असम में हुए पंचायत चुनाव में एक बार फिर से जनता ने भाजपा ओर इसके अन्य सहयोगी दल जैसे असम गण परिषद सहित अन्य दलों को बढ़ चढ़कर समर्थन दिया हैं. पंचायत चुनाव में भाजपा के सुनामी के आगे कांग्रेस पार्टी, बदरुद्दीन अजमल की आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट सहित अन्य विपक्षी दल पूरी तरह धराशायी हो गए हैं. इस पंचायत चुनाव में एक ख़ास तथ्य यह हैं की भाजपा अपने परम्परागत गढ़ के अलावे मुस्लिम बाहुल्य इलाको में भी अच्छा प्रदर्शन करती दिख रही हैं. वर्तमान पंचायत चुनाव अगले वर्ष होने वाले असम विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा था.
असम के मुख्यमंत्री ने भाजपा और अपने सहयोगी दलों के उम्दा प्रदर्शन के आधार पर आगामी विधानसभा चुनाव में 95 सीट जीतने का लक्ष्य बनाया हैं. इन पंचायत चुनावों से कई बात सामने निकल कर आ रही हैं. लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के उपनेता और जोरहाट के सांसद गौरव गोगोई के संसदीय क्षेत्र में जिला परिषद की एक भी सीट कांग्रेस पार्टी जीतने में नाकाम रही हैं. यह बताने के लिए काफी हैं की कांग्रेस पार्टी का अब वोट नगण्य हो गया हैं. कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों और नेतावो का ही वोट शेष हैं. असम में कांग्रेस पार्टी केवल मुस्लिम बाहुल्य कुछ इलाको में जीत दर्ज़ कर अपनी इज़्ज़त बचाने का प्रयास कर रही हैं.
जिला परिषद्
आंचलिक पंचायत
एनडीए का प्रदर्शन
इस ग्राफो से यह स्पष्ट हैं कि भाजपा और इसके सहयोगी दल अगप ने जिला परिषद् और आंचलिक पंचायत दोनों स्तर के चुनावों में अपनी सीटों में बढ़ोतरी किया है, वहीं कांग्रेस पार्टी के सीटों की संख्या में काफी कमी आई है।
असम को राजनीतिक तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। असम में जिस दल की सरकार बनती है, उस दल की पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी स्वीकार्यता बन जाती है। एक समय पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा एक अप्रासंगिक दल के रूप में देखी जाती थी। मगर वर्तमान में 2014 के बाद भाजपा ने देश के अन्य हिस्सों की तरह ही पूर्वोत्तर के राज्यों में भी अपना परचम लहराना शुरू कर दिया है। वर्तमान में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और असम में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं।
अगले साल 2026 में देश के कई महत्वपूर्ण राज्यों तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल, पुडुचेर्री और केरल में विधानसभा के चुनाव आहूत हैं। अगले वर्ष के विधानसभा चुनाव से पूर्व पंचायत चुनावों में कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की इतनी बुरी पराजय आनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के लिए एक बड़ा संकेत है। लोकसभा के चुनाव के बाद सामगुरी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में ऐसा लगा था कि कांग्रेस पार्टी और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी अब गठबंधन के लिए आगे बढ़ रहे हैं, मगर पंचायत चुनाव के नतीजों के बाद अब अजमल की पार्टी भी कांग्रेस पार्टी को कम सीटों पर निपटाने का प्रयास करेगी। ऐसा ही प्रयास कांग्रेस के अन्य सहयोगी दल भी करेंगे। मगर कांग्रेस पार्टी की पूरे देश में अघोषित नीति है कि चुनाव में भले हार का सामना करना पड़े मगर सहयोगी दलों को आगे नहीं बढ़ने दिया जाए।
वर्तमान पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी का बुरा प्रदर्शन दिनों दिन उसके कमजोर होते हालात की ओर इशारा कर रहा है। असम जो कभी कांग्रेस पार्टी के लिए गढ़ हुआ करता था वहां भी कांग्रेस पार्टी तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, आंध्र प्रदेश जैसे बुरे हालात की ओर बढ़ती जा रही है। आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी विपक्षी दल की हैसियत हासिल करने के लिए असम में संघर्ष करती दिखेगी ऐसा अनुमान इस पंचायत चुनावों से सामने आ रहा है।
असम कांग्रेस पार्टी के लिए 1952 के प्रथम चुनाव से ही मजबूत गढ़ रहा है। 2016 से पूर्व असम में हुए 13 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने 10 बार स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। कांग्रेस पार्टी का ऐसा चुनावी प्रदर्शन कम ही राज्यों में देखने को मिला था। मगर 2014 में भाजपा के अभ्युदय के बाद कांग्रेस पार्टी देश के अन्य राज्यों की तरह ही असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में हाशिये पर चली गई है।
