पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष हिंदुओं की सिर्फ धार्मिक पहचान के कारण निर्मम हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। लेकिन इस दुखद घटना के बाद एक और गंभीर खतरा धीरे-धीरे सामने आया है। एक ऐसा खतरा जो केवल हिंसा तक सीमित नहीं है, बल्कि लंबे समय तक चलने वाले जनसंख्या घुसपैठ और राष्ट्रीय सुरक्षा के समझौते की ओर इशारा करता है।

प्रख्यात टिप्णीकार
इसका खुलासा तब हुआ, जब भारत सरकार ने सुरक्षा उपायों के तहत देश में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों से वापस लौटने को कहा। इस निर्णय के बाद जो दृश्य सामने आया, उसने देश को चौंका दिया। बड़ी संख्या में भारतीय मुस्लिम महिलाएं अपने पाकिस्तानी पतियों के घर लौटना चाहती थीं, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकीं क्योंकि उनके पास भारतीय पासपोर्ट थे, या उनके बच्चे भारत में जन्मे थे और भारतीय नागरिक थे।
जब देश अपने नागरिकों के लिए शोक मना रहा था, तब कुछ मुस्लिम समुदायों द्वारा कैंडल मार्च और एकता की प्रतीकात्मक अभिव्यक्तियां की जा रही थीं। लेकिन इन सबके पीछे एक और चिंताजनक सच्चाई सामने आई। बड़ी संख्या में भारतीय मुस्लिम महिलाओं की शादियां पाकिस्तानी पुरुषों से हुई हैं, और कई मामलों में पाकिस्तानी महिलाएं भारतीय मुस्लिम पुरुषों से विवाह करके भारत में रह रही हैं। ये परिवार न केवल भारत में रह रहे हैं, बल्कि यहां बच्चे पैदा कर रहे हैं और भारतीय नागरिकों के सभी अधिकारों का लाभ भी उठा रहे हैं।
भारत की धरती पर शत्रु राष्ट्र की संतति?
रिपोर्टों के अनुसार, ऐसी शादियों से 8 से 15 तक बच्चे पैदा हो रहे हैं। ये सभी भारत में जन्म लेने के कारण कानूनी तौर पर भारत की नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं। मतलब, पाकिस्तानी माता अथवा पिता की संतान को आसानी से भारतीय नागरिकता मिल रही है। जबकि इनके माता अथवा पिता उस देश के नागरिक हैं जो भारत के विरुद्ध कई दशकों से आतंकी युद्ध कर रहा है, गजवा-ए-हिंद की विचारधारा पर चल रहा है। कुछ पाकिस्तानी पुरुष भारत की मुस्लिम महिलाओं से शादी कर ‘पीआर’ (Permanent Residency) लेकर यहीं बस रहे हैं। वे यहां परिवार बढ़ा रहे हैं, भारत में जन्मे अपने बच्चों के नाम पर संपत्ति खरीद रहे हैं और भारतीय कानून की ढील का खुलकर फायदा उठा रहे हैं। ये केवल विवाह नहीं हैं, बल्कि एक व्यवस्थित वैचारिक, कट्टरपंथी और जनसंख्या घुसपैठ का हिस्सा हैं। ये कोई व्यक्तिगत प्रेम कहानियां नहीं हैं। यह एक पैटर्न है, जो भारत की जनसांख्यिकीय संरचना और सुरक्षा व्यवस्था को बिना हथियार के बदलने की चुपचाप कोशिश है।
कानूनी कमियों से हो रही घुसपैठ
- पाकिस्तानी पुरुष, जो या तो पाकिस्तान में रह रहे हैं या भारत में लंबी अवधि के वीजा पर हैं। वे भारतीय मुस्लिम महिलाओं से शादी करते हैं और फिर फर्जी दस्तावेज़ या लापरवाही भरे सरकारी रवैये के ज़रिए यहीं बस जाते हैं।
- कई भारतीय मुस्लिम महिलाएं भारतीय नागरिक बनी रहती हैं, लेकिन उनकी शादी पाकिस्तानी पुरुषों से होती है।
- इनके बच्चों को भारत में जन्म लेने के कारण भारतीय नागरिकता मिल जाती है। नतीजतन, ऐसे परिवार भारत में पूरी तरह स्थापित हो जाते हैं, और आने वाली पीढ़ियां वोट देने से लेकर सरकारी लाभ तक सब कुछ हासिल करती हैं – जबकि उनकी जड़ें दुश्मन देश से जुड़ी होती हैं।
निकाह या भारत की सुरक्षा से समझौता!
इन बच्चों की वफादारी कहां होगी? जिनका पिता दुश्मन देश से है, क्या वे भारतीय मूल्यों में पले-बढ़े होंगे या पाकिस्तान की सोच से प्रभावित? जब यही बच्चे बड़े होकर वोट डालेंगे, सरकारी सुविधाएं लेंगे, या प्रचार-प्रसार में शामिल होंग-तो क्या यह भारत के लिए एक नाजुक स्थिति नहीं होगी?
