रोहिंग्या : झूठ की नाव, हमदर्दी के चप्पू
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रोहिंग्याओं के रखवाले : झूठ की नाव, हमदर्दी के चप्पू

कथित मानवाधिकारवादियों ने रोहिंग्या घुसपैठियों को बचाने के लिए झूठी ‘कहानी’ गढ़ी। यह अलग बात है कि उनकी यह चाल न तो अदालत में चली और न ही समाज में। इसके बाद इन लोगों ने कहा कि भारत सदैव से पीड़ितों को शरण देता रहा है, लेकिन वर्तमान सरकार उस नीति को नहीं मान रही

by अरुण कुमार सिंह
May 26, 2025, 09:23 am IST
in भारत, विश्व, विश्लेषण
नई दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते प्रशांत भूषण। (बाएं से ) हर्ष मंदर, प्रियाली सुर, कोलिन गोंजाल्विस और रीता मनचंदा

नई दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते प्रशांत भूषण। (बाएं से ) हर्ष मंदर, प्रियाली सुर, कोलिन गोंजाल्विस और रीता मनचंदा

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अपने को मानवाधिकार कार्यकर्ता मानने वाले भारत के कुछ लोग पहले झूठी बातों के आधार पर एक ‘विमर्श’ खड़ा करते हैं और फिर उस पर मुहर लगवाने के लिए न्यायालय तक पहुंच जाते हैं। इसके अनेक उदाहरण हैं। उनमें से एक उदाहरण की इन दिनों चर्चा है। यह है रोहिंग्या घुसपैठियों से जुड़ा मामला। बता दें कि गत 16 मई को रोहिंग्या घुसपैठियों से जुड़ी एक याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में बहस हुई। इस दौरान न्यायालय ने इस याचिका की पैरवी करने वाले वकील कोलिन गोंजाल्विस को फटकार लगाई। कोलिन ने यह दावा किया था कि भारत सरकार ने 43 रोहिंग्याओं को यातनाएं देकर उन्हें अंदमान सागर में छोड़ दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने कोलिन के इस दावे को केवल आरोप माना। इसके साथ ही उन्हाेंने कहा,“जब देश कठिन समय से गुजर रहा है, तब आप काल्पनिक याचिकाएं लेकर आ रहे हैं।”

यही नहीं, दोनों न्यायाधीशों ने याचिकाकर्ता मोहम्मद इस्माइल और अन्य द्वारा पीठ के समक्ष प्रस्तुत की गई सामग्री की प्रामाणिकता पर भी प्रश्न उठाया और रोहिंग्याओं के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और कहा कि न्यायालय ने पहले भी इस तरह की राहत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद जब गोंजाल्विस ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रपट का हवाला देते हुए कहा कि उसने भी इस मुद्दे पर ध्यान दिया है और मामले की जांच शुरू की है, तो पीठ ने कहा, “बाहर बैठे लोग हमारे प्राधिकारों और संप्रभुता को निर्देशित नहीं कर सकते।” हालांकि, पीठ ने गोंजाल्विस से कहा कि वह याचिका की एक प्रति अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल के कार्यालय को सौंप दें, ताकि इसे सरकार के संबंधित अधिकारियों को भेजा जा सके और इस मामले की सुनवाई 31 जुलाई को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष निर्धारित कर दिया।

वास्तव में किसी भी व्यक्ति को समुद्र में नहीं फेंका गया है। हमारे सूत्रों ने बताया कि अब तक किसी भी रोहिंग्या को समुद्री मार्ग से वापस नहीं भेजा गया है। हां, कुछ दिन पहले बांग्लादेशी घुसपैठियों की एक टोली को समु्द्री मार्ग से बांग्लादेश भेजा गया था। इन्हें सीमा सुरक्षा बल (बी.एफ.एफ.) ने पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों से पकड़ा था और सबको एक स्थान पर लाकर वापस भेजा गया था। उनमें से किसी को भी पानी में नहीं, बल्कि सुरक्षित स्थान पर छोड़ा गया था। उसी दौरान कुछ लोगों ने वीडियो बनाए और उन्हें सोशल मीडिया में वायरल कर दिया गया। इसके बाद उन वीडियो के आधार पर एक नई ‘कहानी’ गढ़ी गई। और उसी ‘कहानी’ को लेकर सेकुलर बिरादरी के कुछ लोग सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए, लेकिन उन्हें वहां फटकार मिली।

