स्वास्थ्य

विश्व थायराइड दिवस: योगासन एवं भारतीय ज्ञान परंपरा से थायरॉयड संतुलन

आज की भागदौड़ भरी दुनिया में स्वास्थ्य एक बहुमूल्य निधि है, जिसे बनाए रखना एक चुनौती बनता जा रहा है।

Published by
Jyotsnaa G Bansal

आज की भागदौड़ भरी दुनिया में स्वास्थ्य एक बहुमूल्य निधि है, जिसे बनाए रखना एक चुनौती बनता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार मधुमेह के बाद थायरॉयड संबंधी विकार दुनिया में दूसरे सबसे आम समस्या के रूप में उभरा है जो विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित कर रहा है।

वैश्विक स्तर पर लगभग 20 करोड़ लोग थायरॉयड बीमारियों से प्रभावित हैं। भारत की बात करें तो अनुमानित 4.2 करोड़ भारतीय थायरॉयड संबंधी रोगों से पीड़ित हैं। विशेषकर हाइपोथायरॉइडिज़्म (थायरॉयड हार्मोन की कमी) देश में सबसे प्रचलित थायरॉयड विकार है, जो हर दस में से एक वयस्क को प्रभावित करता है। जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भारत में समस्या कितनी व्यापक है।

लंबे समय तक आयोडीन की कमी, खान-पान में असंतुलन, तनाव और आधुनिक जीवनशैली इसके बढ़ते मामलों के कारणों में शामिल हैं। विश्व थायरॉयड दिवस (25 मई) का उद्देश्य भी ऐसे ही तथ्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।

थायरॉयड ग्रंथि क्या है?

थायरॉयड एक छोटी तितली के आकार की अंतःस्रावी (एन्डोक्राइन) ग्रंथि है जो गर्दन के अगले हिस्से में स्थित होती है। यह ग्रंथि दो मुख्य हार्मोन बनाती है: थायरोक्सिन (T4) और ट्राइआयोडोथायरोनिन (T3)। ये हार्मोन शरीर की चयापचय क्रिया (मेटाबॉलिज्म) को नियंत्रित करते हैं – यानि हमारे द्वारा खाए गए भोजन को ऊर्जा में बदलने की रफ्तार को तय करते हैं। चिकित्सा भाषा में, मेटाबॉलिज्म वह प्रक्रिया है जिसमें भोजन ऊर्जा में बदलता है।

थायरॉयड को अक्सर शरीर की “भट्टी” कहा जाता है जो ऊर्जा उत्पादन और उपयोग को संचालित करती है। इसके अलावा थायरॉयड हार्मोन शरीर के तापमान, हृदयगति, स्नायु प्रणाली, पाचन और विकास आदि को भी प्रभावित करते हैं।

जब थायरॉयड ग्रंथि पर्याप्त हार्मोन नहीं बना पाती या जरूरत से ज्यादा बनाने लगती है, तो हार्मोन का असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। थायरॉयड की समस्याओं का पता लगाने के लिए टीएसएच टेस्ट (थायरॉयड स्टिमुलेटिंग हार्मोन) किया जाता है। TSH पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा उत्पादित एक हार्मोन है जो थायरॉयड ग्रंथि को थायरॉयड हार्मोन (T4 और T3) का उत्पादन करने का संकेत देता है।

थायरॉयड हार्मोन की कमी होने पर और TSH का स्तर अधिक होने पर स्थिति हाइपोथायरॉइडिज़्म कहलाती है, जिसमें शरीर की ऊर्जा-उत्पादन प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। परिणामस्वरूप थकान, सुस्ती, वजन बढ़ना, लगातार ठंड महसूस होना, त्वचा का सूखापन जैसी समस्याएं उभरती हैं।

विपरीत रूप से, हार्मोन की अधिकता से और TSH का स्तर कम होने पर हाइपरथायरॉइडिज़्म होता है, जिसमें मेटाबॉलिज्म तेज होने से दिल की धड़कन तेज होना, वजन घटना, घबराहट और अत्यधिक पसीना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। दोनों ही स्थितियों में पूरे शरीर की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है क्योंकि थायरॉयड हार्मोन का संतुलन बिगड़ने से अनेक अंग-प्रणालियों पर असर पड़ता है।

