काजीदाद मोहम्मद रेहान,सूचना सचिव, बलूच नेशनल मूवमेंट
बलूचिस्तान की आजादी को लेकर मीर यार बलूच के अकाउंट से झूठे और गैरजिम्मेदाराना दावे किए गए। इन दावों को मीडिया के एक वर्ग ने दोहराया, जिससे बलूचिस्तान के राजनीतिक हलकों में चिंता बढ़ गई है। यह मुद्दा केवल एक सोशल मीडिया पोस्ट का नहीं, इसके व्यापक निहितार्थ हैं। दावा किया गया कि बलूच राष्ट्रीय नेता मीर यार बलूच ने आजादी का ऐलान किया है, साथ ही एक एआई-जनरेटेड फोटो और एक संदेश भी था।
उनके बयान पूरी तरह से निराधार हैं और उनमें वह ईमानदारी और अनुशासन नहीं है, जिसके साथ मान्यता प्राप्त बलूच राष्ट्रीय दल अपनी बात सामने रखते हैं। हम पूरी स्पष्टता और दृढ़ता के साथ कहते हैं कि ऐसे लोग बलूच राष्ट्र का प्रतिनिधित्व नहीं करते। राजनीतिक प्रतिनिधित्व संगठनात्मक संरचना और जवाबदेही के माध्यम से आता है। राजनीतिक दलों के सदस्य के रूप में हम अपने संस्थानों और उसके तौर-तरीकों से बंधे हैं और अपने कार्यों के लिए जवाबदेह हैं। दूसरी ओर, ये व्यक्ति किसी के प्रति जवाबदेह नहीं, वे किसी वैध संगठन का प्रतिनिधित्व नहीं करते, और फिर भी भ्रम पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं कि वे बलूचिस्तान के लिए सबसे प्रभावी अभियान चला रहे हैं और इसी वजह से हजारों लोग उनकी ओर खिंच रहे हैं। हकीकत यह है कि न केवल मीर यार, बल्कि कई अन्य लोगों के अकाउंट को बॉट्स का उपयोग करके कृत्रिम तरीके से रूप से फुलाया गया, जिससे उनके प्रभाव और समर्थन की भव्य तस्वीर बनी। हमारा मानना है कि इस तरह का नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है और हम इस पर गंभीर चिंता जताते हैं।
कुछ इलाकों से पीछे हटी सेना
इस बात की चर्चा है कि पाकिस्तान की फौज का नियंत्रण केवल क्वेटा तक रह गया है। यह बात भी आंशिक रूप से ही सच है। यानी क्वेटा में भी पाकिस्तान का पूरा नियंत्रण नहीं है। हालांकि अगर सैन्य नजरिए से बात करें तो पाकिस्तानी राज्य ने अब भी अपनी चौकियों और ठिकानों के जरिये पूरे बलूचिस्तान में अपनी मौजूदगी बनाए रखी है। इसके बावजूद, आजादी की लड़ाई लड़ रहे बलूच एक सुव्यवस्थित रणनीति के तहत सफल गुरिल्ला अभियान चला रहे हैं। इन अभियानों को आम लोगों का समर्थन प्राप्त होता है, जिसने पाकिस्तान के लिए इस प्रतिरोध को खत्म करना असंभव बना दिया है और वह लगातार हो रहे हमलों के आगे बेबस होता जा रहा है।
यह सच है कि बलूच गुरिल्ला संगठनों के हमलों के कारण पाकिस्तानी सेना कुछ इलाकों से पीछे हटी है। ब्रास (बलोच राजी अरोही संगर) समेत अन्य प्रतिरोध संगठनों ने दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित चौकियों को लगातार निशाना बनाया है, जिससे पाकिस्तानी सेना शहरी क्षेत्रों में वापस जाने के लिए मजबूर हो गई है। हालांकि इसमें बड़ी भूमिका बलूचिस्तान के भूगोल और सैन्य वास्तविकताओं की है। कम आबादी वाले क्षेत्रों में बड़ी सैन्य तैनाती को बनाए रखना महंगा और संचालन के लिहाज से मुश्किल होता है। ऐसे क्षेत्रों में हजारों सैनिकों के लिए खाना-पानी वगैरह पहुंचाने में अच्छे-खासे संसाधन खर्च होते हैं। सैन्य रूप से यह पाकिस्तान की प्रभावशीलता को कम करता है, विशेषकर गुरिल्ला लड़ाकों की तुलना में, जो इलाके के भूगोल से अच्छी तरह परिचित हैं और न्यूनतम संसाधनों के साथ जीवित रहकर संघर्ष करने के लिए प्रशिक्षित।
