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भारतीय पंचांग: ब्रह्मांडीय काल चक्र और सांस्कृतिक चेतना का आधार

भारतीय पंचांग की विस्तृत जानकारी, तिथि, नक्षत्र, योग, करण और ग्रहों की गणना से लेकर ब्रह्मांडीय काल चक्र तक। जानें कैसे पंचांग प्रकृति और समय के साथ कार्यों को सुगम बनाता है।

Published by
कृष्णा वशिष्ठ

भारतीय पंचांग का दृष्टिकोण तब से है जब दूसरे देशों के लोगों का वैज्ञानिकता में कोई अस्तित्व नहीं था,और भारत के ऋषि ब्रह्मांड के ग्रह नक्षत्रों की गणना कर चुके थे। ग्रहण कब लगेगा, भूकम्प कब आ सकता है, इन सब विषयों पर अध्ययन हुआ। जनमानस के कल्याण हेतु भारतीय पंचांग की दृष्टि वर्षों से चली आ रही है। तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण इन पांच चीजों से मिलकर पंचांग बनता है।

तिथियां

  • ज्योतिष में पन्द्रह तिथियां होती है, शुक्ल पक्ष में पंद्रहवीं तिथी पूर्णिमा व कृष्ण पक्ष में पन्द्रहवीं तिथि अमावस्या होती है।
  • पन्द्रह तिथियों कों पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है।
  • प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी, नंदा तिथी कहलाती है। द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी भद्रा, तिथी कहलाती हैं।
  • तृतीया,अष्टमी, त्रयोदशी जया तिथि कहलाती है।
  • चतुर्थी ,नवमी, चतुर्दशी रिक्ता तिथि कहलाती हैं ।
  • पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस्या पूर्णा तिथि कहलाती हैं
  • नन्दा, जया, पूर्णा इनके नाम से ही पता चलता है कि नन्दा आनन्द को‌ देने वाली,जया विजय को देने वाली, पूर्णा कार्य को पूर्ण कराने वाली होती है ।

इसलिए ये शुभ तिथियां मानी जाती है, जिनमें कार्य करना शुभ होता है। प्रत्येक तिथि के स्वामी होते हैं, जो देव स्वामी होता है, वह उसका प्रतिनिधित्व करता हैं। नन्दा, जया, पूर्णा तिथि में कार्य करने से कार्य सकुशल पूर्ण होता है। रिक्ता, भद्रा तिथि में कार्य करने से कार्य में विघ्न आते हैं। इसलिए शुभ तिथियों में शुभ कार्यों का करना उचित रहता है।

नक्षत्र

सत्ताइस नक्षत्र होते हैं, सत्ताईस नक्षत्रों के स्वामी नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं,और नक्षत्र देव नक्षत्रों के अधिष्ठाता देव कहलाते हैं।

नक्षत्र        स्वामी ग्रह      नक्षत्र देवता

अश्विनी        केतु           अश्विनी कुमार

भरणी          शुक्र            काल

कृत्तिका         सूर्य             अग्नि

रोहिणी       चंद्रमा            ब्रह्मा

मृगशीर्ष      मंगल            चंद्रमा

आर्द्रा            राहु             रुद्र

पुनर्वसु        बृहस्पति        अदिती

पुष्य              शनि           बृहस्पति

आश्लेषा         बुध           सर्प

मघा               केतु           पितृ

पूर्वा फाल्गुनी   शुक्र          भग

उत्तरा फाल्गुनी  सूर्य          अर्यमा

 

हस्त             चंद्रमा             सूर्य

चित्रा            मंगल            विश्वकर्मा

स्वाति           राहु             पवन

विशाखा      बृहस्पति       शुक्राग्नि

अनुराधा       शनि।             मित्र

ज्येष्ठा           बुध              इंद्र

मूल              केतु             निऋति

पूर्वाषाढ़ा         शुक्र           जल

उत्तराषाढ़ा       सूर्य     ‌‌    विश्वदेव

श्रवण          चंद्रमा।            विष्णु

धनिष्ठा        मंगल।              वसु

शतभिषा        राहु।              वरुण

पूर्वाभाद्रपद    बृहस्पति।       अजैकपाद

उत्तराभाद्रपद     शनि          अहिर्बुधन्य

रेवती।               बुध           पूषा

 

अभिजीत नक्षत्र को अठ्ठाईसवां नक्षत्र माना है, इसके स्वामी ब्रम्हा व स्वामी बुध है़ं। इसी प्रकार से वार, योग, करण के अपने स्वामी होते हैं और वह उनका प्रतिनिधित्व करते हैं। भारतीय पंचांग के वार्षिक चक्र के अनुसार, बारह महीने होते हैं, और इन बारह महीनों की अपनी अपनी विविधता है।

पहले मास की पूर्णिमा के दिन चित्रा नक्षत्र में चंद्र के रहने के कारण इसका नाम चैत्र होता है, इसी प्रकार पूर्णिमा के चंद्र नक्षत्रानुसार अन्य मासों का नाम होता है।

पंचांग के दृष्टिकोण के अनुसार हर वर्ष का राजा व मन्त्री होते हैं, जो पूरे वर्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। जो ग्रह राजा, मन्त्री होंगे उन्हीं के स्वभावानुसार उस वर्ष में कार्य घटित होंगे। ऋतुएं के विषय में भी पंचांगनुसार दृष्टिकोण मिलता है। जब सूर्य मीन,मेष  में रहता है,तब वसंत ऋतु रहती है।