वहीं असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भाजपा का सफर बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा है। भाजपा 1985 के असम विधानसभा के चुनाव में अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। मगर भाजपा ने 2016 के विधानसभा के चुनाव में अपने सहयोगी दलों के साथ महज 89 सीटों पर चुनाव लड़कर 60 सीट जीतकर सरकार बनाने के स्पष्ट बहुमत से महज 4 सीट ही कम प्राप्त किया। भाजपा की सरकारों पर सत्ता विरोधी लहर नहीं के बराबर लगती है चाहे वो केंद्र की सरकार हो या राज्यों की। 2021 के असम विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने 93 सीटों पर चुनाव लड़कर सत्ता विरोधी लहर को मात देते हुए फिर से 60 सीट जीत कर अपने सहयोगियों के साथ स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाने में सफल हुई।
असम विधानसभा चुनाव में यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि 2011 में महज पांच सीट जीतने वाली भाजपा ने 2016 में 55 सीट अधिक जीतते हुए 60 सीटें जीतकर अपने विरोधियों को चकित कर दिया था। ऐसा प्रदर्शन भाजपा ने कई अन्य राज्यों त्रिपुरा, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में कर चुकी है। 2026 में भाजपा केरल और पश्चिम बंगाल में इस तरह के प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है।
भाजपा ने अपने जनसरोकार के कदमों से जैसे आधारभूत संरचना में विकास, जनता के लिए अन्य आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराने के कारण जनता के दिल में लंबे समय काल के लिए पैठ बनाने में सफलता प्राप्त किया है। असम में भाजपा केवल विधानसभा के चुनावों में ही नहीं बल्कि लोकसभा के चुनावों में भी अपने प्रदर्शन के बदौलत कांग्रेस और अन्य दलों को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है।
अनुमानों के मुताबिक असम मुस्लिमों की जनसंख्या 34.22% है। ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम भाजपा को मतदान नहीं करते हैं इसके बावजूद भी भाजपा का असम में लगातार तीन लोकसभा में जोरदार प्रदर्शन और दो बार राज्य में सरकार बनाना एक बड़ा उदाहरण है। असम में मुस्लिमों के मतदान में एक बड़ा परिवर्तन 2024 के लोकसभा के चुनाव में देखा गया है। मुस्लिम बाहुल्य धुबड़ी लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी के रकीबुल हुसैन ने पूर्वोत्तर में मुस्लिम राजनीति के सबसे बड़े चेहरा और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के सर्वेसर्वा बदरुद्दीन अजमल को देश में सबसे अधिक दस लाख से अधिक मतों से पराजित किया है जो कांग्रेस पार्टी के एक तिहाई से अधिक 34 सांसदों के जीत के अंतर से भी अधिक है। इसका स्पष्ट निहितार्थ है कि मुस्लिमों ने ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट से किनारा करके अब कांग्रेस पार्टी को फिर से मत दिया है। वहीं मुस्लिमों का मतदान के लिए अजमल जैसे बड़े नेता को किनारे करके कांग्रेस पार्टी को इतने बड़े पैमाने पर मतदान करना दिखाता है कि मुस्लिम में मतों का विभाजन नहीं होता है।
बदरुद्दीन अजमल का लोकसभा चुनाव में अपने से कनिष्ठ कांग्रेस नेता रकीबुल हुसैन के हाथों इतनी बुरी हार बहुत ही परेशान करनेवाली थी जो उनके और उनकी पार्टी के राजनीतिक अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है। यहां तक कि उनकी पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में असम के तीन लोकसभा की सीटों पर चुनाव लड़कर कुल 25 विधानसभा की सीटों में एक भी सीट पर बढ़त बनाने में नाकाम रही। यह दर्शाता है कि अजमल की पार्टी से मुस्लिम किनारा करके एकमत से अब कांग्रेस को मतदान कर रहे हैं। यह स्पष्ट बताता है कि मुस्लिम मतदाता हमेशा किसी खास पार्टी को ही पूरे राज्य में मतदान करते हैं।
पश्चिम बंगाल में एक समय मुस्लिम मतदाता कम्युनिस्ट पार्टियों को मतदान करता था, वह अब पूरी तरह ममता बनर्जी की अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस को मतदान कर रहा है। बिहार और उत्तर प्रदेश में 1990 तक मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को मतदान करते थे, वह अब समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता को मतदान कर रहे हैं। जबकि केरल में अभी भी मुस्लिम मतदाता कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को मतदान करता है। वहीं जम्मू कश्मीर में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान स्थानीय दलों नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और अब कुछ निर्दलीयों के लिए कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के तर्ज पर ही बदरुद्दीन अजमल के मजबूत गढ़ धुबड़ी जहां से लगातार तीन बार वह सांसद रहे हैं, वहां से उनकी पार्टी ऑल इंडियन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की बुरी हार और कांग्रेस की जीत यह मुहर लगाती है कि मुस्लिम मतदाता एकमत से किसी भी खास पार्टी के लिए ही मतदान करते हैं।
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