लंबा गुरिल्ला संघर्ष ही समाधान
मैं एक युद्ध विशेषज्ञ होने का दावा तो नहीं करता, लेकिन मुझे लगता है कि बलूच राष्ट्र अवैध कब्जे की इन बेड़ियों को एक लंबे और कारगर गुरिल्ला संघर्ष से ही तोड़ सकता है। इस तरह का आंदोलन निरंतरता, मजबूत संगठनात्मक अनुशासन और निरंतर संसाधनों से बनता है। यह पीढ़ियों तक चलने वाला एक संघर्ष है। जिस तरह यह अब तक चल रहा है, आगे भी चलता रहेगा। हमारी पीढ़ियों ने रिले रेस की तरह संघर्ष की मशाल को एक हाथ से दूसरे हाथ में थमाते हुए आजादी की इस जंग को आगे बढ़ाया है। हमारा लक्ष्य है ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ और जब तक यह हासिल नहीं हो जाता, हमें इस रास्ते पर आगे बढ़ना होगा।
हमारा अनुमान है कि पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में लगभग 2,72,000 कर्मियों को तैनात कर रखा है। इसमें 1,40,000 पुलिसकर्मी, 15,000 लेवी, 50,000 सेना के जवान, 30,000 फ्रंटियर कोर के सैनिक, 5,000 तट रक्षक बल के लोग, 5,000 नौसेना के जवान, 10,000 वायु सेना कर्मी और पुलिस खुफिया सहित 17,000 खुफिया ऑपरेटिव शामिल हैं। इसके अलावा, सरकार ‘डेथ स्क्वॉयड’ और आपराधिक गिरोहों को भी पाल रही है, जिनका इस्तेमाल बलूचों के खिलाफ प्रॉक्सी बलों के रूप में किया जा रहा है।
आजादी की घोषणा कब
किसी ने आजादी की गलत घोषणा कर दी, सवाल यह उठता है कि ‘सही’ घोषणा की उम्मीद कब की जा सकती है। आजादी की घोषणा कब और कैसे की जाएगी, यह निर्णय पूरी तरह से परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। इस प्रश्न का कोई भी ठोस उत्तर नहीं हो सकता। जो होगा, वह केवल एक राजनीतिक पूर्वानुमान होगा और पूर्वानुमान तो बदल भी सकते हैं। सामान्य समझ की बात है कि ऐसी घोषणा तभी सार्थक होगी, जब यह संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल लोगों की ओर से आए, उन लोगों की ओर से आए जो अपना बलिदान दे रहे हैं, अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे हैं, बलूचिस्तान की आजादी की राजनीतिक रूप से वकालत कर रहे हैं।
हमने स्वतंत्रता समर्थक सभी बलूच दलों को यह स्पष्ट रूप से बता दिया है कि ‘किसी भी व्यक्ति या समूह को अकेले ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।’ कोई भी एकतरफा घोषणा हमारी एकता को मजबूत करने के बजाय हममें दूरियां लाएगी। उदाहरण के लिए, जब एक बलूच महिला ने एकतरफा रूप से तथाकथित निर्वासित सरकार की घोषणा की, तो हमारी पार्टी ने उसी दिन इस कदम को खारिज कर दिया। इस निर्णय में प्रमुख बलूच दलों के साथ परामर्श का अभाव था और इसमें ऐसे व्यक्ति शामिल थे, जिनका आम लोगों के बीच कोई रुतबा या भरोसा नहीं था।
बलूचों की आजादी का यह आंदोलन जनता का आंदोलन है। इसका नेतृत्व लोगों के बीच से ही निकला है। बलूच राजनीति में कबाइली नेताओं के वर्चस्व के दिन अब लद चुके हैं। अगर कोई बलूचिस्तान पर सऊदी अरब जैसा वंशवादी या तानाशाही मॉडल थोपने की कोशिश करेगा, तो उसे व्यापक प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। हम ऐसे किसी भी कदम का विरोध करेंगे और हमारी पार्टी ऐसी किसी भी योजना का हिस्सा कभी नहीं बनेगी।
