भारत लंबे समय से आतंकवाद के खतरे का सामना कर रहा है, जिसके कारण न केवल कई लोगों की जान गई है, बल्कि आतंकवाद विरोधी तैयारियों पर होने वाले खर्च के रूप में भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है। साथ ही रोज रोज की आतंकवादी गतिविधियों के कारण अप्रत्यक्ष नुकसान भी होता है, क्योंकि आतंकवाद घरेलू और विदेशी दोनों तरह के निवेश को हतोत्साहित करता है, मूल्य श्रृंखला और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में व्यवधान डालता है। इसका सबसे बड़ा असर आम आदमी पर पड़ता है, जो करों में अधिक पैसा देता है राजस्व का बड़ा हिस्सा, विकास और नागरिक सुविधाओं से इतर आतंकवाद से निपटने में लग जाता है।
आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों में सबसे पहले स्थान पर हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान है। वैसे तो पाकिस्तान को कई देशों से समर्थन मिलता है, लेकिन आतंकवाद को बढ़ावा देने के प्राथमिक स्रोत के रूप में पाकिस्तान को आतंकवादियों के साथ मिलकर काम करने की महारत है; जहां तथाकथित लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार सेना के हाथों की कठपुतली है और सेना आतंकवादियों और आईएसआई के साथ मिलकर काम करती है। हालाँकि, पाकिस्तान यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह भी आतंकवाद का शिकार है और खुद को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध में एक प्रमुख खिलाड़ी कहता है, लेकिन विभिन्न खुफिया रिपोर्टों और वैश्विक निगरानीकर्ताओं ने पाकिस्तान की धरती को तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों से जुड़ा हुआ पाया है। इन संगठनों ने पड़ोसी देशों, खासकर भारत और अफगानिस्तान में हमले किए हैं, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता पैदा हुई है। पाकिस्तान लंबे समय से अपनी सीमाओं के भीतर और बाहर सक्रिय आतंकवादी समूहों को समर्थन और पनाह देने के लिए अंतरराष्ट्रीय जांच का सामना भी कर रहा है।
पाकिस्तान के दोहरे मानदंड उसके छद्म आतंकवाद विरोधी रुख से स्पष्ट हैं – कुछ समूहों पर नकेल कसना जबकि दूसरों को सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करना। इन दोहरे मानदंडों की सब दूर आलोचना होती है। वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एएटीएफ) ने भी पूर्व में पाकिस्तान को ग्रे सूची में रखा हुआ था। अर्थव्यवस्था और इसलिए आम जनता इसके सबसे बुरे शिकार हैं, क्योंकि अराजकता और सार्वजनिक व्यवस्था की कमी से प्रतिकूल वैश्विक धारणा बनती है, जो निश्चित रूप से पाकिस्तान के हितों के खिलाफ है, जिससे पाकिस्तान के व्यापार संबंधों, विदेशी निवेश की संभावनाओं और समग्र आर्थिक विकास में बाधा आती है। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद के सभी रूपों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं करता, तब तक उसकी वैश्विक छवि और आर्थिक क्षमता प्रभावित रहेगी।
जबकि भारत पिछले दशकों में निरंतर प्रगति के पथ पर है और इसकी प्रति व्यक्ति आय 2014 में केवल 1553 अमरीकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 2480 अमरीकी डॉलर हो गई है, उसी अवधि के दौरान पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय केवल 1266 अमरीकी डॉलर से बढ़कर 1365 अमरीकी डॉलर ही हुई है। 2013 में 1.71 पाकिस्तानी रुपए एक भारतीय रुपए के बराबर थे, लेकिन अब एक भारतीय रुपया 3.30 पाकिस्तानी रुपए के बराबर है। अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में पाकिस्तान की मुद्रा में भारी गिरावट आई है, जो दिसंबर 2013 में 94.21 पाकिस्तानी रुपए (एक अमेरिकी डॉलर के बराबर) से गिरकर 281 पाकिस्तानी रुपए (एक अमेरिकी डॉलर के बराबर) हो गई है।
आर्थिक रूप से बर्बाद पाकिस्तान, न केवल जीडीपी के मामले में बल्कि रक्षा तैयारियों के मामले में भी, भारत जैसी ताकतवर ताकत के साथ टिक नहीं सकता। हाल के वर्षों में, भारत कई युद्धक सामानों, खास तौर पर वायु रक्षा प्रणालियों, तोपों और मिसाइलों के लिए वैश्विक उत्पादन केंद्र के रूप में उभरा है।
हमें यह समझना चाहिए कि आतंकवाद के अपराधी कभी भी नहीं बच सकते, क्योंकि आतंकवाद जहां पैदा होता है, वहां विकास की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। हमने देखा है कि आतंकवाद को दिए जाने वाले समर्थन के कारण पाकिस्तान के लोगों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा है, क्योंकि आतंकवाद से पैदा हुए भय के माहौल से उद्योग और अर्थव्यवस्था सबसे अधिक प्रभावित हुई है। पिछले एक दशक से अधिक समय में भारत रक्षा उपकरणों के अधिग्रहण और विकास दोनों के मामले में अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने में जबरदस्त रूप से सक्षम रहा है। जहां भारत ने सबसे उन्नत लड़ाकू विमान और अन्य युद्धक उपकरण हासिल किए हैं, वहीं इसने कई तरह की मिसाइलों, वायु रक्षा प्रणालियों और बड़ी तोपों का स्वदेशी रूप से विकास किया है।
पाकिस्तान जैसे देशों को आतंकवाद को बढ़ावा देने और उसका समर्थन करके अपने विरोधियों को असहज करने की रणनीति के बारे में दोबारा सोचना होगा, हमें समझना चाहिए कि आतंकवाद और विकास एक दूसरे के विरोधी हैं, देश में कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करके ही विकास और समृद्धि आ सकती है, देश में कानून का शासन होने पर ही सच्चा लोकतंत्र प्राप्त किया जा सकता है, हमने देखा है कि पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान अधिक से अधिक निरंकुश राष्ट्र बनता जा रहा है, ज्यादातर सैन्य शासन के तहत, आतंकवादियों द्वारा नियंत्रित और समर्थित। अब समय आ गया है कि पाकिस्तानी लोग लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के आधार पर कानून का शासन सुनिश्चित करें। वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति में, आतंकवादियों के इशारे पर चलने वाली कमजोर सरकार को व्यापक युद्ध से मारना संभव नहीं हो सकता है, लेकिन, आर्थिक प्रतिबंध आतंकवाद के खिलाफ लोकप्रिय दबाव बनाने में काफी मददगार हो सकते हैं। भारत द्वारा पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को नष्ट करना, पाकिस्तान से आयात-निर्यात को रोकना, सिंधु जल संधि को स्थगित रखना, कूटनीतिक संबंध तोड़ना, पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों के खिलाफ़ वैश्विक जागरूकता पैदा करना, पाकिस्तान की मदद करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाना और कई अन्य गैर-सैन्य हस्तक्षेप भी आतंकवाद के खिलाफ़ भारत के अभियान का हिस्सा माने जाने चाहिए। ये इस धरती से आतंकवाद को खत्म करने के लिए ज़रूरी कदम हैं। पाकिस्तान के आतंकवाद को रोकने के लिए भारत द्वारा अपनाए गए इन उपायों से दूसरे देशों को भी सीख लेनी चाहिए। दुनिया को यह समझना होगा कि आतंकवाद और व्यापार समेत आर्थिक सहयोग एक साथ नहीं चल सकते।
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