सर्वोच्च न्यायालय की इस फटकार से सेकुलर बिरादरी परेशान हो गई। इसके बाद उसने 19 मई को दिल्ली के प्रेस क्लब में एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया। ‘एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ नामक एक संस्था के बैनर तले हुए इस संवाददाता सम्मेलन को वकील प्रशांत भूषण, वकील कोलिन गोंजाल्विस, हर्ष मंदर, रीता मनचंदा और प्रियाली सुर ने संबोधित किया। इन सभी ने एक स्वर में कहा, “रोहिंग्या मुस्लिम अपने देश म्यांमार से उजाड़े गए हैं और इसलिए उन्हें भारत में शरण मिलनी चाहिए, लेकिन केंद्र सरकार भारत में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को जबरन बाहर कर रही है। यही नहीं, कुछ लोगों को तो समुद्र में फेंक दिया गया। यह भारत की परंपरा के विरुद्ध है। भारत तो सदैव से हर पीड़ित को अपने यहां शरण देता रहा है।”

इस तरह की अनेक बातें वहां की गईं, लेकिन जिस ‘कहानी’ को लेकर ये लोग सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे, उसके बारे में कुछ विशेष नहीं कहा। जब इन पंक्तियों के लेखक ने कथित रूप से समुद्र में फेंके गए रोहिंग्याओं के नाम पूछे तो प्रशांत भूषण ने केवल इतना कहा कि आपको एक लिंक दिया जा रहा है, उसमें कुछ नाम हैं। मीडिया को दी गई प्रेस विज्ञप्ति में ‘इस्क्रॉल.इन’ का एक लिंक दिया गया है। इसे खोलने पर 12 लोगों के पहचान पत्र की प्रतियां सामने आती हैं, लेकिन उनमें से किसी का नाम नहीं पढ़ा जा सकता। ऐसा लग रहा है कि उनके नाम जान-बूझकर मिटाए गए हैं। प्रेस विज्ञप्ति में ‘मकतूब मीडिया’ में प्रकाशित एक रपट की भी चर्चा है। हालांकि इसकी बेवसाइट में भी उन 43 रोहिंग्याओं के नाम नहीं हैं। इसकी वेबसाइट में उन रोहिंंग्याओं को समुद्र में कथित रूप से फेंकने का समाचार प्रकाशित हुआ है, लेकिन उसके साथ ए.आई. से निर्मित चित्र लगाया गया है। उसमें दिखाया गया है कि कुछ लोग समुद्र में डूब रहे हैं। 19 मई को दिल्ली में हुए संवाददाता सम्मेलन के दौरान मंच पर जो बैनर लगाया गया था, वह उसी चित्र से मिलता-जुलता है।

‘रोहिंग्या बचाओ’ का नारा लगाता रोहिंग्याओं का एक समूह (फाइल चित्र)

दरअसल, रोहिंग्या घुसपैठियों को भारत में बसाने के लिए अनेक संगठन और प्रभावशाली लोग कार्यरत हैं। ऐसे लोग ‘एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ के बैनर का प्रयोग करते हैं। इस संस्था का मुख्यालय दिल्ली के जामिया नगर में स्थित है। ऐसे लोग रोहिंग्या घुसपैठियों का मामला 2017-18 से ही उठा रहे हैं। उन दिनों भारत सरकार ने रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठियों को देश से बाहर करने का अभियान चलाया, तो प्रशांत भूषण और उनकी टोली के कुछ अन्य वकील सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए थे। इन लोगों ने तर्क दिया कि रोहिंग्या शरणार्थी के रूप में भारत आए हैं और इनके पास संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यू.एन.एच.आर.सी.) द्वारा जारी शरणार्थी पहचानपत्र है। इसलिए इन्हें जबरन वापस नहीं भेजा जा सकता। वहीं, केेंद्र सरकार का कहना है कि भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, और यू.एन.एच.आर.सी. द्वारा रोहिंग्याओं को शरणार्थी के रूप में नामित करने का भारतीय कानून के तहत कोई कानूनी आधार नहीं है।

इसके बावजूद प्रशांत भूषण जैसे सेकुलर इस मामले पर भारत सरकार को घेरते रहते हैं। इससे भले ही भारत सरकार की सेहत पर कुछ असर नहीं पड़ता हो, लेकिन कुछ लोगों को निरर्थक बोलने का अवसर जरूर मिल जाता है। जैसे ही इन लोगों ने इस मामले को उठाया, वैसे ही मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत थॉमस एन्ड्रयूज़ ने कहा, “रोहिंग्या शरणार्थियों को नौसेना के जहाजों से समुद्र में उतार दिया गया, यह अपमानजनक है। मैं इन घटनाक्रमों के बारे में और जानकारी और गवाह की मांग कर रहा हूं। मैं भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि जो कुछ हुआ, उसके बारे में वह पूरा विवरण दे।”

सेकुलर बिरादरी यही चाहती है। इसलिए वह किसी भी तरह इस मामले को जिंदा रखना चाहती है। ऐसा क्यों किया जा रहा है, इसे गहनता से समझने की जरूरत है।

