भारत के आपरेशन सिंदूर में बुरी तरह से चोट खाए जिन्ना के देश का फौजी कमांडर खुद से और बड़ा पद ले ले तो समझ लेना चाहिए कि वह दुनिया की आंखों में धूल झोंककर खुद को जीता दिखाने का जुनून पाले हुए है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने खुद को अब जनरल से आगे जाते हुए फील्ड मार्शल के पद बैठा लिया है। कहने को अब वह जिन्ना के देश के इतिहास में इस पद को कब्जाने वाला दूसरा सैन्य अधिकारी बन गया है। उससे पहले, जनरल अयूब खान ने भी खुद को 1959 में इस पद पर बैठा लिया था। नाम के लोकतंत्र उस देश में राजनीतिक नहीं सैन्य अधिष्ठान ही दिशा और दशा तय करता है इसलिए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ या उनकी सरकार का किसी मामले में खास दखल नहीं रहता। इसीलिए यह कहना ज्यादा उचित है कि जनरल मुनीर ने आपरेशन सिंदूर में भारत की सेना से बुरी तरह मार खाने के बाद अपने यहां के इस्लामवादियों को भुलावे में रखने के लिए खुद को और बड़े पद पर बैठा लिया है। इसे वह भारत के विरुद्ध उसकी ‘बहादुरी का ईनाम’ कहकर प्रचारित कर रहा है, लेकिन असलियत पूरी दुनिया जानती है।
देश को झांसा देने के लिए पाकिस्तान सरकार ने प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक की जिसमें यह ‘निर्णय’ लिया। इस पदोन्नति को पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा और हाल के सैन्य संघर्ष में असीम मुनीर की ‘शानदार भूमिका’ को मान्यता के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी पाकिस्तान की पिटाई और तबाही का सच उजागर होने के बाद भी, जिन्ना के देश का बेशर्म दुष्प्रचार तंत्र मुनीर को हीरो दिखाने में जुटा हुआ है। इससे यह भी साफ होता है कि जिन्ना के देश के नीतिकार और सैन्य अधिकारियों का दिमाग कितने निचले स्तर का है।

पाकिस्तान के सर्वेसर्वा सैन्य अधिष्ठान में फील्ड मार्शल सर्वोच्च रैंक है। आमतौर पर यह पद युद्धकाल में उल्लेखनीय उपलब्धियों अथवा विशेष परिस्थितियों में दिया जाता है। यह पद पंच तारा रैंक के नाते जाना जाता है और इसे पाने या पाकिस्तान के संदर्भ में कहते तो, कब्जाने वाला अधिकारी कभी सेवानिवृत्त नहीं होता। जिन्ना के देश में यह पद राजनीतिक और सैन्य शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
जनरल मुनीर की पदोन्नति को स्वाभाविक तौर पर वहां सैन्य तख्तापलट की संभावनाओं से भी जोड़कर देखा जा रहा है। जैसा पहले बताया, पाकिस्तान में सेना का हर क्षेत्र में दखल कोई नई बात नहीं है। पहले भी अनेक बार सैन्य अधिकारियों ने चुनी हुई सरकार को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ली है। जनरल अयूब खान ने भी 1958 में राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा को हटाकर सत्ता कब्जाई थी, फिर खुद को फील्ड मार्शल घोषित कर दिया था।
हाल के भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिन तक चले सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम पर सहमति बनी थी। पाकिस्तान बुरी तरह चोट खाने के बाद भारत के आगे हाथ जोड़ने को मजबूर हुआ क्योंकि उसके अनेक सैन्य हवाईबेस ध्वस्त हो चुके थे और भारत की फौज लाहौर, कराची और इस्लामाबाद पर निशाने साध चुकी थी। लेकिन जिन्ना के बेशर्म देश के फौजी कमाडर ने इसे भी अपनी ‘जीत’ के रूप में प्रचारित किया। इसी आधार पर कमांडर जनरल मुनीर ने खुद को फील्ड मार्शल बना लिया।
लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जिन्ना के देश में एक बार फिर तख्तापलट होने जा रहा है? मुनीर की पदोन्नति को राजनीतिक संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है। पाकिस्तान में महंगाई, आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है। ऐसे में सेना का प्रभाव पहले से ज्यादा बढ़ता गया है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘असाधारण परिस्थितियों’ का हवाला देते हुए महत्वाकांक्षी जनरल असीम मुनीर, अब ‘फील्ड मार्शल’ मुनीर पाकिस्तान की राजनीतिक और सैन्य अधिष्ठानों की बागडोर अपने हाथ में लेकर प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और उनकी सरकार को चलता कर सकते हैं। मुनीर का यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीति, रणनीति और सैन्य शक्ति के संतुलन को प्रभावित कर सकता है। संभव है आने वाले दिनों में जिन्ना के देश में एक बड़ी उठापटक दिखाई दे।
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