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Operation Sindoor: पाकिस्तान से दोस्ती तुर्की को पड़ी भारी

पहलगांव आतंकी हमले के बाद तुर्की के पाकिस्तान समर्थन से भारतीयों में आक्रोश। पर्यटकों ने तुर्की की यात्रा रद्द की, व्यापारियों ने आयात रोका। तुर्की की अर्थव्यवस्था को ₹10000 करोड़ से अधिक का नुकसान संभव।

by अभय कुमार
May 16, 2025, 01:34 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
Recep type Ardogan turkiye Pakistan

तुर्की के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री (दाएं से)

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पहलगांव में हुए खूनी आतंकी हमले के पश्चात तुर्की पाकिस्तान के पाले में जाकर खड़ा हो गया है। तुर्की में बने ड्रोन से पाकिस्तान ने भारतीय नागरिकों को निशाना बनाने का भरसक प्रयास किया जिसमें वो पूरी तरह विफल रहा। पहलगांव आतंकी हमले का बदला लेने के लिए भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में तुर्की और उसके राष्ट्रपति एर्दोगान ने व्यक्तिगत तौर पाकिस्तान को हर तरह से आर्थिक, सामरिक और नैतिक मदद पहुंचाया। लेकिन भारत की जनता ने पाकिस्तान को तो उसी की भाषा में मुहतोड़ जवाब दिया।पाकिस्तान का हिसाब करने के बाद अब तुर्की की बारी है।

पूरी इस्लामी दुनिया का खलीफा बनने मंसूबा पाले तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोगान को अब ₹10000 करोड़ से अधिक के इंडियन सर्जिकल स्ट्राइक का सामना करना पड़ेगा। आर्थिक तंगी से गुजर रहे तुर्की के लिए यह बहुत ही परेशानी का सबब लेकर आने वाला है। भारत के लोगों में तुर्की के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है। भारत से तुर्की जाने वाले फ्लाइट का टिकट धड़ल्ले से रद्द कर रहे हैं। तुर्की के होटल में बुकिंग रद्द हो रही हैं। भारतीयों के इस कदम से तुर्की की अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात लगता दिख रहा है।

भारतीयों ने पाकिस्तान को खुला समर्थन देने वाले तुर्की की नस को दबाना शुरू कर दिया है। जिन भारतीयों ने तुर्की की यात्रा के लिए टिकट बुक किए थे, उन्होंने अपने टिकट रद्द करने शुरू कर दिए हैं। यह छोटी बात नहीं है। वर्तमान में भारतीय पर्यटकों को केवल एक साधारण यात्री मानना एक बड़ी नासमझी है, क्योंकि वैश्विक पर्यटन उद्योग में भारतीय पर्यटक एक आर्थिक स्तंभ बन चुके हैं। साल 2023 में भारतीय पर्यटकों ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में घूमने में लगभग 20 अरब डॉलर खर्च किए हैं। ऐसे में अगर भारतीय पर्यटक किसी देश का बहिष्कार करते हैं तो उस देश के लिए बड़ा नुकसान है।

भारतीय पर्यटकों के बहिष्कार से तुर्की  को होने वाले नुकसान के संदर्भ में जाने माने टूर एंड ट्रैवल एप मेक माय ट्रिप के मुताबिक, बीते एक हफ्ते में भारतीय यात्रियों की तुर्की के लिए बुकिंग में 60% की गिरावट आई है। वहीं इसी दौरान तुर्की के टिकट कैंसिल होने में 250% तक की बढ़ोतरी हुई है। यहां तक कि खुद मेक माय ट्रिप अपने सभी ग्राहकों को तुर्की की गैर जरूरी यात्रा ना करने की सलाह दे रहा है। मेक माय ट्रिप कंपनी ने तुर्की की यात्रा के लिए चलाए जाने वाले प्रमोशनल विज्ञापन और सभी ऑफर पहले ही बंद कर दिए हैं। इन कदमों से तुर्की को काफी नुकसान का सामना करना पड़ेगा। भारतीय पर्यटकों से तुर्की को कितना फायदा हो रहा है इसका अंदाज़ा इस तथ्य से है कि पिछले साल करीब 3.50 लाख भारतीयों ने तुर्की की यात्रा की थी। तुर्की घूमने वाले भारतीयों की संख्या हर साल बढ़ रही थी।

मिसाल के तौर पर वर्ष 2023 की तुलना में 2024 में 21% पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई थी। प्रत्येक भारतीय पर्यटक तुर्की में औसतन ₹ 85000 खर्च करता है। अब अगर भारतीय नागरिक पूरी तरह से तुर्की जाना बंद कर देते हैं तो इससे उस देश को करीब ₹3000 करोड़ का नुकसान हो सकता है। इतना ही नहीं बल्कि, बड़ी संख्या में भारतीयों में डेस्टिनेशन वेडिंग का चलन बढ़ रहा है।0 डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए भी भारतीय तुर्की जाते हैं और एक भारतीय शादी में औसतन लगभग ₹ 5 करोड़ से ₹ 15  तक खर्च होते हैं। डेस्टिनेशन वेडिंग बंद होने से भी तुर्की को भारी नुकसान होगा।

