राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे
भारत की राजनीति में विपक्ष की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। यह सरकार को जवाबदेह बनाने, नीतियों पर सवाल उठाने और जनता की आवाज को सत्ता तक पहुंचाने का माध्यम होता है। लेकिन हाल के घटनाक्रमों, विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव, ऑपरेशन सिंदूर और संघर्ष विराम जैसे मुद्दों पर कांग्रेस और उसके आईटी सेल के सुर में सुर मिलाकर कदम ताल करते यूट्यूबर गिरोह की प्रतिक्रियाओं ने कई सवाल खड़े किए हैं।
कांग्रेस और उसके यूट्यूबर बार-बार अपनी बात बदल रहे हैं। राजनीतिक भाषा में इसे ‘गोल पोस्ट बदलना’ कहा जाता है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद कांग्रेस और यूट्यूबर गिरोह ने सरकार से कड़ा रुख अपनाने और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की मांग की थी। इसमें आम आदमी पार्टी, सपा, राजद के नेताओं सहित करण थापर, राजदीप सरदेसाई, रवीश कुमार, ध्रुव राठी, योगेंद्र यादव, आरफा खानम जैसे लोग और कांग्रेसी आईटी सेल के साथ कदमताल करने वाले दर्जनों सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर भी शामिल थे। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार से आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की।
आतंकी हमले के बाद देशवासियों का गुस्सा चरम पर था। ऐसे में कांग्रेस ने सरकार पर दबाव बनाया कि पाकिस्तान को ‘मुंहतोड़ जवाब’ दिया जाए। कांग्रेस ने कहा कि वह सेना और सरकार के हर कदम का समर्थन करेगी, बशर्ते वह आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी हो। यह रुख उस समय तक रहा जब तक सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू नहीं किया। कांग्रेस आईटी सेल ने अपने कुकुरमुत्ते सरीखे यूट्यूबर गिरोह की मदद से पार्टी की छवि को मजबूत विपक्ष के रूप में पेश करने की कोशिश की। लगा जैसे यह गिरोह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर सरकार के साथ खड़ा है।
7 मई को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से अपनी सैन्य शक्ति से दुनिया का परिचय कराया। अगले दिन पाकिस्तान ने जब भारत पर ड्रोन और मिसाइलों से हमले किए तब उसके वायु सेना अड्डे, सैन्य ठिकाने और आतंकी अड्डे धू-धू कर जल रहे थे, जिनके वीडियो बनाकर पाकिस्तानियों ने ही सोशल मीडिया पर डाले। इस ऑपरेशन को देश में व्यापक समर्थन मिला और कई राजनीतिक दलों ने सेना की तारीफ की। लेकिन कांग्रेस, उसके यूट्यूबर और सोशल मीडिया गिरोह की प्रतिक्रिया बदलने लगी।
इन्होंने ‘नो वार’ का नारा लगाना शुरू कर दिया। दरअसल, कांग्रेस को यह डर सताने लगा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता का श्रेय पूरी तरह से सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाएगा, जिससे उनकी राजनीतिक जमीन और कमजोर हो जाएगी। इसलिए कांग्रेस ने देशहित की चिंता किए बिना अपनी रणनीति बदली और युद्ध विरोधी रुख अपनाया। कांग्रेस के रुख बदलते ही उसके पिछलग्गुओं ने अपने सुर बदल लिए। कांग्रेस का तर्क था कि ‘युद्ध से दोनों देशों को नुकसान होगा और शांति ही एकमात्र रास्ता है।’ कांग्रेस का यह दोहरा चरित्र जनता के बीच भ्रम पैदा करने वाली थी। लेकिन अंजुम, खानम, पांडेय, बनर्जी, बिनवाल ने कांग्रेस से इस रवैये का कारण नहीं पूछा।
10 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा की। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के अधिकारियों ने संघर्ष विराम की पुष्टि की। लेकिन कांग्रेस ने ट्रंप के सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखी गई पंक्तियों को ‘अमेरिकी हस्तक्षेप’ करार दिया और सवाल उठाए कि क्या भारत की विदेश नीति अब विदेशी ताकतों के हाथों में है। कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने तो यहां तक कह दिया कि ‘यह आश्चर्यजनक है कि ट्रंप ने संघर्ष विराम की घोषणा की। भारत ने इसकी पुष्टि बाद में की।’ चूंकि कांग्रेस और पिछलग्गू यूट्यूबर इस बात को मुद्दा बना रहे थे तो विदेश मंत्रालय को स्पष्ट करना पड़ा कि संघर्ष विराम का फैसला पाकिस्तान के डीजीएमओ द्वारा बातचीत की गुहार लगाने के बाद लिया गया। इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी।
जम्मू के आरएसपुरा सेक्टर में पाकिस्तानी गोलीबारी में बीएसएफ के सब-इंस्पेक्टर मोहम्मद इम्तियाज शहीद हो गए और सात अन्य जवान घायल हुए। इस घटना ने देश में शोक की लहर दौड़ा दी। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया और सरकार पर आरोप लगाया कि वह शहीद जवान को भूल गई है। जब सरकार ने बलिदानी परिवार को सम्मान और सहायता प्रदान की, तो कांग्रेस ने नया मुद्दा उठाया कि सरकार ने इसमें देरी की। इसी प्रकार बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ की रिहाई में देरी को भी कांग्रेस मुद्दा बना रही है। पहले उसने सरकार पर जवान की रिहाई के लिए पर्याप्त प्रयास न करने का आरोप लगाया था। क्या यह कांग्रेस के दोहरे चरित्र को नहीं दर्शाता है?
दरअसल, कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर दर्जनों इन्फ्लूएंसर्स को अपने साथ जोड़ा है, जो कथित तौर पर तटस्थ होने का चोला ओढ़ कर यूट्यूब चला रहे हैं। लेकिन सचाई यह है कि इनका हर वीडियो कांग्रेस के झूठ और दोहरेपन को छुपाने के लिए होता है।
सेकुलर पत्रकार रवीश कुमार के सगे भाई ब्रजेश पांडेय कांग्रेस नेता हैं। एक अन्य सेकुलर पत्रकार अशोक कुमार पांडेय हाल में ही पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से आशीर्वाद लेकर लौटे हैं। अजीत अंजुम का पूरा कॅरियर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला की छाया में बना है। तुकबंदी कलाकार नेहा सिंह राठौर लगातार कांग्रेस से टिकट लेने की कोशिश में लगी हुई हैं। अब आईटी सेल के साथ काम करने में गिरोह को कोई शर्मिंदगी भी नहीं है। इसलिए सब खुल कर कांग्रेस के साथ खड़े हैं। उसके निर्देश पर वीडियो बनाने में भी कोई परहेज नहीं है।
कांग्रेस का आईटी सेल रवीश से लेकर राजदीप सरदेसाई तक से अपने मन की बात कहलवा देता है। कांग्रेस अपनी गोलपोस्ट बदलने वाली रणनीति से जनता के बीच अविश्वास पैदा करना चाहती है। लेकिन बार-बार बदलते मुद्दे यह संदेश देते हैं कि कांग्रेस के पास कोई ठोस वैकल्पिक दृष्टिकोण नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस का दोहरा रवैया दर्शाता है कि पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिश में है या उसे अपने यूट्यूब गिरोह पर हद से अधिक विश्वास है।
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