हाइपोथायरॉइडिज़्म के लक्षण

थायरॉयड की स्थिति के साथ जीवन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। थायरॉयड की स्थितियों को अक्सर गलत समझा जाता है या अनदेखा किया जाता है। हाइपोथायरॉइडिज़्म के लक्षण अक्सर धीरे-धीरे विकसित होते हैं जिससे नियमित कार्य भी कठिन हो जाते हैं। और कई बार आम शारीरिक समस्याओं जैसे लग सकते हैं। निम्नलिखित प्रमुख लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए-

लगातार थकान और कमजोरी

रोगी को हर समय थकावट और ऊर्जा की कमी महसूस हो सकती है। रोजमर्रा के काम भी बोझिल लगने लगते हैं।

ठंड अधिक लगना

सामान्य की तुलना में ठंड असह्य लगती है, हाथ-पांव ठंडे रहते हैं।

वजन बढ़ना या कम न होना

भूख सामान्य रहने पर भी वजन बढ़ता है, या व्यायाम करने पर भी कम नहीं होता।

त्वचा व बालों में रूखापन

त्वचा खुश्क व बेजान हो जाती है। बाल असामान्य रूप से झड़ने लगते हैं या पतले व सूखे हो जाते हैं।

चेहरे पर सूजन

खासकर आँखों के आसपास चेहरा फूला-सा दिख सकता है (पफी फेस)।

मनोभाव में परिवर्तन

अवसाद (डिप्रेशन), चिड़चिड़ापन या एकाग्रता में कमी महसूस होना। याददाश्त कमजोर होना भी संभव है।

महिलाओं में माहवारी संबंधी गड़बड़ी

मासिक धर्म अनियमित हो जाना या अत्यधिक रक्तस्राव होना। इससे फ़र्टिलिटी पर भी असर पड़ सकता है।

हृदय व पाचन संबंधी प्रभाव

हृदय की धड़कन सामान्य से धीमी हो सकती है। साथ ही कब्ज़ जैसी पाचन समस्याएं उभर सकती हैं।

इन लक्षणों की मौजूदगी व्यक्ति-विशेष में भिन्न हो सकती है। अक्सर ये लक्षण महीनों या वर्षों में धीरे-धीरे पनपते हैं और प्रारंभिक अवस्था में बहुत हल्के हो सकते हैं। इसलिए अक्सर व्यक्ति इन्हें उम्र का तकाज़ा या सामान्य थकान समझ लेते हैं। यदि उपरोक्त लक्षण लगातार बने रहें, तो चिकित्सकीय जाँच करवाना ज़रूरी है।

हाइपोथायरॉइडिज़्म के प्रमुख कारण

हाइपोथायरॉइडिज़्म कई कारणों से हो सकता है, जिनमें विभिन्न कारक शामिल हैं:

ऑटोइम्यून विकार (हाशिमोटो थायरॉयडाइटिस)

यह विकसित देशों में हाइपोथायरॉइडिज्म का सबसे आम कारण है। इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से थायरॉयड ग्रंथि पर हमला करती है और उसकी कार्यक्षमता घटा देती है। हाशिमोटो रोग के कारण थायरॉयड ग्रंथि में सूजन आ जाती है और वह पर्याप्त हार्मोन नहीं बना पाती।

आयोडीन की कमी

आयोडीन थायरॉयड हार्मोन के निर्माण के लिए आवश्यक खनिज है। लंबे समय तक भोजन में आयोडीन की कमी रहने से घेंघा (goiter) तथा हाइपोथायरॉयड की समस्या उत्पन्न हो सकती है। भारत में अतीत में आयोडीन की कमी एक बड़ा कारण रहा है, हालाँकि पिछले कुछ दशकों में आयोडीन युक्त नमक के प्रसार से यह स्थिति सुधरी है।