तुर्की की अर्थव्यवस्था के लिए पर्यटन काफी महत्वपूर्ण है और तुर्की की कुल जीडीपी में पर्यटन का 12% का योगदान है। दूसरे शब्दों में पाकिस्तान को तुर्की ने ड्रोन बेचकर जितने धन नहीं कमाए होंगे उससे कई गुना पैसा भारतीय पर्यटकों के कारण घाटा लगने वाला हैं. तुर्की में पर्यटन रोज़गार का भी बड़ा माध्यम भी है। सिर्फ पर्यटन ही नहीं बल्कि अन्य कई क्षेत्रों में भी तुर्की के खिलाफ भारतीय जनमानस में आक्रोश का असर होता दिख रहा है। भारतीय कारोबारियों से लेकर व्यापारी तक तुर्की के सामान का बहिष्कार कर रहे है। तुर्की ने जो भारत विरोधी गतिविधियां और पाकिस्तान के हक में जो भी कदम उठाए हैं उससे भारतीय कारोबारियों ने तुर्की से आयात होने वाले सामानों पर रोक लगाने का फैसला लिया है। इन सामानों में मुख्यतः  शामिल  हैं सेब , संगमरमर और ड्राई फ्रूट्स शामिल हैं।

यह सर्वविदित हैं कि तुर्की पाकिस्तान का मित्र राष्ट्र हैं,  लेकिन मित्र राष्ट्र होने का कदापि यह मतलब नहीं होता कि आप गलत कार्य में भी उसका साथ दे। लेकिन तुर्की  ने पाकिस्तान के आतंकी इरादे बेनकाब होने के बाद भी उसका साथ नहीं छोड़ा और ना ही तटस्थ होने की कोशिश की जो कि वो आसानी से कर सकता था। आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच तुर्की ने कुछ ऐसे कदम लिए  जिसके कारण भारतीयों में तुर्की के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा। पहलगांव हमले के कुछ दिन बाद टर्किश एयरफोर्स का C-130 जेट पाकिस्तान में उतरा  हालांकि तुर्की ने इसको  ईंधन भरने मात्र बोलकर मामले को दबाने की कोशिश की। इसके अलावे ऑपरेशन सिंदूर से पहले तुर्की का एक युद्धपोत नेवल शिप भी कराची पोर्ट पर था जिसे तुर्की ने आपसी सद्भाव बताकर ख़ारिज कर दिया।

हालांकि, पाकिस्तानी मीडिया ने यह दावा किया था कि युद्धपोत में पाकिस्तान के लिए हथियार भेजे गए हैं। लेकिन तुर्की के रक्षा मंत्रालय ने इन मीडिया रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया था। कई सारी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत के खिलाफ हमलों के लिए तुर्की  ने पाकिस्तान को  350  से  अधिक ड्रोन  भेजे थे। आरोप तो यह भी  है की इन ड्रोन  को ऑपरेट करने के लिए मिलिट्री ऑपरेटर भी भेजे थे। यहां तक कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान तुर्की उन चुनिंदा देशों में शामिल था जो पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा. यहां तक कि ज्यादातर मुस्लिम देशों ने पाकिस्तान के प्रति समर्थन से परहेज किया था।  लेकिन तुर्की  पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा. भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद   तुर्की  के राष्ट्रपति  ने पाकिस्तान के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. संघर्ष समाप्त समाप्त हो जाने के बाद भी तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा कि तुर्की  पाकिस्तान का समर्थन करता रहेगा। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री  शहबाज शरीफ को अपना भाई तक बता दिया। तुर्की नाटो देश हैं अतएव पाकिस्तान को इस देश से नाहक में कई उमीदे पाल रखा है।

तुर्की और भारत के रिश्ते के संबंध की बात करे तो  तुर्की में ऑटोमन  साम्राज्य की सत्ता के पतन के बाद 1923 में तुर्की के महान नेता मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने अपने देश में धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की। यह कदम पुरे विश्व को प्रभावित किया और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। जब नेहरू आजादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने धर्मनिरपेक्ष तुर्की को खास तरजीह दी। लेकिन तुर्की ने भारत का कभी भी  परवाह नहीं किया. शीत युद्ध के दौरान तुर्की अमेरिका के खेमे में शामिल हो गया और उसकी भारत से दूरी लगातार बढ़ती ही गई। यहां तक कि  1965 और 1971 के युद्धों में तुर्की ने पाकिस्तान का  खुलकर समर्थन किया। इसके बाद  तुर्की ने साइपरस पर हमला कर दिया तो भारत ने साइप्रस का साथ दिया क्योंकि साइप्रस के  राष्ट्रपति  आर्कबिशप मकारियोस गुटनिरपेक्ष आंदोलन के एक बहुत बड़े नेता थे।