वृषभ, मिथुन के सूर्य में ग्रीष्म ऋतु, कर्क, सिंह के सूर्य में वर्षा ऋतु, कन्या, तुला के सूर्य में शरद ऋतु, वृश्चिक,धनु के सूर्य में हेमंत ऋतु कुम्भ और मकर के सूर्य में शिशिर ऋतु होती है।

दिन से लेकर महीने तक महीने से लेकर वर्ष तक पंचांग का दृष्टिकोण वैज्ञानिक मिलता है।

इसलिए पंचांग की गणना कितनी विस्तृत और सटीक है,और हो भी क्यूं न, क्योंकि जब पंचांग बनाते हैं, तो उसमें ग्रहों के भगण की गणना को लेते हैं, उस गणना के आधार पर विस्तृत रूप से पंचांग का निर्माण होता है।

भगण को समझने से पहले, हम जानेंगे कि कल्प का मनुष्य वर्षमान कितना है।

क्योंकि यहां पर भगणों की संख्या एक कल्प है।

कलियुग से ब्रह्म जी के दिन तक

कलियुग मान- 432000

द्वापर का मान-864000

त्रेता का मान-1296000

कृतयुग का मान -1728000

जब चारों युग पूर्ण हो जाते हैं, तब एक महायुग होता है ।

एक महायुग का मान 43200000 है, इस प्रकार से

जब एक महायुग का चक्कर 71 बार हो जाता है, तब वह एक मन्वंतर होता है।

एक मन्वंतर का मान-306,720,000 वर्ष

भागवत पुराण के अनुसार चौदह मन्वन्तर होते हैं।

(1)स्वायंभु (2)स्वारोचिष (3)औत्तमी(4)तामस(5)रैवत(6)

चाक्षुस(7)वैवस्वत(8)सावर्णि(9)दक्ष सावर्णि(10)ब्रम्ह सावर्णि

(11)धर्म सावर्णि (12)रुद्र सावर्णि(13)देव सावर्णि (14)इन्द्र सावर्णि

इन चौदह मन्वन्तरों का मान- 4294080000 वर्ष

इन चौदह मन्वन्तरों में पन्द्रह सन्धि होती है, कृतयुग के

मान के बराबर एक सन्धि होती है।

कृतयुग में 15 से गुणा करने पर संधि मान निकलता है

4320000 × 15 = 25,920,000

पन्द्रह संधि छ: युगों के बराबर होती हैं और चौदह मन्वन्तर में 994 महायुग होते हैं।

994 महायुग में 6 संधि जोड़ने से 1 कल्प होता है।

1 कल्प को वर्षों में परिवर्तित करने पर 4,320,000,000 चार अरब बत्तीस करोड़ हुए इतना ब्रह्मा जी का एक दिन होता है, इस संख्या में ये ही वर्ष मान जोड़ने पर

ब्रह्मा जी की रात्रि व दिन होता है।

ब्रह्मा जी की रात्रि होने से पहले प्रलय होता है,उस प्रलय में

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड लय हो जाता है।

फिर जब ब्रह्मा जी का दिन प्रारम्भ होता है तब ब्रह्मा जी फिर से सृष्टि की रचना करते हैं।

भगण

जब ग्रह 360 अंश का चक्कर पूर्ण कर लेता है, यानि कि अश्विनी नक्षत्र से लेकर रेवती नक्षत्र तक की यात्रा पूर्ण कर लेता है, तब उसे एक भगण कहते हैं, ऐसे मिलाकर एक कल्प में सूर्यादि ग्रह कई चक्कर लगा लेते हैं।

एक कल्प में सूर्य की भगण संख्या 4320000000

शुक्र और बुध की सूर्य के समान ही भगण संख्या मानी गयी है चंद्र की भगण संख्या 57753300000

मंगल  की भगण संख्या 2296828522

गुरु की भगण संख्या 364226455

शनि की भगण संख्या 146567298

भगणों को मूल श्रोत के रूप में लिया जाता है, फिर इसमें अन्य गणितीय पद्धति के विषयों को जोड़ा जाता है।

सिंधु से बिंदु तक

ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को की, और इसी समय प्रकृति का नया रूप निखरता है।

इसी कारण हमारा नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है।

पंचांग बड़े स्तर से लेकर सूक्ष्म स्तर तक के समय चक्र का समावेश रखता है।

क्योंकि पंचांग ब्रम्हांडीय काल चक्र के आधार पर चलता है, प्रकृति के सिद्धांतों से जुड़कर चलता है।

इसलिए पंचांग में सभी विषयों का समायोजन होता है कि आपको कौन सा कार्य कब करना उचित रहेगा।

क्योंकि हमारा शरीर, मस्तिष्क सब प्रकृति से ही है, इसलिए जब हम प्रकृति से जुड़कर चलेंगे तो न शारीरिक पीड़ा होगी और नहीं कार्य में विघ्न उत्पन्न होंगे।

क्योंकि कार्य समय चक्र और प्रकृति में निहित है और समय चक्र एक स्थिति में नहीं रहता है‌।

क्योंकि समय चक्र चलायमान है, तो जो कार्य उस समय चक्र में करने योग्य है वहीं कार्य किया जायेगा

जब तक ग्रह और नक्षत्र उस कार्ये के अनुरूप की स्थिति में न जाये।

इसलिए पंचांग में फसल बोने का, घर बनाने का यानिकी सब कार्यों का एक विशिष्ट मुहूर्त होता है।

उस मुहूर्त में कार्य करने से कार्य सुचारू रूप से होता है।

पंचांग का सूक्ष्म दृष्टिकोण जो कि हर दिशा में सुगम्य मार्ग दिखाता है।

इसलिए पंचांग पद्धति भारतीय सांस्कृतिक चेतना का मूल आधार है ।

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