विश्लेषण

ऑपरेशन सिंदूर: मीडिया में टीआरपी की होड़, गंभीर सुरक्षा स्थिति को वीडियो गेम के रूप में खेला जा रहा था

रनिंग कमेंट्री, एक्सपर्ट कमेंट्स और विचित्र कहानियां सामने आने लगीं। एक-दूसरे को मात देकर टीआरपी हथियाने की होड़ मच गई। एक गंभीर सुरक्षा स्थिति को वीडियो गेम के रूप में खेला जा रहा था।

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लेफ्टिनेंट जनरल एम के दास,पीवीएसएम, बार टू एसएम, वीएसएम ( सेवानिवृत)

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए नृशंस आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए थे, भारत में मीडिया ने भारतीयों के गुस्से और आक्रोश को बहुत ही उचित तरीके से उजागर किया । मीडिया ने इस नरसंहार के खिलाफ जम्मू-कश्मीर, विशेष रूप से दक्षिण कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों को भी उजागर किया। भारतीय मीडिया राष्ट्र को एकजुट करने में सक्षम रहा। इस एकता में राजनीतिक दल भी शामिल थे, जिन्होंने मोदी सरकार से पाकिस्तान के खिलाफ उचित जवाब देने का आग्रह किया, जो मानवता के खिलाफ इस जघन्य अपराध का प्रायोजक है।

लेकिन घटना के एक हफ्ते बाद, मीडिया ने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकी कृत्य का बदला लेने के लिए सरकार पर दबाव डालना शुरू कर दिया। कुछ टीवी चैनलों ने लंबी चर्चाएं कीं और पाकिस्तान के खिलाफ भारत के लिए उपलब्ध सैन्य विकल्पों पर चर्चा करने के लिए मॉक वॉर रूम स्थापित किए। कुछ वरिष्ठ सेवानिवृत्त रक्षा अधिकारियों का ऐसी चर्चा का हिस्सा होना और भी चिंताजनक था। नतीजतन, रक्षा मंत्रालय को सेवानिवृत्त समुदाय को संयम बरतने और संवेदनशील सैन्य जानकारी देने से परहेज करने के लिए एक सलाह जारी करनी पड़ी।

जब 6/7 मई की आधी रात के बाद ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया गया और नौ आतंकी पैड सफलतापूर्वक नष्ट कर दिए गए, तो टीवी चैनल और सोशल मीडिया हैंडल अचानक उत्तेजित हो गए। रनिंग कमेंट्री, एक्सपर्ट कमेंट्स और विचित्र कहानियां सामने आने लगीं। एक-दूसरे को मात देकर टीआरपी हथियाने की होड़ मच गई। एक गंभीर सुरक्षा स्थिति को वीडियो गेम के रूप में खेला जा रहा था। गहमागहमी में कुछ वक्ता शिष्टाचार तक भूल गए। तथ्यों की जांच किए बिना दावे और प्रतिदावे किए जा रहे थे।

इस तरह के मीडिया उन्माद ने एमओडी को एक बार फिर एक सलाह जारी करने के लिए प्रेरित किया कि सभी मीडिया चैनलों, डिजिटल प्लेटफार्मों और व्यक्तियों को सलाह दी जाती है कि वे रक्षा अभियानों और सुरक्षा बलों की आवाजाही की लाइव कवरेज या वास्तविक समय की रिपोर्टिंग से बचें। इस तरह की संवेदनशील या स्रोत-आधारित जानकारी का प्रकटीकरण परिचालन प्रभावशीलता को खतरे में डाल सकता है और सैनिकों के जीवन को भी खतरे में डाल सकता है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि कंधार विमान अपहरण, करगिल युद्ध और 26/11 को मुंबई आतंकवादी हमलों की पूर्व घटनाओं ने समय से पहले रिपोर्टिंग के खतरों को प्रदर्शित किया है।

सराहनीय कदम

मोदी सरकार ने 7 मई की सुबह से 10 मई तक विदेश सचिव और भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना की दो महिला अधिकारियों द्वारा मीडिया ब्रीफिंग करके बुद्धिमानी का परिचय दिया । 10 मई की शाम को विदेश सचिव द्वारा आपसी फ़ाइरिंग की समाप्ति (जिसे आधिकारिक तौर पर युद्धविराम कहा जाता है) की घोषणा किए जाने के बाद, आधिकारिक स्थिति स्पष्ट रूप से बता दी गई। पाकिस्तान की ओर से तीन घंटे के अंदर ही गोली न चलाने के समझौते का उल्लंघन किया गया तो विदेश सचिव ने एक बार फिर मीडिया को बयान दिया। इस प्रकार, मोदी सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर की सारी जानकारी अपने नागरिकों को दी।

सोशल मीडिया की अटकलों पर विराम

मुझे लगता है कि भारतीय सेना, वायु सेना और नौसेना के संचालन महानिदेशकों द्वारा मीडिया अपडेट और सवाल जवाब 11 मई शाम और 12 मई दोपहर को पेशेवर रूप से आयोजित की गई । सैन्य गोपनीयता की बाधाओं के भीतर, सभी जानकारी और सबूत प्रस्तुत किए गए । मीडिया के सवालों का भी परिपक्व तरीके से जवाब दिया गया। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में चल रही अटकलों को इन ब्रीफिंग के माध्यम से खारिज किया गया। मौका भांपते हुए कुछ राजनीतिक दल भी शोर मचा रहे थे और इन ब्रीफ़िंगस के माध्यम से उन्हें भी जवाब मिल गया होगा।

सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म को और अधिक जवाबदेह बनाना होगा

चूंकि भारत को भविष्य में भी इसी तरह की संघर्ष स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए सरकार के लिए शुरुआत में ही स्पष्ट मीडिया दिशानिर्देश जारी करने का समय आ गया है। भारत जैसे सच्चे लोकतांत्रिक सेटअप में, मीडिया और प्रेस स्व-विनियमित हैं, लेकिन संघर्ष की स्थितियों के दौरान  कड़े नियम होने चाहिए, ताकि सुरक्षा से समझौता न हो। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म को और अधिक जवाबदेह बनाना होगा। तथ्यों को सत्यापित किए बिना किसी संदेश को अग्रेषित करने की प्रवृत्ति के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। संक्षेप में, हमें युद्ध, युद्ध जैसी या संघर्ष वाली स्थितियों में एक प्रभावी मीडिया नीति की आवश्यकता है।

रक्षा और सुरक्षा विशेषज्ञ पर ध्यान दें

अगला मुद्दा रक्षा विशेषज्ञों और सुरक्षा विशेषज्ञों से संबंधित है। भारत में इतने सारे समाचार चैनलों के बन जाने के बाद, किसी भी भूतपूर्व सैन्य अधिकारी को उनकी विशेषज्ञ टिप्पणियों के लिए उपयोग करने की प्रवृत्ति है।  मैं यह नहीं कहता कि सामरिक ज्ञान सिर्फ वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारियों का विशेषाधिकार है। लेकिन मीडिया चैनलों को सेवानिवृत्त अधिकारी के प्रोफाइल और सैन्य अनुभव की जांच करनी चाहिए। केवल अधिकारी ही क्यों, यथासमय हमारे सेवानिवृत्त जेसीओ और जवानों को टीवी चैनलों में शामिल किया जा सकता है, बशर्ते उनमें जरूरी अनुभव हो। कोशिश यह होनी चाहिए की एक रक्षा विशेषज्ञ को केवल व्यक्तिगत अनुभव और पेशेवर विशेषज्ञता के आधार पर टिप्पणी करने के योग्य होना चाहिए। भारत को आर्म चेयर रणनीतिकारों की जरूरत नहीं है।

युद्ध बॉलीवुड की कोई नाटकीय एक्शन फिल्म नहीं

इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारी सेवानिवृत्त बिरादरी नेक नीयत से ऐसा कर रहें हैं। लेकिन राष्ट्र को यह समझना होगा कि संघर्ष या युद्ध के खूनी परिणाम होते हैं और सफलता के लिए सैनिकों को बलिदान भी देना पड़ता है।  यहां तक कि सबसे अच्छी योजनाओं और सर्वोत्तम शस्त्रागार के साथ, आप युद्ध में अधिकारियों और सैनिकों के कीमती जीवन खो देते हैं। युद्ध बॉलीवुड की कोई नाटकीय एक्शन फिल्म नहीं है जहां सैकड़ों दुश्मन सैनिकों को टक्कर देने वाली कोई वन मैन आर्मी को दिखाया जाता है।  हां, हमारे अधिकारियों और जवानों ने अनुकरणीय साहस दिखाया है और हमें लड़ाई में कई बार असंभव जीत दिलाई है। लेकिन इस तरह की सभी कार्रवाइयां हमारे अधिकारियों और सैनिकों के सर्वोच्च बलिदान के साथ हुई हैं। 1999 में कारगिल युद्ध में कई जीत ऐसी उत्कृष्ट लड़ाइयों के बेहतरीन उदाहरण हैं।

पाकिस्तान के दावों की खोल सकते हैं पोल

भारतीय सैन्य बल अराजनीतिक हैं और पूर्व अधिकारियों के बयानों का कोई राजनीतिक रंग नहीं होना चाहिए। गर्वित भूतपूर्व सैनिक सच्ची रेजिमेंटल भावना से सेवारत सैनिकों का मनोबल बढ़ा सकते हैं। सुरक्षा विशेषज्ञ अपने अनुभव का उपयोग पाकिस्तान द्वारा झूठे प्रचार का विश्लेषण करने के लिए कर सकते हैं। वे अपने तार्किक अनुभव के साथ पाकिस्तान द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर किए गए दावों को खारिज कर सकते हैं। इस प्रकार, रक्षा और सुरक्षा विशेषज्ञ चल रहे अभियानों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। अपने सैन्य अनुभव से सुरक्षा विशेषज्ञ देश में सजग और जानकार नागरिक तैयार कर सकते हैं।

युद्ध के होते हैं दीर्घकालिक परिणाम

युद्ध एक गंभीर वास्तविकता है, जिसके दीर्घकालिक परिणाम होते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने जबरदस्त संयम का परिचय दिया है और पाकिस्तान को नपा-तुला, समानुपातिक और बिना उकसावे वाला जवाब दिया है। भारतीय मीडिया को भी संघर्ष की स्थितियों के दौरान रिपोर्टिंग करते समय उसी धर्म का पालन करना चाहिए। आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए समझदार और जिम्मेदार नागरिकों की जरूरत है। आतंक के खिलाफ लड़ाई में 140 करोड़ भारतीयों के संकल्प को मजबूत करना हमारे मीडिया की गंभीर जिम्मेदारी है और उन्हें सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना चाहिए। जय भारत!

 

 

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