‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद बलूच लड़ाकों ने पाकिस्तानी फौज पर हमले तेज कर दिए हैं
बलूचिस्तान में ताबड़तोड़ हमले हो रहे हैं। चंद दिनों में 60 स्थानों पर 82 हमले हो चुके हैं। आजादी की सशस्त्र लड़ाई जहां भी लड़ी जाती है, उसमें शासन के खिलाफ हमलों में दो ही सूरत में अप्रत्याशित तेजी आती है। एक, अगर सत्ताधारी फौज ने कोई बड़ी कार्रवाई कर आंदोलकारियों को बड़ा नुकसान पहुंचाया हो या कोई ऐसा अमानवीय कृत्य किया हो, जिससे खून खौल उठे। दो, जब उन्हें कामयाबी की उम्मीद दिख रही हो, या लग रहा हो कि मनचाहा परिणाम पाने के लिहाज से समीकरण ठीक है। यहां दूसरा कारण ही सही लग रहा है।
बलूच आजादी की जंग क्यों लड़ रहे हैं? इसलिए कि भारत के बंटवारे और पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के पहले 11 अगस्त, 1947 को ही कलात रियासत (आज का बलूचिस्तान) के शासक मीर अहमद यार खान ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी थी। इसका आधार 1876 की वह संधि थी, जिसके तहत कलात को आंतरिक स्वायत्तता दी गई थी। इस घोषणा से पहले लॉर्ड माउंटबेटन की अध्यक्षता वाली बैठक में मोहम्मद अली जिन्ना ने कलात की आजादी का समर्थन किया था। लेकिन उसी जिन्ना ने बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा कर लिया। बलूचों की आजादी की लड़ाई की जड़ वहां है।
बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। यहां तांबा, सोना, मैंगनीज, लोहा, सोना आदि का विशाल भंडार है। कोयले से लेकर प्राकृतिक गैस के भंडार हैं, जिनका इस्तेमाल बिजली उत्पादन और अन्य औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यहां यूरेनियम के भी भंडार हैं। लेकिन इन खनिज संसाधनों की किस तरह लूटपाट की जा रही है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जाता सकता है कि एक अनुमान के मुताबिक बलूचिस्तान में चीनी कंपनियों द्वारा खनन से प्राप्त मुनाफे का मात्र 2 प्रतिशत बलूचिस्तान को मिलता है। शेष 48 प्रतिशत पाकिस्तान और 50 प्रतिशत हिस्सा चीनी कंपनियों के पास रहता है।
बलूचिस्तान की समृद्ध खनिज संपदा के बारे में अंग्रेजों ने विस्तार से लिखा है। बलूचिस्तान पर अपने गजेटियर में ब्रिटेन ने कहा है कि 1903 में बलूचिस्तान का कोयला उत्पादन 47,374 टन था। अंग्रेजों ने इसमें बाकायदा 1886 से कोयला उत्पादन (122 टन) का आंकड़ा दिया है। चौंकाने वाली बात यह है कि बलूचिस्तान में 1886 से ही पेट्रोलियम उत्पादन (27,700 गैलन) किया जा रहा है जो 1891 तक बढ़कर 40,465 गैलन हो गया था। आज भी पाकिस्तान पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के लिए बलूचिस्तान पर ही निर्भर है।
बलूचों में इस बात से नाराजगी है कि उनके प्राकृतिक संसाधनों को पाकिस्तान लूट रहा है। इसीलिए वे चीन के सिंक्यांग से बलूचिस्तान के ग्वादर को जोड़ने वाली सीपीईसी परियोजना का कड़ा विरोध करते हैं। उन्होंने परियोजना से जुड़े कितने ही चीनी इंजीनियरों और कर्मचारियों को मार डाला। बलोच नेशनल मूवमेंट (बीएलए) के सीनियर ज्वाइंट सेक्रेटरी कमाल बलोच कहते हैं, “प्राकृतिक संसाधनों की लूटपाट एक बड़ा मुद्दा है और निश्चित रूप से इसके बारे में फैसला करने का अधिकार हमारा ही है। लेकिन ऐसा नहीं कि इसके सुलझने से हमारा आंदोलन खत्म हो जाएगा। हमारे लिए मुख्य मुद्दा है जबरन थोपी गई गुलामी से आजाद होना। अगर प्राकृतिक संसाधनों का मुद्दा नहीं भी होता, तब भी आजादी का मुद्दा रहता क्योंकि हम आजाद थे। हमारी आजादी धोखे से चुराई गई और उसे वापस पाना हमारा अधिकार है और यह जंग हम पीढ़ियों से लड़ रहे हैं, लड़ते रहेंगे।”
