गत दिनों सिरमौर, रीवा (म.प्र.) में 14वां राष्ट्रीय चिंतन यज्ञ व्याख्यानमाला आयोजित हुई। इसमें ‘सामाजिक समरसता के पुजारी: महात्मा फुले और डॉक्टर आंबेडकर’ विषय पर वक्ताओं ने विचार रखे।
मुख्य अतिथि और अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री ऋषि कुमार मिश्रा ने कहा कि मन में जो है उसे करना असली स्वतंत्रता है। स्वतंत्रता का मतलब कुछ भी बोलना नहीं, बल्कि नियमों का पालन करते हुए बोलना है।
क्या करने योग्य है और क्या करने योग्य नहीं है, उसको समझ कर बोलना स्वतंत्रता है। मुख्य वक्ता और प्रज्ञा प्रवाह के पूर्व अखिल भारतीय संयोजक डॉ. सदानंद सप्रे ने कहा कि महात्मा फुले ने अपनी पत्नी के माध्यम से बालिकाओं में शिक्षा की अलख जगाई।
विरोध की परवाह किए बिना शिक्षा देने का क्रम जारी रखा। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर के जीवन से शिक्षा मिलती है ऊंच-नीच की परवाह किए बिना अपना कर्म करते रहना चाहिए। सबको ईश्वर ने बनाया है। ऐसे में कैसे कोई ऊंचा-नीचा हो सकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता एस. डी. उपाध्याय ने की। इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ जन उपस्थित थे।
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