Operation sindoor
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सशक्त नेतृत्व में भारतीय सेना ने प्रचंड पराक्रम दिखाते हुए पहलगाम जघन्य नरसंहार का बदला लेते हुए ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तानी वायु-अड्डों आदि को तहस-नहस कर दिया. गौरतलब यह है कि भारत और पाकिस्तान के इस युद्ध में अस्त्र-शस्त्रों के अतिरिक्त एक अन्य स्तर पर भी लड़ाई छिड़ी हुई थी. यह युद्ध प्रतीकात्मक, सांकेतिक और नैतिकता के नैरेटिव धरातल पर चल रहा था. इसमें भी भारत ने पाकिस्तान पर तो विजय पाई ही, वैश्विक पटल पर भी अपने नैतिक श्रेष्ठता और सॉफ्ट पावर का ध्वज लहरा दिया.
सेमिओटिक्स या संकेतविज्ञान के अनुसार युद्ध में प्रतीकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विभिन्न प्रतीकों- जैसे शब्दों, चिह्नों, विचारों और कविता-कहानियों या शास्त्रीय आधार पर भी लड़ा जाता है। प्रसिद्ध संकेतविज्ञान विशेषज्ञ चार्ल्स सैंडर्स पीयर्स के मॉडल के अनुसार युद्ध में ये प्रतीक केवल शोभा की वस्तु नहीं; बल्कि प्रभाव, शक्ति और वैधता के उपकरण भी होते हैं, ये प्रतीक युद्ध में केवल शोभा की वस्तु नहीं; बल्कि प्रभाव, शक्ति और वैधता के उपकरण भी होते हैं, जो सम्बन्धित देश या समाज की वैचारिकता और सॉफ्ट पावर को संप्रेषित करते हैं, कार्रवाईयों को वैधता प्रदान करते हैं, लोगों में एकता का भाव भरते हैं और गहरी भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ भी जगाते हैं. भारत-पाकिस्तान संघर्ष में प्रतीकों का उपयोग रणनीतिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों में किया गया, और इसके द्वारा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर धारणा को प्रभावित करते हुए एक प्रभावशाली नैरेटिव बनाने का सफल प्रयास किया गया.
आरंभ भारतीय सैन्य अभियान के नाम से ही करें. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम सूक्ष्म प्रतीकात्मकता और गहरी अर्थवत्ता लिए हुए है। ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, भावनात्मक और राजनीतिक संकेत भी है. ‘सिंदूर’ का रंग गहरा लाल होता है, जो भारतीय संस्कृति में पवित्रता, समर्पण और रक्षा का प्रतीक है. हिंदू समाज में विवाहित स्त्री के लिए सिंदूर उसके सम्मान, सुरक्षा और पवित्रता का प्रतीक होता है. सिंदूर के माध्यम से जैसे एक पति अपनी पत्नी की रक्षा का संकल्प लेता है, वैसे ही यह ऑपरेशन देश की जनता की रक्षा के संकल्प का प्रतीक है. इस ‘सिंदूर’ शब्द ने पूरे देश की महिलाओं को एक सूत्र में बांध दिया और उनके माध्यम से देश के पुरुषों को भी एकजुट करने का काम किया. इसके अलावा ‘सिंदूर’ का लाल रंग शौर्य, पराक्रम और बलिदान का भी प्रतीक है, जिसकी जीती-जागती मिसाल भारतीय सेना है. सिंदूर जैसे शब्द का प्रयोग भारत के समृद्ध सांस्कृतिक गौरव के साथ-साथ सैन्य कार्रवाई की नैतिक वैधता को दर्शाता है.
ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी देने के लिए आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी और भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह को शामिल करना भी एक गहरा प्रतीकात्मक संदेश देता है। महिला अधिकारियों की उपस्थिति इस बात का संदेश थी कि भारत की नारी शक्ति न केवल पीड़ित है, बल्कि वह दुर्गा और चंडी का रूप धारण कर आतंकवाद, अन्याय और अधर्म का जवाब देने में सक्षम है। दोनों महिला अधिकारियों ने सैन्य परिधान में उपस्थित होकर न केवल ऑपरेशन की तकनीकी जानकारी साझा की, बल्कि यह भी दर्शाया कि भारतीय महिलाएं घर के बाहर न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि रणनीतिक और कूटनीतिक मंचों पर भी सक्षम और सशक्त हैं। कर्नल सोफिया कुरैशी (एक मुस्लिम) और विंग कमांडर व्योमिका सिंह (एक हिंदू) का एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होना भारत की धार्मिक एकता का प्रतीक था। यह आतंकियों के उस प्रयास को करारा जवाब था, जो पहलगाम हमले में धर्म के आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश कर रहे थे
वर्तमान तनातनी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भगवान बुद्ध का भी स्मरण किया. भगवान बुद्ध शांति के अन्यतम प्रतीक हैं. मोदी ने विश्व को भारत की उच्च नैतिक श्रेष्ठता का सन्देश दिया कि भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं, बल्कि बुद्ध दिया है. उन्होंने कहा कि यह समय युद्ध का नहीं, बल्कि बुद्ध का है. हालाँकि यहीं उन्होंने साफ भी कर दिया कि शांति का मार्ग, शक्ति के माध्यम से ही प्रशस्त होता है. भारत न युद्ध चाहता है, न युद्ध से डरता है. वह शांति चाहता है, पर अपनी सीमाओं और नागरिकों की रक्षा के लिए वह पूर्ण संकल्पित तथा प्रतिबद्ध है.
ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियानों को एक नैतिक आवश्यकता और न्यायसंगत ठहराने के लिए शास्त्रीय प्रतीक ‘भगवद गीता’ के श्लोक “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्” का भी बखूबी उपयोग किया गया. मोदी ने कहा कि भारत की कार्रवाई केवल सामरिक नहीं, बल्कि यह अधर्म के विरोध में धर्म की रक्षा के लिए उठाया कदम है. यहाँ धर्म का अर्थ कोई रिलिजन या मजहब नहीं. धर्म का अर्थ यहाँ सत्य और न्याय है, जबकि अधर्म का अर्थ असत्य एवं अन्याय के पक्ष में खड़ी हत्यारी, आसुरी आतंकवादी ताकतें और पाकिस्तानी सेना है.
युद्ध के समय देश की जनता और सैनिकों का मनोबल बनाए रखना और अपनी कार्रवाई को न्यायोचित दिखाने के लिए एक अन्य शास्त्रीय प्रतीक था ‘शिव तांडव स्तोत्र’, जो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ब्रीफिंग के दौरान बजाया गया था. यह सेना के शौर्य और दिव्य समर्थन का प्रतीक था, जिसने सैन्य कार्रवाइयों को भारत की महान सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत से जोड़ा. ‘शिव तांडव स्तोत्र’ भारतीय सेना के लिए एक युद्धगीत की भांति है— शुद्ध धार्मिकता से परे एक आध्यात्मिक प्रतीक है, जो शक्ति, साहस और नैतिकता का स्रोत भी है. यह स्तोत्र अत्याचारी के विनाश एवं विश्व के कल्याण की भारतीय दृष्टि को भी रूपायित करता है जो शिव के तांडव नृत्य का संदेश है. ‘शिव तांडव स्तोत्र’ की संगीतात्मक प्रस्तुति ने निश्चित रूप से सैनिकों के मनोबल और जनता के समर्थन को बढ़ाने का कार्य किया.