पाकिस्तान सरकार ने जिस तरह से बलूचिस्तान में फौज के जरिये जुल्म ढाए हैं, उसके खिलाफ आम लोगों में उबाल है जो अक्सर दिखता रहता है। कभी क्वेटा में धरना-प्रदर्शन तो कभी लोगों को जबरन लापता कर दिए जाने के खिलाफ मानवाधिकार कार्यकर्ता महरंग बलोच की अगुआई में लॉन्ग मार्च। महरंग को पाकिस्तान ने जेल में बंद कर रखा है। गत 13 मई को उनकी जमानत पर बलूचिस्तान उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान जजों के सरकार परस्त रुख का विरोध करते हुए महरंग के वकील ने अदालत का बहिष्कार कर दिया। सुनवाई के दौरान महरंग के वकील साजिद तरीन ने आरोप लगाया कि खंडपीठ सरकार की ओर झुक रही है। उन्होंने कहा, ‘मेरा इस खंडपीठ में कोई यकीन नहीं। मैं इस ड्रामे का हिस्सा नहीं बन सकता, जहां इंसाफ से समझौता किया जा रहा हो।’ कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एजाज स्वाती और अमीर राणा की खंडपीठ ने जब इसपर अदालत की अवमानना की कार्यवाही की चेतावनी दी तो उनके वकील ने कह दिया- बिल्कुल कीजिए और फौरन कीजिए।
अब हालिया हमलों की बात। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सैनिकों पर हमले होते रहे हैं। लेकिन पहलगाम हमले के बाद भारत ने जिस तरह आतंकवादी ठिकानों और पाकिस्तान के हमलों के जवाब में उसके सैन्य ठिकानों पर हमले किए, उसके बाद से बलूचिस्तान में आजादी की लड़ाई लड़ रहे गुटों द्वारा फौज पर किए जाने वाले हमले बढ़ गए हैं। बीएलए प्रवक्ता जीयंद बलोच ने कहा कि ये हमले “ऑपरेशन हीरोफ” के दूसरे चरण के तहत पूरे बलूचिस्तान में किए जा रहे हैं। उनके कुछ खास हमले इस प्रकार हैं-
बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) के नेता डॉ. अल्लाह नजर बलोच ने कहा है कि हाल ही में ईरानी बलूचिस्तान के मगस क्षेत्र में पंजाबी मजदूरों की हत्या आईएसआई ने कराई। दुनियाभर में बलूच आंदोलन को मिल रहे समर्थन से पाकिस्तान बौखला गया है और इसीलिए उसने दुनिया को भ्रमित करने के लिए ईरान में इन हत्याओं को अंजाम दिया। ऐसी ही हरकतें अफगानिस्तान समेत अन्य जगहों पर भी कराई जा रही हैं।
एक वीडियो संदेश में डॉ. अल्लाह नजर बलोच ने कहा, ‘दशकों के अपने आंदोलन में हमने कभी आम पंजाबियों को निशाना नहीं बनाया। हमारा इतिहास, हमारी रवायत, हमारे नैतिक मूल्य, कौमी आजादी की हमारी जद्दोजहद और अंतरराष्ट्रीय कानून हमें बेकसूर लोगों को नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं देते। हमने केवल उन्हें ही निशाना बनाया है जो गद्दार हैं और जो पाकिस्तानी जासूस हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसा हर आंदोलन में होता है।’ इसके साथ ही उन्होंने बड़ी बेबाकी के साथ यह भी कहा कि ईरान में पंजाबियों की हत्या पर अपनी स्थिति साफ करने का यह मतलब नहीं कि ‘हमें पंजाबियों के साथ कोई हमदर्दी है। ऐसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि पंजाबियों ने बलोच मुल्क पर ढाए जा रहे कहर का समर्थन किया है।’
उन्होंने पाकिस्तान के इस दावे को भी खारिज किया कि बलूचों की जंग-ए-आजादी को भारत या ईरान का समर्थन प्राप्त है। वे बार-बार कहते हैं कि भारत, ईरान और अफगानिस्तान हमारी मदद कर रहे हैं। मैं कहता हूं- काश, यह सच होता! मैंने पहले भी कहा है और फिर कहूंगा- बलूच राष्ट्र के साथ खड़े होना ईरान, अफगानिस्तान और भारत की नैतिक जिम्मेदारी है।”
एक ओर पाकिस्तान दावा करता है कि ईरान, अफगानिस्तान और भारत बलूच लड़ाकों की मदद कर रहे हैं, दूसरी ओर ईरान में पंजाबी मजदूरों की हत्या में बलूचों का हाथ बताता है। जिनसे मदद ली, उसी पर वार! ऐसी फितरत तो पाकिस्तानियों की है। पहले आतंकवादी पैदा किए और फिर उन्हीं आतंकवादियों को ‘सौंपने’ के लिए तोलमोल की।
अल्लाह नजर कहते हैं, ‘‘पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने खुलेआम कहा है कि उनका देश 30 साल से प्रॉक्सी वार में शामिल है और उसने पश्चिम के इशारे पर यह गंदा खेल खेला। यह साबित करता है कि पाकिस्तान की सेना पैसे लेकर काम करने वाली संगठन है। ईरान और अफगानिस्तान में जब बलोचों के खिलाफ पाकिस्तान की कोई रणनीति काम नहीं आई तो उसने आईएसआईएस को सक्रिय किया। उसके जरिये वहां अपने लोगों और अफगानों, दोनों को निशाना बना रहा है।
