जिन्ना के देश के प्रधानमंत्री आपरेशन सिंदूर से पड़े गहरे जख्म दिखाने तुर्किए के बाद एक अन्य इस्लामी देश ईरान गए थे। वहां वे सर्वोच्च मजहबी नेता अयातुल्ला सैयद अली खामेनेई से मिले। उन्हें उम्मीद थी कि खामेनेई जिन्ना के देश के प्रधानमंत्री को आपरेशन सिंदूर से पड़ी मार पर मलहम लगाएंगे, कश्मीर पर फिर एक बार उनके पक्ष में तगड़ा बयान देंगे, भारत को कट्टर इस्लामी आंखें दिखाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। ईरान के सर्वोच्च शिया मजहबी नेता खामेनेई ने जिन्ना के देश और भारत, इन दो देशों के बीच कश्मीर के मुद्दे के सुलझने की आशा जताई। वे आपरेशन सिंदूर पर खुलकर शाहबाज के पाले में नहीं आए। यहां यह मानकर चलने में कोई बुराई नहीं है कि खामेनेई को जम्मू कश्मीर के संदर्भ में भारत का पक्ष स्पष्टत: पता है कि कश्मीर पर बात होगी तो बस पीओजेके को भारत को वापस देने के बारे में। बजाय शाहबाज के मनमाफिक बयान देने के खामेनेई ने उनसे गाजा पर उनके समर्थन की बात की, ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ की बात की। शाहबाज बेशक तेहरान से हाथ मलते लौटे होंगे।
ईरान जैसा बड़ा और ताकतवर आखिर क्यों कर पाकिस्तान जैसे विश्व में कुख्यात कंगाल देश के कहे पर चलेगा! जिन्ना के देश के प्रधानमंत्री ने वहां भी फर्जी आंकड़े और तस्वीरें दिखाकर आपरेशन सिंदूर पर कुछ उगलवाने की कोशिश की होगी, लेकिन हाथ कुछ लगा नहीं। उनकी और उनकी सेना के मुखिया जनरल आसिम मुनीर की ऐसी स्थिति बनी तो इसके पीछे भारत की कूटनीति ही है। पाकिस्तान जब नफरत भरी यह कसरत कर रहा था तब भारत चाबहार बंदरगाह को लेकर रणनीतिक योजनाएं बना रहा था। आखिरकार भारत ने चाबहार को लेकर एक ऐसी घोषणा की है जिससे ईरान भी बेशक, बाग—बाग है।
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई के साथ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की मुलाकात थोथी रही और कश्मीर को लेकर तेहरान का कोई उलटा बयान नहीं आया तो यह भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर की दूरदृष्टि के कारण ही हुआ। क्योंकि सर्वोच्च शिया नेता खामेनेई ने कुछ दिन पहने सोशल मीडिया पर कश्मीर का उल्लेख किया था। सूत्र कहते हैं, ऑपरेशन सिंदूर जब चल रहा था तो खामेनेई ने पाकिस्तान और भारत के बीच सुलह कराने की कोशिश की थी।

लेकिन शाहबाज और मुनीर को मिली इस मायूसी के पीछे भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के लिए कई योजनाएं तैयार कर रहा था। प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत की ओर से चाबहार बंदरगाह के पर्याप्त विस्तार की घोषणा करना ईरान को रास आया होगा। तय हुआ है कि 2026 के दौरान इस बंदरगाह को रेल के तानेबाने से जोड़ा जाएगा। विशेषज्ञ इसे संभावित अमेरिकी प्रतिबंधों की काट बता रहे हैं। ऐसा भी कहा जा रहा है कि भारत की यह घोषणा अमेरिकी सरकार को एक सख्त संकेत भी है। ईरान स्थित चाबहार बंदरगाह के संचालन की जिम्मेदारी एक भारतीय सरकारी कंपनी के हाथ में है। अमेरिका की ओर से घुड़कियां दिखाए जाने के बावजूद और प्रतिबंधों की लटकती तलवार के बीच भारत तथा ईरान अगर इस बंदरगाह पर आगे काम बढ़ाने को साथ आए हैं, तो यह बड़ी बात है। पूर्व में अमेरिका चाबहार बंदरगाह को लेकर प्रतिबंधों में छूट दे चुका है, लेकिन अब आगे इसके ऐसा रहने की संभावना कम है।
ओमान की खाड़ी में स्थित चाबहार बंदरगाह को लेकर भारत बहुत आशान्वित है। इसे भारत उस ग्वादर बंदरगाह की काट के तौर पर तैयार कर रहा है जिसे चीन ने रणनीतिक बढ़त पाने के लिए पाकिस्तान के तट पर बनाया है। फिलहाल चाबहार की क्षमता कम है इसे 100,000 टीईयू तक बढ़ाने को काम जारी है। साथ ही इसे ईरान के रेल संजाल से जोड़ने का काम भी तेजी से बढ़ रहा है। इसके लिए 700 किमी. की पटरी बिछाई जा रही है जिसके 2026 के जुलाई या अगस्त तक पूरा होने का अनुमान है।

परियोजना से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि यह तेजी से बढ़ रही है और अभी इसमें और गति आ सकती है। साल 2026 तक इसे प्रस्तावित स्थिति तक ले आया जाएगा। रेल की पटरी से जुड़ने के बाद ईरान और भारत बंदरगाह को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के गेटवे की तरह उपयोग कर पाएंगे। ऐसा होने के बाद मध्य एशियाई तथा यूरेशियाई देशों तक सीधी पहुंच बनेगी। यहां ध्यान रहे कि आपरेशन सिंदूर के जारी रहते हुए ईरान के विदेश मंत्री भारत आए थे और इस विषय में उनकी यहां विदेश मंत्री जयशंकर से लंबी बात भी हुई थी।
उल्लेखनीय है कि साल मई 2024 में ईरान और भारत के बीच चाबहार बंदरगाह के संबंध में एक दस वर्षीय समझौता हुआ था। भारत की ओर से बंदरगाह पर लगभग 12 करोड़ डॉलर का निवेश किया जाएगा। भारत ने इस पर और 25 करोड़ डॉलर का कर्ज देने का भी प्रस्ताव रखा है।
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