जिन्ना के देश के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार बड़ी उम्मीदें लेकर बीजिंग गए थे कि चीन के नेता उनके पाले में आकर भारत को धमकाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने ‘द्विपक्षीय सहयोग’ जारी रखने और संघर्षविराम को लेकर पाकिस्तान और भारत के बीच हुई रजामंदी पर तसल्ली जताई। डार के साथ अपनी बातचीत के बाद उनका कहना है कि चीन ‘पाकिस्तान और भारत द्वारा बातचीत के माध्यम से अपने मतभेदों को ठीक से निपटाने, व्यापक और स्थायी युद्धविराम हासिल करने’ और ‘मौलिक समाधान तलाशने’ का स्वागत करता है और उसका समर्थन करता है। चीन के सरकारी मीडिया सीजीटीएन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को प्रमुखता से रखा है। इसके संकेत ये हैं चीन ने भारत के प्रति किसी प्रकार की आक्रामकता दिखाने की पाकिस्तान के मंत्री की उम्मीदें धराशायी ही की हैं।
सीजीटीएन आगे लिखता है, ‘विदेश मंत्री वांग यी, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य भी हैं, ने पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार के साथ हुई बात के संदर्भ में कहा कि यह स्थिति दोनों पक्षों के मौलिक और दीर्घकालिक हितों के अनुरूप, क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षा भी है। वांग का कहना है कि चीन और पाकिस्तान ने पारंपरिक मित्रता को मजबूत करने, दोनों के बीच लाभ देने वाले सहयोग को मजबूत करने और चुनौतियों का मिलकर समाधान करने पर और प्रभावी रणनीतिक संचार बनाए रखा है, जो दोनों देशों के बीच संबंधों के उच्च स्तर को दर्शाता है।
चीन ने इस वार्ता में रेखांकित किया कि वह हमेशा की तरह, अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने, अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुकूल विकास की राह पर चलने, आतंकवाद का दृढ़ता से मुकाबला करने और अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में बड़ी भूमिका निभाने में पाकिस्तान का पुख्ता समर्थन करता रहेगा। उन्होंने दोनों पक्षों से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को और उन्नत बनाने के साथ ही उद्योग, कृषि, ऊर्जा और खनिज, मानव संसाधन विकास, आतंकवाद-रोधी और सुरक्षा पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिए साथ आने का आह्वान भी किया।

वांग के साथ अपनी चर्चा पर लाग—लपेट करते हुए डार ने कहा कि पाकिस्तान चीन के साथ भाईचारे वाली दोस्ती को सहेजे हुए है। उन्होंने ‘वन चाइना’ सिद्धांत का दृढ़ता से पालन करने की हामी भरी। पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री ने चीन की नई विकास उपलब्धियों की प्रशंसा की, खासकर नवाचार और विज्ञान-तकनीक की प्रगति के कसीदे काढ़े। डार ने चीन के साथ अपने सहयोग को और विस्तार देने की बात की। दोनों की चर्चा में पाकिस्तान में चीनी कर्मियों, परियोजनाओं और संस्थानों की सुरक्षा की बात आई जिस पर डार ने फिर आश्वासन दिया कि इसे सुनिश्चित करने के लिए पाकिस्तान वरीयता के साथ प्रयास करेगा।
डार की नजर में जो सबसे बड़ा मुद्दा था वह भी उन्होंने मौका देखकर सामने रख दिया। उन्होंने आपरेशन सिंदूर में पड़ी मार को ‘अपनी कामयाबी’ से ढकने का प्रयास किया, संघर्षविराम समझौते के बाद बनी परिस्थिति और पाकिस्तान की आगे की सोच की जानकारी दी। डार ने चीन को धन्यवाद दिया कि बीजिंग ने न्याय को कायम रखने और संघर्षविराम तथा शांति को बढ़ावा देने के लिए अपना महत्वपूर्ण ‘योगदान’ दिया। डार ने बढ़—चढ़कर कर यह भी कहा कि ‘पाकिस्तान अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की दृढ़ता से रक्षा करेगा’ तथा वह भारत के साथ बातचीत जारी रखने और स्थिति को सामान्य बनाने के लिए तैयार है।
पाकिस्तानी विदेश मंत्री का यह अंतिम कथन गौर करने लायक है। उन्होंने ‘संघर्षविराम में चीन के महत्वपूर्ण योगदान’ के लिए धन्यवाद दिया। इसके मायने क्या ये हैं कि जबरदस्त मार पड़ने के बाद जिन्ना के देश के नेताओं ने बीजिंग के आगे भी हाथ—पैर जोड़े थे कि भारत से आपरेशन सिंदूर को रोकने के लिए कहे। क्या बीजिंग ने पाकिस्तान की गुहार को गंभीरता से लेते हुए ऐसा कुछ किया था? क्या वांग यी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघर्षविराम कराने का प्रयास किया था। भारत स्पष्ट बता चुका है कि बुरी तरह पिटने के बाद पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारत के डीजीएमओ से ‘हॉटलाइन’ पर बात करके तौबा की थी, उसके बाद ही भारत ने संघर्षविराम के लिए सहमति जताई थी।
आपरेशन सिंदूर के बाद डार की यह बीजिंग यात्रा जिन उद्देश्यों के लिए की गई थी, उसमें संभवत: उन्हें सफलता नहीं मिली। चीन के नेताओं ने उन्हें ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया कि वे इस द्विपक्षीय मामले में दखल देने को तैयार हैं। चीन के विदेश मंत्री ने संघर्षविराम और शांति के प्रयासों के प्रति समर्थन भर जताया। सूत्रों के अनुसार, चीन अपने प्यादे पाकिस्तान के कंधे पर हाथ रखे रहेगा लेकिन भारत के प्रति किसी प्रकार के उलटे बयान नहीं देखा। भूराजनीति में आज भारत का कद बढ़ चुका है। वह वैश्विक शक्तियों में से एक गिना जाने लगा है, और चीन यह जानता है।
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