थायरॉयड की शल्यचिकित्सा या रेडियोथेरेपी

यदि किसी व्यक्ति की थायरॉयड ग्रंथि को शल्यक्रिया द्वारा आंशिक या पूर्ण रूप से हटा दिया गया (जैसे थायरॉयड कैंसर, गाँठ या हाइपरथायरॉयड के इलाज में) या फिर रेडियोधर्मी आयोडीन द्वारा उपचार किया गया, तो उसके परिणामस्वरूप हाइपोथायरॉइडिज़्म विकसित हो सकता है। पूर्ण ग्रंथि हटाने पर हमेशा थायरॉयड हार्मोन का अभाव हो जाता है और जीवनभर दवा लेनी पड़ती है।

जन्मजात कारण

कुछ शिशु जन्म से ही थायरॉयड ग्रंथि के विकृत आकार या अनपेक्षित कार्यक्षमता के साथ जन्म लेते हैं। यदि समय रहते पता न चले, तो इससे बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ सकता है।

दवाओं का प्रभाव

कुछ दवाएँ थायरॉयड हार्मोन के उत्पादन में हस्तक्षेप कर हाइपोथायरॉइडिज्म पैदा कर सकती हैं।

जीवनशैली कारक अत्यधिक तनाव, प्रदूषित पानी या आहार में मौजूद विषैले तत्व भी संभावित कारक हैं। लंबे समय तक आयोडीन की अधिकता या कमी दोनों स्थितियाँ भी थायरॉयड विकार को जन्म दे सकती हैं (हलांकि आयोडीन की अति-कमी अब भारत में दुर्लभ है)।

उपरोक्त कारणों के अलावा कुछ विशेष परिस्थितियों में हाइपोथायरॉइडिज़्म का खतरा बढ़ जाता है, जैसे – 60 वर्ष से अधिक आयु, महिला होना, प्रसव के बाद (पोस्टपार्टम थायरॉइडाइटिस), परिवार में थायरॉयड रोग का इतिहास, अन्य ऑटोइम्यून रोगों का होना (जैसे टाइप-1 मधुमेह, सोरायसिस, इत्यादि)। इन कारकों की मौजूदगी में लोगों को नियमित स्वास्थ्य जाँच द्वारा थायरॉयड पर नजर रखनी चाहिए।

योग द्वारा हाइपोथायरॉइडिज़्म प्रबंधन – अनुसंधान क्या कहते हैं?

आयुर्वेद और योग जैसी भारतीय ज्ञान परंपरा में “व्याधि उत्पत्ति से पूर्व रोकथाम” पर जोर दिया गया है। आधुनिक शोध भी इस बात की ओर इंगित कर रहे हैं कि जीवनशैली में सुधार और योगाभ्यास को नियमित दवा के साथ शामिल करने से हाइपोथायरॉइडिज़्म के प्रबंधन में लाभ हो सकता है। हाल के दो अध्ययन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:

अंतरराष्ट्रीय योग जर्नल (मई-अगस्त 2024) में प्रकाशित एक नियंत्रित क्लीनिकल ट्रायल में यह परखा गया कि मानकीकृत योगासन हाइपोथायरॉइडिज्म मरीजों को किस हद तक फायदा पहुंचा सकते हैं। 8 सप्ताह के प्रयोग के बाद, जिस समूह ने प्रतिदिन योगासन किए उनके TSH (थायरॉयड उद्दीपक हार्मोन) के स्तर में औसतन उल्लेखनीय कमी पाई गई।

अंतरराष्ट्रीय योग जर्नल (जनवरी-अप्रैल 2025) में अमृता चक्रवर्ती आदि द्वारा प्रकाशित एक समीक्षा लेख में योग व थायरॉयड विकारों पर उपलब्ध अध्ययनों का विश्लेषण किया गया। इस समीक्षा के अनुसार योगाभ्यास से हाइपोथायरॉयड व हाइपरथायरॉयड दोनों प्रकार के रोगियों में हार्मोन संतुलन बनाने में मदद मिल सकती है। योग करने से थायरॉयड तथा
अन्य हार्मोन और मरीजों की जीवन गुणवत्ता, तनाव व चिंता जैसे मनोवैज्ञानिक पहलुओं में सुधार देखा गया। विशेषकर हाइपोथायरॉइडिज्म के लक्षणों पर योग का सकारात्मक असर अधिक प्रमाणित हुआ है।