शत्रु संपत्ति अधिनियम की सीमाएं
भारत का ‘शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968’ इस उद्देश्य से बनाया गया था कि पाकिस्तान जैसे शत्रु राष्ट्र के नागरिक भारत में संपत्ति के अधिकारी न बन सकें। लेकिन आज के संदर्भ में यह अधिनियम अधूरा साबित हो रहा है। यह अधिनियम केवल शत्रु नागरिकों को संपत्ति अधिकार से वंचित करता है-लेकिन उन बच्चों पर चुप है जो शत्रु नागरिकों और भारतीय नागरिकों के विवाह से भारत में पैदा हो रहे हैं। यानी, कानूनी तौर पर हमने एक बैकडोर खोल रखा है, जिससे दुश्मन देश भारत की जनसंख्या और मुख्यधारा में घुसपैठ कर सकता है।
यह भारत की संप्रभुता का प्रश्न है
जब भारतीय महिलाएं पाकिस्तानी पुरुषों से विवाह करके भारत में 8-10 या उससे भी अधिक बच्चों को जन्म देती हैं- यह सिर्फ व्यक्तिगत चुनाव नहीं रह जाता। यह एक गंभीर राष्ट्रीय संकट बन जाता है।
1. राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर : ऐसे बच्चों की मानसिकता, शिक्षा और विचारधारा पाकिस्तान से प्रभावित हो सकती है। बड़े होकर वे डिजिटल जिहाद, ideological & political subversion (राजनीतिक सैद्धांतिक क्षय) और वैचारिक युद्ध के माध्यम से भारत के खिलाफ काम कर सकते हैं।
2. वोट बैंक की राजनीति : ऐसे नागरिक भारत में वोट देकर देश की राजनीति की दिशा बदल सकते हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों और संवेदनशील राज्यों में यह स्थिति बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।
3. आर्थिक शोषण : इन परिवारों को भारत की निशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य, राशन, आवास योजनाओं का लाभ मिलता है। भारत में आज दुश्मन देश के नागरिकों की संतानों का पालन-पोषण भारत सरकार की योजनाओं और भारतीय करदाताओं के धन से हो रहा है। यह न केवल आर्थिक अन्याय है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खुला मज़ाक भी है। अतः इसे भारत की जनता के साथ विश्वासघात कह दिया जाए तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ?
अब ज़रूरत है कड़े कानूनी बदलावों की
1. नागरिकता अधिनियम में संशोधन : यदि माता-पिता में से कोई भी एक दुश्मन राष्ट्र (जैसे पाकिस्तान या चीन) से हो, तो ऐसे बच्चे को भारत में जन्म लेने के बावजूद नागरिकता नहीं मिलनी चाहिए। यह देश की सुरक्षा से समझौता करने जैसा होगा।
2. पिछले विवाहों और संतानों की समीक्षा : सरकार को एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स बनाकर सभी भारत-पाक नागरिकों शादियों और उनके बच्चों का कानूनी मूल्यांकन करना चाहिए। ऐसे विवाहों को भारत की नागरिकता छोड़ने की शर्त पर ही अनुमति दी जाए।
3. रिलेशन वीजा पर प्रतिबंध Spouse Visa (Long-term) : पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों से मिलने वाले सभी ‘रिलेशन वीजा’ Spouse Visa (Long-term)-पर तुरंत रोक लगाई जाए और पहले से मौजूद लोगों की जांच राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से की जाए।
‘वैवाहिक वफादारी’ की शर्त अनिवार्य की जाए
अगर कोई भारतीय नागरिक दुश्मन देश के नागरिक से विवाह करता है, तो उसकी नागरिकता स्वतः समाप्त हो जानी चाहिए। यह व्यक्तिगत मामला नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता के साथ सीधा टकराव है।
ऐसे व्यक्तियों को निम्नलिखित से भी आजीवन वंचित किया जाना चाहिए:
- कोई भी नौकरी या पद
- किसी भी स्तर का चुनाव लड़ना
- किसी भी प्रकार की सरकारी सुविधा, सब्सिडी एवं आरक्षण
तीसरे देश के नागरिक बनकर भारत में घुसपैठ : एक नई चाल
यदि कोई व्यक्ति दुश्मन राष्ट्र का नागरिक है, तो भले ही वह किसी तीसरे देश, जैसे यूके, कनाडा या खाड़ी देशों की नागरिकता प्राप्त कर ले, उसके साथ विवाह करने पर भारतीय नागरिकता समाप्त होनी चाहिए।
