मनोज कुमार की उपकार फिल्म के गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ को पंजाब में कुछ दबंग किसान अपनी शैली में नया वर्जन लिख रहे हैं और सरेआम गेहूं की फसलों के अवशेष जला रहे हैं जिससे धरती सोना, हीरे-मोती के साथ धुआं और आग भी उगलती दिख रही है। पंजाब में सरकार के दावों के विपरीत इस साल खेतों में बड़ी संख्या में गेहूं की पराली (अवशेष) जलाई जा रही है। अप्रैल और मई में अब तक नाड़ जलाने के कुल 10189 मामले सामने आए हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) स्तर पिछले साल के मुकाबले इस बार ज्यादा दर्ज किया गया है। यह एक चिंता का विषय है। हालांकि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कहा कि हवा में प्रदूषण के बढऩे का कारण केवल गेहूं की नाड़ जलना नहीं है।इसके पीछे कई अन्य कारण भी हो सकते हैं, जिनमें निर्माण कार्य से होने वाला प्रदूषण, वाहनों और उद्योगों से निकलने वाला धुआं शामिल हैं।
अप्रैल 2024 में अमृतसर का एक्यूआई 89, लुधियाना भी 89, मंडी गोबिंदगढ़ 161, पटियाला 89, जालंधर 77, खन्ना 82 और पंजाब का औसत एक्यूआई 97 दर्ज किया गया था, लेकिन इस साल अप्रैल में अमृतसर का एक्यूआई 112, लुधियाना 113, मंडी गोबिंदगढ़ 133, पटियाला 114, जालंधर 109, खन्ना 100 और पंजाब 113 रहा। इस साल 29 मई तक पंजाब का औसत एक्यूआई 104 दर्ज किया गया है। गौरतलब है कि 100 से ज्यादा एक्यूआई में अस्थमा, फेफड़े और दिल के मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
इस साल अमृतसर में गेहूं की नाड़ जलाने के सबसे अधिक 1102 मामले, मोगा में 863, गुरदासपुर में 856, फिरोजपुर में 742, तरनतारन में 700, सीएम के अपने जिले संगरूर में 654, बठिंडा में 651, लुधियाना में 639, कपूरथला में 529, पटियाला में 458, जालंधर में 438, मुक्तसर में 407, फाजिल्का में 351, बरनाला में 337, होशियारपुर में 309, फरीदकोट में 265 मामले प्रमुख तौर से सामने आए हैं। यहां गौरतलब है कि हर सीजन की शुरुआत में सरकार की ओर से दावे किए जाते हैं कि किसानों को जागरूक किया गया है। अब मामलों में बड़ी कमी देखने को मिलेगी, लेकिन हर बार खेत जलते हैं और प्रदूषण फैलने की समस्या जस की तस बनी रहती है। नाड़ को आग लगाने से कई जगहों पर दुर्घटनाएं भी हुई हैं।
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