अरूणाचल प्रदेश

भारत के खिलाफ चीन की नई चाल! : अरुणाचल प्रदेश में बदले 27 जगहों के नाम, जानिए ड्रैगन की शरारत?

ऑपरेशन सिंदूर के बाद, चीन के पाकिस्तान के समर्थन में खुलकर सामने आने के साथ, अब यह स्पष्ट है कि भारत को हर समय दो मोर्चों पर युद्ध या संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा।

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लेफ्टिनेंट जनरल एम के दास,पीवीएसएम, बार टू एसएम, वीएसएम ( सेवानिवृत)

चीन ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने की एक और नौटंकी की। ऑपरेशन सिंदूर में अपने सहयोगी पाकिस्तान को भारत के हाथों करारी शिकस्त मिलने के ठीक बाद चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश की 27 जगहों के नाम बदलने की शरारत की। चीन के कदम का समय महत्वपूर्ण है। चीनी हथियार और उपकरण, विशेष रूप से पाकिस्तान को आपूर्ति की गई वायु रक्षा प्रणाली भारतीय हमले के सामने बुरी तरह विफल रही। नतीजतन, चीनी शेयर बाजार के रक्षा शेयरों में भारी गिरावट आई। भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन के दावों को एक बार फिर खारिज किया। लेकिन, हमें आगे कुछ और सख्त कदम उठाने पड़ेंगे।

12 मई को चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 27 काउंटी प्रशासनिक केंद्रों, गांवों, टाउनशिपों, पर्वत चोटियों और नदियों/झीलों के नाम तिब्बती या चीनी अक्षरों में बदलने की अपनी बेतुकी रणनीति जारी रखी। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत के रूप में संदर्भित करता है और इसे ‘ज़ंगान’ कहता है। चीन अरुणाचल प्रदेश में पहले भी यानी साल 2017, 2021 और 2023 में नाम बदलने की ऐसी कवायद कर चुका है। ऐसा ही अंतिम नामकरण अभ्यास मार्च 2024 में हुआ था। चीन अरुणाचल प्रदेश को नए नामों के साथ मानचित्र भी जारी करता है ताकि राज्य पर अपना दावा मजबूत किया जा सके।

भारत के उत्तर पूर्व में स्थित, अरुणाचल प्रदेश सात बहनों (Seven Sisters) के क्षेत्रफल के मामले में सबसे बड़ा राज्य है जो उत्तर पूर्व क्षेत्र (North East Region) बनाते हैं. लेकिन देश में अरुणाचल प्रदेश का सबसे कम जनसंख्या घनत्व है। इससे पहले यह नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (NEFA) का हिस्सा था और यह फरवरी 1987 में एक पूर्ण राज्य बन गया। यह पश्चिम में भूटान, पूर्व में म्यांमार और दक्षिण में असम और नागालैंड राज्यों से सीमा साझा करता है।

अरुणाचल प्रदेश का रणनीतिक महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region) के साथ 1129 किलोमीटर की सीमा साझा करता है। इस सीमा को 1914 में ब्रिटिश भारत के दौरान मैकमोहन रेखा द्वारा सीमांकित किया गया था और अब यह चीन द्वारा विवादित है। इसलिए, इस सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control, LAC) कहा जाता है। चीन के साथ समूची एलएसी 3488 किलोमीटर लंबी है, जो पश्चिम में अक्साई चिन से लेकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई है। यह ध्यान देना चाहिए कि चीन अभी भी लद्दाख के अक्साई चिन में 15,500 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र को नियंत्रित करता है, जिसे उसने 1962 के युद्ध के बाद कब्जा कर लिया था।

अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावों को लेकर चीन लगातार भारत को परेशान करता रहता है। 1959 में दलाई लामा को शरण देने के ठीक बाद, उसके बाद 1962 का युद्ध हुआ। भारत उस समय एक कमजोर अर्थव्यवस्था की वजह से चीन से लोहा नहीं ले पाया। समय-समय पर चीन के साथ कुछ विवाद हुए। सिक्किम के नाथू ला में 1967 में दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध और 1987 में अरुणाचल प्रदेश में सोमदुरोंग चू गतिरोध हुआ। इसके बाद वर्ष 2017 में भारत-चीन-भूटान तिराहे पर डोकलाम में 72 दिनों तक गतिरोध चला, जहां चीन को पीछे हटना पड़ा। पूर्वी लद्दाख में 15-16 जून 2020 को गलवान में हुई हिंसक झड़प के बाद भारत और चीन के बीच संबंधों में एक अलग ही तल्खी दिखी है।  दोनों पक्षों में बड़े पैमाने पर सैनिकों का जमावड़ा और बुनियादी ढांचे के निर्माण के बाद अब भी क्षेत्र में असहज स्थिति बनी हुई है।