उपरोक्त शोधों से संदेश स्पष्ट है – योग कोई जादुई इलाज नहीं है किंतु थायरॉयड विकारों के समग्र प्रबंधन में एक अहम सहायक उपकरण हो सकता है। नियमित योग से न केवल शारीरिक स्तर पर हार्मोन संतुलन व सूजन-तनाव में कमी आती है, बल्कि मानसिक स्तर पर भी तनाव-निर्मूलन एवं सकारात्मकता बढ़ती है, जो लंबी बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में “करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान” की सूक्ति पूरी तरह सटीक बैठती है।

हाइपोथायरॉइडिज्म में लाभकारी योगासन

योगगुरु स्वामी रामदेव ने योग एवं प्राणायाम के जरिए थायरॉयड की समस्या को जड़ से ठीक करने के कई उपाय बताए हैं। विशेष रूप से, उन्होंने कुछ आसनों व श्वसन तकनीकों को रोज़ाना अपनाकर कुछ ही हफ्तों में सकारात्मक असर देखने का दावा किया है।

थायरॉयड विकारों, खासतौर पर हाइपोथायरॉइडिज्म के उपचार में योगासन अत्यंत प्रभावी और लाभकारी सिद्ध हुए हैं। नियमित योगाभ्यास थायरॉयड ग्रंथि की कार्यक्षमता बढ़ाता है, हार्मोन संतुलित करता है और समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। थायरॉयड समस्याओं के लिए विशेष रूप से लाभकारी प्रमुख आसनों में शामिल हैं-

  1. बालासन (चाइल्ड पोज़)
  2. मार्जरीआसन (कैट-काउ पोज़)
  3. उष्ट्रासन (कैमल पोज़)
  4. भुजंगासन (कोबरा पोज़)
  5. धनुरासन (बो पोज़)
  6. सेतु बंधासन (ब्रिज पोज़)
  7. मत्स्यासन (फिश पोज़)
  8. विपरीत करणी
  9. सर्वांगासन(शोल्डर-स्टैंड) तथा
  10. हलासन(प्लॉ पोज़)

इन आसनों के नियमित अभ्यास से थायरॉयड ग्रंथि पर सकारात्मक दबाव पड़ता है, रक्तसंचार बढ़ने से हार्मोन संतुलन सुधरता है, मेटाबॉलिज्म तेज होता है, वजन नियंत्रित होता है, थायरॉयड विकारों के लक्षणों में उल्लेखनीय कमी देखी जाती है और शरीर व मन में ऊर्जा व संतुलन का संचार होता है।

उपरोक्त योगासनों को अपनी क्षमता अनुसार धीरे-धीरे अपनाएँ। शुरुआत में सरल योगासनों से शुरुआत करें और धीरे-धीरे कठिन आसनों (जैसे शीर्षासन) की ओर बढ़ें। यदि किसी आसन को करते समय गर्दन या शरीर के किसी हिस्से में दर्द हो, तो तुरंत रुक जाएँ और विशेषज्ञ से परामर्श करें। इन सभी अभ्यासों का सम्मिलित प्रभाव थायरॉयड हार्मोन के प्राकृतिक स्राव को सुचारु करना और हाइपोथायरॉइडिज्म के लक्षणों में सुधार लाना है।

थायरॉयड संबंधी समस्याओं, विशेषतः हाइपोथायरॉइडिज्म के प्रबंधन के लिए योग और प्राणायाम एक प्रभावी पूरक उपचार सिद्ध हो सकते हैं।

थायरॉयड रोगों के उपचार के लिए स्वामी रामदेव द्वारा सुझाए गए विशेष प्राणायाम हैं-

  1. भस्त्रिका प्राणायाम
  2. कपालभाति प्राणायाम
  3. उज्जयी प्राणायाम
  4. अनुलोम-विलोम प्राणायाम

