बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम (Waqf Amendment Act) को लेकर दूसरे दिन की सुनवाई हुई। इस सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में पक्ष रखा।
व्यापक चर्चा और परामर्श के बाद हुआ संशोधन : सरकार
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि वक्फ कानून में किए गए संशोधन व्यापक विमर्श और बहुपक्षीय सलाह-मशविरा के बाद लाए गए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता संपूर्ण मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सरकार की ओर से बताया गया कि-
- 97 लाख से अधिक लोगों से सुझाव प्राप्त हुए।
- 25 वक्फ बोर्डों से राय ली गई, जिनमें से कई ने स्वयं उपस्थित होकर अपनी बातें रखीं।
- राज्य सरकारों से भी विधेयक पर चर्चा की गई।
- प्रत्येक संशोधन धाराओं (क्लॉज़) पर विस्तार से विचार किया गया। इसमें आए कुछ सुझावों को स्वीकार किया गया।
ट्रांसपेरेंसी के साथ लिया गया निर्णय : सरकार
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने यह प्रश्न उठाया कि क्या इस मामले में सरकार स्वयं ही अपने दावे की पुष्टि कर सकती है?
इसके उत्तर में सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा- यह बात सही है कि सरकार खुद अपने दावे की पुष्टि नहीं कर सकती। प्रारंभिक विधेयक में कलेक्टर को निर्णयकर्ता नियुक्त किया गया था, लेकिन इस पर आपत्ति जताई गई कि वह स्वयं ही मामले में जज और पक्षकार दोनों होंगे।
इसीलिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के सुझाव पर कलेक्टर के अतिरिक्त किसी अन्य अधिकारी को नामित करने की बात मानी गई। उन्होंने कहा कि राजस्व अधिकारी केवल रिकॉर्ड के आधार पर निर्णय लेते हैं, न कि संपत्ति के टाइटल का अंतिम निर्धारण करते हैं।
भूमि और ट्रस्ट की भूमिका पर सरकार की स्पष्टता
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कोर्ट को यह भी बताया कि सरकार देश की ज़मीन को सभी नागरिकों की ओर से ट्रस्ट की तरह संभालती है। वक्फ से संबंधित उपयोग मालिकाना हक के आधार पर नहीं, बल्कि लंबे समय तक के उपयोग पर आधारित होता है।
उन्होंने सवाल उठाया- “अगर कोई इमारत सरकारी ज़मीन पर बनी है, तो क्या सरकार को यह जाँचने का अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह संपत्ति उसकी है या नहीं..?” इसी उद्देश्य से धारा 3(C) को अधिनियम में जोड़ा गया है।
बहुपक्षीय विचार-विमर्श पर सरकार का ज़ोर
सरकार ने यह भी कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम को संयुक्त संसदीय समिति में गहन विचार-विमर्श के बाद अंतिम रूप दिया गया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए प्रत्येक मुद्दे का बिंदुवार उत्तर प्रस्तुत किया जाएगा।
सरकार का रुख स्पष्ट था कि यह कानून किसी एकपक्षीय सोच या चुनिंदा व्यक्तियों की राय पर आधारित नहीं है, बल्कि इसे समावेशी और विस्तृत प्रक्रिया के तहत तैयार किया गया है।
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