1984 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से तुर्की के साथ संबंधों को बेहतर करने की कई कोशिशें हुई। नरसिम्हा राव भी रिश्ते बेहतर करने के इरादे से तुर्की गए थे। वहीं  2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई  तुर्की के दौरे पर गए।  इसके बाद  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुर्की की  कोरोना महामारी और भूकंप के समय काफी सहायता भेजी। तुर्की में 2023 में भयंकर भूकंप आया था जिसमे हजारों हजार लोग मर गए थे। तब भारत मदद करने वाले देशों में अग्रणी था। भारत ने ऑपरेशन दोस्त चलाकर तुर्की -के लोगों की मदद की थी। ऑपरेशन दोस्त के तहत भारत ने तुर्की को  बड़ी तादाद में राहत सामग्री भेजकर लोगों की जान बचाई। इस ऑपरेशन के तहत एनडीआरएफ की दो टीमें तुर्की भेजी गई जिसमें से एक डॉग स्क्वायड भी शामिल था। भारत की रेस्क्यू  टीम ने मलबे में दबे लोगों को खोजने, उन्हें बाहर निकालने उनके इलाज करने में बहुत अहम मदद पहुंचाया था। ऑपरेशन दोस्त के तहत भारत  में 30 बिस्तरों वाला एक मोबाइल अस्पताल, मेडिकल सामग्री सहित सभी जरूरी सामान तुर्की  भिजवाया था।

तुर्की में पेट्रोलियम की कमी है। इसलिए तुर्की परमाणु बिजली बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए उसके पास  प्रचुर  मात्रा में थोरियम का  भंडार हैं जो भारत के केरल में भी हैं। लेकिन तुर्की पास इस थोरियम से बिजली बनाने की टेक्नोलॉजी नहीं है। तुर्की चाहता है कि भारत उसे थोरियम से बिजली बनाने की टेक्नोलॉजी दे। मगर भारत ने इससे इनकार कर दिया। इस कारण भी  तुर्की भारत से नाराज है।

दूसरी तरफ  तुर्की  और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत पुराने हैं। शीत युद्ध के दौरान  भारत और तुर्की  की दूरी बढ़ती चली गई। शीत युद्ध में तुर्की और  पाकिस्तान दोनों अमेरिका खेमे  के महत्वपूर्ण सदस्य थे। लेकिन इन रिश्तों की खास गहराई एर्दोगान के सत्ता में आने के बाद आई। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान की नज़र 21वीं सदी का खलीफा बनना चाहते हैं। वह मुस्लिम जगत का नेता बनने का मंसूबा पाले बैठे हैं। इस मंसूबे को पूरा करने के लिए उन्हें 25 करोड़ मुस्लिम आबादी वाले देश पाकिस्तान की खास जरूरत है। एर्दोगान तुर्की के मुस्लिम देशों का एक नेता और क्षेत्रीय शक्ति बनने की भी कोशिश में लगातार लगे हुए हैं।  इस मंसूबे की पूर्ति के लिए वो मुस्लिम समुदायों से जुड़े विवादास्पद मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाते रहते हैं, जिनमें फिलिस्तीनी संकट और कश्मीर का मुद्दा प्रमुख है। 2019 अगस्त  को जब भारत ने जम्मू कश्मीर से धारा 370  हटाई तो  एर्दोगान   ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में इसका  विरोध किया और कश्मीर के मुद्दे का राजनीतिकरण किया। वहीं अर्दन  लगभग दर्ज़नो  बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं।  इस साल फरवरी में उनका हालिया पाकिस्तानी दौरा था और उन्होंने पाकिस्तान को अपना दूसरा घर बताया था। इस दौरान दोनों देशों ने समझौता  किया और  $ 5  बिलियन डॉलर व्यापार के लक्ष्य रखा। 2017 से तुर्की ने पाकिस्तान में $ 1 अरब डॉलर का निवेश  किया है। तुर्की  पाकिस्तान में कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है।  दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता  को लेकर भी लगातार  चर्चा चल रही है। अगर दोनों देशों के बीच यह समझौता हो जाता है तो यह जो द्विपक्षीय व्यापार है वह $ 90  करोड़ से बढ़कर $ 1  अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। तुर्की ने पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्धो को नए उच्चै पर पहुंचने के लिए अनेको कदम लेने को उत्सुक दिख रहा हैं जिनमें आधारभूत संरचना में बड़े पैमाने पर निवेश शामिल है।

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