40,000 रोहिंग्या

भारत सरकार का कहना है कि देश में लगभग 40,000 रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठिए हैं। सरकार बार-बार कह
रही है कि देश में उनकी उपस्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी विदेशी अधिनियम, 1946 के अंतर्गत घुसपैठियों को निर्वासित करने के लिए भारतीय राज्य की संप्रभु शक्ति को बार-बार बरकरार रखा है। वहीं इनके कथित हमदर्द कहते हैं कि रोहिंग्या दुनिया में सबसे अधिक प्रताड़ित लोग हैं। इसलिए भारत सरकार इन्हें शरणार्थी का दर्जा दे।

‘धर्मशाला नहीं भारत’

गत 19 मई को एक श्रीलंकाई नागरिक की शरण देने की याचिका को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की एक पीठ ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से आए शरणार्थियों को शरण दी जा सके। पीठ उस श्रीलंकाई नागरिक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 2015 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) से जुड़े होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था।

2018 में एक ट्रायल कोर्ट ने उस व्यक्ति को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के अंतर्गत दोषी ठहराया और उसे 10 साल जेल की सजा सुनाई। 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय ने उसकी सजा को घटाकर सात साल कर दिया, लेकिन उसे सजा पूरी होते ही देश छोड़ने और निर्वासन से पहले शरणार्थी शिविर में रहने को कहा। याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में तर्क दिया कि वह वीजा लेकर भारत आया था और अपने देश में उसकी जान को खतरा है। उसने यह भी कहा कि उसकी पत्नी और बच्चे भारत में बस गए हैं और वह लगभग तीन साल से हिरासत में है और निर्वासन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। इस पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, “क्या भारत दुनिया भर के शरणार्थियों की मेजबानी करने के लिए है? हम पहले से ही 140 करोड़ की जनसंख्या से जूझ रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें।”

5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए!

इन दिनों गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हजारों मुस्लिम घुसपैठिए पकड़े जा रहे हैं। दिल्ली में मार्च महीने से ही पुलिस बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के विरुद्ध कार्रवाई कर रही है। सूत्रों के अनुसार दिल्ली पुलिस 21,000 घुसपैठियों के कागजात जांच कर रही है। जांच के दौरान अब तक लगभग 100 घुसपैठिए पकड़े जा चुके हैं। अहमदाबाद में तो बांग्लादेशियों के आकाओं ने सरकारी जमीन पर एक कॉलोनी ही बसा दी थी। पिछले दिनों अहमदाबाद नगर निगम ने वहां के चंदोला तालाब के आसपास सरकारी जमीन पर बसी इस कॉलोनी को भारी पुलिस बल की सहायता से ध्वस्त कर दिया। यही नहीं, वहां रह रहे लगभग 1,000 बांग्लादेशियों को बांग्लादेश वापस भी भेजा गया। ऐसे ही उत्तराखंड के हल्द्वानी में बनभूलपुरा से 50 से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिए पकड़े गए हैं।

राजस्थान के विभिन्न स्थानों से कुछ ही दिनों में 1008 बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए पकड़े गए। महाराष्ट्र में भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए पकड़े जा रहे हैं। अकेले मुंबई में सैकड़ों बांग्लादेशियों को पकड़ा गया है। इनमें से कुछ को तो बांग्लादेश वापस भेज दिया गया है और कुछ डिटेंशन सेंटर में रखे गए हैं। घुसपैठियों की धर—पकड़ निरंतर चल रही है। इसलिए इसकी एक निश्चित संख्या नहीं बताई जा सकती है। कुछ समय पहले केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया था कि 1 जनवरी, 2024 से 31 जनवरी, 2025 के बीच सीमा सुरक्षा बल यानी बी.एस.एफ. ने पश्चिम बंगाल में 2601 बांग्लादेशियों को पकड़ा था।

सितंबर 2024 में 300, अक्तूबर 2024 में 331, नवंबर 2024 में 310, दिसंबर 2024 में 253 और जनवरी 2025 में 176 बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए पकड़े गए थे। उन्होंने यह भी बताया था कि इन सबको वापस बांग्लादेश भेजने की कार्रवाई की जा रही है। 2007 में सोनिया-मनमोहन सरकार के समय गृह राज्य मंत्री रहे श्रीप्रकाश जायसवाल ने संसद को बताया था कि भारत में 1.2 करोड़ बांग्लादेशी मुसलमान हैं। माना जाता है कि उनके इस बयान का कांग्रेस के मुसलमान नेताओं ने अंदर ही अंदर भारी विरोध किया। इसके बाद कांग्रेस ने श्रीप्रकाश जायसवाल को अपना बयान वापस लेने को कहा। इसलिए जायसवाल ने यह कहते हुए उस बयान को वापस ले लिया था कि आंकड़ों के स्रोत गलत थे। यानी घुसपैठियों को बसाने और बचाने में कांग्रेस भी पीछे नहीं है। इसके लगभग सात वर्ष बाद सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने 2014 में कहा था कि भारत में लगभग 5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं।

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