ये प्राणायाम नियमित करने से थायरॉयड ग्रंथि सक्रिय होती है, शरीर में ऊर्जा का संचार बढ़ता है, हार्मोन संतुलित होते हैं, तनाव कम होता है जिससे थायरॉयड के लक्षणों में राहत मिलती है और समग्र स्वास्थ्य बेहतर बनता है।

योग अभ्यास के दौरान सावधानियाँ

योग थायरॉयड रोगियों के लिए लाभकारी है, लेकिन इसका अभ्यास सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है। ख़ास तौर पर यदि आप शुरुआती हैं, या आपको पहले से कोई स्वास्थ्य समस्या/चोट है, तो निम्नलिखित सावधानियाँ रखें-

धीरे-धीरे शुरुआत करें: अचानक कठिन आसन करने की कोशिश न करें। सरल अभ्यासों से शुरुआत करके शरीर को अनुकूल होने दें।

हर दिन कम से कम थोड़ा योग करने की कोशिश करें। आपको एक सत्र में सभी आसन नहीं करने हैं, आप एक दिन में एक या दो आसन आजमा सकते हैं।

अपने शरीर की सीमाओं का सम्मान करें

जबर्दस्ती कोई स्थिति बनाने से बचें। आवश्यक हो तो शुरुआती दौर में आसनों को सरल रूप में (modification के साथ) करें।

गर्दन/पीठ की समस्याओं में सावधानी

जिन लोगों को सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, स्लिप-डिस्क या गर्दन/रीढ़ की कोई चोट है, उन्हें शीर्षासन, सर्वांगासन जैसे उल्टे आसन डॉक्टर/योगगुरु की सलाह के बिना नहीं करने चाहिए। ऐसे लोग वैकल्पिक सरल अभ्यास चुनें (जैसे विपरीतकरणी आसन दीवार के सहारे) ताकि गर्दन पर ज़ोर न पड़े।

विशेषज्ञ से उचित मार्गदर्शन लें

थायरॉयड की स्थिति में सही योगक्रम व्यक्ति-विशेष के लिए भिन्न हो सकता है। अतः किसी योग्य योग प्रशिक्षक से परामर्श लेकर अपने लिए सुरक्षित और प्रभावी योगासन चयन करें।

चिकित्सकीय सलाह ज़रूर लें

यदि आपको हाइपोथायरॉइडिज्म है (या कोई भी पुरानी बीमारी), तो नए व्यायाम या योग कार्यक्रम को शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य करें। चिकित्सक आपकी वर्तमान अवस्था (जैसे हार्मोन स्तर, हृदय गति, रक्तचाप आदि) के आधार पर बताएंगे कि कौन-सी गतिविधियाँ सुरक्षित हैं।

दवाओं का पूर्ण विकल्प नहीं

यह याद रखें कि योग एक पूरक उपचार है, न कि आपके चल रहे चिकित्सकीय इलाज का पूर्ण विकल्प। यदि आप थायरॉयड की दवा ले रहे हैं, तो डॉक्टर की अनुमति के बिना दवा बंद बिल्कुल न करें। योग के जरिए सुधार आने पर डॉक्टर स्वयं आपकी दवा की मात्रा कम करने या बंद करने का निर्णय लेंगे। योग और प्राणायाम का प्रयोग थायरॉयड स्वास्थ्य को बेहतर बनाने हेतु सहायक साधन की तरह करें।

अन्य सावधानियाँ

योग खाली पेट करें (भोजन के 3-4 घंटे बाद)। अभ्यास से पहले हल्का वार्मअप जरूर करें ताकि माँसपेशियाँ तैयार रहें। किसी भी आसन में अत्यधिक खिंचाव या दर्द महसूस हो तो तुरंत सामान्य अवस्था में आ जाएँ। गर्भवती महिलाओं को थायरॉयड की समस्या होने पर योग प्रशिक्षक की देखरेख में ही विशेष प्रसव-पूर्व योग करने चाहिए।

इन सावधानियों का पालन करके आप योगाभ्यास का सुरक्षित लाभ उठा सकते हैं। सही तरीके से, सही मात्रा में और नियमित रूप से किया गया योग निश्चित ही थायरॉयड समेत पूरे शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालेगा।

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