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अंग्रेजों के लिए दहशत का पर्याय थे, महारथी करतार सिंह सराभा

करतार सिंह सराभा, गदर आंदोलन के 19 वर्षीय नायक, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए प्राण न्योछावर किए। उनकी वीरता और बलिदान की कहानी

by डॉ. आनंद सिंह राणा
May 24, 2025, 11:52 am IST
in मत अभिमत
Kartar singh sarabah jayanti

करतार सिंह सराभा

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महान् क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम के अद्भुत एवं अद्वितीय नायक, अंग्रेजों के लिए दहशत का पर्याय महारथी करतार सिंह सराभा – सरदार भगत सिंह के आदर्श थे। आधुनिक भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अद्भुत एवं अद्वितीय नायक थे।

तथाकथित आधुनिक भारत में सन् 1857 से सन 1947 तक, स्वतंत्रता संग्राम के 3 प्रमुख सोपान हैं- प्रथम सोपान सन् 1857 का स्वतंत्रता संग्राम जो कतिपय भारतीय गद्दार सामंतों के अंग्रेजों के साथ मिल जाने के कारण असफल हुआ पर बावजूद इसके राष्ट्रीयता के सुनहरे बीज को रोपित कर गया, जिसे अंग्रेजों के साथ मिलकर परजीवी इतिहासकारों और वामपंथियों ने “चोर चोर मौसेरे भाई” की कहावत के आलोक में स्वतंत्रता संग्राम को विभिन्न प्रकार से उपमायें देकर नकार दिया और “गदर” जैसे शब्दों का नाम देकर उसके महत्व को कम किया, इसलिए तो अमेरिका में भारत के स्वतंत्रता संग्राम हेतु जिस दल का गठन किया उसका नाम लाला हरदयाल ने “गदर” रखा और समाचार पत्र का भी! इसी के महानायक थे “करतार सिंह सराभा”, जिनका जन्म 24 मई सन् 1896 और बलिदान 16 नवंबर सन् 1915 (19 वर्ष 6 माह की उम्र में फांसी) को हुआ। आपकी माताश्री का नाम माता साहिब कौर पिताश्री का नाम मंगल सिंह था।

इतिहास के विद्यार्थी होने के नाते मेरे दृष्टिकोंण से सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम सोपान के बाद 1947 तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए स्वतंत्रता संग्राम के 2 समानांतर सोपान रहे हैं, प्रथम – क्रांतिकारी राष्ट्रवाद – जो मुखर होकर अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संग्राम कर स्वतंत्रता प्राप्ति कर भारतीयों के वीरोचित विजय दिलाने में विश्वास रखते थे। इस श्रंखला में सुनियोजित परंपरा के नायक करतार सिंह सराभा से लेकर रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह मास्टरदा, प्रीतिलता, और फिर सैलाब के रूप में महानायक सुभाषचंद्र बोस के साथ उभरते हैं। इस सोपान में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संख्या लाखों में है, जो स्वतंत्रता संग्राम के वास्तविक नायक थे परंतु अंग्रेजी इतिहासकारों और देशी परजीवी इतिहासकारों के साथ वामपंथियों ने इनके इतिहास और योगदान को धूमिल किया है जिसकी सजा इनको मिलेगी।

द्वितीय सोपान – उदार राष्ट्रवाद का था जिसमें कभी – कभी मौसम के बदलने के साथ गर्माहट भी आती जाती रहती थी पहले अंग्रेजों के समर्थन में स्वराज्य चाहते थे, फिर महा महारथी लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल बरतानिया सरकार के विरुध्द उग्र हुए साथ ही स्वाधीनता संग्राम का मोर्चा संभाल लिया परंतु चाटुकारों की फौज ने इनके साथ भी धोखा किया और फिर तथाकथित शांति के पथ पर चलकर स्वाधीनता प्राप्त करने पूरा श्रेय लूट लिया। परंतु प्रथम सोपान वालों को तो..अरे श्रेय तो छोड़िये, आतंकवादियों का तक तमगा दिया गया अब इस विषय पर फिर किसी दिन लिखना प्रासंगिक होगा।