लेकिन हम बलूचिस्तान के भविष्य में हर वैध पक्ष को एक हितधारक के रूप में मान्यता देते हैं। हम एक सामूहिक ढांचे के लिए हमेशा तैयार हैं जो व्यापक सहमति और संवाद से आकार ले, किसी एक समूह या वैचारिक एजेंडे द्वारा निर्धारित न हो। बलूचिस्तान के भविष्य के बारे में फैसला तो इसकी अपनी चुनी हुई संसद को ही लेना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि समय आने पर सक्षम और दूरदर्शी नेतृत्व पर सहमति बन जाएगी। इसलिए, यह समय आंतरिक कलह या समय से पहले घोषणाओं (आजादी की घोषणा, जैसी मीर यार बलोच ने की) का नहीं है। यह आजादी के संघर्ष पर ध्यान जमाने का समय है। हर स्वतंत्र राष्ट्र ने इस मार्ग का अनुसरण किया है- पहले संघर्ष हुआ, फिर स्वतंत्रता मिली, और उसके बाद संविधान का मसौदा तैयार किया गया और राजनीतिक व्यवस्था स्थापित हुई। बलूचिस्तान में भी ऐसा ही होगा, इसमें कहीं कोई संदेह नहीं।
हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट है- न्याय, समानता और स्वतंत्रता पर आधारित एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक बलूचिस्तान। यदि हम उस बिंदु पर पहुंच जाते हैं, जहां दुश्मन स्वतंत्रता के सवाल पर बातचीत की मेज पर आने के लिए मजबूर हो जाता है, तो विश्वसनीय गारंटी के साथ और भरोसेमंद अंतरराष्ट्रीय ताकतों की निगरानी में फैसले लिए जा सकते हैं। हमारा लक्ष्य अंततः ब्रिटिश-लॉर्ड माउंटबेटन योजना की अन्यायपूर्ण विरासत को खत्म करना है। लेकिन जब तक वह क्षण नहीं आता, हम कोई समझौता नहीं करेंगे। हमने पहले ही बहुत दर्द सहा है, बहुत सारे घाव सहे हैं। हम आंशिक स्वतंत्रता नहीं चाहते और न ही प्रतीकात्मक घोषणाओं पर समय बर्बाद करने को तैयार हैं।
लोगों में उबाल, जगह-जगह प्रदर्शन

हाल के समय में बलूचिस्तान में खास तौर पर दो तरह की घटनाएं देखने को मिली हैं। एक, आजादी की लड़ाई लड़ रहे बलूच लड़ाकों के हमलों के बाद पाकिस्तान की ओर से बढ़ा अत्याचार और दूसरी ओर लोगों को जबरन लापता किए जाने, फर्जी मुठभेड़ों और राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ हो रही कार्रवाई के विरोध में मजबूत होती आवाज।
ड्रोन हमले में बच्चों की मौत : अपने ही लोगों पर हवाई हमले करने के लिए कुख्यात पाकिस्तान ने एक बार फिर वजीरिस्तान में कथित विद्रोहियों को निशाना बनाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया, जिसमें तीन बच्चों की मौत हो गई। बलूच नेशनल मूवमेंट के चेयरमैन नसीम बलूच ने इसे ‘बलूच और पश्तून राष्ट्रों’ के खिलाफ हिंसा करार देते हुए कहा, “यह बलूच और पश्तून देशों के खिलाफ सोच-समझकर चलाए जा रहे नरसंहार का हिस्सा है, जिसे बम विस्फोटों, जबरन गायब किए जाने, न्यायेतर हत्याओं और मनमाने ढंग से हिरासत में लेकर अंजाम दिया जाता है।” बीएनएम चेयरमैन ने बलूचिस्तान की पहाड़ियों से लेकर वजूरिस्तान की घाटियों तक में रहने वाले लोगों के साथ जानवरों जैसा सलूक किए जाने पर दुख और गुस्सा जताते हुए कहा, “ स्कूलों को बम से उड़ाया जा रहा है, बच्चों को मार डाला जा रहा है, एक्टिविस्टों को जेल में डाला जा रहा है। यह सरकारी आतंकवाद है जो बलूचों के आंदोलन को दबाने, उनकी आवाज बंद करने और उनकी पहचान को मिटाने के लिए चलाया जा रहा है।”