ऐसा ही एक मामला मेहरिस्तान में हुआ था, जब डॉ. हामिदी को पकड़ा गया था। वे अपने ही लोगों को मारकर इसका आरोप बलूचों पर लगा रहे हैं। हमारे पास सबूत हैं चाहे बलूचिस्तान हो, अफगानिस्तान हो या फिर ईरान। हमने उनके कर्नल स्तर के अधिकारियों को पकड़ा है। उसने कबूला है कि उन्हें अपने ही लोगों को मारने और इसके लिए बलूचों को दोषी ठहराने का आदेश दिया गया।’’
अफगानिस्तान ने माना भी है कि उनके देश में पाकिस्तान आईएसआईएस को खड़ा कर रहा है। अमेरिका ने भी इसकी पुष्टि की है। डॉ. बलोच ने कहा कि आईएसआई न केवल ईरान और अफगानिस्तान, बल्कि पूरे यूरोप में बलूच शरणार्थियों को निशाना बना रही है। उन्होंने कहा, “हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील करते हैं कि वे पाकिस्तान की आपराधिक कार्रवाइयों को पहचानें और उसका जवाब दें। आईएसआई एक आतंकवादी संगठन है। हम संयुक्त राष्ट्र से इसके खिलाफ प्रतिबंध लगाने की अपील करते हैं।”
पाकिस्तान ने अपने किसी भी पड़ोसी देश के साथ मित्रवत संबंध नहीं रखे। उसकी फौज ने भारत, अफगानिस्तान या ईरान, हर जगह तनाव का माहौल खड़ा किया। वह जगह आतंकी हमले कराता है। डॉ. बलोच ने कहा, ‘‘पाकिस्तान की सेना हमारे टुकड़ों पर पलती है और हमारे ही ऊपर हमले करती है? हम पर जुल्म करती है? हजारों लोगों को मारकर गायब कर दिया जाता है। उनकी लाशें यहां-वहां मिलती हैं, सामूहिक कब्रों में मिलती हैं। निश्तर के अस्पताल की छत पर 400 लाशें कहां से आ गईं? ये हमारे लोगों की लाशें थीं।’’
बीएलएफ नेता ने कहा कि पाकिस्तान दावा करता है कि बलूच अंधराष्ट्रवादी और चरमपंथी हैं। लेकिन हम इन दोनों में से कोई नहीं। हम इंसानियत पसंद, आजादी पसंद लोग हैं जो केवल आजाद होने के अपने हक के लिए लड़ रहे हैं।
गत 30 अप्रैल बलूच नेशनल आर्मी (बीएनएम) ने ब्रिटेन की संसद में एक कार्यक्रम किया था ताकि बताया जा सके कि बलूचिस्तान में किस तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में जॉन मैकडॉनल भी शामिल हुए जो 1997 से हेस और हर्लिंगटन के सांसद हैं। वह मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर खुलकर पक्ष लेने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह ब्रिटेन का नैतिक दायित्व है कि वह पाकिस्तान को उसकी करनी के लिए जवाबदेह ठहराए। कार्यक्रम में बीएनएम ने जबरन लापता करने, ‘किल एंड डंप’ नीति, लोगों को मनमाने तरीके से हिरासत में लेने और राजनीतिक असहमति होने पर की जाने वाली क्रूर कार्रवाइयों के बारे में बताया था। खासतौर से, बलूच यकजहेती समिति (बीवाईसी) के सदस्यों और अन्य राजनीतिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ चलाए जा रहे दमनात्मक कदमों की ओर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया गया।
पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की कहानियां सुनकर सांसद जॉन मैकडॉनेल ने कहा, ‘‘मैं यहां मिली जानकारी का उपयोग ब्रिटेन की संसद में इसपर बहस शुरू करने के लिए करने जा रहा हूं। ऐसा इसलिए कि जो हुआ है, वह तो सामने आए ही, बलूच आबादी की रक्षा के प्रयास में अंतरराष्ट्रीय मंचों के माध्यम से पाकिस्तान पर दबाव भी डाला जा सके। हम चुप नहीं रह सकते। इसलिए हम सच्चाई को सामने लाने और पूरी दुनिया की जानकारी में यह सब लाने का हरसंभव प्रयास करेंगे। मेरा मानना है कि यूके की सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है और जवाबदेह ठहराने का अधिकार भी। अब हम हाउस ऑफ कॉमन्स में बहस के लिए दबाव डालेंगे। हम यह सुनिश्चित करने की हरसंभव कोशिश करेंगे कि पाकिस्तान में बुनियादी मानवीय और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा हो।’’
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