में एक अन्य ₹1 करोड़ का इनामी नक्सली प्रयाग मांझी उर्फ विवेक भी मारा गया। वहीं ₹25-25 लाख के दो इनामी नक्सली भी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं।
नक्सली कमांडर शंकर राव, जिस पर ₹25 लाख का इनाम था, इसी साल अप्रैल में बीजापुर के जंगल में मुठभेड़ के दौरान मारा गया। वहीं सुधीर उर्फ सुधाकर उर्फ मुरली दंतेवाड़ा में इसी साल 25 मार्च को मुठभेड़ में मारा गया। इसके अलावा ₹5 लाख का इनामी नक्सली कमांडर मनीष यादव झारखंड के लातेहार जिले में सुरक्षाबलों के हाथों ढेर हो गया।
दरअसल, पिछले एक दशक से सरकार ने नक्सलवाद के खिलाफ मजबूत और बहुआयामी रणनीति अपनाई है, जो काफी असरदार साबित हो रही है। गृह मंत्रालय की साल 2017 में शुरू की गई समाधान रणनीति ने जमीन पर बड़ा फर्क डाला है। इसमें सुरक्षा को लेकर कार्य योजना के साथ-साथ विकास से जुड़ी पहल भी शामिल हैं।
पिछले एक दशक में मिली सफलता का श्रेय सुरक्षा रणनीति के साथ ही विकास योजनाओं में आई तेजी को भी जाता है। सरकार ने लक्षित विकास योजनाएं चलाईं, जिससे लोगों का भरोसा दोबारा जीता गया। सड़क और मोबाइल नेटवर्क जैसी बुनियादी सुविधाओं में काफी सुधार हुए और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कामों ने भी स्थानीय लोगों के दिलों में जगह बनाई। रोशनी योजना ने आदिवासी युवाओं को कौशल विकास और रोजगार प्राप्त करने में भी मदद प्रदान की।
इस दौरान जहां केंद्र और राज्य सरकारों ने मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई, वहीं केंद्रीय और राज्य बलों के बीच बेहतर समन्वय ने भी नक्सल समस्या से निपटने में बड़ी भूमिका निभाई।
वहीं लाल आतंक के सफाए में एक अन्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिला रिजर्व ग्रुप ने। इसमें ज्यादातर आत्मसमर्पण करने वाले पूर्व नक्सली होते हैं, जिन्हें इलाके की गहरी जानकारी होती है। उनके स्थानीय लोगों से संबंध भी होते हैं। इससे खुफिया जानकारी जुटाने और बेहतर रणनीति बनाने में बड़ी मदद मिलती है। तकनीकी सहायता, विशेषकर ड्रोन और सैटेलाइट इमेजिंग से निगरानी के चलते घात लगाकर हमला करने की घटनाएं भी कम हुई हैं।
सरकार के विकास योजनाओं ने भी लाल आतंक को खात्मे की ओर धकेलने में काफी अहम भूमिका निभाई है। सरकार ने नक्सलियों को ठिकाने लगाने के लिए 68 नाइट लैंडिंग हेलीपैड बनाए हैं, जिससे नक्सलवाद से लड़ाई में काफी मदद मिली है।
नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास पहुंचाने के लिए बजट में 300% की बढ़ोतरी की गई है। साल 2014 से 2024 तक नक्सल प्रभावित इलाकों में 11,503 कि.मी हाईवे का निर्माण किया गया है। 20,000 कि.मी ग्रामीण सड़कें बनाई गईं। पहले चरण में 2343 और दूसरे चरण में 2545 मोबाइल टावर लगाए गए। नक्सल प्रभावित इलाकों में गत 5 वर्षों में बैंकों की 107 शाखाएं और 937 एटीएम भी शुरू किए गए हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में गत 5 वर्षों में बैंकिंग सेवा से युक्त 5731 डाकघर (पोस्ट ऑफिस) भी खोले गए हैं।
इन सबका परिणाम है कि नक्सलवाद अब धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है।
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