आखिर अरुणाचल में चीन का वास्तविक हित क्या है? एक कारण तवांग मठ का महत्व है जो दुनिया में तिब्बती बौद्ध धर्म का दूसरा सबसे बड़ा मठ है। दूसरा, विवादित अक्साई चिन में उसकी बड़ी दिलचस्पी है, जहां से वह शिनजियांग को तिब्बत से जोड़ने के लिए एलएसी के करीब एक राजमार्ग का निर्माण कर रहा है। इस मार्ग से उसके सैनिकों और रसद के प्रवाह में मदद मिलेगी। एक कारण जिसका सामान्यत उल्लेख नहीं किया गया है वह हाइड्रोकार्बन सहित विशाल जल और खनिज संसाधन हैं जो अरुणाचल प्रदेश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। अंततः अरुणाचल प्रदेश राज्य भारत के साथ सीमा विवाद पर बातचीत करते समय चीन के लिए एक कूटनीतिक हथकंडा है।

लेकिन इस क्षेत्र के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंधों के बारे में बात क्यों नहीं होती है। यहाँ पर भारतीय इतिहास की कम जानकारी हमारे सही दावों को चोट पहुंचाता है। ऐसा माना जाता है कि अरुणाचल का उल्लेख महाभारत और कालिका पुराण में मिलता है। ब्रिटिश शासन के दौरान, यह असम का हिस्सा था, जो भारत के उत्तर पूर्व का  मातृ राज्य था। आजादी के बाद, इसे नेफा कहा जाता था और 1972 में केंद्र शासित प्रदेश बनने तक सीधे विदेश मंत्रालय द्वारा शासित किया जाता था। इसके बाद 1987 में अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिया गया था।

अरुणाचल राज्य का असम और नागालैंड राज्यों के साथ घनिष्ठ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध है। इसके विपरीत, एलएसी ऊबड़-खाबड़ और दुर्गम इलाके में स्थित है और टीएआर के साथ ज्यादा कनेक्टिविटी नहीं है।  मैं महसूस करता हूं कि युवा छात्रों, विशेषकर अरुणाचल प्रदेश के छात्रों को इस राज्य और क्षेत्र के साथ हमारे प्राचीन संबंधों का दस्तावेजीकरण करने के लिए इतिहास पर गंभीरता से शोध करना चाहिए।

भारत ने चीन की कार्टोग्राफिक और अन्य प्रतिकूल गतिविधियों का काफी बेहतर जवाब दिया है। इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी का विकास काफी बेहतर हुआ है।  प्रथम ग्राम नामक योजना के माध्यम से सीमावर्ती गांवों को और बेहतर बनाने के लिए बड़ी संख्या में परियोजनाएं चल रही हैं। उत्तराखंड में माना को आधिकारिक तौर पर अक्टूबर 2022 में प्रधान मंत्री मोदी द्वारा देश के पहले गांव के रूप में नामित किया गया था और उन्होंने कहा कि प्रत्येक सीमावर्ती गांव पहला गांव होना चाहिए न कि देश का आखिरी गांव। सैन्य रूप से, सैनिकों की स्थायी तैनाती के मामले में भारत बहुत मजबूत है, लेकिन हमें चीन के विशाल शस्त्रागार के साथ जल्द ही बराबरी करनी होगी।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद, चीन के पाकिस्तान के समर्थन में खुलकर सामने आने के साथ, अब यह स्पष्ट है कि भारत को हर समय दो मोर्चों पर युद्ध या संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा। पाकिस्तान का समर्थन करके, स्पष्ट रूप से अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए, चीन ने अप्रत्यक्ष रूप से राज्य प्रायोजित आतंकवाद के साथ अपनी मिलीभगत का संकेत दिया है। चीन ने अतीत में भारत के पूर्वोत्तर में सक्रिय आतंकवादी समूहों को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति की है। इसलिए भारत को अब पूर्वोत्तर खासकर असम और मणिपुर में आतंकी गतिविधियों में बड़ी वृद्धि के लिए बेहतर तरीके से तैयार रहना होगा। आने वाले समय में, चीन के प्रतिवाद के रूप में भारत को तिब्बत पर अपनी घोषित स्थिति की समीक्षा करनी पड़ सकती है।

इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं और प्रतिद्वंद्वियों के रूप में, भारत और चीन अनिवार्य रूप से एक-दूसरे के साथ टकराएंगे। एक विकसित राष्ट्र के रूप में भारत का बढ़ता उदय (विकसित भारत @2047) किसी न किसी तरह से चीन की चुनौती का सामना करेगा। निकट भविष्य में भारत और चीन भले ही युद्ध से दूर रहें, लेकिन अन्य क्षेत्रों में, हम चीन से बहुत अधिक हस्तक्षेप देखने की संभावना रखते हैं। चीन के खतरनाक मंसूबों को विफल करने के लिए एक राष्ट्र के रूप में हमारी सामूहिक शक्ति की आवश्यकता होगी। जय भारत!

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