आज तो करतार सिंह सराभा जी का दिन है.. हाँ! मैट्रिक की परीक्षा के बाद उच्च शिक्षा के लिए करतार सिंह सराभा अमेरिका निकल गये। परंतु किस्मत में तो क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम का महारथी होना लिखा था, नियति ने करवट बदली और जब एक दिन लाला हरदयाल सन 1913 में सेन फ्रांसिस्को भाषण दे रहे थे, तब अंत में कहा कि कौन अपने प्राणों की आहुति देगा? फिर क्या था करतार सिंह सराभा ने कहा कि “मैं दूंगा”और इस दिन हुआ करतार सिंह सराभा का नया अवतार। आनन-फानन अमेरिका और कनाडा में 8 हजार भारतीयों को सदस्य बना लिया गया और युद्ध की तैयारी आरंभ हो गयी।

सौभाग्य से प्रथम विश्व युद्ध 1914 में आरंभ हो गया, इसी का फायदा उठाते हुए भारत में अंग्रेजों पर आक्रमण करने के करतार सिंह सराभा के निर्देशन में 4 हजार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भारत की ओर कूच किया। हाय रे! दुर्भाग्य भारत के कुछ नामी-गिरामी गद्दारों ने इस योजना को अंग्रेजों को बता दिया।

फलस्वरूप धरपकड़ी हुई आधे से अधिक पकड़े गये लेकिन करतार सिंह सराभा बच निकले और जालंधर पहुंचे, जहां रासबिहारी बोस और शचीन्द्र नाथ सान्याल से मिले और योजना बनायी। पुराने साथी बिछड़ गये इसलिए करतार सिंह सराभा ने पंजाब की सभी सैनिक छावनियों में जाकर स्वतंत्रता के युद्ध के लिए सैनिकों को अपनी ओर करने का अभियान चलाया। अभियान गति पर था परन्तु फिर धोखा हुआ गद्दारों ने खबर कर दी और करतार सिंह सराभा को वैंसे ही घेरा जैंसे वीर अभिमन्यु को घेरा गया था। अंग्रेज़ बहुत खौफजदा थे इसलिए जेल में एक फौजी टुकड़ी 24 घंटे उनकी निगरानी करती थी।

आखिर बलिदान का दिन आ ही गया, उन्होंने कहा कि “जज साहब मुझे

फांसी ही देना.. मैं पुनर्जन्म में विश्वास करता हूँ और तब तक जन्म लेता रहूंगा जब तक की मेरा देश स्वतंत्र न हो जाए” भारत माता की जय। देश तो स्वतंत्र हो गया पर अभी इनके साथ न्याय नहीं हुआ है और न्याय यही है कि इनकी पूजा करें, इनके योगदान को याद करें, इतिहास के पुनर्लेखन में सहयोग करें। इतिहास का पुनर्लेखन जारी है, इसी कड़ी में यह शब्दांजलि अर्पित है।

अंत में करतार सिंह सराभा की यह गज़ल भगत सिंह को बेहद प्रिय थी, वे इसे अपने पास हमेशा रखते थे और अकेले में अक्सर गुनगुनाया करते थे। श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत है –

“यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,
मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा;
मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,
यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेरा;
मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूँ,
यही बस इक पता मेरा यही नामो-निशाँ मेरा;
मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूँ चूम ऐ भारत!
कहाँ किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहाँ मेरा;
तेरी खिदमत में अय भारत! ये सर जाये ये जाँ जाये,
तो समझूँगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा!”

Topics: क्रांतिकारी राष्ट्रवादभगत सिंह प्रेरणाGhadar MovementRevolutionary NationalismBhagat Singh InspirationFreedom Struggleस्वतंत्रता संग्रामKartar Singh Sarabhaकरतार सिंह सराभागदर आंदोलन
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