पहले भी अनेक अवसरों पर यह बात सामने आती रही है कि विस्तारवादी कम्युनिस्ट चीन अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए दुनिया के विभिन्न देशों की जासूसी करता है, उसने वहां के सत्ता और प्रशासनिक तंत्रों में अपने जासूस रोपे हुए हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य अनेक देशों की सरकारों ने प्रमाण सहित चीन की यह शैतानी उजागर की है, लेकिन उस चालाक कम्युनिस्ट देश ने इससे सबको हमेशा फर्जी आरोप बताया है। लेकिन कोलंबिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम की ताजा रिपोर्ट एक बार फिर बता रही है कि चीन का सरकारी सुरक्षा संगठन या एमएसएस सबसे बड़ा तथा सबसे सक्रिय खुफिया एजेंसी बन चुका है। यह संगठन आम जासूसी प्रक्रियाओं से कहीं आगे जा चुका है। इसका उपस्थिति वैश्विक स्तर पर बन चुकी है।
एमएसएस चीन के भीतर ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी गतिविधियों को अंजाम देता आ रहा है। विशेषकर पश्चिमी देशों के शिक्षा, कारोबार और प्रशासनिक तंत्रों में इसके एजेंटों की मिलीभगत देखी गई है। ऐसे साफ संकेत मिले हैं कि यह एजेंसी विदेशी सरकारों, कंपनियों और अनुसंधान केंद्रों में गहरी पैठ बना चुकी है।
एमएसएस का जासूसी का अपना खास तरीका है। यह पश्चिमी देशों के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में अपने एजेंटों को तैनात कर चुकी है। इसके अलावा व्यापार और तकनीकी जानकारी चुराने के लिए इसके जासूस विदेशी कंपनियों तक पहुंच बनाए हुए हैं, जहां से ये संवेदनशील तकनीकी जानकारी चुराते हैं। इतना ही नहीं, एजेंसी किसी देश में राजनीतिक हस्तक्षेप करने से भी नहीं चूकती। रिपोर्ट बताती है कि एमएसएस विदेशी सरकारों की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करती है।
1983 में बनाई गई इस एजेंसी के आज लगभग 6 लाख कर्मचारी हैं। इसके कार्यक्षेत्र में साइबर जासूसी, आंतरिक सुरक्षा, राजनीतिक दखल, विचारधाराओं को प्रभावित करने जैसे काम आते हैं।

इसके खतरे को देखते हुई कई पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियां इसकी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए अलग तरह से अपनी रणनीतियां बनाने में जुटी हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने तो एमएसएस के खिलाफ कड़े कदम उठाने भी शुरू कर दिए हैं। इस एजेंसी की बढ़ती ताकत और वैश्विक महत्वाकांक्षाएं ऐसी है कि जो इसे दुनिया की सबसे असरदार गुप्तचर एजेंसी का दर्जा देती हैं।
अमेरिका के समाचार चैनल कोलंबिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम (सीबीएस) ने यह रिपोर्ट सामने रखकर दुनिया भर के गुप्तचरी विशेषज्ञों को चौंका दिया है। इस पर यूरेशियन टाइम्स ने भी एक बड़ी रिपोर्ट प्रकाशित की है। इससे साफ है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दूर देशों में चल रहे घटनाक्रमों पर नजर रखने और उनमें दखल देकर अपने हिसाब से मोड़ने के लिए अपने गुप्तचर एजेंटों का एक वैश्विक संजाल खड़ा करने पर विशेष ध्यान लगाए हुए है। अमेरिका जैसी महाशक्ति में चीन के असंतुष्ट भी उसकी नजर में हैं, उन्हें ‘रास्ते पर लाने’ के लिए डराया-धमकाया भी जाता है।
सब जानते हैं कि कम्युनिस्ट चीन की महत्वाकांक्षा एक वैश्विक महाशक्ति बनने की है, इसके लिए उसे दूसरे देशों की जासूसी करके वहां दखल देना एक कामयाब रास्ता लगता है। इसके लिए आवश्यक तकनीकें भी उसने जुटा ली हैं। एमएसएस के सबसे खास निशाने पर हैं विदेशों में बसे चीन के नागरिक, विशेषकर अमेरिका में रह रहे चीनी।
अपनी रणनीति के तहत ही यह एक और तरीका अपनाती है जिसमें यह ‘लिंक्डइन’ जैसे प्लेटफार्म के माध्यम से लोगों को निशाना बनाती है। ब्रिटेन की गुप्तचर संस्था एमआई 5 के एक पूर्व महानिदेशक ने कहा था कि बीजिंग के इशारे पर एमएसएस अमेरिकी कारोबार तथा रोजगार से जुड़े प्लेटफार्म लिंक्डइन के माध्यम से करीब 20,000 से ज्यादा ब्रिटिश लोगों से जुड़ा था। फ्रांस में भी ठीक ऐसा ही देखने में आया था। वहां 2018 में इसने लिंक्डइन के रास्ते 4,000 लोगों को निशाना बनाया था। इसी प्रकार जर्मनी भी उसकी पहुंच से दूर नही रहा था। वहां तब 10,000 से ज्यादा लोग इसके चंगुल में फंसे थे।
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