पाकिस्तानी नागरिक पहले किसी पश्चिमी देश की नागरिकता प्राप्त करते हैं और फिर भारत में विवाह के माध्यम से स्थायी निवास या नागरिकता की ओर बढ़ते हैं। यह अब व्यक्तिगत जीवन का मामला न रहकर एक पूर्वनियोजित रणनीति का हिस्सा बनता जा रहा है। यह केवल पासपोर्ट या देश बदलने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि विचारधारा, निष्ठा और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का विषय है। ऐसे व्यक्तियों की भारत में उपस्थिति, चाहे वे किसी और देश के नागरिक क्यूं न हों, भारत की आंतरिक सुरक्षा, सांस्कृतिक अखंडता और सामाजिक समरसता के लिए दीर्घकालिक खतरा उत्पन्न कर सकती है।
यह पूर्वाग्रह नहीं, आत्मरक्षा
कुछ लोग इसे मानवाधिकार का मुद्दा कहकर विरोध कर सकते हैं। जब कांग्रेस के नेतृत्व में भारत का विपक्ष लगातार पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा दिखाई देता है, तो यह स्वाभाविक है कि वह ऐसे किसी भी राष्ट्रहितैषी और सुरक्षात्मक कानून का विरोध करेगा।
साथ ही, भारत के मुस्लिम समाज का एक वर्ग—जो फिलिस्तीन के समर्थन में रैलियां निकालता है, लेकिन कभी कश्मीरी हिंदुओं या बांग्लादेशी हिंदुओं के नरसंहार पर आवाज़ नहीं उठाता, जो पाकिस्तान के झंडों को ज़मीन से उठाकर माथे से लगाता है—उससे भी ऐसे कड़े लेकिन ज़रूरी क़दमों के विरोध की ही अपेक्षा है।
लेकिन हमें यह समझना होगा कि यह कोई धार्मिक या वैचारिक पूर्वाग्रह नहीं, बल्कि आत्मरक्षा का नैसर्गिक अधिकार है।
जब दुश्मन देश से वैवाहिक घुसपैठ के ज़रिए भारत की जनसंख्या-संरचना और सुरक्षा तंत्र को कमजोर करने की रणनीति अपनाई जा रही हो, तो ऐसे में कानून द्वारा स्पष्ट और सख्त रोक अनिवार्य हो जाती है। दुश्मन देश के नागरिक यहां आकर शादियां करके अपनी जड़ें जमाते हैं — तो यह मानवता नहीं, मूर्खता है।
हर संप्रभु राष्ट्र को अपने सांस्कृतिक, जनसांख्यिकीय और सुरक्षा हितों की रक्षा करने का अधिकार है।
यदि इस वैचारिक और जनसांख्यिकीय घुसपैठ पर शीघ्र और कठोर नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो भारत के अन्य भाग भी पश्चिम बंगाल जैसे संकटग्रस्त क्षेत्रों में बदल सकते हैं — जहां मूल निवासी, विशेषकर हिन्दू समुदाय, इस्लामिक जिहाद के कारण अपनी ही भूमि पर असुरक्षित और हाशिये पर पहुंच गए हैं। यह केवल विवाह नहीं है, बल्कि पाकिस्तान समर्थक सोच और कट्टर वैचारिक विस्तारवाद की एक सोची-समझी योजना है। भारत में जन्मे बच्चों को नागरिकता देने की कानूनी ढील का दुरुपयोग कर एक ऐसी जनसंख्या तैयार की जा रही है जिसकी वफादारी भारत के प्रति नहीं, बल्कि उसके शत्रु राष्ट्रों और विचारधाराओं के प्रति है। यह ठीक वैसी ही स्थिति है जैसी आज ब्रिटेन, फ्रांस और स्वीडन जैसे देशों में देखने को मिल रही है- जहां मूल नागरिक अब शरिया समर्थक भीड़, कानून विरोधी ज़ोन और इस्लामिक अलगाववाद से त्रस्त हैं।
भारत को इन खतरों से बचाने के लिए अब केवल एक नेतृत्व पर देश को भरोसा है- वह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। उनका साहसिक, राष्ट्रवादी और निर्णायक नेतृत्व ही इस चुनौती से सख्ती से निपट सकता है। देशवासी आज आशा और अपेक्षा दोनों के साथ प्रधानमंत्री मोदी की ओर देख रहे हैं कि वे नागरिकता कानून में उपयुक्त संशोधन कर भारत की सांस्कृतिक पहचान, सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा करें।
आज युद्ध सिर्फ बंदूक से नहीं, बल्कि सूचना तकनीकी
युद्ध, वैचारिक, संसाधनों के लिए भी छद्म युद्ध लड़े जा रहे हैं।
भारत को अब जागना होगा। हर उस दरार को बंद करना होगा,
जिससे दुश्मन राष्ट्र हमारी जनसंख्या, विचारधारा और लोकतंत्र में सेंध लगा रहा है। देश की सुरक्षा से समझौता किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है।
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