नाबालिग को उठाया : पाकिस्तानी बलों ने ग्वादर से आबिद बलूच के नाबालिग बेटे अब्दुल्ला आबिद का अपहरण कर लिया। मूलतः केच के दश्त तहसील का अब्दुल्ला ग्वादर में रहकर पढ़ाई कर रहा था। बलूचिस्तान में मानवाधिकार पर काम करने वाली संस्था ‘पांक’ ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और कहा है कि बलूचिस्तान में जिस तरह सुरक्षा बल लोगों को अगवा कर रहे हैं, खास तौर पर छात्रों और नाबालिगों को, वह राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सरासर खिलाफ है।
कलात से दर्जनों पकड़े: पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने कलात में चलाए जा रहे ऑपरेशन के तहत अमीनुल्लाह, नियाज अली और उनके नाबालिग बेटे फैयाज अली का अपहरण कर लिया। यहां से दर्जनों लोगों को ‘उठाया’ गया। कुछ लोगों को रिहा कर दिया गया, जबकि कई अब भी लापता हैं।
हिरासत में वकील : मस्तंग के किल्ली शादी खान इलाके में जाने-माने वकील अताउल्लाह बलूच के घर पर धावा बोलकर पाकिस्तानी सुरक्षा बलों और आतंकवादी विरोधी विभाग (सीटीडी) के लोगों ने उन्हें हिरासत में ले लिया। देर रात 1 बजे से तड़के 3 बजे के बीच हुई कार्रवाई में अताउल्लाह बलोच के घरवालों के साथ मारपीट भी की गई। बार एसोसिएशन ने इसे न केवल कानूनों का खुला उल्लंघन बताया, बल्कि न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता के लिए गंभीर खतरा भी करार दिया। मस्तंग इलाके से ही बलूच स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन (बीएसओ) के आयोजक वकास बलूच को तीन सहयोगियों के साथ अपहरण कर लिया गया।
सड़कों पर उतरे लोग
बलूच यकजेहती समिति (बीवाईसी) ने डॉ. महरंग बलूच और अन्य बीवाईसी नेताओं की गिरफ्तारी, लोगों को जबरन लापता किए जाने और आए दिन हो रहे नरसंहार के खिलाफ क्वेटा में विरोध प्रदर्शन किया। बीवाईसी की अपील पर शाहवानी स्टेडियम के पास आयोजित इस विरोध प्रदर्शन को सुरक्षा बलों के भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। फिर भी, इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल हुए। उनके हाथों में लापता लोगों की तस्वीरें और बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान देने की मांग करने वाले बैनर थे। लोगों को संबोधित करते हुए बीवाईसी के एक नेता ने कहा कि जो लोग आवाज उठाते हैं, उन्हें या तो गायब कर दिया जाता है या मार दिया जाता है। “फिलिस्तीन के समर्थन में रेड जोन में भी रैली करने की इजाजत दी जाती है लेकिन बलूचों को सार्वजनिक मैदान में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने की भी इजाजत नहीं।” ऐसे ही प्रदर्शन खरान और तटीय शहर गदनी में भी हुए। इन प्रदर्शनों में लोगों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध जताया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान बलूचिस्तान में हो रहे मावनवाधिकार उल्लंघन की ओर दिलाने की कोशिश की।
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