भाषा, शब्द और साहित्य का भी अपना प्रतीकात्मक महत्त्व है जो संप्रेषण और संचार में प्रभावशाली भूमिका निभाता है. ‘आपरेशन सिंदूर’ को न्यायसंगत ठहराते हुए देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने महाकवि तुलसीदास के रामचरितमानस की पंक्तियों को उद्धृत किया- “जिन मोहि मारा, तिन मोहि मारे.” यानी हमने केवल उन्हीं (अर्थात आतंकवादियों) को मारा, जिन्होंने हमारे मासूमों को मारा. उन्होंने स्पष्ट किया हमारी लड़ाई तो आतंकवादियों और उनके आकाओं से है. पाकिस्तान और विश्व समुदाय को यह एक सन्देश था कि हम पाकिस्तान की जनता के खिलाफ नहीं हैं. प्रेस ब्रीफिंग में हमारे सैन्य अधिकारी द्वारा राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्तियों का उल्लेख करना भी एक चमत्कारी प्रभाव पैदा करता है. “हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना। याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा” का सन्देश पाकिस्तानी हुकूमत के साथ-साथ विश्व समुदाय को भी है कि भारत तो मैत्री और शांति ही चाहता है. लेकिन भारतीय मानस यह भी समझता है कि “भय बिनु होय ना प्रीति” अर्थात बिना दंड व डर के दुष्टों को समझ नहीं आता. उसी तरह भारतीय सेना की वीरता और पराक्रम के लिए पीएम मोदी द्वारा गुरुगोविंद सिंह जी की पंक्ति- “सवा लाख ते एक लड़ाऊँ” अर्थात हमारा हर सैनिक सवा लाख के बराबर है- को उद्धृत करना सेना में अद्भुत उत्साह का संचार करता है.
हमारे अस्त्र-शस्त्रों के नाम भी सत्य एवं न्याय के प्रतीक हैं. 15 भारतीय शहरों पर पाकिस्तान के हमलों को हमारी जिस रक्षा प्रणाली ने विफल कर दिया, वह है ‘सुदर्शन कवच’ नामक एस-400 अस्त्र. सुदर्शन चक्र पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु या उनके अवतार श्रीकृष्ण का एक दिव्य और शक्तिशाली अस्त्र है, जिसका उन्होंने धर्म अर्थात सत्य एवं न्याय की रक्षा और अधर्म यानि असत्य एवं अन्याय के विनाश के लिए प्रयोग किया। उसी तरह ब्रह्मोस मिसाइल द्वारा पाकिस्तानी आतंकी और सैन्य अड्डे को नष्ट करना हमारे शास्त्रों में वर्णित ब्रह्मास्त्र का प्रतीक है जिसकी प्रहार की कोई काट नहीं. दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना के मिसाइलों के नाम देखें- बाबर, गजनी, गोरी इत्यादि. कहने की जरुरत नहीं ये सभी नाम लुटेरे, आक्रमणकारी और जिहादी मानसिकता वाले लोगों के हैं. यह पाकिस्तानी सेना और हुकूमत की अधर्मपरक वैचारिकता और नैरेटिव का ही बयान करते हैं.
स्पष्ट है कि भारत-पाकिस्तान के इस युद्ध में भारत ने अपनी सैन्य श्रेष्ठता तो प्रदर्शित किया ही, बल्कि उससे भी बढ़कर एक नैतिक विजय हासिल की. अपने सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से संसार को यह सन्देश देने में भी हम सफल रहे कि भारत शांति का देश है. भारत ने अपने प्राचीन ग्रंथों, काव्य, आध्यात्मिक संदर्भों और सांस्कृतिक प्रतीकों का रणनीतिक उपयोग करते हुए विश्व को यह दिखा दिया कि उसकी शक्ति केवल आधुनिक और भौतिक नहीं, बल्कि सभ्यतागत है. हमारा सैन्य अभियान भी असत के ऊपर सत की विजय और शांति की स्थापना के लिए ही है. युद्ध की परिस्थितियों में भी भारत शांति की भाषा बोलता है, और प्रतिशोध में भी वह अपने मूल्यों और धर्म के पथ से विचलित नहीं होता. प्रतीकों से भरे इस युद्ध में भारत केवल एक शक्ति के रूप में नहीं, बल्कि सत्य, न्याय और धर्म के एक नियामक सिद्धांत के रूप में खड़ा दिखाई दिया जो विश्व के लिए भी एक अनूठा प्रतिमान है.
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