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दक्षिण अफ्रीका से अमेरिका आए श्वेत शरणार्थियों का स्वागत क्यों नहीं कर रहे डेमोक्रेट्स?

अमेरिका में डेमोक्रेट्स और लेफ्ट समुदाय ट्रम्प के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। उनके अनुसार श्वेत समुदाय कैसे पीड़ित हो सकता है?

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सोनाली मिश्रा

दक्षिण अफ्रीका से अमेरिका आए श्वेत शरणार्थियों को लेकर इस समय तमाम बातें हो रही हैं। कई लोग इसे ट्रम्प की राजनीति बता रहे हैं तो कई लोग ऐसा कह रहे हैं कि यह ट्रम्प की श्वेत श्रेष्ठता की अवधारणा को स्थापित करती है। अल जजीरा जैसे कई पोर्टल्स हैं, जो यह कह रहे हैं कि ट्रम्प जो कि आप्रवासियों के खिलाफ हैं और जो अब अमेरिका में कोई भी नया शरणार्थी नहीं चाहते हैं, वह अब दक्षिण अफ्रीका के श्वेत शरणार्थियों को लाकर यही स्थापित करना चाहते हैं कि श्वेत लोगों पर दक्षिण अफ्रीका में अत्याचार हो रहे हैं, और यह बहुत विवादास्पद दावा है।

अमेरिका में डेमोक्रेट्स और लेफ्ट समुदाय ट्रम्प के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। उनके अनुसार श्वेत समुदाय कैसे पीड़ित हो सकता है? अमेरिका में डेमक्रेटिक सीनेटर क्रिस वैन हॉलेन ने एक्स पर पोस्ट किया कि ट्रम्प और मस्क 60 श्वेत दक्षिण अफ़्रीकी लोगों को शरणार्थी का दर्जा देने वाले हैं – जिन्हें इसकी ज़रूरत नहीं है, जबकि ट्रम्प उन शरणार्थियों को जेल में बंद करके निर्वासित कर रहे हैं जो अन्य देशों में वास्तविक ख़तरों का सामना कर रहे हैं। यह इस अराजक प्रशासन द्वारा अपनाई जा रही बीमार वैश्विक रंगभेद नीति है।

मगर ऐसा नहीं है कि केवल वैन हॉलेन की ओर से ही यह प्रतिवाद आया हो। कुछ रिलीजियस संस्थानों जैसे एपिस्कोपल चर्च को भी इन श्वेत शरणार्थियों का आना रास नहीं आया है। इस निर्णय के विरोध में एपिस्कोपल चर्च ने घोषणा की कि वह आने वाले अफ़्रीकनर्स के कारण अमेरिका की सरकार के साथ अपनी लगभग चार दशक पुरानी साझेदारी को वित्तीय वर्ष के अंत तक समाप्त कर देगा।

चर्च ने इस संबंध में एक पत्र जारी किया और कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि ट्रम्प एक ओर तो शरणार्थियों के लिए इनकार कर रहे हैं और दूसरी ओर श्वेत शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोल रहे हैं। एक विशेष वर्ग के लिए ऐसी छूट गलत मानदंड स्थापित करेगी।

डेमोक्रेट्स इसे राजनीतिक कदम बता रहे हैं। उनका कहना है कि जहां वास्तविक शरणार्थियों के लिए ट्रम्प ने दरवाजे बंद कर दिए हैं तो वहीं एक विशेष नस्ल के लिए दरवाजे खोले जा रहे हैं, और यह मानवीयता नहीं बल्कि राजनीतिक कदम है।

अमेरिका की सीनेटर जेन शाहीन ने भी इसका विरोध करते हुए बयान जारी किया कि पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र ने पाया कि कोई भी दक्षिण अफ़्रीकी शरणार्थी का दर्जा पाने के योग्य नहीं था। इस प्रशासन द्वारा एक समूह को लाइन में सबसे आगे रखने का निर्णय स्पष्ट रूप से राजनीति से प्रेरित है और इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास है।

अल जजीरा ने भी लिखा है कि इस निर्णय को लेकर कई प्रश्न उठ रहे हैं। अल जजीरा ने दक्षिण अफ्रीका सरकार के हवाले से लिखा कि ट्रम्प का दावा कि Afrikaners के साथ अन्याय हो रहा है, पूरी तरह से झूठ है। यह ध्यान दिया जाए कि वे  सबसे अमीर और आर्थिक रूप से सबसे विशेषाधिकार वाले समुदाय रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति का कहना है कि श्वेत समुदाय के जो लोग वहां से जा रहे हैं, दरअसल वे कायर लोग हैं और वे परिवर्तन विरोधी लोग हैं। वे चाहते हैं कि देश पहले की स्थिति में वापस चला जाए। मैं ऐसा नहीं होने दूंगा।

जहां दक्षिण अफ्रीका की सरकार यह लगातार इनकार कर रही है कि वह श्वेत समुदाय के साथ अन्याय नहीं कर रही है, तो वहीं सोशल मीडिया और मीडिया में कई ऐसे समाचार आ रहे हैं, जो उस भयावह स्थिति को बता रहे हैं, जिसका सामना श्वेत लोग वहां पर कर रहे हैं। वर्ष 2020 के एक समाचार को साझा करते हुए एक व्यक्ति ने पोस्ट किया था कि कोई टिप्पणी नहीं। समाचार यह था कि 71 वर्षीय महिला तब सदमे से मर गई थीं, जब उन्होंने अपनी ही आंखों के सामने अपनी तीन पोतियों का बलात्कार देखा था। हालांकि उस समय इस घटना को महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों से जोड़कर देखा गया था।

कई कहानियां और घटनाएं मीडिया और सोशल मीडिया पर हैं और यह नियम भी है कि सरकार श्वेत किसानों की संपत्ति बिना किसी प्रक्रिया के ले सकती है और ऐसा दावा किया जा रहा है कि महज 7 या 8 प्रतिशत श्वेत किसानों के पास देश की 70% भूमि है। मगर कुछ लोगों का कहना है कि यह दावा गलत है। श्वेत किसानों के पास मात्र 22% भूमि है।

प्रश्न यही उठ रहा है कि डेमोक्रेट्स से लेकर अलजजीरा तक लोग केवल इन 59 लोगों के विरोध में क्यों हैं जबकि पूरे यूरोप और अमेरिका में शरणार्थी तो कई देशों से आ रहे हैं? लेफ्ट लिबरल लोग प्रश्न कर रहे हैं कि यह ट्रम्प की राजनीति है या फिर वास्तव में शरणार्थियों के प्रति चिंता?

 

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